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गुरुवार, 27 सितंबर 2018

*बाड़मेर के पर्यटन की प्राथमिकता मीटिंगों तक सीमित,कोई प्रयास नही पर्यटको को जोड़ने की*

*बाड़मेर के पर्यटन की प्राथमिकता मीटिंगों तक सीमित,कोई प्रयास नही पर्यटको को जोड़ने की*

*बाड़मेर न्यूज़ ट्रैक*

*आज विश्व पर्यटन दिवस है। पर्यटन को लेकर बाड़मेर में काफी संभावनाएं है।मगर इन संभावनाओं को फलीभूत करने का प्रयास किसी ने नही किया।।जिला प्रशासन के पर्यटन विकास के प्रयास बैठकों तक सीमित होते है। पर्यटन समितियों में विषय विशेग्यो को सदस्य बनाने की बजाय टूरिज्म की ए बी सी डी नही जानने वाले या होटल व्यवसायी है जो अपने स्वार्थ से ऊपर नही उठते। बाड़मेर में सबसे आकर्षक किराडू के प्राचीन मंदिर है तो जूना का किला भी है,जेसलमेर की तर्ज पर बना कोटड़ा किला,देवका का सूर्य मंदिर,सिवाना का गढ़,पिपळून की ऐतिहासिक पहाड़िया जंहा कभी अकबर रहा ।अकबर के पोते की सुरक्षा वीर दुर्गादास ने की क्योंकि वो शरणागत था। बाड़मेर के रेतीले टीले महाबार ,रोहिडी, चोहटन देखने लायक है।।खासकर रोहिडी के स्वर्णिम ऊंचे लहरदार टीले सम और खुहड़ी से लाख दर्जे आकर्षक है।रोहिडी सरहद पर है ।फिर भी इसे टूरिज्म से जोड़ा जाए तो हज़ारो देशी विदेशी पर्यटक आकर्षित हो सकते है।।बाड़मेर का हस्तशिल विश्व मे परचम फहरा रहा है मगर हस्तशिल्प और हस्तशिल्पियों के विकास के कोई सार्थक प्रयास आज तक नही हुए ।।उल्टे दलाल संस्थाए उनके आर्थिक शोषण में और अधिक सक्रिय हो गई।।बाड़मेर के हस्तशिलप के नाम करोड़ो का बजट आता है मगर हस्तशिल्पियों को आज भी शोषण के अलावा कुछ नही मिला।बाड़मेर की लोक कला संस्कृति राजस्थान की सबसे समृद्ध है।।इसके सरंक्षण के प्रयास नही हुए।।बाड़मेर की जीवन शैली बहुत आकर्षक है जो टूरिज्म बढ़ाने के लिए मास्टर स्ट्रोक है।।यहां का पहनावा आकर्षक है। यहां के लोक गीत और गायकों का कोई सानी नही मगर मांगणियार कम्युनिटी के विकास की तो दूर की बात उन्हें सम्मान के लायक कभी प्रशासन ने नही समझा। बाड़मेर जिले का डांडिया गैर नृत्य,आंगी बंगी।  गैर नृत्य विश्व का सबसे आकर्षक नृत्य है इतना ही लोक प्रिय मगर इनका भी कोई धनी धोरी नही।यह नृत्य कला भी लुप्त होने के कगार पे है। बाड़मेर टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए थार महोत्सव शुरू हुआ था,जिसको दलाल ले डूबे।।होटल व्यवसायियों ने इस आयोजन के मूल स्वरूप से छेड़छड़ कर इसे खत्म ही कर दिय।।पिछले कई सालों से इसका आयोजन नही हो रहा। रेडाणा के रण को टूरिज्म से जुड़ने और इसके लोकप्रिय होने की अपार संभावनाएं है।।बाड़मेर टूरिज्म में अपना परचम लहरा सकता है मगर कोई सार्थक प्रयास नही करता।।

बुधवार, 12 नवंबर 2014

बाड़मेर ऐतिहासिक कोटड़ा किला बनाने वाले कारीगर के हाथ काट दिए थे,सरंक्षण की दरकार




बाड़मेर ऐतिहासिक कोटड़ा किला बनाने वाले कारीगर के हाथ काट दिए थे,सरंक्षण की दरकार 



बाड़मेर से लगभग 53 किलोमीटर दूर िव तहसील के कोटड़ा ग्र्राम में रेतीले

भूभाग में एक छोटी सी पहाड़ी पर कलाकृतियों से अलंकृत ऐतिहासिक

किला बना हुआ है। कोटड़े का किला मारवाड़ के सर्वश्रेण्ठ नव कोटो (दुर्ग)

में से एक है। कोटड़ा की गिनती मण्डोर, आबू, जालोर, बाड़मेर, परकारां,

जैसलमेर, अजमेर व मारु के किलो के साथ की जाती है। बाड़मेर जिले की

ऐतिहासिक धरा पर जहां किराडू, खेड़ जूना गोहणा भाखर जैसे दार्नीय

पुरात्तव स्थल है। वहीं एक छोटी सी पहाड़ी पर कलाकृतियों से अंलकृत

कोटड़ा किला है। इस किले के चारो ओर बड़ी बड़ी आठ बुर्जे बनी हुई है।

इन बुर्जो के बीच बीच में विल ऊंची दीवारो के मध्य कई महल और मकान

है। बुर्जो व मध्य स्थित दीवारो में दुमनो से मुकाबले हेतु मोर्चे बने हुए है।

इस किले को बनाने की प्रेरणा जैसलमेर का सोनार किला है। कोटड़ा का

किला भारी चट्टानो को काट कर सोनार किले कि तरह बनाने का अद्भुत

प्रयास किया गया है। किले के स्वामित्व के सम्बन्ध में एक िलालेख उपलब्ध

है। जिसमें वि.स.के आदे तीन अक्षर 123 विद्यमान है। जबकि अन्तिम अक्षर

लुप्त है। इससे आभास होता है कि किला विक्रम संवत 1230 से 1239 तक

अविध में आसलदेव ने कराया था। उन्होने किले की मरम्मत करवाने के साथ

कई राजप्रसादो का भी निर्माण कराया। तत्पचात भानै: भाने: विभिन्न भासको

एवं साहूकारो ने किले के भीतरी भागो में कई नये निर्माण कार्य करवाने में

महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्राचीन वैभव की ये ऐतिहासिक िल्प कलाएं धरा

ायी हो चुकी है। कोटड़े के किले में एक कलात्मक झरोखा है जिसे स्थानिय

भाशा में मेडी कहते है। मेडी भी जीणाीर्ण अवस्था में है इसे राव जोधाजी के

वांज मारवाड़ के भासक मालदेव के खजांची गोवर्धन खीची ने बनाया था।

प्राचीन समय से ही कोटड़ा ऐतिहासिक, सामाजिक धार्मिक व राजनैतिक घ

ाटनाओं का साक्षी रहा है। इस दुर्ग पर समयसमय पर कई आक्रांताओं ने

आक्रमण किए। मुस्लमानो के आक्रमण ने पंवारो से कोटड़ा छीन लिया।

चोदहवीं भाताब्दी में खेड़ के राठौड़ रणधरी ने िव को कब्जे में करते हुए

कोटड़ा पर भी अपना अधिकार किया किन्तु उनके भतीजे राठौड़ सोपा ने

उनकी हत्या कर कोटड़ा पर अपना आधिपत्य जमा लिया। सौपों के वांज

इतिहास प्रसिद्व दानवीर राणा बागसिंह ने इस क्षैत्र पर पूर्ण अधिकार किया।

राठौड़ो का आधिपत्य होने के कारण आज भी यहां राठौड़ो की कोटड़िया वि

ख्यात है। इतिहासकारो के अनुसार कोटड़े के चाचा और मेरा वीर राठौड़ो ने

मेवाड़ के महाराणा मोकलजी को संवत 1490 में मार दिया जिसका बदला

लेने हेतु राव रणमल ने छः माह तक कोटड़े को घेरे रखा अन्त राव रणमल



















इन दोनो को मारने में सफल हुआ तथा कोटड़े पर अपना अधिकार जमा

लिया। संवत 1553 में राव सूजा ने भी कोटड़े को लुटा संवत 1588 में

मारवाड़ की राजगद्वी पर राव मालदेव बैठे तब कोटड़ा इनके अधीन रहा।

महाराणा सरदारसिंह द्वारा कोटड़ा दान में देने का भी उल्लेख इतिहासकारो

ने किया रावल हरराज ने कोटड़े को जैसलमेर राज्य में मिला दिया। पुख्ता

जानकारी के अनुसार कोटड़ा समयसमय पर जैसलमेर व जोधपुरा राज्यों के

अधीन रहा। कोटड़े के किले में मीठे पानी का कुंआ सरगला है। परमारो के

भासन काल में जब सुराई मुस्लमानों ने इस पर आक्रमण किया तब इस कुए

में विल मात्रा हींग मिला दी जिसके कारण यह कुंआ हींगिया कुंए के नाम

से जाना जाता है। कुंए को किले की प्राचीरो के नी बसी बस्ती से गुप्त सीि

यों से जोड़ा गया है। आपातकाल में इसका उपयोग किया जाता था। आज

इस सीयों के अवोश मात्र रहे है। समय की मार के साथ सीयो रेत में

लुप्त हो गई वही कुंआ समय के थपेड़ो सहतेसहते जर्जर हो गया। यह

किला राजस्थान के चन्द बेहतरीन दुर्गो में से एक है। इस किले का निर्माण

जैसलमेर का किला बनाने वाले िल्प कार ने अपने दाएं हाथ से किया

जबकी उक्त िल्पकार का बांया हाथ जैसलमेर के महाराजा ने काट दिया

ताकि जैसलमेर जैसा किला अन्यत्र ना बना सकें। यह कोटड़े का किला सा

क्षी है।