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मंगलवार, 14 अगस्त 2012

अलवर राजस्थान का सिंह द्वार

राजस्थान का सिंह द्वार कहलाने वाला अलवर जयपुर से १५० व दिल्ली से १७० किलो. दूर है अरावली पर्वतमालाओ के आंचल में बसा है. यहां का विशालकाय प्राचीन किला अलवर के इतिहास कि गाथाएँ सुनाता है.
मेवात के नाम से जाना जाने वाला यह प्राचीन राजपूत राज्य दिल्ली के सबसे करीब था. यहां निवासरत हर नागरिक निर्भीक एवं स्वतंत्रता प्रेमी था जयपुर के शासको के वंशजो से संबंध रखने वाले कच्छवाहा राजपूत महाराजा प्रतापसिंह ने सन् १७७१ में अलवर को जीत कर स्वयं के राज्य कि नीव डाली.
घने जंगलो के बीच बसे इस शहर में आर्कषक झीलें व मनोरम घाटियाँ यहां की प्राकृतिक परम्परा को जीवित किए हुए है. अलवर के करीब राजस्थान का प्रसिद्ध वन्यप्राणी अभयारण्य “सरिस्का” जो बाघ संरक्षण का सर्वोतम स्थान है. इसके साथ ही यहां पर कई दुर्लभ प्रजाति के पक्षी व पशु भी पाये जाते है.
सामान्य जानकारी à क्षेत्रफल : ४४.७६ किलोमीटर, तापमान : गर्मी : 37 –24 C सर्दी : 31-11 C , वर्षा : ५२ सेंटीमीटर, उत्तम मौसम – सितम्बर-फरवरी , भाषा – राजस्थानी, हिन्दी और अंग्रेजी.
 
मुगल साम्राज्य के उदय से पूर्व निर्मित इस किले के चरों और परकोटा बना हुआ है जो बाहरी हमले से किले कि सुरक्षा करता था. यह किला उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक १०६ किलोमीटर में फेला है. यह १५ बड़े व ५१ छोटे बुर्जो और तोपों के लिए ४४६ द्वारों से युक्त एक सुदृढ़ प्राचीर है जिसे आठ विशाल बुर्ज घेरे हुए है. इसमें अनेक द्वार है. जैसे जय पोल, सूरज पोल, लक्ष्मण पोल, चाँद पोल, कृष्ण पोल और अँधेरी गेट प्रमुख है. इसमें जल महल, निकुम्भ महल, सलीम सागर, सूरज कुंड व अन्य मन्दिर स्थित है.


मूसी महारानी की छतरी

Moosi रानी, महाराजा बख्तावर सिंह की पत्नी की स्मृति में बनाया छतरी शानदार है. यह नौ साल लग गए (1804 ई. से 1813 ई.) टंकी के निर्माण को पूरा करने के लिए.



नीमराना किला

अलवर जिले का एक प्राचीन ऐतिहासिक शहर है, जो बेहरोर तहसील में दिल्ली-जयपुर राजमार्ग पर दिल्ली से 122 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह 1947 तक चौहानों द्वारा शासित 14 वीं सदी के पहाड़ी किले का स्थल है. यह किला दुर्लभ, काले हार्नस्टोन ब्रेकिया पत्थरों पर स्थित है और इसके प्राचीर से हरे-भरे खेतों के आकर्षक दृश्य दिखते हैं, जो 50-65 मीटर ऊंचा है. केसरोली किले का मूल पीछे की ओर छठी सदी में खोजा जा सकता है. यह भगवान कृष्ण के वंशज यादवों द्वारा निर्मित होने के कारण प्रसिद्ध है.


सिटी पैलेस या विनय विलास महल

१८वीं शताब्दी के इस महल में राजपूत व मुगल शैली कि वास्तुकला का सुव्यवस्थित समायोजन है. इसके निचले तलो को सरकारी कार्यालयों व जिलो न्यायालयों में बदल दिया गया है और इसकी ऊपरी मंजिल में आजकल संग्रहालय है.




राजकीय संग्रहालय

यहाँ पर १८-१९ वीं शताब्दी के मुगल व राजपूत चित्रों का उत्कृष्ट संग्रह है. साथ ही अरबी फारसी उर्दू और संस्कृत कि दुर्लभ पांडुलिपियां रखी हुई है. जिनमें गुलिस्तां (गुलाबो का बगीचा), वक्त-ऐ-बाबरी (मुगल सम्राट बाबर की आत्मकथा) और बोस्ताँ (झरनों का बगीचा) आदि प्रमुख है. इसके आसपास कई प्राचीन मन्दिर व मूसी महारानी कि छतरी भी स्थित है.संग्रहालय अलवर अनुभाग के महाराजाओं जो कुछ ऐतिहासिक तलवार सुल्तान मोहम्मद घोरी,सम्राटों अकबर और औरंगजेब की पसंद से संबंधित है निजी धन के प्रदर्शन का एक अद्भुत संग्रह है.


पुर्जन विहार
रंग-बिरंगे फूलो व विभिन्न पेड-पैधो की प्राकृतिक छटा इस कदर यहां बिखरी पड़ी है कि पर्यटकों के लिए आने के बाद यहां से जाने कि इच्छा ही नहीं होती है. निर्मल वातावरण में स्थित विभिन्न प्रकार के फूलो की खुशबू से पर्यटकों का मन विभोर हो जाता है वहीं छायादार पेडो की हरियाली व हवा के ठंडे-ठंडे झोंके पर्यटकों को सुस्ताने के लिए मजबूर कर देते है. यहां आकर व्यक्ति को ऐसा अनुभव होने लगता हा कि मनो प्रकृत ने अपनी संपूर्ण छटा यहां बिखेर दी हो.


विजय मन्दिर पैलेस
१९१८ में महाराजा जयसिंह द्वारा निर्मित यह एक भव्य महल है. ऊपर से दिखाई देने वाली सुरम्य झील इसे अभिभूत करने वाला स्थल बना देती है. महल में बना सीताराम का प्रसिद्ध मन्दिर रामनवमी के दौरान असंख्य श्रद्धालुओं का ध्यान आकर्षित करता है.


सिलिसेड झील व पैलेस होटल
१०५ वर्ग किलोमीटर लम्बी शांत झील के तट पर बना रमणीय दृश्यों व वृक्षयुक्त पहाड़ियों व सुंदर छतरियों से युक्त यह उत्कृष्ट पिकनिक स्थल है. ईसवी सन् १८४५ में महाराजा विनय सिंह ने अपनी रानी शीला के लिए एक अदभुत शाही महल व शिकारी लॉज बनवाई थी.जहाँ से झील को देखा जा सकता है . अब इसे होटल लेक पैलेस में परिवर्तित कर दिया गया है. यहां नौका विहार कि सुविधा उपलब्ध हा और यह महल , फोटो खिचने वालो और फिल्म बनाने वालो के लिए आनंददायक स्थल है.


जयसमंद झील
सन् १९१० में महाराजा जयसिंह द्वारा निर्मित यह आकर्षक कृत्रिम झील घूमने व पिकनिक मनाने का लोकप्रिय स्थल है. बारिश के दौरान, चारों तरफ फैली हरियाली का समा देखने योग्य है. वहाँ आसानी से सड़क मर्ग द्वारा अलवर से पहुंचा जा सकता है.


सरिस्का

अरावली की सुरम्य घाटी में झूलता यह ७६५.८० वर्ग किलोमीटर लम्बा घना वृक्षयुक्त अभ्यारण्य है. इस उत्कृष्ट बाघ अभयारण्य को १९५५ में प्रोजेक्ट टाइगर योजना के अंतर्गत मान्यता प्रदान की गई . अभयारण्य सूखा पतझड़ वन बाघ, नीलगाय, सांभर, सांगा, चीतल, चौसिंगा व जंगली भालू कि प्रचुरता के लिए प्रसिद्ध है.


सरिस्का पैलेस



अभयारण्य में ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग की यात्रा के दौरान यहां महाराजा जयसिंह ने एक शानदार महल निर्मित करवाया था. आजकल इसे सरिस्का पैलेस होटल में परिवर्तित कर दिया गया है. आर टी डी सी होटल टाइगर डैन में भी रहने की बेहतरीन व्यवस्था है. अभयारण्य में जाने का उपयुक्त समय सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक है. सरिस्का 1892 में बनाया प्लेस - एक शिकार शिविर के रूप में 1900 में अलवर के तत्कालीन शासक द्वारा अब एक लक्जरी होटल है. सरिस्का साल भर आगंतुकों के लिए खुला है, लेकिन वन्य जीवन निरीक्षण करने के लिए सबसे अच्छा मौसम सर्दियों के महीनों के दौरान है. नवंबर से मार्च के लिए अर्थात्. राजस्थान पर्यटन देव. निगम. एक होटल चलाता है और किराया करने के लिए अभयारण्य की यात्रा पर भी परिवहन प्रदान करता है.