171 साल पुरानी परंपरा, आज भी प्रसिद्ध है सनावड़ा का गेर मेला
24 मार्च को धुलंडी के मौके पर बाड़मेर जिला मुख्यालय के निकट सनावड़ा गांव में होगा आयोजन, जिलेभर से लोग करेंगे गेर मेले में शिरकत
बाड़मेर एशियाडमें धूम मचा चुके बाड़मेर जिले के सनावड़ा गैर नृत्य की पहचान का राज 171 साल पुराना है। सदियों पुरानी परंपरा जीवित रखते हुए यादगार बनी हुई है। लाल-सफेद रंग की आंगी पहने सैकड़ों कलाकार ढोल, थाली की टंकार पर लय ताल के साथ डांडिया नृत्य करते हैं। इसकी शुरूआत 171 साल पहले हुई थी। चाहे वो दिल्ली के इंडिया गेट पर राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस हो या फिर राजस्थान दिवस, हर जगह इस कला ने अपनी अनूठी पहचान बनाई है। देश-दुनिया में भी इन कलाकारों की कला को लेकर अच्छा खासा रुझान रहा है, लेकिन विडंबना यह है कि इन कलाकारों से सरकार या न ही प्रशासन के तरफ से तो प्रोत्साहन मिल रहा है और ही सुविधाएं। राजस्थानी फेस्टिवल के दौरान कलाकारों को प्रोत्साहित किए जाने के प्रयास नहीं होते है। इससे धीरे-धीरे इस परंपरा से लोगों का मोह टूटने लगा है, फिर भी सनावड़ा के बुजुर्ग खींयाराम जाखड़ के मार्गदर्शन में सदियों पुरानी गेर नृत्य की परंपरा आज भी जीवित है और हर साल होली के दूसरे दिन धुलंडी पर भव्य मेला भरा जाता है।
देश-दुनियामें बनाई पहचान : सनावड़ाका प्रसिद्ध गेर नृत्य ने बाड़मेर, राजस्थान या देश में ही पहचान नहीं बनाई है, जबकि दुनिया के कई शहरों में यह गेर धूम मचा चुका है। वर्ष 1982 में एशियाड दिल्ली एवं वर्ष 2000 में राष्ट्रीय खेल पूना, चंडीगढ़ में धूम मचा चुका है।
38किलों की आंगी से करते थे गेर नृत्य : पहले: जबगेर नृत्य की शुरूआत हुई थी, तब नौ मीटर खादी कपड़े से बनी इस लाल-सफेद आंगी का वजह करीब 38 किलो के आसपास होता था, लेकिन इस आधुनिकता के दौर में पहनावा बदला तो आंगी का स्वरूप भी बदलता गया।
अब:यहआंगी 38 किलो की बजाय घटकर 7-8 किलों तक पहुंच गई है। अब वो पहले जैसे वजन उठाने वाले तो कलाकार रहे है और ही उस तरह से इस नृत्य के प्रति लोगों में क्रेज। ऐसे में धीरे-धीरे लोग इस खेल से दूर हो रहे हैं।
यहहै गेर नृत्य का पहनावा : खादीपकड़े से बनी आंगी पहनकर सिर पर लाल साफा, कलंकी और कमर पर कमरबंद, पैरों में घुंघरू के साथ गेर नृत्य किया जाता है। ढोल थाली की टंकार पर एक साथ गोल घेरे में कलाकार एक-दूसरे कलाकार के साथ डांडिया टकराते है।
12सालों से स्टेडियम के लिए जमीन का इंतजार : सनावड़ाकी प्रसिद्ध गेर के लिए वर्ष 2004 में तत्कालीन कलेक्टर सुबीर कुमार ने एक स्टेडियम बनाने की घोषणा करते हुए प्लान बनाकर सरकार को भेजा था। इसके तहत 4 लाख रुपए तक सरकार की तरफ और शेष राशि जनप्रतिनिधियों के कोटे से खर्च कर करीब 10 लाख रुपए से अधिक राशि का स्टेडियम बनाया जाना था, लेकिन आज दिन तक ग्राम पंचायत को इस स्टेडियम के लिए जमीन तक नहीं मिली। ग्राम पंचायत के पास बजट भी आया, लेकिन जमीन नहीं मिलने से वो लैप्स हो गया। दरअसल 2004 से पहले सनावड़ा और जाखड़ों की ढाणी ग्राम पंचायत एक ही थे, लेकिन नए गांव सृजित होने के बाद एनएच-15 के एक तरफ सनावड़ा और दूसरी तरफ जाखड़ों की ढाणी ग्राम पंचायत बस गई। ऐसे में अब सनावड़ा ग्राम पंचायत के पास जमीन नहीं है, हाइवे के दूसरी तरफ जमीन भी है तो वो दूसरी ग्राम लगती है। ऐसे में जमीन को लेकर पिछले 12 सालों से मामला सुलझ ही नहीं पाया। अब ग्राम पंचायत में भारी भीड़ के कारण दर्शकों को बैठने के लिए जगह भी नहीं मिल रही।
^सदियों पुरानी परंपरा को आज भी हमारे गांव के लोग जीवित रखे हुए है। 171 साल से होली के दूसरे दिन धुलंडी के मौके पर गेर मेले का आयोजन होता है। इसमें बाड़मेर जिले भर से भारी संख्या में लोग भाग लेते है। होली से 5-7 दिन पहले ही इस गेर नृत्य का पूर्वाभ्यास शुरू हो जाता है। -खींयाराम जाखड़,संरक्षक, गेर आयोजन समिति सनावड़ा
24 मार्च को धुलंडी के मौके पर बाड़मेर जिला मुख्यालय के निकट सनावड़ा गांव में होगा आयोजन, जिलेभर से लोग करेंगे गेर मेले में शिरकत
बाड़मेर एशियाडमें धूम मचा चुके बाड़मेर जिले के सनावड़ा गैर नृत्य की पहचान का राज 171 साल पुराना है। सदियों पुरानी परंपरा जीवित रखते हुए यादगार बनी हुई है। लाल-सफेद रंग की आंगी पहने सैकड़ों कलाकार ढोल, थाली की टंकार पर लय ताल के साथ डांडिया नृत्य करते हैं। इसकी शुरूआत 171 साल पहले हुई थी। चाहे वो दिल्ली के इंडिया गेट पर राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस हो या फिर राजस्थान दिवस, हर जगह इस कला ने अपनी अनूठी पहचान बनाई है। देश-दुनिया में भी इन कलाकारों की कला को लेकर अच्छा खासा रुझान रहा है, लेकिन विडंबना यह है कि इन कलाकारों से सरकार या न ही प्रशासन के तरफ से तो प्रोत्साहन मिल रहा है और ही सुविधाएं। राजस्थानी फेस्टिवल के दौरान कलाकारों को प्रोत्साहित किए जाने के प्रयास नहीं होते है। इससे धीरे-धीरे इस परंपरा से लोगों का मोह टूटने लगा है, फिर भी सनावड़ा के बुजुर्ग खींयाराम जाखड़ के मार्गदर्शन में सदियों पुरानी गेर नृत्य की परंपरा आज भी जीवित है और हर साल होली के दूसरे दिन धुलंडी पर भव्य मेला भरा जाता है।
देश-दुनियामें बनाई पहचान : सनावड़ाका प्रसिद्ध गेर नृत्य ने बाड़मेर, राजस्थान या देश में ही पहचान नहीं बनाई है, जबकि दुनिया के कई शहरों में यह गेर धूम मचा चुका है। वर्ष 1982 में एशियाड दिल्ली एवं वर्ष 2000 में राष्ट्रीय खेल पूना, चंडीगढ़ में धूम मचा चुका है।
38किलों की आंगी से करते थे गेर नृत्य : पहले: जबगेर नृत्य की शुरूआत हुई थी, तब नौ मीटर खादी कपड़े से बनी इस लाल-सफेद आंगी का वजह करीब 38 किलो के आसपास होता था, लेकिन इस आधुनिकता के दौर में पहनावा बदला तो आंगी का स्वरूप भी बदलता गया।
अब:यहआंगी 38 किलो की बजाय घटकर 7-8 किलों तक पहुंच गई है। अब वो पहले जैसे वजन उठाने वाले तो कलाकार रहे है और ही उस तरह से इस नृत्य के प्रति लोगों में क्रेज। ऐसे में धीरे-धीरे लोग इस खेल से दूर हो रहे हैं।
यहहै गेर नृत्य का पहनावा : खादीपकड़े से बनी आंगी पहनकर सिर पर लाल साफा, कलंकी और कमर पर कमरबंद, पैरों में घुंघरू के साथ गेर नृत्य किया जाता है। ढोल थाली की टंकार पर एक साथ गोल घेरे में कलाकार एक-दूसरे कलाकार के साथ डांडिया टकराते है।
12सालों से स्टेडियम के लिए जमीन का इंतजार : सनावड़ाकी प्रसिद्ध गेर के लिए वर्ष 2004 में तत्कालीन कलेक्टर सुबीर कुमार ने एक स्टेडियम बनाने की घोषणा करते हुए प्लान बनाकर सरकार को भेजा था। इसके तहत 4 लाख रुपए तक सरकार की तरफ और शेष राशि जनप्रतिनिधियों के कोटे से खर्च कर करीब 10 लाख रुपए से अधिक राशि का स्टेडियम बनाया जाना था, लेकिन आज दिन तक ग्राम पंचायत को इस स्टेडियम के लिए जमीन तक नहीं मिली। ग्राम पंचायत के पास बजट भी आया, लेकिन जमीन नहीं मिलने से वो लैप्स हो गया। दरअसल 2004 से पहले सनावड़ा और जाखड़ों की ढाणी ग्राम पंचायत एक ही थे, लेकिन नए गांव सृजित होने के बाद एनएच-15 के एक तरफ सनावड़ा और दूसरी तरफ जाखड़ों की ढाणी ग्राम पंचायत बस गई। ऐसे में अब सनावड़ा ग्राम पंचायत के पास जमीन नहीं है, हाइवे के दूसरी तरफ जमीन भी है तो वो दूसरी ग्राम लगती है। ऐसे में जमीन को लेकर पिछले 12 सालों से मामला सुलझ ही नहीं पाया। अब ग्राम पंचायत में भारी भीड़ के कारण दर्शकों को बैठने के लिए जगह भी नहीं मिल रही।
^सदियों पुरानी परंपरा को आज भी हमारे गांव के लोग जीवित रखे हुए है। 171 साल से होली के दूसरे दिन धुलंडी के मौके पर गेर मेले का आयोजन होता है। इसमें बाड़मेर जिले भर से भारी संख्या में लोग भाग लेते है। होली से 5-7 दिन पहले ही इस गेर नृत्य का पूर्वाभ्यास शुरू हो जाता है। -खींयाराम जाखड़,संरक्षक, गेर आयोजन समिति सनावड़ा