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गुरुवार, 24 मार्च 2016

171 साल पुरानी परंपरा, आज भी प्रसिद्ध है सनावड़ा का गेर मेला

171 साल पुरानी परंपरा, आज भी प्रसिद्ध है सनावड़ा का गेर मेला

24 मार्च को धुलंडी के मौके पर बाड़मेर जिला मुख्यालय के निकट सनावड़ा गांव में होगा आयोजन, जिलेभर से लोग करेंगे गेर मेले में शिरकत

बाड़मेर एशियाडमें धूम मचा चुके बाड़मेर जिले के सनावड़ा गैर नृत्य की पहचान का राज 171 साल पुराना है। सदियों पुरानी परंपरा जीवित रखते हुए यादगार बनी हुई है। लाल-सफेद रंग की आंगी पहने सैकड़ों कलाकार ढोल, थाली की टंकार पर लय ताल के साथ डांडिया नृत्य करते हैं। इसकी शुरूआत 171 साल पहले हुई थी। चाहे वो दिल्ली के इंडिया गेट पर राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस हो या फिर राजस्थान दिवस, हर जगह इस कला ने अपनी अनूठी पहचान बनाई है। देश-दुनिया में भी इन कलाकारों की कला को लेकर अच्छा खासा रुझान रहा है, लेकिन विडंबना यह है कि इन कलाकारों से सरकार या न ही प्रशासन के तरफ से तो प्रोत्साहन मिल रहा है और ही सुविधाएं। राजस्थानी फेस्टिवल के दौरान कलाकारों को प्रोत्साहित किए जाने के प्रयास नहीं होते है। इससे धीरे-धीरे इस परंपरा से लोगों का मोह टूटने लगा है, फिर भी सनावड़ा के बुजुर्ग खींयाराम जाखड़ के मार्गदर्शन में सदियों पुरानी गेर नृत्य की परंपरा आज भी जीवित है और हर साल होली के दूसरे दिन धुलंडी पर भव्य मेला भरा जाता है।

देश-दुनियामें बनाई पहचान : सनावड़ाका प्रसिद्ध गेर नृत्य ने बाड़मेर, राजस्थान या देश में ही पहचान नहीं बनाई है, जबकि दुनिया के कई शहरों में यह गेर धूम मचा चुका है। वर्ष 1982 में एशियाड दिल्ली एवं वर्ष 2000 में राष्ट्रीय खेल पूना, चंडीगढ़ में धूम मचा चुका है।

38किलों की आंगी से करते थे गेर नृत्य : पहले: जबगेर नृत्य की शुरूआत हुई थी, तब नौ मीटर खादी कपड़े से बनी इस लाल-सफेद आंगी का वजह करीब 38 किलो के आसपास होता था, लेकिन इस आधुनिकता के दौर में पहनावा बदला तो आंगी का स्वरूप भी बदलता गया।

अब:यहआंगी 38 किलो की बजाय घटकर 7-8 किलों तक पहुंच गई है। अब वो पहले जैसे वजन उठाने वाले तो कलाकार रहे है और ही उस तरह से इस नृत्य के प्रति लोगों में क्रेज। ऐसे में धीरे-धीरे लोग इस खेल से दूर हो रहे हैं।

यहहै गेर नृत्य का पहनावा : खादीपकड़े से बनी आंगी पहनकर सिर पर लाल साफा, कलंकी और कमर पर कमरबंद, पैरों में घुंघरू के साथ गेर नृत्य किया जाता है। ढोल थाली की टंकार पर एक साथ गोल घेरे में कलाकार एक-दूसरे कलाकार के साथ डांडिया टकराते है।

12सालों से स्टेडियम के लिए जमीन का इंतजार : सनावड़ाकी प्रसिद्ध गेर के लिए वर्ष 2004 में तत्कालीन कलेक्टर सुबीर कुमार ने एक स्टेडियम बनाने की घोषणा करते हुए प्लान बनाकर सरकार को भेजा था। इसके तहत 4 लाख रुपए तक सरकार की तरफ और शेष राशि जनप्रतिनिधियों के कोटे से खर्च कर करीब 10 लाख रुपए से अधिक राशि का स्टेडियम बनाया जाना था, लेकिन आज दिन तक ग्राम पंचायत को इस स्टेडियम के लिए जमीन तक नहीं मिली। ग्राम पंचायत के पास बजट भी आया, लेकिन जमीन नहीं मिलने से वो लैप्स हो गया। दरअसल 2004 से पहले सनावड़ा और जाखड़ों की ढाणी ग्राम पंचायत एक ही थे, लेकिन नए गांव सृजित होने के बाद एनएच-15 के एक तरफ सनावड़ा और दूसरी तरफ जाखड़ों की ढाणी ग्राम पंचायत बस गई। ऐसे में अब सनावड़ा ग्राम पंचायत के पास जमीन नहीं है, हाइवे के दूसरी तरफ जमीन भी है तो वो दूसरी ग्राम लगती है। ऐसे में जमीन को लेकर पिछले 12 सालों से मामला सुलझ ही नहीं पाया। अब ग्राम पंचायत में भारी भीड़ के कारण दर्शकों को बैठने के लिए जगह भी नहीं मिल रही।

^सदियों पुरानी परंपरा को आज भी हमारे गांव के लोग जीवित रखे हुए है। 171 साल से होली के दूसरे दिन धुलंडी के मौके पर गेर मेले का आयोजन होता है। इसमें बाड़मेर जिले भर से भारी संख्या में लोग भाग लेते है। होली से 5-7 दिन पहले ही इस गेर नृत्य का पूर्वाभ्यास शुरू हो जाता है। -खींयाराम जाखड़,संरक्षक, गेर आयोजन समिति सनावड़ा

मंगलवार, 18 मार्च 2014

foto...लोकसंस्कृति जीवित हो उठी सनावड़ा गेर मेला में


लोकसंस्कृति जीवित हो उठी सनावड़ा गेर मेला में 







सनावड़ा गेर मेले में उमड़ा हुजुम

-होली के दूसरे दिन गेर मेले का आयोजन, हजारों की संख्या में दर्शकों की भीड़ के बीच लाल-सफेद आंगी पहने कलाकारों ने दी मनमोहक प्रस्तुतियां

बाड़मेर. एशियाड में धूम मचा चुके सनावड़ा गेर नृत्य की प्रस्तुति होली के दूसरे दिन धुलण्डी के अवसर पर सनावड़ा गेर मेले में हुई। विशेष पोशाक पहने सैकड़ों कलाकारों ने ढोल व थाली की थाप पर मनमोहक अंदाज में गेर नृत्य की प्रस्तुति देकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। मेले में बाड़मेर जिलेभर से हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ी।

गेर मेले में हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ के बीच लाल-सफेद आंगी पहने कलाकार गोल घेरे में डांडियों को टकराते हुए थिरकते नजर आए। मेले में युवाओं के साथ बुजुर्ग कलाकारों में भी जोश कम नही था। रंग बिरंगी आंगी पहने हाथों में डांडिया लिए गोल घेरे में नृतकों ने लय व ताल के साथ डांडियों की डंकार से सनावड़ा गूंज उठा।

167 सालों से गेर मेले का आयोजन:

167 वां गेर मेला धुलण्डी के दिन दोपहर 3 बजे से प्रारंभ हुआ। इस दौरान गेर नृतक चार दिशाओं में गेर खेलते हुए मैदान में पहुंचे। चार दिशाओं में पंक्तिबंद्ध नृत्य करते हुए गोल घेरा बना दिया। देखते ही देखते गैरिये थाली की टंकार और ढोल की थाप पर गोल घेरे में पारंपरिक अंदाज में थिरकते लगे। कभी खड़े होकर तो कभी योग मुद्रा में नृतकों ने अपना प्रदर्शन किया।

आसपास के गांवों से गेरियों ने भाग लिया:

गेर मेले में जाखड़ों की ढाणी, सनावड़ा, मूढ़ों का तला, रामदेरिया, जेठाणी जाखड़ों की ढाणी, सादुलानियों का तला, सुथारों का तला, कुम्हारों का तला, अणदे का तला, नवा तला, पिंडेलों का तला सहित 15-20 गांवों से गेर कलाकारों ने भाग लिया। दर्शकों की भारी भीड़ के कारण पर्याप्त जगह नहीं होने पर दर्शक मकान, पेड़ व पोल पर चढक़र गेर मेले का आनंद लिया। जेठाणी जाखड़ों का तला पर पहली बार गेर नृत्य की शुरूआत हुई, जहां दर्शकों ने उत्साह के साथ गेर नृत्य की प्रस्तुति दी। इस दौरान नानगाराम मायला, प्रेमाराम, तगाराम, चैनाराम, कुंभाराम मूढ़, खेराजराम, लाखाराम, सहित कई युवाओं ने उत्साह के साथ भाग लेते हुए गेर नृत्य की प्रस्तुति दी।

यह है कलाकरों की वेशभूषा:

गेर नृतक आंगी, बागी घाघरा, कमर कड़बंदा, पांवों में घुंघरु और विभिन्न रंगों में लाल पीला साफा पहने हुए थे। साफों में कलंकी लगाए, गले में कांच कशीदाकारी की बनी हुई पेसी पहने हुए थे। थाली और ढोल बजाने के तौर तरीकों के आधार पर ही गैरियों ने नृत्य की प्रस्तुतियां दी। थाली और ढोल की थाप के साथ ही गैरियों ने नृत्य प्रारंभ कर दिया। जैसे ही थाली की टंकार प्रथम बार बंद होकर पुन: शुरु होती है तो गेर नृतक खड़े होकर खेलने की बजाय योग मुद्रा की स्थिति में आ गए। जब दूसरी बार थाली की टंकार बंद होकर पुन: शुरू होती है तो हेरी नृत्य शुरु हो गया।

नहीं पहुंचे प्रशासनिक अधिकारी:

गेर मेले में इस बार कोई बड़ा प्रशासनिक अधिकारी नहीं पहुंचा। प्रशासनिक उदासीनता के कारण दर्शकों में निराशा नजर आई। जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक कन्हैयालाल रैगर, एडीओ महेंद्र शर्मा, पीराराम शर्मा, सदर थानाधिकारी आंनदसिंह, जिला परिषद सदस्य गोपालसिंह, सरपंच गंगादेवी चौधरी, पूर्व सरपंच कुंभाराम जाखड़, खीयाराम जाखड़ सहित कई बड़े-बुजुर्ग व युवाओं का सहयोग रहा। वहीं शंकरलाल देवपाल, भैरूलाल जैन, युद्धिष्टर, भीम भारती स्वामी, डूंगराराम सारण, लूणकरण बोथरा, भोमाराम मूढ़, ईशराराम, चौखाराम सहित कई लोगों का मेले में सहयोग रहा।