संकट में थार की विरासत
मरू उद्यान से ज्यादा ओरण गोचर को संरक्षण की दरकार
सामाजिक कार्यकर्ता मिले हाई पॉवर कमेटी के सदस्यों से
बाड़मेर।
थार की संस्कृति में रचे-बसे ओरण गोचर पर संकट के बादल मडराने लगे हैं। लगातार आधुनिकता एवं बढ़ता आबादी का दबाव इन ओरण-गोचर को निगलता जा रहा हैं। बावजुद इसके कोई इस ओर ध्यान नहीं दे रहा हैं। वर्तमान मंे मरू उद्यान से कहीं अधिक जरूरत ओरण गोचर को संरक्षित करने की हैं।
एक ओर जहां सीमावर्ती गांवों के लिए दंश बन चुके मरू उद्यान को संरक्षित और विस्तार की बात हो रही हैं वहीं दूसरी ओर ओरण गोचर को बचाने के लिए कोई सोच नहीं रहा हैं और जो लोग इस संस्कृति को बचाने में लगे हैं उन्हें भी प्रशासनिक स्तर पर पर्याप्त समर्थन नहीं मिल रहा हैं।
इसी मुद्दे को लेकर रविवार को थार के पर्यावरण कार्य से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता सहित कई कार्यकर्ताओं का एक प्रतिनिधि मण्डल बाडमेर दौरे पर पहुंची हाई पॉवर कमेटी से मिला और उन्हें थार की इस समस्या से रूबरू कराया। दल के सदस्यों ने इस मुद्दे पर हाई पॉवर कमेटी से चर्चा करते हुए बताया कि ने ओरण गोचर मुद्दे पर बात करते हुए कहा कि जोधपुर संभाग में 1759 गांवो में 134749.95 हेक्टेयर जमीन ओरण की, 2826 गांवो में 3588839.53 हेक्टेयर गोचर जमीन है। इन में से 1177 गांवो में 131223.73 हैक्टेयर जमीन ओरण गोचर है। यह आंकडे राजस्थान सरकार द्वारा श्योर एवं नेहरू युवा केन्द्र व अन्य संस्थाओं के सहयोग से किए गए सर्वेक्षण से सामने आए। जैन ने बताया कि अकेले बाड़मेर-जैसलमेर जिले के 696 गंावो में 96844.32 हैक्टेयर जमीन ओरण की है और 1134 गांवो में 200908.63 हैक्टेयर जमीन गोचर की है। 362 गांवो में ओरण गोचर दोनो है और यह जमीन 54640.49 हैक्टेयर हैं।
डेजर्ट नेशनल पार्क में भी ओरण गोचरः
1981 में अस्तित्व में आए डेजर्ट नेशनल पार्क के काफी हिस्से में ओरण गोचर की जमीन हैं। राजस्व विभाग बाड़मेर ने 7.7.1999 में जारी एक आदेश में बताया कि 8.7.81 के आदेश के माध्यम से 39 गांव राष्ट्रीय मरू उद्यान के अन्तर्गत आ गए जिनकी संख्या बढ़कर वर्तमान में 56 गांव हो गए हैं जो नए गांव बनने के कारण हुआ हैं। कुछ ऐसी ही परिस्थितयां जैसलमेर के 34 गांव शामिल किए गए। जैन ने बताया कि 54 गांवो में ओरण, गोचर या ओरण-गोचर दोनो हैं। जैसलमेर के 28 गांवो में ओरण, गोचर या ओरण गोचर दानो हैं। डेजर्ट नेशनल पार्क के 56 गांवो में से 13 गांवो में 5033.61 ओरण, 54 गांवो में 71138.85 गोचर , 13 गांवो में ओरण गोचर दोनो है जिसका हैक्टेयर 13218.81 हैक्टेयर है। 39 गांवो में मात्र गोचर है जहां ओरण नहीं है जिसका हैक्टेयर 57920.04 हैं। इसी तरह जैसलमेर जिले के डी एन पी के 34 गांवो में 15 गांव ओरण है। जिसका हैक्टेयर 8951.71 है। 15 गांवो में ओरण गोचर दोनो है। 13 गांवो के केवल गोचर है और ओरण नही, जिसका क्षेत्रफल 3458.52 हैक्टेयर है। जैन ने बताया कि बाड़मेर-जैसलमेर जिले के 90 गांवो में से 28 गांवो में 8059.53 हैक्टेयर जमीन ओरण की है। 82 गांवो में गोचर है जिसका क्षेत्रफल 80090.56 हैक्टेयर है। 28 गांवो में ओरण एवं गोचर दोनो हैं, जिसका क्षेत्रफल 18711.95 है। 52 गांवो में मात्र गोचर हैं ओरण नही, जिसका क्षेत्रफल 61378.61 है। जैन ने बताया कि बाड़मेर जिले के डी एन पी क्षेत्र के 13 गांवो की ओरणो में 71743 पेड है और जैसलमेर के 15 गांवो की ओरण में 57569 पेड हैं जिनके अनुसार 28 गांवो की ओरणों में 13 लाख पेड एवं झाडिया 8159 हैक्टेयर जमीन पर होनी चाहिए।
ओरण को बचाने से बचेेगे वन्य-जीव...
राष्ट्रीय मरू उद्यान में वन्य-जीव ओरण गोचर के कारण ही बच सकते हैं। ओरण गोचर का संरक्षण होगा तभी वन्य-जीव संरक्षित होंगे। यह कहना है कि सामाजित कार्यकर्ता भुवनेश जैन का। जैन के मुताबिक फोग, कैर, खेजडी, रोहिडा, जाल, नीम तथा कुमट आदि पेड-झाडियों में खरगोश, लोमडी, कोचर, सुतराडियों, मोर, उल्लु, होलिया, तिलोड सहित अनेक पशु-पक्षियांे के संरक्षण, भोजन आदि की व्यवस्था थी। आंख फूट जी, सेवण, लांप, सिनवाडा, हाडाखेल, चामकस, कुरी, करड, सतनासी, सनेल, बियोनी, लाकडिया, गेंदुला जैसी अनेक वनस्पति का भी अस्तित्व खत्म हो रहा हैं। ओरण गोचर में पानी व्यवस्था, नाडी, बावडी के परम्परागत साधन भी उपेक्षा के शिकार हैं।
समुदाय को सौपें राष्ट्रीय मरू उद्यान...
भुवनेश जैन और इस मुद्दे से जुड़े अन्य लोगों का मानना है कि ओरण गोचर एवं मरू उद्यान जैसे क्षेत्र के संरक्षण के लिए इन्हें स्थानीय समुदाय को सौप दिया जाना चाहिए ताकि वह इसकी ठीक से संरक्षण कर सके। राष्ट्रीय मरू उद्यान में वन्य-जीव बचाने के लिए ओरण गोचर बचाना जरूरी हैं। इसके लिए ओरण गोचर का संरक्षण करने के लिए समुदाय के हाथो में उसकी देखभाल होनी जरूरी हैं। जानकारों के मुताबिक स्थानीय पर्यावरण, संस्कृति और समुदाय का आपसी रिश्ता हैं जिससे ही समुदाय जीवंत और आत्मनिर्भर रहा हैं। समुदाय से ओरण गोचर और मरू उद्यान को अलग कर देने से थार क्षेत्र की संस्कृति एवं पर्यावरण को खतरा हैं।
हाई पॉवर कमेटी से चर्चा के दौरान बताया गया कियह अत्यन्त संवेदनशील मुद्दा है और यहां के जन-जन में पेड-पौधो, पशु-पक्षी से उनका जुडाव है और वह उनकी जिंदगी के बेहतरी को तय करते है। उन्होने कहा कि राष्ट्रीय मरू उद्यान के अन्तर्गत जिन गांवो को लिया गया है उसके यदि कोई पेरामीटर तय है तो उस पर चर्चा करने की जरूरत हैं। अन्यथा वर्तमान स्थिति में तो जोधपुर संभाग के दो हजार से अधिक गांव भी उसी परिधि मे आ सकते हैं।
मरू उद्यान मामले में गर्मायी राजनीति
भाजपा एवं कांग्रेस नेताओं के बीच चला आरोप-प्रत्यारोप का दौर
बाड़मेर।
बाड़मेर-जैसलमेर जिले के दर्जनों गांवों में फैले मरू उद्यान मामलें में शनिवार को बाड़मेर पहुंची हाईपॉवर कमेटी को लेकर रविवार को दोनो प्रमुख दलों में नेताओं में आरोप-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो गया। जहां एक ओर भाजपा नेता एवं संघर्ष समिति के सदस्य कमेटी के अधिकारियों द्वारा लोगो के दुःख-दर्द ना सुनने एवं कांग्रेस नेताओं के ईशारे पर चलने का आरोप लगाया वहीं सांसद हरीश चौधरी एवं कांग्रेसी नेताओं ने भाजपा नेताओं को कमेटी के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करने एवं उन्हें निष्पक्ष अपना काम करने देने की बात कही। इसी राजनीतिक मतभेद के चलते कमेटी का पहले दिन का दौर काफी विवादों भरा रहा।
रविवार को कमेटी के सदस्यों को सुबह प्रशासन के अधिकारियों के साथ बैठक के बाद मरू उद्यान के निर्धारित रूट से गुजरना था। लेकिन कमेटी ने एक-दो गांवों को छोड़कर अपना रूट बदल लिया। इसको लेकर ग्रामीणों में जबरदस्त आक्रोश फैल गया। इतना ही नहीं कमेटी के तुरबी गांव पहुंचने की सूचना को लेकर मरू उद्यान संघर्ष समिति के संयोजक एडवोकेट स्वरूपसिंह राठौड, पूर्व विधायक जालमसिंह एवं शिव विधायक अमीन खां सहित सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण कमेटी का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। लेकिन एनवक्त पर कमेटी द्वारा अपना रूट बदल लेने एवं तुरबी गांव नहीं पहुंचने को लेकर ग्रामीणों ने इस पर रोष जताया। इसके बाद जब कमेटी के उब्रे का पार पहुंचने की सूचना के बाद ग्रामीणों ने बीच रास्ते में ही कमेटी को रोक दिया। ग्रामीणों की ओर से जिला परिषद् सदस्य गणपतसिंह ने बात कहते हुए कहा कि कमेटी स्थानीय लोगों को सुने बिना काम कर रही है, जो गलत है। उन्होने कहा कि जब उन्हें लोगो के दुःख-दर्द सुनना ही नहीं था वह यहां क्यों आई।
भाजपा नेता एडवोकेट स्वरूपसिंह राठौड़ ने बताया कि कमेटी के सदस्य सांसद हरीश चौधरी के ईशारे पर चल रहे हैं और कांग्रेस नेता कमेटी को गुमराह कर रहे हैं। यही कारण हैं कि कमेटी लोगो की समस्याओं को बिना जाने ही काजगी खानापूर्ति के तौर पर अपना भ्रमण कर रही हैं। राठौड़ ने कहा कि हमनेे कमेटी के लोगों के सामने स्थानीय लोगों की समस्याओं को रखा है, कमेटी हमारी बातों से सहमत भी है, अब देखना है कि कमेटी के लोग क्या निणर्य लेते है।
वहीं सांसद हरीश चौधरी का कहना था कि मरू उद्यान के मामले में केन्द्र द्वारा गठित कमेटी अपना काम कर रही हैं। इस मामले में लोगो को राजनीति नहीं करनी चाहिए और कमेटी के काम में हस्तक्षेप ना करते हुए उन्हें अपना काम करने देना चाहिए।
शिव के पूर्व जालमसिंह रावलोत ने बताया कि कमेटी ने अपना निर्धारित रूट बदलकर सही नहीं किया। इसके कारण ग्रामीणों को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि हम कमेटी के अध्यक्ष सहित तमाम सदस्यों से मिले और हमने कमेटी के सामने इस पूरे मसले को लेकर स्थानीय ग्रामीणों की पीड़ा को रखा। रावलोत ने बताया कि कमेटी ने हमे आश्वस्त किया हैं कि वह इस मामले में जल्द ही निस्तारण करेगी। रावलोत ने बताया कि भूमि विक्रय के मामलें को छोड़कर कमेटी के सदस्यों ने ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाए मुहैया कराने की मांग पर सहमति व्यक्त की है।
रावलोत ने कहा कि कमेटी के साथ चल रहे कांग्रेस के नेता कमेटी को गुमराह कर रहे हैं और यही कारण हैं कि ना सिर्फ कमेटी ने अपना रूट बदला बल्कि ग्रामीणों की बात को भी नहीं सुना। रावलोत ने कहा कमेटी के सदस्यों ने उन्हें बताया कि मरू उद्यान मामले स्थानीय प्रशासन एवं विभिन्न विभागो के अधिकारी अपनी मनमानी चला रहे हैं जबकि मरू उद्यान नियमों में इतनी अव्यवाहारिकता नहीं है। रविवार को कमेटी के दौरे के दौरान सांसद हरीश चौधरी, शिव विधायक अमीन खां, जिला प्रमुख मदन कौर के अलावा भाजपा नेता एडवोकेट स्वरूपसिंह राठौड़, पूर्व विधायक जालमसिंह रावलोत, हरीसिंह सोढ़ा सहित कई लोग मौजुद रहे।