महिलाए लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
महिलाए लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

मुस्लिम महिलाए सुहाग का प्रतिक मान पहनती है चूडा


मुस्लिम महिलाए सुहाग का प्रतिक मान पहनती है चूडा
बाड़मेर। भारत पकिस्तान की अन्तराष्ट्रीय सरहद पर बसा बाड़मेर जिला सांप्रदायिक सद्भावना की मिशाल कायम कर रहा है ,पश्चिमी राजस्थान और पकिस्तान के सिंध प्रान्त के बीच रोटी ,बेटी का रिश्ता है । बाड़मेर में सरहदी गाँवो में रह रहे सिन्धी मुस्लमान परिवारों में आज भी हिन्दू संस्कृति और परम्पराव का निर्वहन किया जा रहा है । विभाजन से पहले जन्हा हिन्दू मुस्लिम एक साथ रह रहे थे, वही दोनों समुदायों की परम्पराव तथा संस्कृति में ज्यादा फर्क नहीं था। विभाजन के बाद भारतीय सरहद में रह गए सिन्धी मुस्लिम परिवारों में कई रीती रिवाज हिन्दुओ की भांति है, तो कई परम्पराए भी मुस्लिम परिवारों का पहनावा भी हिन्दू महिलाओ की तरह ही है, सबसे बड़ी बात की जन्हा पुरे विश्व में मुस्लिम महिलाओ को श्रृंगार की वस्तुए पहनने की आज़ादी नहीं है, वंही बाड़मेर जिले में आज भी मुस्लिम महिलाये हिन्दू परिवारों की महिलाओ की भांति सुहाग का प्रतिक चूडा पहनती है ,बाड़मेर जिले के पाकिस्तानी सरहद के समीप बसे सैंकड़ो मुस्लिम बाहुल्य परिवारों में आज भी महिलाए सुहाग का प्रतिक चूडा पहन के इठलाती है । मुस्लिम परिवारों में शादी शुदा महिलाओ को सुहाग का प्रतिक चूडा पहना अनिवार्य है, शादी विवाह सगाई तीज त्योहारों पर मुस्लिम महिलाए हाथी दांत का बना चूडा पहनती है। सामान्यतः मुस्लिम परिवार की महिलाये प्लास्टिक का चूडा ही पहनती है, इन मुस्लिम परिवारों में चूड़े को लाल रंग से पहने से पहले रंगा जाता है , कई महिलाए बिना रंगे सफ़ेद चूडा भी पहनती है ,विश्व भर में कंही भी मुस्लिम महिलाए चूडा नहीं पहनती मगर पश्चिमी राजस्थान के बाड़मेर ,जैसलमेर जिलो में बसे लाखो मुस्लिम परिवारों में महिलाए चूडा पहनती है ,बांदासर गाँव निवासी इतिया ने बताया की उनके परिवार में कई पीढियों से महिलाए चूडा पहनती आ रही है, चूड़े को सुहाग का प्रतिक मना जाता है, अपने पतियों को अजर अमर रखने के लिए तथा उन पर को जीवन संकट नहीं आ जाए इसीलिए चूडा पहनती है । एक अन्य मुस्लिम महिला सक्खी ने बताया की शुरू से हम लोग हिन्दू परिवारों के बीच रहे है । सिंध में साउ {राजपूत }तथा मेघवाल परिवारों के बीच रहे आपस में भाई चारा था,तीज त्योहारों पर या शादी विवाह जैसे समारोह में भी आना जाना था,उस वक़्त हिन्दू मुस्लिम वाली कोई बात नहीं थी, हां सभी अपनी मर्यादा में रहते थे ,हिन्दू मुस्लिम में कोई फर्क नहीं लगता। आज भी हमने उसी परंपरा को अपना रखा है । खाली चूडा ही क्यों हम लोगो का पहनावा भी हिन्दू परिवारों की तरह है । खान पान रीती रिवाज़ सब कुछ एक जैसा ,,बहरहाल पुरे दाश में जन्हा कट्टरपंथी सांप्रदायिक भावनाए भड़का कर हिन्दू मुस्लिमो के बीच खाई पैदा कर रहे हें वही सरहद पर अमन का इतना असर है ।