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शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

जैसलमेर विश्व पर्यटन दिवस पर देशी रंग बिखेरे विदेशी सैलानियों ने

जैसलमेर  विश्व पर्यटन दिवस पर देशी रंग बिखेरे विदेशी सैलानियों ने 


 जैसलमेर शहरी क्षेत्र की तंग गलियों में सैकडों देशी-विदेशी पावणो का शहरवासियों ने पलक-पावड़े बिछाकर स्वागत किया, तो यहां की अनूठी स्वागत परम्परा, साम्प्रदायकि सौहार्द और बहुरंगी संस्कृति देखकर विदेशी भी अभिभूत हो गए और उनके मुंह से अनायास ही निकल पड़ा, 'वाओ! इट्स ग्रेट'। ऐसा ही कुछ नजारा देखने को मिला रविवार को ऐतिहासिक सोनार किले की प्राचीर और   हवेलियों से शुरू विश्व पर्यटन दिवस के जश्न  के दौरान।

शुक्रवार  को सुबह 8 बजे से ही   हवेलियों के आसपास देशी-विदेशी पर्यटक एकत्रित होने लगे। हवेलियों की सूक्ष्म नक्काशी देखकर वे खुद को रोक नहीं पाए और अपने कैमरों में इन दृश्यों को कैद करने की हौड़ सी देखने को मिली। कमायचा,खड़ताल और नड़   वादक  के कलाकारों ने जब स्वरलहरियां बिखेरनी शुरू की तो देशी-विदेशी पर्यटकों ने जमकर ठुमके लगाए।   नगाड़ों और चंग की थाप पर थिरकते लोगों का कारवां आगे बढ़ा। पर्यटन विभाग,  और स्थानीय लोगो ने विश्व पर्यटन दिवस पर आये पर्यटकों का शहरवासियों ने पुष्पवर्षा कर स्वागत किया।

   अंदरूनी शहर के बच्चों ने विदेशी मेहमानों को देखकर 'हैलो, हाउ आर यू' से अभिवादन किया तो विदेशी पर्यटकों ने 'नमस्कार', 'पगेलागूं सा' और 'खम्मा घणी सा' कह जवाब दिया। सजे-संवेरे ऊंटों और ढोल की थाप के बीच मोहता चौक पहुंचे पर्यटकों ने यहां की पाटा संस्कृति के बारे में जानकारी दी तोकुछ मांगणियार लोक कलाकारों ने रावणहत्थे की लय के साथ 'केसरिया बालम' गीत सुनाई।

  पर्यटन दिवस पर आये देशी विदेशी सैलानी स्थानीय  पारम्परिक राजस्थानी वेशभूषा में नजर आए तथा नगाड़ों की थाप पर अनेक स्थानों पर ठुमके लगाए। 

शनिवार, 27 सितंबर 2014

टूरिज्म: जैसलमेर विश्व पर्यटन दिवस विशेष। टूरिज्म: रेत पर अब सुरीली रात का समां



विश्व पर्यटन दिवस  विशेष। टूरिज्म: रेत पर अब सुरीली रात का समां    


विमल भाटिया 


जैसलमेर राजस्थान के रेगिस्तान की शाम तब और भी खूबसूरत लगती है जब यहां लगे तंबुओं में बैठकर लोकनृत्य का आनंद उठाने का मौका मिल जाए. और जब तंबू में फाइव स्टार सुविधाएं भी हों तो आनंद कई गुना बढ़ जाता है. इसीलिए तो जैसलमेर के थार रेगिस्तान से 20-25 किलोमीटर दूर सम गांव की तरफ ढेरों टेंट रिसॉर्ट विकसित हो चुके हैं. यहां लगभग एक हजार सर्व सुविधायुक्त टेंट लगे हैं.


विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए इन भव्य लक्जरी टेंटों में फाइव स्टार होटलों जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं. इनमें एसी लगे होते हैं, लाइव बारबेक्यू, गोल्फ कोर्स से लेकर स्विमिंग पूल जैसी लक्जरी भी मुहैया करवाई जा रही है. सैलानियों के लिए कैमल रेस (ऊंट दौड़), कैमल पोलो जैसे मनोरंजन के इंतजाम भी किए जा रहे हैं.

थार रेगिस्तान में बसी टेंटों की यह दुनिया वाकई अद्भुत है. सम के रेतीले धोरों की तरफ जाने वाले मार्ग पर दोनों ओर देखकर लगता है, जैसे यह टेंट रिसोर्ट का कोई छोटा-मोटा शहर हो. सारा इंतजाम देशी-विदेशी सैलानियों की पसंद को देखते हुए किया गया है. दरअसल रेगिस्तान में रात को रुकना पर्यटकों के लिए हमेशा रोमांच भरा रहा है. लेकिन सुविधाओं के अभाव में ज्यादा पर्यटक अपनी इस इच्छा को पूरा नहीं कर पाते थे.


इसलिए लगभग पांच साल पहले यहां आधुनिक सुविधाओं वाले टेट लगाने का चलन शुरू हुआ, जिसके चलते अब सालाना तीन लाख पर्यटक लक्जरी टेंटों का आनंद उठाने के लिए यहां आने लगे हैं. वे इन टेंटों में एक रात रुकने के लिए 3,000-10,000 रु. तक खर्च करने से गुरेज नहीं करते. टेंट का किराया उसमें मौजूद सुविधा के मुताबिक तय होता है.


सम के रेगिस्तान में सभी आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित डेजर्ट स्प्रिंग नाम का टेंट रिसोर्ट बना रहे पर्यटन कारोबारी मयंक भाटिया कहते हैं, ‘‘पर्यटक आधुनिक सुविधाओं से युक्त टेंट चाहते हैं. उनकी मांग को देखते हुए हम 25 टेंटों का एक ऐसा लक्जरी टेंट रिसोर्ट बना रहे हैं जिसमें बड़ा गोल्फ कोर्स, टेनिस कोर्ट और बैडमिंटन कोर्ट होगा. टेंट के भीतर स्टडी टेबल, वार्डरोब, इलेक्ट्रॉनिक सेफ, फ्रिज, सोफा, मिनी बार, लाइव बारबेक्यू सहित और भी ढेरों सुविधाएं होंगी.’’


रेगिस्तान में पानी की जबरदस्त कमी तो हमेशा से ही रही है लेकिन रेगिस्तान के मध्य में होते हुए भी इन टेंटों में ठंडे और गरम पानी की लगातार सप्लाई होती है. टेंटों का निर्माण करवाने वाले ज्यादातर होटल व्यवसायी हैं जो पर्यटकों की शाम को रूमानी बनाने के लिए तरह-तरह के और भी कई प्रयोग कर रहे हैं. वे रेत के टीलों पर कैंडल लाइट डिनर की व्यवस्था करते हैं. ठेठ राजस्थानी लोक संगीत से सैलानियों की शामों को सुरीला बनाया जाता है. इसलिए इन यादगार लम्हों का लुत्फ उठाने के लिए आने वालों की तादाद बढ़ती चली जा रही है.


सम के टेंट रिसोर्ट राजस्थान डेजर्ट सफारी कैंप के मालिक उपेंद्र सिंह राठौड़ कहते हैं, ‘‘जैसलमेर के रेगिस्तान में लक्जरी टेंट दुबई के रेतीले टीलों पर बने हुए लक्जरी टेंटों की तर्ज पर बनाए जा रहे हैं. रेतीले टीलों पर मशाल लाइट डिनर, कैंडल लाइट डिनर की पर्यटकों के बीच खासी मांग है.’’


राठौड़ शाम-ए-जैसलमेर नाम से एक लक्जरी टेंट रिसोर्ट का निर्माण करवा रहे हैं. इस रिसोर्ट्स में रेतीले टीलों के बीच स्विमिंग पूल भी बनाया जा रहा है. इसमें नए शादीशुदा जोड़ों के लिए एक्सक्लूसिव कैंडल लाइट डिनर की सुविधा भी होगी, जो उनकी शाम को यादगार बना देगी.


लक्जरी टेंट के नए चलन की वजह है यहां पर आने वाले ऐसे सैलानियों का इस तरह की सुविधाओं की नियमित मांग करना. रेगिस्तान में ये सैलानी कुछ अलग और रोमांचक करने की इच्छा रखते हैं. जन्मदिन, शादी की सालगिरह और हनीमून मनाने के लिए रेत की धरती पर आने वाले लोगों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है.


कई चर्चित हस्तियां भी गुपचुप तरीके से रेगिस्तानी शाम का लुत्फ उठाने के लिए थार आती हैं. भारत में अमेरिका के पूर्व राजदूत रॉबर्ट ब्लैकविल भी अभी हाल ही अपनी पत्नी का जन्मदिन मनाने यहां आए थे. यहां पर ठेठ ग्रामीण परिवेश के बीच उन्होंने केक कैटरिंग सेरेमनी आयोजित की थी और इसके साथ ही कैंडल लाइट डिनर भी किया था. उनके अलावा पॉप स्टार मीका, दिवंगत ‘‘ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह और दूसरी शख्सियतें भी खास मौकों पर जश्न मनाने के लिए यहां आ चुकी हैं.


टेंट कारोबारी टेंट पर्यटन को लोकप्रिय बनाने के लिए और भी कई तरह की योजनाओं पर काम कर रहे हैं. जैसा कि भाटिया बताते हैं, ‘‘यहां आने वाले सैलानी ढेर सारा फन और रोमांच चाहते हैं. इसलिए उनकी मांग को देखते हुए हम रेगिस्तान में चलने वाले डेजर्ट स्कूटर और दूसरे वाहन लाने की योजना पर भी काम कर रहे है. इसके अलावा डिनर ऑफ ड्यून्स (रेत के टीले पर बैठकर भोजन) के नाम से खास इंतजाम किए गए हैं, जिसके तहत अनगिनत लजीज व्यंजन उपलब्ध करवाए जाते हैं.’’


मेहमानों की सुख-सुविधा के लिए जितने भी इंतजाम किए जाते हैं उनमें हनीमून मनाने के लिए यहां आने वालों का खास ध्यान रखा जाता है. राठौड़ की सुनिए, ‘‘नव विवाहितों का हम पूरा ख्याल रखते हैं. खास उनके लिए रात के समय राजस्थानी लोक गीत-संगीत के अलावा ऑस्ट्रेलियन बैले डांस का भी आयोजन किया जाता है.’’


रोमांच को बढ़ाने के लिए उपेंद्र सिंह राठौड़ कुछ और भी प्रयोग कर रहे हैं. वे बताते हैं, ‘‘हम अपने टैंट रिसॉर्ट में एक स्पेशल मचान रेस्टोरेंट भी बना रहे हैं. सैलानी इस पर बैठकर सूर्यास्त के मनोहारी दृश्य का आनंद उठा सकेंगे. साथ में लजीज भोजन का लुत्फ भी ले सकेंगे.’’ यहां आने वाला बोर हो, इसकी संभावना कम होती है क्योंकि मनोरंजन के तमाम साधन मौजूद रहते हैं.


इनमें कैमल पोलो, कैमल रैस और कैमल सफारी तो है ही, इन सब से मन भर जाए तो कई सारे इंडोर गेम भी मौजूद हैं. रोमांच के बाद अगर थोड़ी शांति की जरूरत महसूस हो तो आप यहां की लाइब्रेरी में बैठकर पसंदीदा किताबें पढ़ सकते हैं.


पर्यटन व्यवसायी महासंघ के अध्यक्ष और रॉयल डेजर्ट सफारी कैंप के मालिक जितेंद्र सिंह राठौड़ कहते हैं, ‘‘पर्यटक रेगिस्तान के बीचोबीच रुकना चाहते हैं. इसीलिए संचालक अपने टेंटों में बेहतरीन आधुनिक सुख-सुविधाएं उपलब्ध करवाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. सम और खुहड़ी के रेतीले धोरों पर पसरे 1,000 से ज्यादा टेंटों में कैमल सफारी के लिए 700 से ज्यादा ऊंटों को लगाया गया है.’’


अपने शानदार किलों और हवेलियों के लिए प्रसिद्घ राजस्थान मुमकिन है, जल्द ही दुनिया भर में अपने खूबसूरत और अनोखे टैंट रिसॉर्ट्स के लिए भी पहचाना जाने लगे.








 

शनिवार, 21 अगस्त 2010

विश्व पर्यटन दिवस विशेष .स्वर्ण नगरी जैसलमेर 'रेगिस्तान का गुलाब' और 'राजस्थान का अंडमान'


स्वर्ण नगरी के नाम से मशहूर जैसलमेर की खूबसूरती देखते ही बनती है। ऎतिहासिक विरासत खुद में समेटे जैसलमेर की यदुवंशी भाटी राजपूत महारावल जैसल ने श्रावण शुक्ला 12, संवत् 1212 को एक त्रिकूट पहाडी पर नींव रखी थी। इसका प्राचीन नाम माडधरा व वल्ल मंडल भी था। यूं तो और भी कई शहरों में हवेलियां हैं लेकिन जैसलमेर की हवेलियों का कोई सानी नहीं है। इसलिए जैसलमेर को हवेलियों व झरोखों की नगरी भी कहा जाता है। यही नहीं इसे 'रेगिस्तान का गुलाब' और 'राजस्थान का अंडमान' भी कहा जाता है। भारत की सीमा पर थार मरूस्थल में बसा जैसलमेर जिला क्षेत्रफल की दृष्टि से देश में 'लेह' और 'कच्छ' के बाद तीसरा सबसे बडा जिला है। क्षेत्रफल के आधार पर राजस्थान का सबसे बडा जिला जैसलमेर (38,401 वर्ग किलोमीटर) है।


जैसलमेर के प्रमुख स्थान और कस्बे
रामदेवरा: जैसलमेर-बीकानेर मार्ग पर जैसलमेर से 125 किलोमीटर दूर स्थित रूणेचा गांव में लोक देवता बाबा रामदेव का मंदिर, रामदेव सरोवर, गुरूद्वारा, परचा बावडी आदि दर्शनीय स्थल हैं। रामदेवजी की शिष्या डालीबाई का समाघि स्थल भी स्थित है। रामदेव अन्न क्षेत्र समिति कोढियों व अपंगों की सेवा करती हंै।


तनोट : इसे पूर्व रियासत के शासकों की प्राचीनतम राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। यहां तनोट देवी का मंदिर है, जो जैसलमेर के पूर्व भाटी शासकों की कुल देवी मानी जाती है। इस मंदिर में सेना तथा सीमा सुरक्षा बल के जवान पूजा करते हैं। तनोट से 9 किलोमीटर दूर घटियाली माता का मंदिर है। तनोट में देवी मंदिर के सामने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत की जीत का प्रतीक विजय स्तंभ भी स्थापित है। कटरा गांव- पश्चिमी छोर का अंतिम गांव, जो जैसलमेर जिले में स्थित है।


कुलधरा : यहां कैक्टस गार्डन का निर्माण किया जा रहा है। जैसलमेर के दीवान सालिमसिंह के कथित अत्याचारों से तंग आकर 84 गांवों में बसे पालीवाल ब्राह्मण जैसलमेर से पलायन कर गए थे। कुलधरा इन्हीं 84 गांवों में से सबसे महžवपूर्ण कस्बा था।


पर्यटन स्थल
पटवों की हवेली : यह पांच हवेलियों का समूह है, जिन्हें पांच भाइयों ने मिल कर बनाया था। इनका निर्माण सन् 1800 से 1860 के मध्य करवाया गया। सालिम सिंह की हवेली-जैसलमेर के प्रधानमंत्री सालिम सिंह ने सन् 1825 में इस हवेली का निर्माण करवाया। नीली गुंबददार छत और नक्काशी किए मोर की आकृति अत्यन्त आकर्षक है। नथमल की हवेली -इस हवेली के दाईं व बाईं ओर की गई नक्काशी देखने में एक-सी हैं, लेकिन ऎसा है नहीं।
सम के टीले: जैसलमेर के पश्चिम में 42 कि.मी. दूर थार मरूस्थल में विशाल रेतीले टीलों का क्षेत्र शुरू होता है। सम गांव में ऊंट सफारी तथा सूर्यास्त दर्शन पर्यटकों का मन मोह लेते हैं। वनस्पति विहीन रेत के टीलो को सम के टीले भी कहा जाता है।


आकल वुड फॅासिल पार्क : भू-पर्यटन के लिहाज से यह क्षेत्र महžवपूर्ण है। जैसलमेर से बाडमेर की ओर जाने वाले मार्ग पर 17 किलोमीटर दूर आकल गांव में फॉसिल पार्क (जीवाश्म उद्यान) है। राष्ट्रीय मरू उद्यान-जैसलमेर व बाडमेर जिले के 3,162 किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह राज्य का सबसे बडा अभयारण्य है। जैसलमेर में इसका करीब 1,900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र है। 8 मई, 1981 को अघिसूचित इस अभयारण्य में दुर्लभ राज्य पक्षी गोडावण पाया जाता है।
बादल विलास व जवाहर विलास: जैसलमेर के महारावलों के निवास जवाहर तथा बादल विलास 19 वीं शताब्दी की अद्भुत कलाकृतियों में से एक हैं। इन्हें मुस्लिम सिलावटों ने तराशा था। बादल विलास में बना ताजिया टावर पांच मंजिला है और शिल्प कला का बेजोड नमूना है। जवाहर विलास में झरोखों व छतरियों के साथ ही दीवारों पर की गई खुदाई देखते ही बनती है। इसका निर्माण 20 वीं शताब्दी में महारावल जवाहर सिंह ने कराया था।
बडा बाग : जैसलमेर से सात किलोमीटर उत्तर में एक खूबसूरत बाग है, जिसके साथ ही एक विशाल बांध बना हुआ है। यहां राजघराने से संबंघित स्मारक और पुराने शासकों की मूर्तियां भी दर्शनीय हैं।


जैसलमेर दुर्ग : जैसलमेर के दुर्ग को रावल जैसल ने 1155 ई. में बनवाया था। पीले पत्थरों से निर्मित होने के कारण यह उषा व सांध्यकाल में स्वर्ण के समान चमकता है। इसीलिए जैसलमेर दुर्ग को सोनारगढ या सोनगढ भी कहा जाता है। राव जैसल के बाद के शासकों ने इसमें अन्य निर्माण करवाए। यह किला सात वर्षो में पूर्ण हुआ।


सातलमेर : इसे पोकरण की प्राचीन राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। बाबा रामदेव ने इसी के पास एक गुफा में भैरव राक्षस का वध किया था।
लोद्रवा : जैसलमेर से 15 किमी. उत्तर पश्चिम में स्थित लोद्रवा किसी जमाने में जैसलमेर की राजधानी थी। खूबसूरत जैन मंदिर और कृत्रिम कल्पवृक्ष ( द डिवाइन ट्री) यहां के मुख्य आकर्षण हैं। लोद्रवा जैनियों का प्रमुख तीर्थस्थल है।


गडसीसर सरोवर : जैसलमेर शहर के प्रवेश मार्ग पर स्थित पवित्र गडसीसर सरोवर का निर्माण रावल गडसीसिंह ने सन् 1340 में कराया था। यह सरोवर न केवल अपने कलात्मक प्रवेश द्वार, जलाशय के मध्य में स्थित सुन्दर छतरियाें व इसके किनारे बने बगीचों के कारण प्रसिद्ध है। 1965 से पहले तक यह जैसलमेर वासियों का प्रमुख पेयजल स्रोत भी था।


मेले व उत्सव
बाबा रामदेव का मेला
यह प्रसिद्ध लक्खी मेला माघ और भाद्रपद महीनों के शुक्ल पक्ष में दूज से एकादशी तक लगता है। घोटारू में गैस के भंडार-जैसलमेर जिले का घोटारू क्षेत्र तेल गैस के भंडारों के लिए चर्चित हैं। सबसे पहले गैस के भण्डार यहीं पर मिले थे। यहां 1500 से 2000 मीटर की गहराई पर गैस एवं तेल के भंडार उपलब्ध हैं।


शाहगढ बल्ज



































इस क्षेत्र में 60 खरब क्यूबिक फीट उच्च गुणवत्ता की प्राकृतिक गैस मिलने का दावा फोकस एनर्जी ने किया है। 3,161 मीटर की गहराई पर मिली गैस में 91 फीसदी तक हाइड्रोकार्बन का आकलन किया गया है। तनोट-जैसलमेर से करीब 120 किलोमीटर दूर स्थित तनोट में भी प्राकृतिक गैस के भंडार मिले हैं। सादेवाला- जैसलमेर से 145 किमी. दूर सादेवाला में सन् 1984 में तेल के विशाल भंडार मिले हैं, तेल और प्राकृतिक गैस आयोग की देखरेख में यहां खुदाई का काम चल रहा है।


डेजर्ट फेस्टिवल (मरू मेला)
माघ सुदी 13 से पूर्णिमा तक शीत ऋतु (जनवरी- फरवरी) में यहां लगने वाला डेजर्ट फेस्टिवल सैलानियों का प्रमुख आकर्षण है। यह मेला पर्यटन विभाग की ओर से सन् 1979 से निरंतर आयोजित किया जा रहा है। इस मेले के दौरान शोभा यात्रा निकाली जाती है जो गडसीसर तालाब से शहर में होते हुए पूनम स्टेडियम पर सम्पन्न होती है। ऊंट पोलो, ऊंट की सवारी, कठपुतली नृत्य, सपेराें का कला प्रदर्शन मुख्य आकर्षण रहते हैं। मिस्टर डेजर्ट प्रतियोगिता में विजेता चुनने का मुख्य आधार मूंछों की लंबाई होता है।