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गुरुवार, 7 मई 2020

जैसलमेर ,यहाँ हिन्दू भी रखते हैं रोजा, नफरत की आंधी भी इससे टकराकर वापस लौट जाती है

जैसलमेर ,यहाँ हिन्दू भी रखते हैं रोजा, नफरत की आंधी भी इससे टकराकर वापस लौट जाती है

जैसलमेर : राजस्थान में सीमावर्ती बाड़मेर और जैसलमेर जिलों के कई गांवों में हिन्दू भी रमजान के दौरान रोजे रखते हैं जो हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव की एक मिसाल हैं। यहां यह परंपरा दशकों से चली आ रही है और हिन्दू परिवारों के लोग पांच रोजे रख कर भाईचारे की मिसाल पेश करते हैं। देश में सौहार्द के ताने-बाने और हिंदुओं-मुसलमानों के दिलों में कई बार दरार डालने की कोशिश की जाती है। लेकिन भाईचारे का यह रिश्ता इतना मजबूत है कि नफरत की आंधी भी इससे टकराकर वापस लौट जाती है। यहां रमजान के दौरान गांवों में रहने वाले हिंदुओं और मुसलमानों के बीच अंतर करना मुश्किल है क्योंकि हिंदू भी पवित्र महीने के दौरान मुस्लिमों की तरह ही उत्साह के साथ 'रोजे' रखते हैं। इन गांवों में हिंदू और मुस्लिम परिवारों में समान रिवाज और परंपराएं देखी जा सकती हैं।

विभाजन के बाद इन सीमावर्ती गांवों में सिंध और पाकिस्तान से आए हिन्दू और मुस्लिम परिवारों में आज भी वहीं रिश्ते हैं, जो विभाजन से पहले थे। उनके पहनावे, बोलचाल, खान-पान लगभग एक जैसे हैं। ग्रामीणों के अनुसार रमजान में यदि हिन्दू रोजे रखते हैं तो हिन्दू त्योहारों पर मुस्लिम भी पूरी भागीदारी निभाते हैं और आपस में कोई दूरियां नहीं हैं। इन गांवों में जहां हिंदू रोजा रखते हैं वहीं मुसलमान भी हिंदू त्यौहार पूरी परंपरा के मुताबिक मनाते हैं। गांवों में मुसलमान दीवाली तो धूमधाम से मनाते ही हैं साथ ही वे नवरात्रों के दौरान उपवास भी रखते हैं। इतना ही नहीं विशेष अवसरों पर मुसलमान अपने हिंदू पड़ोसियों के साथ हिंदू भक्ति गीत भी गाते हैं।

यहां रहने वाले हिन्दुओं में विशेषकर मेघवाल समुदाय में सिंध के पीर पिथोड़ा के प्रति गहरी श्रद्धा है। ये समुदाय पाक विभाजन के साथ भारत में रह गए थे। हिन्दूओं मे विशेषकर मेघवाल जाति के परिवार सिंध के महान संत पीर पिथोरा के अनुयायी हैं। रोजा रख रहे शंकराराम ने बताया की हम  पीर पिथोरा के प्रति समान आस्था रखते हैं। पीर पिथोरा के जितने भी अनुयायी हैं, वे रमजान में रोजे रखते हैं। रमजान में तो हिन्दू मुस्लिम के साथ रोजे रखते हैं। एक दूसरे के यहां इफ्तार भी करते है सरहद पार रह रहे हिन्दू मुस्लिम परिवारों के रीति रिवाजों में भी कोई फर्क नहीं है। हिन्दू परिवारों के छोटे छोटे बच्चे भी रोजे रखते हैं। यहां के मुस्लिमों का कहना है कि जिस तरीके से मुस्लिम रोजे रखते हैं, उसी तरह हिन्दू भाई भी पांच रोजे रखते हैं, इससे आपसी भाईचारा बढ़ता है।

इसी गांव में एक दरगाह भी है जहां दोनों समुदायों के लोग पूरी श्रद्धा के साथ जाते हैं और परंपराएं निभाते हैं और ये इतनी समान हैं कि फर्क करना मुश्किल हो जाता है।

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शनिवार, 25 जून 2016

बाड़मेर हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव की अनूठी मिसाल हिन्दू भी रोजे रखते हैं



बाड़मेर हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव की अनूठी मिसाल हिन्दू भी रोजे रखते हैं
बाड़मेर

राजस्थान के सीमावर्ती जिलों बाड़मेर और जैसलमेर के कई गांवों में हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव की अनूठी मिसाल देखने को मिलती हैं। यहां कई गांवों में हिन्दू भी अपने मुस्लिम पड़ोसियों के साथ रमजान के दौरान रोजे रखते हैं। यहां यह परंपरा दशकों से चली आ रही है और हिन्दू परिवारों के लोग पांच रोजे रख कर भाईचारे की मिसाल पेश करते हैं।कोई कोई पुरे रोजे भी रखते हैं ,




विभाजन के बाद इन सीमावर्ती गांवों में सिंध और पाकिस्तान से आए हिन्दू और मुस्लिम परिवारों में आज भी वहीं संबंध हैं और रिश्ते हैं जो विभाजन से पहले थे। उनके पहनावे, बोलचाल, खान-पान लगभग एक जैसे हैं।




इन गांवों के रहवासियों का कहना है कि रमजान में यदि हिन्दू रोजे रखते हैं तो हिन्दू त्योहारों पर मुस्लिम भी पूरी भागीदारी निभाते हैं और आपस में कोई दूरियां नहीं हैं। यहां रहने वाले हिन्दुओं में विशेषकर मेघवाल समुदाय में सिंध के पीर पिथोड़ा के प्रति गहरी श्रद्धा है।ये समुदाय पाक विभाजन के साथ भारत में रह गए थे ,







बाड़मेर के गोहड़ का तला गांव के गुमनाराम मेघवाल का कहना है कि हमारी पीर पिथौड़ा में गहरी श्रद्धा है और जो भी उनमें श्रद्धा रखता है, वह रोजे जरूर रखता है।







इसी गांव में एक दरगाह भी है जहां दोनों समुदायों के लोग पूरी श्रद्धा के साथ जाते हैं और परंपराएं निभाते हैं और ये इतनी समान हैं कि फर्क करना मुश्किल हो जाता है।
















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शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

सांप्रदायिक सदभाव की मिशाल .....हिन्दू भी रख रहे हें रोजे

रोजे छोड़ते हिन्दू 

पाकिस्तान  स्थित पीर पिथोरा का मंदिर 

सांप्रदायिक  सदभाव की मिशाल .....हिन्दू भी रख रहे हें रोजे

बाड़मेर: भारत-पाकिस्तान सरहद पर बसे राजस्‍थान के बाड़मेर जिले के पाकिस्तान से सटे सरहदी गांव सांप्रदायिक सद्भावना की अनुठी मिसाल पेश करते हैं। एक तरफ जहां मुस्लिम, हिंदुओं के त्‍योहार हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं, वहीं हिंदू परिवार रमजान के पवित्र माह में रोजे रख मुस्लिम भाइयों की खुशी में शरीक होते हैं।

बाड़मेर जिले के सरहदी गांवों में हिंदू परिवारो द्वारा रोजे रखने की पुरानी परम्परा हैं। भारत-पाकिस्तान विभाजन एवं उसके बाद भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध के दौरान पाकिस्तान से भारत आए हिंदू और मुस्लिम परिवारों में समान रीति रिवाज हैं। हिंदुओं में, विशेष कर मेघवाल जाति के परिवार सिन्ध के महान संत पीर पिथोरा के अनुयायी हैं। सिन्धी मुसलमान भी पीर पिथोरा में समान आस्था रखते हैं। पीर पिथोरा के जितने भी अनुयायी हैं, वे पीर पिथोरा के उपदेशों की पालना के तहत रमजान के महीने में श्रद्धानुसार रोजे रखते हैं।

पाकिस्‍तान की सीमा से सटे बाड़मेर के गौहड का तला, रबासर, साता, सिहानिया, बाखासर, केलनोर सहित सैकडों गांवों के हिंदू रोजे रख सांप्रदायिक सद्भावना का परिचय दे रहे हैं। नवातला निवासी पाताराम ने बताया कि वह अपनी समझ के साथ हर साल रोजे रखते हैं और रोजे के दौरान बाकायदा नमाज भी पढ़ते हैं।

सरहद पर रह रहे हिन्दू और मुस्लिम परिवारों के रीति-रिवाजों भी कोई ज्यादा फर्क नहीं है। शादी, विवाह, मृत्यु, तीज-त्‍योहार, खान-पान, पहनावा तथा भाषा समान है। हिंदू परिवारों के छोटे-छोटे बच्चे भी रोजे रखते हैं। मौलवी हनीफ मोहम्मद ने बताया कि सरहद पर हिंदू और मुस्लिम भाईचारे के साथ रहते हैं। दोनों के रीति-रिवाजों में इतनी समानता है कि कई बार भेद करना मुश्किल हो जाता है। रमजान में तो हिंदू और मुस्लिम साथ-साथ रोजे रखते हैं। एक दूसरे के यहां इफ्तार भी करते हैं।

हालांकि, पीर पिथोरा का धार्मिक स्थल पाकिस्तान में है, मगर उनके अनुयाइयों ने बाड़मेर जिले के जयसिंधर गांव के समीप जेता की जाल नामक धार्मिक स्थल बनाया, जहां पीर पिथोरा की पूजा होती है। पीर पिथोरा की पूजा मुसलमान भी करते हैं। यही वजह है कि बाड़मेर जिले के सरहदी गांव सांप्रदायिक सद्भावना के प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं।सरहद पार पकिस्तान में भी हिन्दू देवी देवताओ के प्रति मुस्लिम समुदाटी में जबरदस्त आस्था हें ,राजस्थान के लोक देवता बाबा रामदेव ,पाबूजी ,वीर तेज्ज़ ,माता हिंगलाज ,माता रानी भटीयानिजी,आदी लोक देवो के प्रति आस्था झलकती हें .राजस्थान के बाड़मेर जिले के सरहदी इलाको में बसे हिन्दू भी परंपरागत रूप से रमजान के पवित्र महीने में रोजे रखते हें ,