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सोमवार, 18 मई 2020

सीआईडी (स्टेट क्राइम ब्रांच) द्वारा की गई कार्यवाही में गिरफ़्तार मुलज़िमों की सूचना पर चितौड़गढ़ में 2 और बड़ी कार्यवाही,,

सीआईडी (स्टेट क्राइम ब्रांच) द्वारा की गई कार्यवाही में गिरफ़्तार मुलज़िमों की सूचना पर चितौड़गढ़ में 2 और बड़ी कार्यवाही,,,

4 क्विंटल 10 किलो डोडाचुरा, 3 किलो अफीम बरामद

 जयपुर 18 मई। स्टेट सीआईडी (क्राइम ब्रांच) की टीम ने15 मई को की गई कार्यवाही में गिरफ्तार मुल्जिमों की निशानदेही पर सोमवार को थाना मंगलवाड के प्रकरण में गिरफ््तारशुदा प्रकाष जाट पिता शंभू जाट उम्र 31 साल निवासी पाल थाना बस्सी जिला चित्तौड़गढ़ द्वारा दी गई सूचना पर मीठू लाल पुत्र गोपी लाल धाकड निवासी दौलतपुरा, थाना विजयपुर जिला चित्तौडगढ के रिहायशी मकान से 3 क्विंटल 7 किलोग्राम अवैध अफीम डोडा चूरा व 3 किलो अफीम बरामद कर थाना विजयपुर पर प्रकरण पंजीबद्ध किया गया।

अतिरिक्त महानिदेशक पुलिस अपराध श्री बी एल सोनी ने बताया कि 15 मई को सूर्यवीर सिंह, पुलिस उप अधीक्षक के नेतृृत्व में चित्तौड़गढ़ में जिला पुलिस के सहयोग से अलग-अलग स्थानों पर 3 कार्यवाहियां करते हुए 3 क्ंिवटल 24 किलो डोडाचुरा, 6 किलो 600 ग्राम अफीम बरामद कर 3 अभियुक्तों को गिरफ्तार कर 3 चारपहिया वाहन जप्त किये थे। इस संबंध में जिला चित्तौडगढ में थाना मंगलवाड व बस्सी पर 3 पृृथक््-पृृथक्् प्रकरण पंजीबद्ध किये गये थे।

श्री सोनी ने बताया कि इन प्रकरणों में जगदीष पिता शेराराम जाट उम्र 35 साल निवासी सियोलों की ढाणी खारड़ा नेवासा थाना मथानिया जिला जोधपुर, दिनेष राम पिता मेमराज विष्नोई उम्र 25 साल निवासी भीमसागर ढाणी थाना लोहावट जिला जोधपुर, प्रकाष जाट पिता शंभू जाट उम्र 31 साल निवासी पाल थाना बस्सी जिला चित्तौड़गढ़ व मनोज उर्फ विनोद कुमार पुत्र मगनीराम जाट निवासी माणकपुरा, थाना विजयपुर जिला चित्तौडगढ को गिरफ्तार किया गया था एवं थाना बस्सी में प्रकरण दर्ज किया गया था।

उन्होंने बताया कि प्रकरण में 17 मई को गिरफ््तारशुदा मुल्जिम मनोज उर्फ विनोद कुमार पुत्र मगनीराम जाट निवासी माणकपुरा, थाना विजयपुर जिला चित्तौडगढ द्वारा दी गई सूचना पर मेघा पुत्र उंकार भील निवासी माणकपुरा के रिहायशी मकान की थाना बस्सी द्वारा तलाशी लेने पर 102 किलो 320 ग्राम अवैध अफीम डोडा चूरा बरामद कर मेघा भील को गिरफ््तार किया व थाना विजयपुर पर प्रकरण पंजीबद्ध किया गया है। 

अतिरिक्त महानिदेशक श्री सोनी ने बताया कि इस प्रकार  सीआईडी ( स्टेट क्राइम ब्रांच) व चित्तौडगढ पुलिस ने सयुंक्त कार्यवाही कर कुल 7 क्विंटल 10 किलो अवैध अफीम डोडा चूरा व 9 किलो 600 ग्राम अफीम बरामद कर 5 प्रकरण पंजीबद्ध कर 4 मुल्जिमानों को गिरफ््तार किया है।

शनिवार, 20 अक्टूबर 2018

*थार की चुनाव रणभेरी 2018* *चुनावी चौपालो पर जमने लगेगी अफीम डोडा पोस्त की रंगत* *क्विंटलों अफीम कि खफत हो होगी बाड़मेर के विधानसभा चुनावो में*


*थार की चुनाव रणभेरी 2018*

*चुनावी चौपालो पर जमने लगेगी अफीम डोडा पोस्त की रंगत*

*क्विंटलों अफीम कि खफत हो होगी बाड़मेर के विधानसभा चुनावो में*




बाड़मेर आगामी एक दिसंबर को होने वाले सात विधानसभा क्षेत्रो में चुनावी चौपालो पर अफीम और डोडा कि रंगत नज़र आने लगी हें। अब तक बाड़मेर जिले के सात और जैसलमेर जिले कि   विधानसभा क्षेत्रो में सैकड़ों क्विंटल अफीम और डोडा पोस्त उठ चुका हें। जो उम्मीदवार जितना अधिक अफीम चुनावों में फेंकेगा उसका उतना ही अधिक माहौल बनेगा। चुनाव आयोग के आचार संहिता कि सरे आम धज्जिया उड़ाते विभिन दलो के सभी प्रत्यासी मतदाताओ और कार्यकर्ताओ को लुभाने के लिए अफीम का इस्तेमाल कर रहे हें।


*चुनावी चौपालों में अफीम डोडा पोस्त की होगी रंगत।*

 प्रत्यासियो के लिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रो में आयोजित की जाने वाली सभाओ से पहले कार्यकर्ता बड़े बुजुर्गो के साथ जम कर अफीम का सेवन करते हें। अफीम का सुरूर होने पर अधिक भागदौड़ करते हें ,बड़ी बड़ी बैठको के आयोजन कि जिम्मेदारी निभाते हें। टिकट मिलने से लेकर नामांकन भरने तक ही प्रत्यासियो कि एक एक क्विंटल अफीम का उठाव हो जाता हें। फिर प्रत्यासियो के खुलने वाले कार्यालयो में भी जमकर अफीम का उपयोग होता हें प्रत्येक बूथ पर एक पाव भर से आधा किलो अफीम मतदान के दिन भेजी जाती हें। राजनितिक दलों द्वारा आयोजित होने वाली सभाओ में भी अफीम और डोडा पोस्त का छककर इस्तेमाल होता हें। बाड़मेर जिले में सामान्यतः अफीम का सेवन अत्यधिक होता हें , चुनावो के समय उपयोग सामान्य से तीन गुना अधिक हो जाता हें

*तस्करी से आता हें।*

बाड़मेर जिले में डोडा पोस्त की अधिकृत बिक्री नही है।।राज्य सरकार द्वारा डोडा पोस्त की बिक्री बन्द कर दी गई।।बावजूद इसके जिले में धड़ले से डोडा पोस्त बिकता है।अफीम का दूध भी खुले आम बिकता है।।हज़ारो क्विंटल डोडा पोस्त और सेकड़ो किलो अफीम का उठाव चुनाव के दौरान होता है।

 चुनावो के दौरान अफीम तस्कर , उम्मीदवार से अफीम और डोडा का लेते हें। पुलिस कि आँखों में आसानी से धूल झोंक कर  अफीम कि तस्करी मध्यप्रदेश और राजस्थान के चित्तोड़ जिले से कि जाती हें ,अफीम माफियो के लिए सीजन का समय होता है चुनावी वक़्त। अफीम का दूध भी खूब लाया जा रहा हें।




*आचार संहिता धज्जिया*

।चुनावों के दौरान उठने वाले सेकड़ो क्विंटल अफीम और डोडा पोस्त सामान्यतः तस्करी के जरिये आता हें ,डोडा पोस्त पर पूर्णत प्रतिबन्ध है।।चुनाव आयोग ने वैसे किसी भी चुनावी कार्यक्रम में नशा प्रवर्ति को बढ़ावा देने पर आयोग कि आचार संहिता कि रोज धज्जिया उड़ती हें।


*पुलिस चुनाव पूर्व हुई सक्रिय  शराब और डोडा पोस्त बड़ी मात्रा में बरामद*

*एक किलो अफीम भी बरामद नहीं हुई*

चुनावो में अफीम के बांटने कि जानकारी पुलिस विभाग को होती हें ,उन्हें यह भी पता हें कि अफीम माफिया इन दिनों दिन रात। जरिये तस्करी अफीम ला रहे हे।इस बार पुलिस काफी सक्रिय है।।।चुनावव से पूर्व पुलिस अधीक्षक मनीष अग्रवाल ने विशेष अभियान मादक और नशीले पदार्थो के खिलाफ चला रखा है जिसमे उसको उल्लेखनिय सफलता मिली है।।बड़ी मात्रा में अवैध शराब और डोडा पोस्त बरामद किए   मगर अब तक बाड़मेर पुलिस अफीम  बरामद करने में सफल नहीं हो पाये। पुलिस शिकायत का इंतज़ार करती है शिकायते होती नही।।चुनाव में जो प्रत्यासी सबसे ज्यादा अफीम कार्यकर्ताओ में बांटेगा उसे ही विजेता माना जाता हैं।।


*चुनावो में रियाणं का महत्व*

 चुनावो के दौरानअक्सर नाराज कार्यकर्ताओ को मनाने गाँवों में पहुँचाने वाले प्रत्यासी अफीम कि मनुहार से ही कार्यकर्ता कि नाराजगी दूर करते हें। इस दरें गाँवों में रियान का आयोजन कर गांव के वरिस्थ लोगो कि उपस्थिति में राजी नामा होता हें ,राजीनामे के बाद जमती हें रियान इसके लिए गाँव में रियान का आयोजन होता हें जिसमे गांव के वरिष्ठ लोग शिरकत करते हें ,फिर शुरू होता हें अफीम कि मनुहार का दौर। एक रियान में पचास किलो तक अफीम का उठाव हो जाता हें।


*प्रचार में अफीम का उपयोग।*

प्रत्यासियो के प्रचार में जाने वाले कार्यकर्ता अपने साथ मन मनुहार कि समस्त वस्तुए अफीम ,डोडा ,सुपारी ,बीड़ी ,सिगरेट ,पान मसला ,गुटखा आदि का पेकेट बना कर साथ रखते हें।

शनिवार, 26 नवंबर 2016

बाड़मेर पुलिस अफीम ,अफिम का दुध व अफिम बिक्री के 75000 रूपये रोकड़ सहित मोटरसाईकल जब्त व मुलजिम गिरफ्तार



बाड़मेर पुलिस अफीम ,अफिम का दुध व अफिम बिक्री के 75000 रूपये रोकड़ सहित मोटरसाईकल जब्त व मुलजिम गिरफ्तार

डाॅ. गगनदीप सिगंला पुलिस अधीक्षक बाडमेर द्वारा मादक पदार्थो के विरूद्ध द्वारा चलाये जा रहे अभियान के तहत अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक बालोतरा व वृताधिकारी वृत बालोदतरा के निर्देशन में दिनांक 25.11.2016 को श्री पुष्पेन्द्र वर्मा थानाधिकारी बालोतरा मय पुलिस पार्टी क्रमषः सजना बेनीवाल उ.नि, दलीपसिंह स0उ0नि0, कानि0 सतीश 616, कानि0 विद्याधरसिंह 454, कानि0 चेतनराम 909, कानि0 उदयसिंह 1002 द्वारा मूंगड़ा रोड़ सर्कल के पास, बालोतरा में नाकाबन्दी के दौराने एक शक्स मोटरसाईकिल पर सवार होकर कस्बा बालोतरा से मुंगड़ा सर्कल की तरफ आता हुआ दिखाई दिया। जिसने आगे पुलिस पार्टी बावर्दी जाब्ता को देखकर हड़बड़ाकर अपनी मोटरसाईकिल बिना नम्बरी वापस बालोतरा की ओर घुमाकर भागने लगा। तभी थानाधिकारी मय जाब्ता को संदेह होने पर पुलिस पार्टी द्वारा पीछा कर उस शक्स को दस्तयाब कर नाम पता पुछा तो उसने अपना नाम गौतम कुमार पुत्र सांवलराम जाति माली उम्र 28 वर्ष पैशा व्यापार निवासी बोरावास, तिलवाड़ा होना बताया। संदिग्ध गौतम कुमार की तलाशी ली गई तो उसके कब्जा से अवैध 50 ग्राम अफीम का दुध व 280 ग्राम निर्मित अफीम तथा अफीम बिक्री के 75000/- रूपये बरामद होने पर मुलजिम गौतम कुमार को गिरफ्तार कर अवैध अफीम का दुध, निर्मित अफीम, अफीम बिक्री के नकद रूपये तथा मोटरसाईकिल को जब्त कर प्रकरण संख्या 492 दिनांक 25.11.2016 धारा 8/17,18 एन.डी.पी.एस. एक्ट के तहत पंजिबद्ध करने मे सफलता प्राप्त की गई।

गुरुवार, 28 नवंबर 2013

चुनावी चौपालो पर जमने लगी अफीम डोडा पोस्त की रंगत



चुनावी चौपालो पर जमने लगी अफीम डोडा पोस्त की रंगत


क्विंटलों अफीम कि खफत हो रही हें बाड़मेर के विधानसभा चुनावो में



बाड़मेर आगामी एक दिसंबर को होने वाले सात विधानसभा क्षेत्रो में चुनावी चौपालो पर अफीम और डोडा कि रंगत नज़र आने लगी हें। अब तक बाड़मेर जिले के सात और जैसलमेर जिले कि   विधानसभा क्षेत्रो में सैकड़ों क्विंटल अफीम और डोडा पोस्त उठ चुका हें। जो उम्मीदवार जितना अधिक अफीम चुनावों में फेंकेगा उसका उतना ही अधिक माहौल बनेगा। चुनाव आयोग के आचार संहिता कि सरे रह धज्जिया उड़ाते विभिन दलो के सभी प्रत्यासी मतदाताओ और कार्यकर्ताओ को लुभाने के लिए अफीम का इस्तेमाल कर रहे हें।


चुनावी चौपालों में रंगत। … प्रत्यासियो के लिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रो में आयोजित की जाने वाली सभाओ से पहले कार्यकर्ता बड़े बुजुर्गो के साथ जैम कर अफीम का सेवन करते हें। अफीम का सुरूर होने पर अधिक भागदौड़ करते हें ,बड़ी बड़ी बैठको के आयोजन कि जिम्मेदारी निभाते हें। टिकट मिलाने से लेकर नामांकन भरने तक ही प्रत्यासियो कि एक एक क्विंटल अफीम का उठाव हो जाता हें। फिर प्रत्यासियो के खुलने वाले कार्यालयो में भी जमकर अफीम का उपयोग होता हें प्रत्येक बूथ पर पाँव भर से आधा किलो अफीम मतदान के दिन भेजी जाती हें। राजनितिक डालो द्वारा आयोजित होने वाली सभाओ में भी अफीम और डोडा पोस्त का छककर इस्तेमाल होता हें। बाड़मेर जिले में सामान्यतः अफीम का सेवन अत्यधिक होता हें , चुनावो के समय उपयोग सामान्य से तीन गुना अधिक हो जाता हें



तस्करी से आता हें। । बाड़मेर जिले में लाइसेंस सुदा अफीम और डोडा पोस्त कि दुकाने बहुत कम हें ,इन जितना डोडा पोस्त और अफीम महीने भर में आता हें उतना एक दिन में बाड़मेर के लोग सेवन कर लेते हें। चुनावो के दौरान अफीम तस्कर , उम्मीदवार से अफीम और डोडा का लेते हें। पुलिस कि आँखों में आसानी से धूल झोंक कर करदो रुपयो कि अफीम कि तस्कर मध्यप्रदेश और राजस्थान के चित्तोड़ जिले से कि जाती हें ,अफीम माफियो के लिए सीजन का समय से। अफीम का दूध भी खूब लाया जा रहा हें।




आचार संहिता धज्जिया।चुनावों के दौरान उठाने वाले सेकड़ो क्विंटल अफीम और डोडा पोस्त सामान्यतः तस्करी के जरिये आता हें ,चुनाव आयोग ने वैसे किसी भी चुनावी कार्यक्रम में नहा प्रवर्ति को बढ़ावा देने पर आयोग कि आचार संहिता कि रोज धज्जिया उड़ाती हें।


एक किलो अफीम भी बरामद नहीं। चुनावो में अफीम के बांटने कि जानकारी पुलिस विभाग को हें ,उन्हें यह भी पता हें कि अफीम माफिया इन दिनों दिन रत जरिये तस्करी अफीम ला रहे हेह मगर अब तक बाड़मेर पुलिस ने एक किलो अफीम या डोडा बरामद करने में सफल नहीं हो पाये। चुनाव आयोग द्वारा बनाये उड़न दस्ते नक्कारा साबित हो रहे हें ,पुलिस को पूछो तो एक ही जवाब मिलता हें हमारे पास कोई शिकायत नहीं आई।


चुनावो में रियानो का महत्त्व। चुनावो के दौरानअक्सर नाराज कार्यकर्ताओ को मानाने गाँवों में पहुँचाने वाले प्रत्यासी अफीम कि मनुहार से ही कार्यकर्ता कि नाराजगी दूर करते हें। इस दरें गाँवों में रियान का आयोजन कर गांव के वरिस्थ लोगो कि उपस्थिति में राजी नामा होता हें ,राजीनामे के बाद जमती हें रियान इसके लिए गाँव में रियान का आयोजन होता हें जिसमे गांव के वरिष्ठ लोग शिरकत करते हें ,फिर शुरू होता हें अफीम कि मनुहार का दौर। एक रियान में पचास किलो तक अफीम का उठाव हो जाता हें।


प्रचार में अफीम का उपयोग। प्रत्यासियो के प्रचार में जेन वाले कार्यकर्ता अपने साथ मन मनुहार कि समस्त वस्तुए अफीम ,डोडा ,सुपारी ,बीड़ी ,सिगरेट ,पान मसला ,गुटखा आदि का पेकेट बना कर साथ रखते हें।





शनिवार, 6 जुलाई 2013

अफीम की मनुहार रंग उदयपुर रै राणा नै



यह अत्यंत आश्चर्य की बात है कि मेवाड़ व मालवा के इलाके, जहाँ अफीम की खेती की जाती है, उससे कही बहुत अधिक, इसका प्रचलन मारवाड़ में जैसलमेर व बाड़मेर के गाँवों में है, जहाँ कभी- कभी कोसों दूरी से पानी लाया जाता है। कहीं- कहीं तो पूरे ग्रामवासी अफीमची है। "डिंगल कोष' में अफीम के कई नाम दिये गये हैं-- नाग-झाग, कसनाग रा, काली, अमल (कुहात), नागफैण, पोस्त (नरक), आकू, कैफ (अखात), अफीण, कालागर, सांवलौ, दाणावत, कालौ आदि। बोलचाल की भाषा में इसे अफीम, अमल, कसूंबो, कहूंबो, कालियो आदि कहा जाता है।

यहाँ के समाज में संत जांभोजी का प्रभाव व्यापक था। उनके संपर्क में आकर राठौड़ों ने मांस तथा मदिरा का सेवन छोड़ दिया। अफीम ने शराब का स्थान ले लिया और धीरे- धीरे इसका महत्व बढ़ता गया। विवाह, सगाई, मरण, मिलन, विछोह, मान- मनुहार, मेलजोल व आपसी समझौते के समय अफीम की मनुहार का यहाँ विशेष महत्व है। अमल के समय विभिन्न इतिहास पुरुषों को स्मरण किया जाता है। इन्हें वे "रंग देना' कहते हैं। इसमें वे ब्रम्हा से लेकर देश के राजा व चौधरी तक को अपने अमूल्य योगदान के लिए रंग देते हैं। इनका एक उदाहरण इस प्रकार दिया जा रहा है --

""रंग उदयपुर रै राणा नै, रंग रुप नगर रै ढ़ाणा नै, रंग मंडोवर री बाड़ी नै, रंग नींबाज रा किंवाड़ा नै, रंग सूरा साकदड़ा नै, रंग कोटड़ा रा घोड़ा नै, रंग तेजा जूंझारा नै, रंग मेड़ता रा अमवारां नै, रंग जसवंत सिघ री हाडी राणी नै, रंग रुपादे मल्लीनाथ री राणी नै, रंग सीता रै सत नै, रंग लिछमण जती नै, रंग ईसरदास नै, रंग जेतमाल दसमा सालगराम नै, रंग जैसल री राणी नै, रंग भीम रा अपांण नै, रंग दीवाण रोहितास नै, रंग सती कागण नै, रंग पाबू रा भाला नै, रंग जायल रा जाट नै, रंग खिंवाड़ा रा चौधरी नै, रंग जेत रा थाल नै, रंग सोनगरा री आण नै, रंग सहजादी री जबान नै, रंग हम्मीरां रा हठ नै, रंग सवाईसिंध रा वट नै, रंग महाराजा ईष्ट नै, रंग ब्रम्हा रा तृष्ट नै।

समाज में एक- दूसरे को अफीम देने की प्रथा विद्यमान रही है। अक्षय तृतीया को सभी ग्रामवासी जागीरदार के दरीखाने में अफीम- सेवन के लिए एकत्रित होते थे। इस सभा को "रेयाण' कहते हैं। जागीरदार स्वयं उस दिन अपने दाहिने हाथ से प्रत्येक ग्रामवासी को अफीम का विशेष घोल सम्मान के साथ पिलाते थे। विशेष सम्मानस्वरुप ग्रामवासी जागीरदार के हाथ को अपने "साफे' को खोलकर उसके पल्लू से हाथ साफ करते थे। अपने हाथ से प्रत्येक व्यक्ति को अफीम की मनुहार करने के बाद, उसे अपना हाथ पीकदानी में धोना पड़ता था और स्वच्छ हाथ से दूसरे ग्रामवासी को अफीम की मनुहार की जाती थी।

यहाँ के गाँवों में रिवाज के अनुसार जमाई आने को सूचना"अमल के हेले' से होती है। ग्रामीण लोग बड़ी संख्या में अफीम की आस में उनके घर मिलने जाते हैं तथा तोले का तोला अफीम खा जाते हैं।

नियमित " मावे' से अमल लेने वालों को तीन बार हथेली भर कर अमल दिया जाता है। इसे तेड़ा कहते हैं। बड़े अफीमचियों को तृप्त करने के लिए हाथ की हथेली की अंगुलियों व अंगूठे को जोड़कर एक छोटी तलाई का रुप दिया जाता है। इस प्रकार की भरपूर हथेली को "खोबा' कहा जाता है। अधिक "खोबे' पीने वाले लोगों की चर्चा रेयाण में विशेष रुप से होती है। जिस अफीमची की मनुहार भारी पड़ रही हो, वह काव्यमयी भाषा में रंग देना प्रारंभ करता है। प्रत्येक रंग के साथ वह अपने अनामिका से हथेली में भरे हुए अफीम से छीटा देने लगता है। रंग देते हुए आधा अफीम छींटे देकर ही कम कर देता है। जितना अफीम आवश्यक लगता है, उतना पी लेता है। लेकिन परंपरानुसार जब तक अफीम समाप्त न हो जाए, हथेली को बिना हिलाए सामने की तरफ रखना पड़ता है।

जब किसी अफीमची को "अमल' ज्यादा लेना होता है, तो वे अपने निकट बैठे किसी सबल अफीमची के मुँह में जबरदस्ती अफीम दे देते थे, जिसके प्रतिक्रिया में वह दुगुनी मात्रा में सुखी अफीम उसके मुँह में डाल देता था, जिसके लिए वह पहले से तैयार रहता था। कुछ अफीमचियों को नशा चढ़ाने के लिए मजाक में ही हाथापाई करनी पड़ती है। कई अफीमची तो रेयाण मे मनुहार करने पर बड़ी मात्रा में अफीम मुँह में डाल लेते थे। फिर कभी बड़ी चालाकी से उसे अमल की हंडिया में संग्रहित कर लेते थे, जिसका बाद में पुनः प्रयोग किया जा सके। रेयाण में, ऐसी मजलिस प्रायः मध्याह्म तक चलती रहती है।

रेयाण की समाप्ति के बाद अफीम की कड़वाहट को दूर करने के लिए मिसली, बताशे जैसे मीठे खाद्य बाँटे जाते हैं। इसे खारभंजणा कहा जाता है। इसका वितरण आर्थिक स्थिति के अनुसार किया जाता है। ज्यादा "खारभंजणा' वितरित करने वालों की इज्जत बढ़ती है। वितरण की जिम्मेदारी गाँव के "नाई' की होती है, जिसके बदले उसे "नेग' मिलती है।

पहले दो समूहों के झगड़े को शांत करने के लिए, पंच लोग अफीम दिलाकर आपस में एक- दूसरे की सुलह कराते थे। ऐसी मान्यता थी कि कैसी भी पुरानी दुश्मनी हो, एक- दूसरे के हाथ से अफीम ले लेने के बाद बैर खत्म हो जाती है। विवाह- सगाई में भी अफीम की मनुहार के बाद ही बात पक्की मानी जाती थी। सगाई- संबंध के गवाह के रुप में ग्रामीणों को अफीम का हेला (न्योता) किया जाता रहा है। मृत्युपरांत शोक- संतप्त परिवार से मिलने आये रिश्तेदारों को भी अफीम की मनुहार की जाती है।

गाँवों में अफीम का प्रयोग कई प्रकार से, दवाओं के रुप में भी किया जाता है, शरीर के किसी अंग में दर्द होने पर अफीम की मालिश की जाती है। किसान अपनी
कमर दर्द कम करने के लिए तो प्रायः इसी घरेलु औषधि का प्रयोग करते हैं। अफीम कब्ज पैदा करने वाला पदार्थ है, अतः दस्त होने पर भी गाँव वाले इसका प्रयोग करते हैं। सर्दी- जुकाम में अफीम को गर्म करके लेने की भी परंपरा रही है। युद्ध के समय मल- मुत्र रोकने के लिए अफीम पी जाती थी।

अफीमचियों से अफीम की लत छुड़वाना, हमेशा से ही एक समस्या रही है। कर्नल टॉड ने भी माना है- राजपूतों का नाश अफीम ने किया। कई लोगों ने इस जहर से मुक्ति की दिशा में प्रयास किये हैं। वि. सं. १९२३ (सन् १८६६ ई.) में लिखित एक ग्रंथ में बाघसिंह का एक गुटका मिला है, जिसमें अमल छोड़ने की दवा का नुस्खा इस प्रकार दिया गया है --

।। षुरणांणी अजमो:।। कुचीला।। मोठ की जडः।। कटील की जड़।।