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सोमवार, 10 अगस्त 2020

जैसलमेर ग्रामदानी योजना के गाँवों का मूल उद्देश्य खत्म ,गोचर पर अतिक्रमण बढ़े

जैसलमेर ग्रामदानी योजना के गाँवों का मूल उद्देश्य खत्म ,गोचर पर अतिक्रमण बढ़े  


पहले :--सबै भूमि गोपाल की, नहीं किसी की मालिकी अब ;---सबै भूमि अध्यक्ष की, नहीं किसी की मालिकी

जैसलमेर केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में भले ही धारा 370 व 35 ए हटा दी है, लेकिन राजस्थान के 196 गांव आज भी ऐसे हैं, जहां बाहरी व्यक्ति को जमीन खरीदने की अनुमति नहीं है। इनमे से 17  ग्राम  पंचायतें जैसलमेर जिले की हैं ,इन पंचायतों में  राजस्व से जुड़े मामलों में सरकार के राजस्व विभाग की भी कोई ‘पंचायती’ नहीं चलती है, बल्कि ग्रामीणों द्वारा निर्वाचित ग्राम सभा ही जमीन खरीद-फरोख्त से लेकर जमीन के नामांतरण, नक्शा जारी करने, गिरदावरी नकल देने जैसे सभी काम देखती है। ग्राम सभा में एक अध्यक्ष व एक सचिव का तथा कुछ सदस्य होते हैं, जो राजस्व रिकॉर्ड संधारण का काम देखते हैं।पचास साल पुराने भूमि सुधार आंदोलन की गति अब थम गयी ,भूमि सुधार  बजाय भूमियो पर गांवों में प्रभावशाली लोगो  के कब्जे हो  , भूमिहीन को भूमि नहीं मिलती ,इस कानून में सुधार  की आवश्यकता महसूस की जा रही हैं ,या कानून में सुधार हो या इसे राजस्व विभाग के अधीन किया जाए

जैसलमेर जिले में है ये ग्रामदानी गांव

जैसलमेर जिले में सत्रह गांव ग्रामदानी योजना से जुड़े हैं ,ग्रामदानी गांव लाणेला, कबीरबस्ती, देवा, सांवला, काठोडी, झाबरा, मजरा ,भैरवा, भागू का गांव, जसुराना, चैधरिया, रिदवा, आकल, थईयात, हेमा, देउंगा, भादासार, डेलासर व भैरवा है।इन गाँवो में पटवारी नहीं होता,सभी सत्रह ग्रामदानी गांवों का एक पटवारी होता हैं,गांव के राजस्व का कार्य अध्यक्ष ,सचिव ही देखते हैं ,प्रशासन और राजस्व विभाग  की कोई दखल अंदाज़ी नहीं होती,इसलिए ग्रामदानी गांवों का विकास ठप्प हैं ,


ग्रामदानी गांव का जन्म कैसे हुआ

संत विनोबा भावे द्वारा सन् 1951 में भूदान आंदोलन आरम्भ किया गया, जो स्वैच्छिक भूमि सुधार आंदोलन था। आंदोलन के दौरान 24 मई, 1952 को उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के मंगरोठ गांव के लोगों ने विनोबा के पास आकर पूरे गांव की जमीन ही दान कर दी। इस तरह ग्रामदान के विचार का जन्म हुआ। 1969 तक देशभर में लगभग सवा लाख ग्रामदानी गांव बन चुके थे। राजस्थान में 1971 में राजस्थान ग्रामदान अधिनियम-1971 पारित किया गया।

ग्रामदानी योजना का मूल उद्देश्य ही खत्म ,अतिक्रमण कब्जे बढ़े 

ग्रामदानी व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य यह है कि गांव के लोग अपनी व्यवस्था को स्वयं संभालें एवं जो भी भूमि है उसको सबसे पहले गरीब को देते हुए अन्य को प्रदान करें एवं सब मिलजुलकर गांव का विकास करें। ग्रामीणों को जमीन के नामांतरण व हस्तारण के लिए न तो कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने पड़ते हैं और न ही रजिस्ट्री का पैसा देना पड़ता है। गांव में भूमि सम्बन्धी विवाद नहीं होने से लड़ाई-झगड़े नहीं होते। राजस्व गांवों में वर्तमान में सबसे ज्यादा विवाद जमीनों से जुड़े हैं।जैसलमेर जिले के कुछ गांवों का रिकॉर्ड राजस्व विभाग जयपुर द्वारा सीज किया हुआ हैं ,ग्रामदानी गाँवो में अध्यक्षों और प्रभावी लोगों की मनमानी चलती हैं ,भूमिहीन और गरीब व्यक्ति को जमीनें आवंटन की बजाय अध्यक्ष के परिवार और प्रभावशाली लोगो के बीच जमीनों की बंदरबांट हो रही हैं ,इन पर जिला प्रशासन और  राजस्व विभाग का कोई हस्क्षेप नहीं होने के चलते अध्यक्षों और प्रभावी लोगो द्वारा ही अंतिम फैसले किये जाते हैं ,सूत्रों की माने तो ग्रामदानी गांव काठोडी में एक ही व्यक्ति बीस साल से अध्यक्ष हैं ,इनके परिवार के पास पांच सौ बीघा से  ज्यादा जमीन हैं ,जबकि गांव में कई भूमिहीन आज भी हैं जिन्हे जमीन आवंटन की आवश्यकता हैं ,यहाँ तक की ग्रामदानी गांवों की गोचर और ओरण की जमीनों पर निरंतर अतिक्रमण हो रहे हैं ,कोई रोकने वाला नहीं हैं ,ग्रामीणों ने बताया की कम से कम गोचर की जमीन पर कब्जे न हो यह प्रशासन को देखना चाहिए ,ग्रामीणों ने जमीनों की टी पी की रकम भी कई गुना अधिक वसूल करने का आरोप लगाया , 

ग्रामदानी गांवों के नुकसान

ग्रामदानी गाँवो में बाहरी व्यक्ति चाहकर भी ग्रामदानी गांव में जमीन नहीं खरीद सकते।अब जबकि जमीने कम खेती के लिए भी कम पड़ रही हैं ,ऐसे में राज्य सरकार को साठ साल से अधिक पुराने नियमों में बदलाव करने चाहिए या ग्रामदानी गाँवो को राजस्व विभाग के अधीन कर  देना चाहिए ,ग्रामदानी योजना का मूल उद्देश्य वैसे भी खत्म हो गया हैं ,ग्रामदानी गांवों में जमीनों के विवादों का निपटारा नहीं होने से सैकड़ों प्रकरण बकाया पड़े हैं, और तो और भरष्टाचार और अनियमितताओं के चलते देवा सहित कुछ गाँवो का रेकर्ड राजस्व विभाग जयपुर द्वारा जब्त कर रखा हैं ,आपसी विवादों का निपटारा भी इन गांवों में नहीं हो पाता क्यूंकि ग्रामदानी गांव का अध्यक्ष ही सर्वे सर्व होता हैं ,उनकी मर्जी से फैसले होते हे न्याय नहीं।

  ग्रामदानी गांव का जन्म कैसे हुआ

ग्राम स्वराज एवं ग्रामदानी गांवों की परिकल्पना संत विनोबा भावे की थी।

संत विनोबा भावे द्वारा सन् 1951 में भूदान आंदोलन आरम्भ किया गया, जो स्वैच्छिक भूमि सुधार आंदोलन था। आंदोलन के दौरान संत विनोबा पदयात्रा रहे थे, 24 मई, 1952 को एक अनोखी घटना हुई। उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के मंगरोठ गांव के लोगों ने विनोबा के पास आकर पूरे गांव की जमीन ही दान कर दी। इस तरह ग्रामदान के विचार का जन्म हुआ। यह घटना गांधीजी के ट्रस्टीशिप के विचार को चरितार्थ कर देने जैसी थी। मंगरोठ गांव के लोगों ने कहा कि हमारा गांव अब एक परिवार बन गया है, इसलिए पूरे गांव का लगान ग्रामसभा एक साथ जमा कर देगी। 1969 तक देशभर में लगभग सवा लाख ग्रामदानी गांव बन चुके थे।

इस आंदोलन का नारा था

‘सबै भूमि गोपाल की, नहीं किसी की मालिकी’, उस समय के दुनिया के सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक अमेरिकी पत्रकार लुई फिशर ने कहा था- ‘ग्रामदान पूरब की ओर से आने वाला सबसे अधिक रचनात्मक विचार है।’

foto lanela ka ran ,gramdani ganv
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शनिवार, 7 मार्च 2020

जैसलमेर *बब्बर मगर पर रिजर्व जमीन पर अतिक्रमण स्वविवेक से हटाने की चेतावनी जारी,9 को परिषद पुलिस इमदाद के साथ हटाएगी*

जैसलमेर *बब्बर मगर पर रिजर्व जमीन पर अतिक्रमण स्वविवेक से हटाने की चेतावनी जारी,9 को परिषद पुलिस इमदाद के साथ हटाएगी*

*जैसलमेर में पहली बार अतिक्रमण हटाने का बड़ा अभियान*

*बाडमेर न्यूज़ ट्रैक*

जैसलमेर नगर परिषद जेसलमेर पहली बार अतिक्रमण हटाने की बड़ी कार्यवाही करने जा रहा है।इसके लिए आयुक्त की और से आज चेतावनी जारी की गई।।आयुक्त बृजेश राय ने बताया कि बब्बर मगरा कच्ची बस्ती में परिषद की रिजर्व जमीन पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हो रखे है।।उन्होंने प्रेस नोट के जरिये अतिक्रमियों को चेतावनी दी है कि परिषद रिजर्व भूमि पर अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही नो मार्च को पुलिस इमदाद के साथ करने जा रहा है इसीलिए अतिक्रमी अपने अतिक्रमण स्व विवेक से हटाने ले।।परिषद द्वारा अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही के दौरान कोई अवांछनीय मामला होता है तो उसकी समस्त जिम्मेदारी अतिक्रमियों की रहेगी।।
उल्लेखनीय है जजेसलमेर के मुख्य ह्रदय स्थल यूनियन चौराहे से लगती कच्ची बस्ती बब्बर मगर है जंहा करोड़ो रुपयों की बेशकीमती भूमि पर भूमाफियों ने अतिक्रमण कर रखे है।।अगर परिषद रिजर्व भूमि से अतिक्रमियों को बेदखल करती है तो करोड़ो रुपयों की सरकारी जमीन मुक्त होगी और क्षेत्र के  बिकास में भागीदार होगी।परिषद का अब तक का सबसे बड़ा अतिक्रमण हटाओ अभियान माना जा रहा है। परिषद के जेसलमेर स्थित कई कच्ची बस्तियों में भूमगियो द्वारा अरबो रुपयों की जमीनों पर कब्जे कर अतिक्रमण कर रखे है।।आश्चर्यजनक है कि बिना किसी दस्तावेजों के बेशकीमती जमीनों पर अतिक्रमण चल रहे है परिषद मूक होकर देख रही है।बब्बर मगरा के साथ ही परिषद को अन्य मुख्यबस्तियों पर भी इस तरह की कार्यवाही अमल में लानी चाहिए।जजेसलमेर के विकास का मार्ग प्रशस्त हो सके।।बहरहाल बब्बर मगरा से अतिक्रमण हटाते है तो बाकी बस्तियों में भी इसका कड़ा संदेश जाएगा।

रविवार, 1 दिसंबर 2019

जैसलमेर अतिकर्मियो की जद में जैसलमेर की अरबो रुपयों की सरकारी जमीनों पर खुलेआम अतिक्रमण

जैसलमेर अतिकर्मियो की जद  में जैसलमेर की  अरबो रुपयों की सरकारी जमीनों पर खुलेआम अतिक्रमण 

जैसलमेर। पाकिस्तान सीमा से सटा खूबसूरत जिला जैसलमेर अतिक्रमणो के आगोश मे आकर सिकुड़ता जा रहा है। प्रशासन मौन है, भू-माफिया सक्रिय हैं और राजनीतिक संरक्षण हावी है। बेशकीमती जमीन पर गिद्धदृष्टि बनाए अतिक्रमियो की नापाक हरकतें दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं, लेकिन इन्हे रोकने का साहस अभी तक प्रशासनिक तंत्र नहीं जुटा पाया है। समय-समय पर अतिक्रमण हटाने के नाम पर महज खानापूर्ति की जाती है। यही कारण है कि नियम व कायदो को ताक पर रखकर अतिक्रमण व अवैध कब्जो के लिए जैसलमेर पसंदीदा स्थली बनती जा रही है।एक एक व्यक्ति ने दस से पंद्रह अतिक्रमण कर रखे हैं। सरकारी कर्मचारियों के सर्वाधिक अतिक्रण किये हुए हैं , एयरफोर्स की प्रतिबंधित क्षेत्र के दायरे में  बड़ी जमीनों पर अतिक्रमण कर होटल,रेस्टोरेंट  ,बन  रहे हैं। राष्ट्रिय सुरक्षा  धत्ता बता रहे अतिक्रमी ,
 
कड़वा सच यह है कि चाहे कोई भी सरकार हो या कैसा भी बोर्ड हो, कोई कड़ा कदम उठाने को तैयार नहीं है। नेता, भू-माफिया और अधिकारी की मौजा ही मौजा है, लेकिन गरीब तबके का वह व्यक्ति सबसे ज्यादा परेशान है, जिसे रहने के लिए छोटा सा भूखंड भी नहीं मिल पा रहा है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि जैसलमेर मे आए दिन अवैध कब्जो व अतिक्रमणो के मामले सामने आ रहे हैं और कई बार झगड़े तक की नौबत आ रही है, लेकिन निराशाजनक यह है कि सब कुछ जानते हुए भी जिले के अधिकारी, नगरपरिषद व जनप्रतिनिधि आंखे मूंदे हुए हैं।

इसी का यह नतीजा है कि करोड़ों की बेशकीमती जमीन पर अवैध कब्जों का सिलसिला सतत रूप से चलता ही जा रहा है। शहर की जमीन पर भू-माफियो व अतिक्रमियो की काली नजर से आम आदमी मायूस है। ये अतिक्रमण व अवैध कब्जे ही हंै, जिनके कारण जैसलमेर की विश्वस्तरीय ख्याति प्राप्त सुंदरता प्रभावित हो रही है। रसूखदार व प्रभावी अतिक्रमियों के अवैध कब्जों को हटाने के लिए अभी तक प्रशासनिक तंत्र ने साहस नहीं दिखाया है। केवल कागजों में चेतावनी देने की कार्यवाही हो रही है। जहां देखो वहां अतिक्रमणों की बाढ़ आई हुई है। अतिक्रमणों में नगरपरिषद के कुछ लोगो के शामिल होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

कच्ची बस्तियो मे आलीशान इमारते
कच्ची बस्ती का नाम लेते ही झुग्गी झोपड़ी, कच्चे मकान, समूह मे खेलते अधनंगे बच्चे, एक छोटे से आशियाने मे समूह मे रहते लोग व आधारभूत सुविधाओ का टोटा.. कुछ ऎसी ही तस्वीर दिमाग मे बनती है। ऎसे मे यदि जैसलमेर मे कच्ची बस्तियो मे जाकर देखें तो ऑलीशान इमारतो को देखने के बाद यह समझा जा सकता है कि माजरा आखिर क्या है? जैसलमेर की कच्ची बस्तियों में गिनती के ही कच्चे मकान हैं। गरीबों को दिए गए 900 रूपयों के भूखण्डो पर आलीशान इमारतें, दुकानें व होटल बन गए हैं।

न तो कोई इन्हे रोकने वाला है और न ही नगर परिषद कोई एतराज कर रही है। गफूर भट्टा व बबर मगरा कच्ची बस्तियो को वर्ष 2002 मे समाप्त कर उन्हे क्रमश: शास्त्री व नेहरू कॉलोनी के रूप मे मान्यता दी गई थी। 15 अगस्त 1998 तक के काबिज लोगो को 20 गुणा 45 के भूखंड आवंटित किए गए थे। इन दो कॉलोनियो की नगर नियोजक की ओर से निर्मित नक्शो के आधार पर बसावट की गई थी, लेकिन उसके बाद वर्ष 2004 मे इसी कॉलोनी मे नए सर्वे कराए गए । इसी दुबारा सर्वे के कारण अतिक्रमण बढे और लोगो को गलत-सलत करने का मौका मिला।

बढ़ने लगीं कच्ची बस्तियां
जैसलमेर मे कच्ची बस्तियो मे मकान के लिए अनुदान देने संबंधी योजनाओ के बाद तो इन बस्तियो मे अवैध कब्जो का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। पहले जहां शहर मे छह कच्ची बस्तियां थीं, वहीं इनकी संख्या वर्तमान मे बढ़कर 13 तक पहुंच गई है। एक सर्वे मे नाम जुड़ने के बाद कुछ लोगो ने और कब्जा कर लिया और अगले सर्वे मे नाम जुड़ाने की कवायद शुरू कर दी। ऎसे मे यह समस्या दिन-ब-दिन लाइलाज बीमारी के रूप मे सामने आ रही है।

यहां भी हिमाकत

भू-माफियो की गोचर, ओरण, पड़त भूमि व वन विभाग के क्षेत्र पर काली नजरें गड़ चुकी हैं। गांव में मवेशी चराने वाले ग्वालो के साथ भू-माफिया आए दिन मारपीट करते रहते हंैं।
भू-माफियो की ओर से कहीं भी खाली जमीन, गोचर ओरण या फिर पड़त भूमि दिखते ही वहां अवैध काश्त कर फसल बुवाई कार्य शुरू कर दिया जाता है।
राष्ट्रीय राजमार्ग व राज्य राजमार्गो पर बसे गांवों में बड़ी संख्या में अतिक्रमण हो रहे हंै तथा अतिक्रमी बेखौफ होकर यहां दुकान व मकान निर्माण करवा रहे हैं। यही नहीं दिनोंदिन बढ रहे भू-माफिया जगह-जगह सरकारी जमीनों पर अवैध निर्माण करवाकर उन्हें बेचने का गोरखधंधा कर रहे हैं।मूलसागर ,अमर सागर ,सम ,कनोई ,दामोदरा ,डाबला ,सहित जोधपुर रोड पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण किया जा रहा हैं

भूमाफियों ने अतिक्रमण कर जमीनों को बेचने का व्यवसाय बना रखा हैं, इस गोरखधंधे में इन भूमाफियों ने लाखों रूपए के वारे न्यारे कर दिए। बरसाती नदियों के साथ चारों तरफ हुए अतिक्रमणो के कारण कई बार बाढ़ के हालात पैदा हो जाते हैं।

खाली पड़ी ओरण भूमि पर एक के बाद एक अतिक्रमण इसलिए हो गए, क्योंकि अतिक्रमण के दौरान स्थानीय प्रशासन ने कभी भी कड़ी कार्रवाई नहीं की।

करोड़ों रूपए की सैकड़ों बीघा जमीन पर भू-माफियाओं की ओर से अवैध निर्माण करवाकर, पत्थर डालकर तथा राजस्व, ओरण, गोचर आदि भूमि पर अवैध काश्त कर अतिक्रमण किया जा रहा है। - 

सोमवार, 21 जुलाई 2014

बाड़मेर नगर परिषद की बड़ी कार्यवाही। माणक अस्पताल के पास अतिक्रमण के अवैध दस्तावेज खारिज,



बाड़मेर नगर परिषद की बड़ी कार्यवाही। माणक अस्पताल के पास अतिक्रमण के अवैध दस्तावेज खारिज, 

रजिस्ट्री निरस्त  के लिए पंजीयक को लिखा।


बाड़मेर  बाड़मेर शहर के बीचो बीच माणक हाॅस्पीटल कल्याणपुरा में कुछ लोगो द्वारा नगर परिषद की भूमि पर कुटरचित दस्तावेजों से किए गए अतिक्रमण के सम्बन्ध में गठित जांच कमेटी को रिपोर्ट के आधार पर नगर परिषद की बोर्ड बैठक में समान दस्तावेज निरस्त करते हुए अतिक्रमण हटाने का निर्णय लिया गया। वही उक्त कुटरचित दस्तावेजो के आधार पर अतिक्रमियो द्वारा उप पंजीयन कार्यालय से रजिस्ट्री निरस्त करने के लिये परिषद की और से पत्र लिखने का निर्णय लिया गया।

सभापति उषा जैन ने बताया कि उनके द्वारा माणक हाॅस्पीटल के पास स्थिति विवादित भुखण्ड के सम्बन्ध में जारी तथाकथित भवन अनुज्ञा के दस्तावेजो को विधिवत जांच के लिए कमेटी का गठन उप सभापति चैनसिह भाटी की अध्यक्षता में चार सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया था, जांच कमेटी द्वारा परिषद को सौपी गई रिपोर्ट में बताया गया कि परिषद की किसी भी शाखा द्वारा उक्त भुखण्ड के लिए किसी प्रकार का अनापत्ति प्रमाण पत्र व भवन अनुज्ञा पत्र जारी नही किया। परिषद के किसी भी दस्तावेज में यह दर्ज नही है कि जबकि जारी किए गए तथाकथित अनापत्ति प्रमाण पत्र पर वार्ड, निष्चित स्थान व नाप भी नही लिखा है। यह दस्तावेज कुटरचित फर्जी पाया गया है।

इसी प्रकार गृह कर रजिस्टर में भी उक्त भुखण्ड के सम्बन्ध में कोई नाम दर्ज होना नही पाया गया। उक्त अनापत्ति प्रमाण पत्र और गृह कर विधिसम्मत नही होने से कमेटी ने उक्त दस्तावेजो को सक्षम स्तर पर खारिज करने की सिफारिष की थी जिस पर नगर परिषद की बोर्ड बैठक -6-14 को ये उक्त दस्तावेज खारीज करने का प्रस्ताव सर्व सम्मति से लिया गया।

उन्होने बताया कि इजाजत पत्रावली 352/13-14 की भूरचन्द मालू को जारी होना बताया जबकि इजाजत शाखा प्रभारी द्वारा उक्त पत्रावली 352/13-14 हनुमानराम पुत्र भोमाराम निवासी राजीव नगर के नाम होना पाया गया इस भुखण्ड के सम्बन्ध में कनिष्ठ अभियंता नगर परिषद द्वारा कचरा संग्रहण के लिए आरक्षित होना बताया गया जबकि इस भुखण्ड के आगे वाला भाग कार्यालय द्वारा नीलाम किया गया था। बोर्ड बैठक 14.12.2009 के प्रस्ताव सं. 9 द्वारा भी उक्त विवादित भुखण्ड को कचरा संग्रहण हेतु खाली रखने व आगे के भुखण्ड को नीलाम करने का प्रस्ताव पारित किया गया।

उक्त अनापत्ति प्रमाण पत्र पर कार्यालय के कनिष्ठ अभियंता पुरखाराम के हस्ताक्षर होना पाया गया था। उक्त अभियंता से कमेटी द्वारा की गई पुछताछ में बताया कि उसे गुमराह करके हस्ताक्षर कराए गये। उक्त पत्रावली मोहर लगाकर प्रस्तुत नही की गई। इसी तरह इसी भुखण्ड पर नथमल पुत्र आईदान मल की पत्रावली संख्या 230/70-71 तथा अन्य पत्रावलियो में भी उक्त भुखण्ड नगर परिषद की खाली भूमि होना दर्षाता है।

सभापति ने बताया कि सिविल न्यायाधिष (क ख) बाड़मेर में विचाराधीन प्रकरण संख्या दीवानी विविध 29/14 में पारित आदेष 26.05.2014 में उक्त विवादित का कुटरचित दस्तावेजो के आधार पर भुखण्ड के पत्र में अस्थायी निषेध आज्ञा जारी की गई है।

उन्होने बताया कि उक्त बेचान नामा को निरस्त करने तथा कब्जा प्राप्त करने के लिए सक्षम न्यायालय में कार्यवाही की जा रही है यही उक्त फर्जी दस्तावेजो के आधार पर उप पंजीयन कार्यालय बाड़मेर द्वारा जारी रजिस्ट्री निरस्त करने के लिए लिखा जाएगा।

उन्होने बताया कि गृह कर अभिलेख प्रमाण पत्र क्रमांक सं. 5671/16.04.2013 को भी निरस्त किया गया है।

उक्त भूमि पर नगर परिषद अपना कब्जा लेने के लिये सक्षम स्तर पर कार्यवाही कर रही है।

रविवार, 23 फ़रवरी 2014

बाड़मेर नगर परिषद् कि करोडो कि जमीं अतिक्रमण से मुक्त करने कि मांग

बाड़मेर नगर परिषद् कि करोडो कि जमीं अतिक्रमण से मुक्त करने कि मांग
बाड़मेर जिला मुख्यालय पर भूमाफियाओं द्वारा नगर परिषद् की करोड़ों की जमीन पर अतिक्रमण कर निर्माण करा दिया गया जबकि इस जमीन में हुए भ्रष्टाचार की जाँच स्वायत शासन विभाग ,जिला प्रशासन और स्थानीय पुलिस के ठन्डे बस्ते में पड़ी है. इस प्रकरण में नगर पालिका के चार कार्मिक निलंबित भी हो चुके हैं. यहाँ तक कि पूर्व में मुख्यमंत्री कार्यालय से चार मर्तबा इस प्रकरण की जाँच जिला कलेक्टर और स्वायत शासन विभाग के सचिव को दी गयी थी वर्त्तमान वसुंधरा राजे सरकार से भी जांच के आदेश जिला कलेक्टर बाड़मेर को दिए गए हें इसके बावजूद कोई कार्यवाही नहीं की. जबकि जिला कलेक्टर बाड़मेर द्वारा इस प्रकरण की जाँच तहसीलदार बाड़मेर को दी थी.तहसीलदार ने पटवारी को जाँच सौंप दी मगर कोई कार्यवाही आज तक नहीं हुई.मुख्यमंत्री के आदेश की धज्जियां नगर परिषद् और जिला प्रशासन उड़ा रहे हैं. स्वायत शासन विभाग के सचिव द्वारा अप्रैल में यह जाँच आयुक्त नगर परिषद् बाड़मेर को दी थी जो कचरे की टोकरी की शोभा बढ़ा रही है.छह करोड़ कि नगर परिषद् कि इस जमीं को अतिक्रमण से मुक्त करने कि मांग को लेकर आर टी आई कार्यकर्ता चन्दन सिंह भाटी ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को पात्र लिखा था जिस पर मुख्यमंत्री कार्यालयो द्वारा इस प्रकरण कि तथ्यतमक रिपोर्ट जिला प्रशासन बाड़मेर से मांगी गयी हें ,

शहर के महावीर नगर में नगरपालिका बाड़मेर का व्यवसायिक भूखंड संख्या 66 है जिसकी कीमत करीब करोड़ों रूपए है. उक्त भूखंड पर तत्कालीन जिला कलेक्टर सुबीर कुमार ने वर्ष 2007 में निरस्तीकरण के आदेश जारी कर नगरपालिका के चार अधिकारियों तथा कर्मचारियों के खिलाफ पुलिस कोतवाली थाने में मामला दर्ज करवाया था। उक्त प्रकरण में पालिका के चार अधिकारी कर्मचारी निलंबित भी किए गए है. इस व्यवसायिक भूखंड प्रकरण की जाँच आज भी राज्य सरकार के पास विचाराधीन है. राज्य सरकार ने इस भूखंड के आवंटन को निरस्त कर भूखंड राशि जमा नही करवाई गई थी. इसके बावजूद इस भूखंड पर भूमाफियाओं जिन्होने सरकारी जमीनों पर कई अतिक्रमण कर रखे है और वहाँ पर अवैध रूप निर्माण कार्य आरम्भ करा रखा है. उक्त भूखंड पर रामचंद्र वैष्णव, सावताराम माली, भगा राम माली तथा इनके भूमाफिया सहयोगियों द्वारा अवैध रूप से कब्जा कर निर्माण कार्य निर्बाध रूप से किया जा रहा है. उक्त भूखंड राज्य सरकार का है जिसकी कीमत करोड़ों रूपए है। इस पर नगरपालिका कर्मचारियों तथा अधिकारियों की मिलीभगत से भूमाफियों द्वारा अतिक्रमण कर व्यवसायिक काम्पलेक्स का निर्माण करवाया जा चूका है. स्थानीय जिला प्रशासन की कई बार लिखित सूचना देने के बावजूद कोई कार्यवाही नही की गई.

उक्त व्य्ावसायिक भूखंड संख्या 66 के पूरे प्रकरण की जाँच प्रशासनिक अधिकारी करने से कतरा रहे हैं जबकि इस मामले के तीन मुकदमे शहर कोतवाली में भी दर्ज है. सरकारी संपति को भूमाफियाओं के चंगूल से मुक्त करवाकर अवैध निर्माण को ध्वस्त करने की बजाय भूमाफियाओं को शह दी जा रही है.


नगर परिषद् द्वारा कराई गयी जिसमे स्पष्ट लिखा हें कि उक्त जमीं नगर परिषद् कि हें जिस पर भूमाफियो द्वारा अवैध कब्ज़ा कर भवन निर्माण कराया गया ,परिषद् के तत्कालीन आर ओ द्वारा अतिकर्मियो को अतिक्रमण हटाने के निर्देश भी दिए गए मगर अतिक्रमण आज तक नहीं हटाया गया।