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रविवार, 18 अगस्त 2013

गौ मातर भूमि रक्षक वीर श्री पनराज जी

जैसलमेर के स्थापना दिवस पर भाटियो की कुलदेवी माँ स्वन्गिया गुरु रतन नाथ जी की पूजा अर्चना की गयी 

! गौ मातर भूमि रक्षक वीर श्री पनराज जी की पूजा अर्चना की गयी स्थान सुंली डूंगर देवस्थान पर
! गौ मातर भूमि रक्षक वीर श्री पनराज जी !

लीलूसिंह बड्डा
राहड़ भाटी



विक्रम संवत १३८२ भाद्रपद सुदी दसम का दिन था !वर्ष का लुभावना एव चित्त को आनंद से आपूरित करने वाला म्रदुल अंश चोमासा अपने योवन की दहलीज पर कदम रख चुका था !प्रक्रति विलक्षण श्रंगार से सुशोभित होकर विंहस रही है !शीतल मंद मन्दतर हल्के हवा के इठलाते झोंके सम्पूर्ण सजीव जगत में नव चेतना का संचार कर रहे थे जिनका स्पर्श पाकर कुदरत की सुरम्य गोद में प्रफुलित सप्तरंगी पुष्प अपनी अलोकिक सोरभ से समूचे वातावरण को महका रहे थे !


उन दिनों भारत पर मुसलमानों का शासन था !उनके द्वारा आये दिन भारतीय जनता पर अमानवीय अत्यातर किये जाते थे !तुर्को के क्रूरतम उपहास व कुक्र्त्यो के मध्य क्षत्रिय राजाओ के पारस्परिक वैमनस्य के परिणाम स्वरुप क्षात्र -शक्ति क्षीण होकर सिसकियाँ ले रही थी ऐसे समय में क्षात्र धर्म का पालन करना अत्यधिक दुष्कर कार्य था ! इतनी विकट प्रतिकूल परिस्थितियों के उपरांत भी क्षात्र धर्म से अनुरंजित अलबेले तो अपनी आन -बान मर्यादा पर मर मिटने के लिय सिनातान सदैव तत्पर रहते थे !
जादम कुल की भाटी शाखा की राहड़ खांप में उत्पन्न ठाकुर कंगन जी का प्राण प्यारा वीर श्री पनराज विशिष्ठ शोर्य व पराक्रम की प्रतिमूर्ति था गोव बालाणा में जिसका अंग प्रत्यंग राजपूती रक्त से अभिसिंचित था !क्षत्रियोचित संस्कारो से अलंकृत श्री पनराज बचपन से ही होनहार था !घुड़सवारी और दोंनो हाथो से तलवार चलाने का शैकीन सुरवीर योवनावस्था तक आते जाते रन कोशल में निष्णांत हो चुका था !विक्रम संवत १३७८ में महारावल गडसी जी जैसलमेर के महारावल थे ! श्री पनराज जैसलमेर के शासनकाल में तीन महत्वपूर्ण पदों पर भी अपनी भूमिका निभा रहे थे !१. सामंत २. सेनापति ३. जागीरदार !
१३७८ विक्रम संवत में मुग़ल का बड़ा आतंक था ! देश भर में जैसलमेर में भी महारावल गडसी जी को राजगद्दी पर बिठाने की विशेष भूमिका श्री पनराज की रही थी ! महारावल गडसी जी द्वारा वीर श्री पनराज को १३५ किलोमीटर की जागीरी दी तथा १३७८ में उत्तर का भार सोंपा व सुंली डूंगर पर भूर्ज दिया ! जागीरी से पहले बालाणा में रहते थे ! आप संवत १३८२ में गोव काठोड़ी में अपनी धर्म बहन ब्रह्मणी के घर थे ! इतने में किरली का ढोल बजा तब बहन ब्रह्मणी ने दरवाजा बंद कर दिया ! श्री पनराज ने सुन लिया था ! श्री पनराज ने कहा बहन से आप दरवाजा बंद मत करो ! मना करने पर दरवाजा बंद कर दिया बहन ने ! पनराज जी ने तोड़कर बाहर निकले ब्रह्मणों की हजारो गायों के पीछे मुगलों ने घोड़े दल दीये ! ब्रह्मण फुट -फुट कर रो रहे थे ! अभी मोजूदा देवस्थान यंहा पर उनका संषर्घ शुरू हुआ ! सेकड़ो मुग़ल मरे गए ! गायों छुड़ा दी ! यंहा वीरता करते हुअ इस संषर्घमें पनराज जी का सिर वर्तमान में जिस पनराज जी का देवस्थान है वही पर गिरा सिर विहीन धड से जूझते रहे पनराज जी ! घोड़े पर सवाल थे ! सिर विहीन धड्मुगलो से संषर्घ करता रहा !मुगलों द्वरा गुली कलर डालने के कारण पनराज जी का धड घोड़े सहित धरती माँ की गोद में विलीन हो गया धड पाकिस्तान के बहावलपुर में विलीन हुआ जिसके उपरांत आज भी वर्तमान में पाक में मेला लगता है मोडिया पीर के रूप में पूजे जाते है ! भाई लोगो पनराज जी के बारे जाने और देश में अत्याचार से मुक्त किया था में पूरा वर्णन नही कर पाया हु आज भी गौ मातर भूमि रक्षक वीर श्री पनराज जी को सच्चे मन से इष्ट के अनुसार चलते है ! उनका आशीर्वाद दिया हुआ खाली नही जाता है - तेजपाला बड्डा नग्गा रायमला साधना विशेष रूप से आशीर्वाद खाली नही जाता है ! राहड़ ही कहते है दुआ देते है उनके ऊपर गौ मातर भूमि रक्षक वीर श्री पनराज जी का छत्र है ! पनराज इण जग आविया गढ़ जैसाने काज दुष्टों का दल काटिया राखी गौ माता ऋ लाज जय गौ 
मातर भूमि रक्षक वीर श्री पनराज जी की
प्रेम से बोलो गौ मातर भूमि रक्षक वीर श्री पनराज जी

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