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रविवार, 13 अक्टूबर 2013

बाड़मेर चुनाव रणभेरी 2013 राजनितिक शख्शियत बाड़मेर के कद्दावर जाट नेता कर्नल सोनाराम चौधरी जीवन परिचय

बाड़मेर चुनाव रणभेरी 2013 राजनितिक शख्शियत बाड़मेर के कद्दावर जाट नेता कर्नल सोनाराम चौधरी जीवन परिचय


बाड़मेर सीमावर्ती बाड़मेर जिले की राजनीती करना बेहद कठिन और दुष्कर हें। बाड़मेर की राजनीती में कर्नल सोनाराम चौधरी ने जब प्रवेश किया उस वक्त जिले में राजीनीतिक जागरूकता का आभाव था ,कर्नल जैसलेर के श्री मोहनगढ़ निवासी हें ,जाजिया जैसलमेर में उनके खेत खलिहान भी हें। सोनाराम बाड़मेर से एक ध्रुव तारे के सामान उदयीमान हुए। लगातार तीन संसदीय चुनाव बाड़मेर से लदे ,तीनो मर्तबा उन्हें शानदार जीत मिली ,चौथी बार वे मानवेन्द्र सिंह से पौने तीन लाख मतों से पराजित हो गए थे। तेहरवीं विधानसभा में नवगठित बायतु विधानसभा से विधायक चुने गए। बाड़मेर जिले की राजनीती में कर्नल सोनाराम का अहम् योगदान हें। दबंग और बेबाक नेता के रूप में देश भर में कर्नल चर्चित हें
जीवन परिचय कर्नल का जन्म जैसलमेर जिले के श्री मोहनगढ़ कसबे में श्री उदाराम चौधरी के घर हुआ। उनकी माता का नाम श्रीमती रतनी बाई था। कर्नल की प्रारंभिक शिक्षा मोहनगढ़ और जैसलमेर में हुई। वाही बाद में वे उच्च अध्ययन के लिए गए जहां उन्होंने यु के कोलेग से शिक्षा प्राप्त की बाद में उन्होंने इंजीनियरिंग की। उनोने एम् ई एस में नौकरी की। कर्नल रेंक का सफ़र तय किया ,इस दौरान उन्होंने भारत पाकिस्तान के बीच हुए 1971 के युद्ध में भी भाग लिया। नौकरी में रहते हुए उन्होंने स्थानीय बेरोजगारों को खूब नौकरियाँ दिलाई ,समाज सेवा के क्षेत्र में भी उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया परिवार। उनकी धर्म पत्नी श्रीमती विमल चौधरी ,पुत्र रमण चौधरीउनके पुत्र पेशे से चिकित्सक थे बाद में वे भी राजनीती में आ गए ,वर्तमान में वे कांग्रेस के सक्रीय कार्यकर्त्ता हें



राजनितिक सफ़र अपने सद्व्यवहार से हर समाज वर्ग में वे काफी लोक प्रिय रहे इसी लोक प्रियता के आधार पर सेवानिवृति के बाद राजनीती में रुख किया। अखिल भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस की सदस्यता ली। तथा बाड़मेर जैसलमेर से उन्होंने अपना पहला लोक सभा चुनाव लड़ा उन्होंने पहला लोक सभा चुनाव 1996 में लड़ा। इन चुनावो में उन्होंने अपने निकटतम प्रत्विद्वंदी भाजपा के जोगराज सिंह राजपुरोहित को ६४६६६ मतों से हराकर सांसद बन लोकसभा पहुंचे ,बाद में अगला चुनाव मध्यावधि हुआ जिसमे 1998 में उन्होंने भाजपा के लोकेन्द्र सिंह कालवी को ८५५४० मतों से हराया तथा लगता दूसरी बार लोक सभा में पहुंचे। तीसरे लोक सभा चुनावो में उनके सामने मानवेन्द्र सिंह खड़े हुए ,इन चुनावो में भी उन्होंने मानवेन्द्र सिंह को ३२१४० मतों से पराजित किया। चौथे चुनाव में मानवेन्द्र सिंह से कर्नल २७११८८ मतों से शिकश्त खा बेठे ,बाद में वे २००८ में नव सर्जित विधानसभा बायतु से विधानसभा का चुनाव लदे जिसमे उन्होंने भाजपा के चौधरी को तीस हज़ार से अधिक मतों से हराया ,विधायक बने।


पद जिन पर रहे 1996 11 वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित,1996-97 सदस्य, सलाहकार समिति, ग्रामीण क्षेत्रों और रोजगार मंत्रालय,1996-98 सदस्य, रक्षा संबंधी समिति,1997-98 सदस्य, सलाहकार समिति, रेल मंत्रालय,1998 के 12 वीं लोकसभा (2 पद) के लिए पुन: निर्वाचित
सदस्य, कार्यकारी समिति, कांग्रेस संसदीय दल (सीपीपी),1998-99 सदस्य, रक्षा संबंधी समिति और इसके उप समिति मैं
सदस्य, सदन समिति
सदस्य, सलाहकार समिति, रेल मंत्रालय,1999 13 वीं लोकसभा (3 पद) के लिए पुन: निर्वाचित,1999-2000 सदस्य, रक्षा संबंधी समिति ,सदस्य, सदन समिति,2000 के बाद सदस्य, सलाहकार समिति, संचार मंत्रालय
विशेष आमंत्रित, सलाहकार समिति, रेल मंत्रालय


सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों

इंटर कॉलेज सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए प्रोत्साहित किया और अध्यक्षता करने का अवसर मिला
की गतिविधियों में लिया गहरी रुचि, बाड़मेर, जैसलमेर और जोधपुर में उनमें से कई पर
विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों, बच्चों, विकलांग और वृद्ध के लिए काम कर रहा है, नियमित
ऐसे CRY जैसी संस्थाओं को दाता, कृषि विकास में गहरी रुचि ले लिया है और
जैसलमेर, बाड़मेर के लिए इंदिरा गांधी नहर के निर्माण के बाद किसानों के उत्थान

विशेष रूचियाँ

फोटोग्राफी और यात्रा, देश की पूरी लंबाई और चौड़ाई तय

पसंदीदा प्रमोद और मनोरंजन

गोल्फ बजाना, तैराकी, फोटोग्राफी, भारतीय शास्त्रीय संगीत, पढ़ने (कविता और गैर फिक्शन)

खेल और क्लब

स्कूल के दिनों 1960-61 और 1961-62 में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी घोषित, गोल्फ में भाग लिया
चैंपियनशिप और इंटर सर्विस टूर्नामेंट में ट्राफियां जीती, सदस्य, (मैं) आर्मी गोल्फ कोर्स,
दिल्ली कैंट,. और (ii) वायु सेना के गोल्फ कोर्स, नई दिल्ली

देशों का दौरा

हांगकांग, सिंगापुर और थाईलैंड

अन्य जानकारी

राष्ट्रपति, इंजीनियरिंग कॉलेज, जोधपुर, 1966-67; संस्थान द्वारा फैलोशिप दी
इंजीनियर्स (इंडिया), कप्तान, इंजीनियर्स में प्लाटून कमांडर और फील्ड कंपनी कमांडर
रेजिमेंट, 1969-76, मेजर, गैरीसन इंजीनियर और कर्मचारी अधिकारी, 1977-85, लेफ्टिनेंट कर्नल,
स्टाफ आफिसर, सेना मुख्यालय, नई दिल्ली, 1985-1988 में ग्रेड मैं, सीमा सड़क के कर्नल, कमांडर
टास्क फोर्स, अरुणाचल प्रदेश, 1988-1990, कर्नल, अतिरिक्त मुख्य अभियंता, बंगलौर और
जोधपुर, 1991-1994, (कोर के सशस्त्र बलों में बकाया और चुनौतीपूर्ण कार्यकाल था
इंजीनियर्स); विभिन्न राज्यों / क्षेत्रों अर्थात में 28 साल के लिए सेवा की. जम्मू और कश्मीर, उत्तर पूर्व,
डेजर्ट एरिया, दक्षिण भारत और दिल्ली की राष्ट्रपति से विशिष्ट सेवा मेडल (वीएसएम) के प्राप्तकर्ता
भारत और वायु सेना के आर्मी स्टाफ और मुख्यमंत्री के चीफ से दो प्रशस्तियां, अध्यक्ष, पूर्व सैनिक प्रकोष्ठ, अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) के सदस्य, रक्षा सेवा

शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2013

बाड़मेर चुनावी रणभेरी २०१३। । राजनितिक शख्शियत श्रीमती मदन कौर बाईजी जीवन परिचय

बाड़मेर चुनावी रणभेरी २०१३। । राजनितिक शख्शियत श्रीमती मदन कौर बाईजी





बाईजी के नाम से मशहूर श्रीमती मदनकौर (b. 1935) (Madan Kaur) का जन्म राजस्थान के जोधपुर जिले की शेरगढ़ तहसील के ढाढणीया) गाँव में सन 1935 में गोकुल दास डऊकिया के घर हुआ.

गोकुल दास साधारण किसान पुत्र थे. सन 1956 के छपनीय अकाल में रोजी रोटी के लिए गोकुल दास सिंध चले गए. सक्खर रेलवे स्टेसन पर उन्होंने मजदूरी की. उस समय उन्होंने अंग्रेज गार्ड से अंग्रेजी पढ़ना-लिखना सीख लिया. कुशाग्र बुद्धि गोकुल दास रेलवे में गार्ड से तरक्की कर एटीएस के पद पर पहुंचे. यहीं आपको शिक्षा के महत्व का पता चला तो आपने अपनी पुत्रियों को भी शिक्षा दिलाई. श्रीमती मदन कौर ने अर्थ शास्त्र विषय में स्नातकोत्तर की उपाधि ग्रहण की. उस समय महिलाओं की शिक्षा नगण्य थी. उस समय किसी जाट लडकी के पढने की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.

आपका विवाह डीगाड़ी कला (जोधपुर) निवासी मोहनराम मण्डा के साथ हुआ. मण्डा भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारी थे. आपका पुत्र व पुत्रवधू विदेशों में चिकित्सक हैं. पुत्री सुधा डॉ. दलपत सिंह से ब्याही हैं.

सन 1963 में आप बाड़मेर जिला कांग्रेस कमिटी की अध्यक्ष बनी. आपने सन 1977 तक लगातार 14 वर्ष तक इस पद को शोभित किया. 1967 से 1980 तक 13 वर्ष तक प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी सदस्य रही. सन 1967 में पचपदरा से विधासभा सदस्य बनी. आप पचपदरा से लगातार 1967 -72 , 1972 -77 , 1977 -80 तीन बार विधायक रही. 1989 में जनता लहर में कांग्रेस छोड़कर चौधरी देवी लाल के बैनर तले जनता दल की टिकट पर गुढा मालानी से विधायक चुनी गयी. आप चार बार राजस्थान विधान सभा की सदस्या रही. 1990 में राज्य सरकार में वन एवं पर्यावरण मंत्री बनी. इस पद पर दो वर्ष से ज्यादा समय तक रही.

इससे पूर्व 1999 में आपको प्रदेश कांग्रेस कमेटी का उपाध्यक्श बनाया. फ़रवरी 2005 में सम्पन्न पंचायती राज चुनाओं में आपको जिला परिषद सदस्य चुना गया तथा बडमेर की प्रथम महिला प्रमुख बनने का सौभाग प्राप्त हुआ. इस बार लगातार दूसरी बार आप जिला प्रमुख बनी। आपने बालिका शिक्षा के क्षेत्र में नये आयाम स्थापित किये. औद्योगिक नगरी बालोतरा में समदडी रोड पर वीर तेजा विकास समिति के बैनर तले छात्र व छात्राओं के लिये आवासिय छात्रावास का निर्माण किया. इस समिति की आप अध्यक्ष हैं. इस भव्य छात्रावास में जाट मन्दिर भी बना हुआ है. आप जट मन्दिर पुष्कर,महाराजा सूरजमल शिक्षण संसथान नई दिल्ली, जाट चैरिटेबल ट्रस्ट बाड़मेर, बहादुर सिंह समाज जाग्रति ट्रस्ट संगरिया सहित अनेक जाट संस्थाओं की सक्रीय सदस्य हैं. आपको पुष्कर जाट मंदिर समिति की तरफ से जाट रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया.

रविवार, 29 सितंबर 2013

बाड़मेर राजनितिक शख्शियत। … बाड़मेर की राजनीती के भीष्म पितामह गंगा राम चौधरी


 बाड़मेर राजनितिक शख्शियत। … बाड़मेर की राजनीती के भीष्म पितामह गंगा राम चौधरी 


बाड़मेर जिले की राजनितिक की दशा और दिशा दोनों गंगाराम तय करते  


गंगाराम चौधरी का जन्म राजस्थान के बाड़मेर जिले की रामसर तहसील के खडीन) गाँव में 1 मार्च 1922 को मालानी के किसान क्रांति के जनक रामदान चौधरी (डऊकिया) और किस्तुरी देवी भाकर के घर हुआ. रामदान चौधरी (डऊकिया) के पांच पुत्र थे :केसरी मल, लालसिंह हाकम, गंगाराम, फ़तेह सिंह और खंगारमल.

वकालत से जनसेवा

गंगाराम चौधरी ने बी.ए. एल.एल.बी. की डिग्रियां हासिल कर वकालत को अपना पैसा बनाया. इससे पूर्व आपने रेलवे में एल.डी.सी. का कार्य किया. जागीरदारी के समय किसानों पर होने वाले अत्याचारों, चौरी-डकैती, जमीन सम्बन्धी विवादों की न्यायलय में पुरजोर पैरवी की, गरीब किसानों की निशुल्क पैरवी की. सीमान्त क्षेत्र में आत्मरक्षार्थ बन्दूक लाईसेंस दिलवाया. पिताजी रामदान चौधरी के नेतृत्व में किसान सभा एवं किसान जाग्रति हेतु आपने इतने काम करवाए कि आज आप राजस्व के टोडर मल कहे जाते हैं.

राजनीती में.. आदर्श पिता रामदान चौधरी के पुत्र गंगाराम चौधरी एक मात्र विधायक हें जिन्होंने तीन विधानसभा क्षेत्रो का प्रतिनिधित्व किया। राजनीती में प्रधान से लेकर मंत्री तक का सफ़र तय कर गंगा राम चौधरी ने अपने आपको कद्दावर जाट नेता के रूप में स्थापित किया। उन्हें नाथीराम मिर्धा के समकक्ष नेता मानते थे ,बाड़मेर जिले की राजनीती गंगाराम से शुरू हो कर गंगाराम पर ख़त्म हो जाती। उनका राजनितिक कद राजनैतिक पार्टियों पर हमेशा भरी रहा कांग्रेस ,भाजपा ,जनता दल ,, और निर्दलीय चुनाव मैदान में उतारे ,चुनाव जीतते गए ,उनकी राजनितिक क्षमता अकूत थी जिसका यहाँ कोई सानी नहीं ,गंगा राम ,अब्दुल हादी ,श्रीमती मदन कौर लाज़वाब तिकड़ी थी। गंगाराम राज्य सरकारों में मंत्री भी रहे ,राजस्व मंत्री के रूप में वे थे ,उन्होंने किसानो को बड़ी राहत दी। बाड़मेर ,गुडा चौहटन से विधायक रहे ,जिला प्रमुख भी रहे। २००८ चुनावो में उनकी टिकट काटने के बाद राजनीती से मोह भंग हो गया ,

बाद में गंगाराम चौधरी ने राजनीती में आकर राजस्थान के विभिन्न विभागों में मंत्री रहकर जनता की सेवा की.

जनप्रतिनिधि के रूप में आपका पदार्पण धोरीमन्ना पंचायत समिति के प्रधान के रूप में 1959 में हुआ.
1962 में गुढ़ा मालानी से विधायक, 1980 तक लगातार गुढा मालानी व बाड़मेर से विधायक बन विधान सभा में प्रतिनिधित्व किया.
1967 में राजस्व उप-मंत्री बने.
1977 में कांग्रेस छोड़कर चरण सिंह के साथ कांग्रेस (अर्स) में आये.
1985 में बाड़मेर से विधायक चुने गए.
1985 -1990  बाड़मेर से लोकदल के सदस्य रहे
1990 - 1992  बाड़मेर से जनता दल के सदस्य रहे.
शेखावत सरकार में 24 नवम्बर 1990 से 15 दिसंबर 1992 तक राजस्व, भूमि सुधार एवं उपनिवेश विभागों में मंत्री रहे. *1993 में निर्दलीय विधायक चुने गए और शेखावत सरकार में समर्थन देकर राजस्व एवं उपनिवेश विभागों में मंत्री रहे.
31 अगस्त 1998 को 20 वर्ष बाद कांग्रेस में आये तथा बाड़मेर जिला परिषद् के प्रमुख बने.
दिसंबर 2003 में भाजपा में आकर चोहटन विधायक बने.

आपने 30 वर्ष तक राजस्थान विधान सभा में बाड़मेर का प्रनिनिधित्व किया तथा 13 वर्ष मंत्रिमंडल के सदस्य रहे.

शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

बाड़मेर राजनितिक शख्शियत तन सिंह बाड़मेर के पहले विधायक ,पालिका अध्यक्ष







बाड़मेर राजनितिक शख्शियत तन सिंह 


बाड़मेर के पहले विधायक ,पालिका अध्यक्ष 


जन्म

वि.सं.१९८० में बाड़मेर जिले के गांव रामदेरिया के ठाकुर बलवंत सिंह जी महेचा की धर्म पत्नी मोतिकंवरजी के गर्भ से तनसिंह जी का जन्म अपने मामा के घर बैरसियाला गांव में हुआ था वे अभी शैशवावस्था में अपने घर के आँगन में चलना ही सीख रहे थे कि उनके पिता मालाणी के ठाकुर बलवंत सिंघजी का निधन हो गया और चार वर्ष से भी कम आयु का बालक तनैराज अपने सिर पर सफ़ेद पाग बाँध कर ठाकुर तनैराज हो गया | मात्र ९०रु वार्षिक आय का ठाकुर | भाग्य ने उनको पैदा करके पालन-पोषण के लिए कठिनाईयों के हाथों सौप दिया |

शिक्षा

घर की माली हालत ठीक न होने के बावजूद भी श्री तनसिंह जी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा बाड़मेर से पुरी कर सन १९४२ में चौपासनी स्कूल जोधपुर से अच्छे अंकों के साथ मेट्रिक परीक्षा पास कर सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी होने का गौरव प्राप्त किया,और उच्च शिक्षा के लिए पिलानी चले आए जहाँ उच्च शिक्षा ग्रहण करने बाद नागपुर से उन्होंने वकालत की परीक्षा पास कर सन १९४९ में बाड़मेर आकर वकालत का पेशा अपनाया,पर यह पेशा उन्हें रास नही आया |

राजनैतिक जीवन

25 वर्ष की आयु में बाड़मेर नगर वासियों ने उन्हें बाड़मेर नगर पालिका का अध्यक्ष चुन लिया और 1952 के विधानसभा चुनावों में वे पहली बार बाड़मेर से विधायक चुन कर राजस्थान विधानसभा पहुंचे और 1957 में दुबारा बाड़मेर से विधायक चुने गए | 1962 व 1977 में आप बाड़मेर लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए | 1962 में तन सिंघजी ने दुनिया के सबसे बड़े और विशाल बाड़मेर जैसलमेर निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव मात्र एक जीप,कुछ साथी,सहयोगी स्वयम सेवक,कार्यकर्त्ता,किंतु अपार जन समूह के प्यार और समर्थन से मात्र 9000 रु. खर्च कर सांसद बने |

श्री क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना

पिलानी के राजपूत छात्रावास में रहते हुए ही श्री तनसिंह जी ने अपने भविष्य के ताने-बाने बुने | यहीं उनका अजीबो-गरीब अनुभूतियों से साक्षात्कार हुआ और समाज की बिखरी हुयी ईंटों से एक भव्य-भवन बनाने का सपना देखा | केवल 22 वर्ष की आयु में ही उनके हृदय में समायी समाज के प्रति व्यथा पिघली जो " श्री क्षत्रिय युवक संघ" के रूप में निश्चित आकार धारण कर एक धारा के रूप में बह निकली | लेकिन अन्य संस्थाओं की तरह फॉर्म भरना,सदस्यता लेना,फीस जमा करना,प्रस्ताव पारित करना,भाषण,चुनाव,नारेबाजी,सभाएं आदि करना श्री तन सिंह जी को निरर्थक लगी और 22 दिसम्बर 1946 को जयपुर के मलसीसर हाउस में नवीन कार्य प्रणाली के साथ "श्री क्षत्रिय युवक संघ " की विधिवत स्थापना की और उसी दिन से संघ में वर्तमान संस्कारमयी मनोवैज्ञानिक कार्य प्रणाली का सूत्रपात हुवा | इस प्रकार क्षत्रिय समाज को श्री तनसिंह जी की अमूल्य देन "श्री क्षत्रिय युवक संघ " अपनी नई प्रणाली लेकर अस्तित्व में आया | राजनीती में रहकर भी उन्होंने राजनीती को कभी अपने ऊपर हावी नही होने दिया | क्षत्रिय युवक संघ के कार्यों में राजनीती भी उनकी सहायक ही बनी रही | सन 1955-56 में विवश होकर राजपूत समाज को राजस्थान में दो बड़े आन्दोलन करने पड़े जो भू-स्वामी आन्दोलन के नाम से विख्यात हुए,दोनों ही आन्दोलनों की पृष्ठभूमि में क्षत्रिय युवक संघ की ही महत्वपूर्ण भूमिका थी | स्व.श्री तनसिंह जी की ख्याति एक समाज-संघठक,कर्मठ कार्यकर्त्ता,सुलझे हुए राजनीतीज्ञ,आद्यात्म प्रेमी,गंभीर विचारक और दृढ निश्चयी व्यक्ति के रूप में अधिक रही है किंतु इस प्रशिधि के अतिरिक्त उनके जीवन का एक पक्ष और भी है जिसे विस्मृत नही किया जा सकता | यह एक तथ्य है कि एक कुशल प्रशासक,पटु विधिविज्ञ,सजग पत्रकार और राजस्थानी तथा हिन्दी भाषा के उच्चकोटि के लेखक भी थे | पत्र लेखन में तो उनका कोई जबाब ही नही था अपने मित्रों,सहयोगियों,और सहकर्मियों को उन्होंने हजारों पत्र लिखे जिनमे देश,प्रान्त,समाज और राजपूत जाति के अतीत,वर्तमान और भविष्य का चित्र प्रस्तुत किया गया है | अनेक सामाजिक,राजनैतिक और व्यापारिक कार्यों की व्यस्तता के बावजूद उन्होंने साहित्य,संस्कृति और धार्मिक विषयों पर लिखने के समय निकला | श्री क्षत्रिय युवक संघ के पथ पर चलने वालों पथिकों और आने वाली देश की नई पीढियों की प्रेरणा स्वरूप स्व.श्री तनसिंह जी एक प्रेरणादायक सबल साहित्य का सर्जन कर गए |
मृत्यु

1979 में मध्यावधि चुनावों का फॉर्म भरने से पूर्व अपनी माताश्री से आशीर्वाद लेते समय 7 दिसम्बर 1979 को श्री तनसिंह जी ने अपनी माता की गोद में ही अन्तिम साँस ली

पुस्तकें

उन्होंने अनेक पुस्तके लिखी जो जो पथ-प्रेरक के रूप में आज भी हमारा मार्ग दर्शन करने के लिए पर्याप्त है |
1-राजस्थान रा पिछोला
2-समाज चरित्र
3- बदलते द्रश्य
4- होनहार के खेल
5- साधक की समस्याएं
6- शिक्षक की समस्याएं
7- जेल जीवन के संस्मरण
8- लापरवाह के संस्मरण
9-पंछी की राम कहानी
10- एक भिखारी की आत्मकथा
11- गीता और समाज सेवा
12- साधना पथ
13- झनकार( तनसिंहजी द्वारा रचित 166 गीतों का संग्रह)--