बाड़मेर PAK के कब्जे में था भारत का ये रेलवे स्टेशन, रेल कर्मचारियों पर बरसे थे बम
भारत-पाकिस्तान के बीच वर्ष 1965 में युद्ध के दौरान राजस्थान सीमा पर दोनों सेनाओं के बीच जोरदार युद्ध हुआ। पाकिस्तानी सेना ने भारत के अंतिम रेलवे स्टेशन मुनाबाव पर कब्जा कर लिया था। जवाबी हमले को रोकने के लिए पाकिस्तान की भीषण बमबारी से रेलवे ट्रैक क्षतिग्रस्त हो गया। गडरा में सेना तक गोला-बारूद व रसद पहुंचाने के लिए रेल कर्मचारियों ने ट्रैक की मरम्मत कर दी, लेकिन इस दौरान हुई बमबारी में सत्रह रेल कर्मचारी शहीद हो गए। इसके बावजूद रेलवे कर्मचारियों ने रेल को गडरा पहुंचा ही दिया। सेना को इससे मिली आपूर्ति के दम पर इस मोर्चे पर युद्ध का नजारा ही बदल गया और भारतीय सेना ने न केवल मुनाबाव वापस हासिल किया, वरन पाकिस्तान में प्रवेश कर गई। मुनाबाव पर पाकिस्तान का अधिकार...
- वर्ष 1965 के युद्ध में मराठा लाइट इन्फैन्ट्री को एक दस्ते को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मुनाबाव भेजा गया। पाकिस्तानी तोपखाने और वायुसेना के भीषण हमले के कारण वे केवल अपनी चौकी की ही रक्षा कर पाए। मराठा लाइट इन्फैन्ट्री के सैनिकों की बहादुरी के कारण इस चौकी को मराठा हिल के नाम से पहचाना जाता है। दुश्मन की भारी गोलाबारी के कारण मुनाबाव में अन्य सैनिक नहीं पहुंच पाए। पाकिस्तान ने गडरा जाने वाले रेल मार्ग को उड़ा दिया। सहायता नहीं पहुंचने के कारण आठ सितम्बर 1965 को मुनाबाव पर पाकिस्तान का अधिकार हो गया।
रेल कर्मचारियों ने दिखाई हिम्मत
- गडरा रेल लाइन के क्षतिग्रस्त होने के कारण इस मोर्चे पर तैनात सैनिकों की सप्लाई लाइन पूरी तरह से कट गई। भारत का प्रमुख लक्ष्य सप्लाई लाइन को तैयार करना था ताकि सीमा पर डटे जवानों तक निर्बाध आपूर्ति हो सके।
- ऐसे हालात में गडराा क्षेत्र में तैनात रेल कर्मचारियों ने ट्रैक को ठीक करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने पाकिस्तानी वायुसेना की भीषण बमबारी के बीच ट्रैक को फिर से शुरू कर दिया।
- ट्रैक ठीक होते ही पाकिस्तान की बमबारी में चौदह रेल कर्मचारी शहीद हो गए। अब बमबारी के बीच बाड़मेर से हथियारों से लदी ट्रेन को गडरा पहुंचाने की चुनौती थी।
- चालक चुन्नीलाल, फायरमैन चिमनसिंह और माधोसिंह ने यह बीड़ा उठाया। बमबारी के बीच वे ट्रेन को गडर ा पहुंचाने में सफल रहे। वापसी के दौरान पाकिस्तानी घुसपैठियों के सिग्नल में गड़बड़ करने के कारण उनकी ट्रेन एक इंजन से जा टकराई।
- इस हादसे में तीनों रेलकर्मी मारे गए। इनमें से माधोसिंह की शादी महज पंद्रह दिन पूर्व ही हुई थी। उसका अवकाश रद्द कर बीच में बुलाया गया था।
रेल कर्मचारियों की हिम्मत से बढ़ा सैनिकों का मनोबल
- बेसब्री के साथ हथियारों की आपूर्ति का इंतजार कर रहे मोर्चे पर डटे सैनिकों को जब रेल कर्मचारियों की बहादुरी और शहीद होने का पता चला तो वे इसका बदला लेने के लिए पाकिस्तानी सेना पर टूट पड़े।
- इसके बाद भारतीय सेना ने इस मोर्चे पर नई कहानी लिखी। सेना ने न केवल मुनाबाव पर वापस कब्जा जमाया बल्कि पाकिस्तान में काफी दूरी तक प्रवेश कर लिया।
- इस युद्ध में शहीद हुए रेल कर्मचारियों की स्मृति में हर वर्ष आठ सितम्बर को गडरा में शहीद मेला आयोजित होता है। इसमें बड़ी संख्या में क्षेत्र के लोग पहुंचते है।
भारत-पाकिस्तान के बीच वर्ष 1965 में युद्ध के दौरान राजस्थान सीमा पर दोनों सेनाओं के बीच जोरदार युद्ध हुआ। पाकिस्तानी सेना ने भारत के अंतिम रेलवे स्टेशन मुनाबाव पर कब्जा कर लिया था। जवाबी हमले को रोकने के लिए पाकिस्तान की भीषण बमबारी से रेलवे ट्रैक क्षतिग्रस्त हो गया। गडरा में सेना तक गोला-बारूद व रसद पहुंचाने के लिए रेल कर्मचारियों ने ट्रैक की मरम्मत कर दी, लेकिन इस दौरान हुई बमबारी में सत्रह रेल कर्मचारी शहीद हो गए। इसके बावजूद रेलवे कर्मचारियों ने रेल को गडरा पहुंचा ही दिया। सेना को इससे मिली आपूर्ति के दम पर इस मोर्चे पर युद्ध का नजारा ही बदल गया और भारतीय सेना ने न केवल मुनाबाव वापस हासिल किया, वरन पाकिस्तान में प्रवेश कर गई। मुनाबाव पर पाकिस्तान का अधिकार...
- वर्ष 1965 के युद्ध में मराठा लाइट इन्फैन्ट्री को एक दस्ते को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मुनाबाव भेजा गया। पाकिस्तानी तोपखाने और वायुसेना के भीषण हमले के कारण वे केवल अपनी चौकी की ही रक्षा कर पाए। मराठा लाइट इन्फैन्ट्री के सैनिकों की बहादुरी के कारण इस चौकी को मराठा हिल के नाम से पहचाना जाता है। दुश्मन की भारी गोलाबारी के कारण मुनाबाव में अन्य सैनिक नहीं पहुंच पाए। पाकिस्तान ने गडरा जाने वाले रेल मार्ग को उड़ा दिया। सहायता नहीं पहुंचने के कारण आठ सितम्बर 1965 को मुनाबाव पर पाकिस्तान का अधिकार हो गया।
रेल कर्मचारियों ने दिखाई हिम्मत
- गडरा रेल लाइन के क्षतिग्रस्त होने के कारण इस मोर्चे पर तैनात सैनिकों की सप्लाई लाइन पूरी तरह से कट गई। भारत का प्रमुख लक्ष्य सप्लाई लाइन को तैयार करना था ताकि सीमा पर डटे जवानों तक निर्बाध आपूर्ति हो सके।
- ऐसे हालात में गडराा क्षेत्र में तैनात रेल कर्मचारियों ने ट्रैक को ठीक करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने पाकिस्तानी वायुसेना की भीषण बमबारी के बीच ट्रैक को फिर से शुरू कर दिया।
- ट्रैक ठीक होते ही पाकिस्तान की बमबारी में चौदह रेल कर्मचारी शहीद हो गए। अब बमबारी के बीच बाड़मेर से हथियारों से लदी ट्रेन को गडरा पहुंचाने की चुनौती थी।
- चालक चुन्नीलाल, फायरमैन चिमनसिंह और माधोसिंह ने यह बीड़ा उठाया। बमबारी के बीच वे ट्रेन को गडर ा पहुंचाने में सफल रहे। वापसी के दौरान पाकिस्तानी घुसपैठियों के सिग्नल में गड़बड़ करने के कारण उनकी ट्रेन एक इंजन से जा टकराई।
- इस हादसे में तीनों रेलकर्मी मारे गए। इनमें से माधोसिंह की शादी महज पंद्रह दिन पूर्व ही हुई थी। उसका अवकाश रद्द कर बीच में बुलाया गया था।
रेल कर्मचारियों की हिम्मत से बढ़ा सैनिकों का मनोबल
- बेसब्री के साथ हथियारों की आपूर्ति का इंतजार कर रहे मोर्चे पर डटे सैनिकों को जब रेल कर्मचारियों की बहादुरी और शहीद होने का पता चला तो वे इसका बदला लेने के लिए पाकिस्तानी सेना पर टूट पड़े।
- इसके बाद भारतीय सेना ने इस मोर्चे पर नई कहानी लिखी। सेना ने न केवल मुनाबाव पर वापस कब्जा जमाया बल्कि पाकिस्तान में काफी दूरी तक प्रवेश कर लिया।
- इस युद्ध में शहीद हुए रेल कर्मचारियों की स्मृति में हर वर्ष आठ सितम्बर को गडरा में शहीद मेला आयोजित होता है। इसमें बड़ी संख्या में क्षेत्र के लोग पहुंचते है।