बाड़मेर। शहर में घूम रही एक मानसिक विक्षिप्त महिला को सब हिकारत की नजर से देखते हैं। उसके मैले कुचैले कपड़ो को देख कोई नजदीक नहीं आने देता। किसी दुकान की डयोढ़ी चढ़ती है तो पशुवत दुत्कार दिया जाता है।हैवानों ने इसे भी नहीं छोड़ा। यह महिला भी "मां" बनने वाली है। इसकी जानकारी भी तब लगी जब ऎसे मामलों का जिक्र सामने आया।
दरिंदों की गिद्ध दृष्टि
मानसिक विक्षिप्तों को शहर में हिकारत के सिवाय कुछ नहीं मिल रहा। महिला-पुरूष अर्द्ध नग्न हालत में इधर उधर घूमते नजर आते हैं। दिमागी रूप से जिनमें दरिंदगी हद पार कर गईहै ऎसे "वहशी दरिंदे"इन लाचार महिलाओं पर अपनी गंदी नजर रखते हंै।इसी का नतीजा है कि एक सुध बुध खो चुकी महिला मां बन गईहै और दूसरी की कोख में बच्चा है।
सिहर जाते हैं कल्पना से
जिन दो विक्षिप्त महिलाओं के साथ यह घटना हुई वो दोनो न सुख समझती हैं न दु:ख। मां बनने की पीड़ा और गोद में आई ममता की खुशी दोनो से अनजान हैं। उनका खुद का न कोईभविष्य है और न ही उन्हें यह पता है कि उनके साथ क्या हुआ?
सुविधा भी है
राज्य सरकार ने मानसिक विक्षिप्तों के पुनर्वास के लिए जिला मुख्यालय पर केन्द्र प्रारंभ किया है। बड़ा सा बोर्ड लगा हुआ पांच-सात कमरों का आलीशान मकान लिया हुआ है। शहर से एकदम बाहर इस मकान में एक किशोर को रखा हुआ है। इसके अलावा कुछ नहीं। सड़क पर घूम रहे मानसिक विक्षिप्तों को भी यहां रखने का नियम है। विशेषकर महिलाओं को लेकर संवेदना होनी ही चाहिए ताकि समाजकंटक हैवानों से बचाया जा सके लेकिन यहां ऎसा कुछ नहीं है।
चाइल्ड लाइन पर सवाल
जिले में लावारिस और असहाय बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए 1098 की सुविधा है। इस नंबर को डायल करते ही संबंधित संस्थान बच्चों को ले जाने का प्रबंध कर देती है।
दे सकते हैं सूचना
1098 नंबर काम कर रहा है और इसका प्रचार किया जा रहा है। महेश पनपालिया, प्रभारी संबंधित संस्थान
सभी को ले जाएंगे विक्षिप्त पुनर्वास केन्द्र नवंबर माह में ही प्रारंभ किया है। यहां मनोचिकित्सक की जरूरत है। इसके अलावा खाने,रहने और उनकी देखभाल की व्यवस्था रहेगी।
सुश्री लता कच्छवाह, प्रभारी संबंधित संस्थान
हमारी देखरेख में
विक्षिप्त महिला के एक महीने में ही बच्चा होने वाला है।जानकारी मिलने के बाद उसकी देखरेख करने लगे हैं।सवाल यह है कि इन बच्चों का भविष्य क्या होगा? इनकी नियमित देखभाल कैसे संभव होगी?
पुरूषोत्तम सोलंकी, अध्यक्ष मानव सेवा धर्म ट्रस्ट
प्राणहीन व्यक्ति का कृत्य
मानसिक विक्षिप्त महिलाओं के सुधार गृह हैं। उन्हें दवा दी जाए तो ठीक हो जाती है। ऎसी महिलाएं दिखते ही सुधार गृह में भेजा जाए। यहां तो और भी संवेदनशीलता दिखाई जाए ताकि यह घटनाएं दोहराई न जा सके।
रवि गुण्ठे, मनोचिकित्सक
दरिंदों की गिद्ध दृष्टि
मानसिक विक्षिप्तों को शहर में हिकारत के सिवाय कुछ नहीं मिल रहा। महिला-पुरूष अर्द्ध नग्न हालत में इधर उधर घूमते नजर आते हैं। दिमागी रूप से जिनमें दरिंदगी हद पार कर गईहै ऎसे "वहशी दरिंदे"इन लाचार महिलाओं पर अपनी गंदी नजर रखते हंै।इसी का नतीजा है कि एक सुध बुध खो चुकी महिला मां बन गईहै और दूसरी की कोख में बच्चा है।
सिहर जाते हैं कल्पना से
जिन दो विक्षिप्त महिलाओं के साथ यह घटना हुई वो दोनो न सुख समझती हैं न दु:ख। मां बनने की पीड़ा और गोद में आई ममता की खुशी दोनो से अनजान हैं। उनका खुद का न कोईभविष्य है और न ही उन्हें यह पता है कि उनके साथ क्या हुआ?
सुविधा भी है
राज्य सरकार ने मानसिक विक्षिप्तों के पुनर्वास के लिए जिला मुख्यालय पर केन्द्र प्रारंभ किया है। बड़ा सा बोर्ड लगा हुआ पांच-सात कमरों का आलीशान मकान लिया हुआ है। शहर से एकदम बाहर इस मकान में एक किशोर को रखा हुआ है। इसके अलावा कुछ नहीं। सड़क पर घूम रहे मानसिक विक्षिप्तों को भी यहां रखने का नियम है। विशेषकर महिलाओं को लेकर संवेदना होनी ही चाहिए ताकि समाजकंटक हैवानों से बचाया जा सके लेकिन यहां ऎसा कुछ नहीं है।
चाइल्ड लाइन पर सवाल
जिले में लावारिस और असहाय बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए 1098 की सुविधा है। इस नंबर को डायल करते ही संबंधित संस्थान बच्चों को ले जाने का प्रबंध कर देती है।
दे सकते हैं सूचना
1098 नंबर काम कर रहा है और इसका प्रचार किया जा रहा है। महेश पनपालिया, प्रभारी संबंधित संस्थान
सभी को ले जाएंगे विक्षिप्त पुनर्वास केन्द्र नवंबर माह में ही प्रारंभ किया है। यहां मनोचिकित्सक की जरूरत है। इसके अलावा खाने,रहने और उनकी देखभाल की व्यवस्था रहेगी।
सुश्री लता कच्छवाह, प्रभारी संबंधित संस्थान
हमारी देखरेख में
विक्षिप्त महिला के एक महीने में ही बच्चा होने वाला है।जानकारी मिलने के बाद उसकी देखरेख करने लगे हैं।सवाल यह है कि इन बच्चों का भविष्य क्या होगा? इनकी नियमित देखभाल कैसे संभव होगी?
पुरूषोत्तम सोलंकी, अध्यक्ष मानव सेवा धर्म ट्रस्ट
प्राणहीन व्यक्ति का कृत्य
मानसिक विक्षिप्त महिलाओं के सुधार गृह हैं। उन्हें दवा दी जाए तो ठीक हो जाती है। ऎसी महिलाएं दिखते ही सुधार गृह में भेजा जाए। यहां तो और भी संवेदनशीलता दिखाई जाए ताकि यह घटनाएं दोहराई न जा सके।
रवि गुण्ठे, मनोचिकित्सक