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बुधवार, 14 अक्तूबर 2015

बाड़मेर - सरंक्षण के लिये तरसती पुरा धरोहरे








बाड़मेर - सरंक्षण के लिये तरसती पुरा धरोहरे

पुरातत्व विभाग कर रहा सोतेला व्यवहार चोरी हो रही प्राचीन मुर्तियाां



  ओम प्रकाष सोनी

बालोतरा। निकटवर्ती समदड़ी तहसिल के सिलोर, बामसीन, देवलियाली सहित आस

पास के करीब आधे दर्जन गांवो में उजाड़ में सन्नाटे ओर हवाओ के थपेड़ो को

सहती सैकड़ो बर्षो पुरानी धरोहरे ओर प्राचीन मुर्तियां तथा शिलालेख

संरक्षण के इंतजार में है ओर बदहाली पर आंसु बहा रहे है।

लुणी नदी के किनारे बसे इन ईलाको में पग पग पर चारो ओर पुरा धरोहर व

सदियो पुरानी मुर्तियां बिखरी पड़ी है। प्राचीन धरोहर को सहेजने के लिये

राजस्थान सरकार ने बीते बीस वर्षो में कोई कदम नही उठाया है। वीराने ने

सरंक्षण को तरस रही प्राचीन धरोहर चोरो के निशाने पर भी है। वर्ष 2007 के

बाद से इस ईलाके में से चालीस से पचास प्राचीन मुर्तियां गायब हो चुकी

है। सिलोर गांव के निवासी ओर इतिहासकार राजेन्द्र सिंह सोढा“मान” बताते

है कि सिलोर ओर आस पास के गांवो में खुदाई से निकली मुर्तियां करीब छठी

सदी के आस पास के काल की है। मान बताते है कि लंबे समय से आस पास के

दर्जनो गांवो में अति प्राचीन धरोहरे बदहाली पर आंसु बहा रही है पर सरकार

की ओर से इस अमुल्य धरोहरो को बचाने ओर संरक्षण देने के लिये कोई खास

प्रयास नही किये जा रहे है। सरंक्षण के अभाव में बेशकीमती मुर्तियां चोरी

हो रही है। मान ने कहां कि सन 2008 में समाचार पत्रो ओर टीवी मीडियां में

खबरे आने के बाद माननीय हाई कोर्ट नं स्व प्रसंज्ञान लेते हुये पुरातत्व

विभाग को तलब कर प्राचीन धरोहरो को सहेजने के कड़े निर्देश दिये थे।

पुरातत्व विभाग ने प्राचीन धरोहरो के सहेजने के हाई कोर्ट के निर्देशो को

भी धता बताते हुये खाना पुर्ती कर दी थी। लंबे समय से क्षेत्र की प्रचीन

धरोहरो को सहेजने के लिये इस क्षेत्र में म्युजियम की मांग भी ग्रामीण

सरकार से कर रहे है पर सरकार की नींद नही टूट रही है। राजेन्द्रसिंह सोढा

मान ने बताया कि प्राचीन धरोहरो के संरक्षण के लिये कोई कदम नही उठाये

गये तो हमारी पुरा सम्प्दा बाहर के देशो की शान बन जायेगी। मान ने बताया

कि पुरा सम्पदा को सहजने को लेकर सरकार के उपेक्षापुर्ण रवेये से

इतिहासकारो ओर पुरा समप्दा को सहेजने मे जुटे लोगो में रोष व्याप्त है।

शनिवार, 7 सितंबर 2013

राजस्थान की धरोहर किराडू के प्राचीन मंदिर

देखिये खुबसूरत तस्वीरे। । राजस्थान की धरोहर किराडू के प्राचीन मंदिर
















यह स्थान राजस्थान के बाड़मेर से लगभग 35 किमी उत्तर-पश्चिम में है। किराडू के विश्व प्रसिद्ध पाँच मंदिरों का समूह बाड़मेर मुनाबाव रेलमार्ग पर खड़ीन स्टेशन से 5 किमी पर हथमा गांव के पास पहाड़ी के नीचे अवस्थित है। किराडू की स्थापत्य कला भारतीय नागर शैली की है। बताया जाता है कि यहाँ इस शैली के लगभग दो दर्जन क्षत विक्षत मंदिर थे लेकिन अभी ये केवल 5 हैं। यहाँ के मंदिरों में रति दृश्यों के स्पष्ट अंकन होने की वजह से किराडू को राजस्थान का खजूराहो भी कहा जाता है।

सन् 1161 के एक शिलालेख के अनुसार किराडू का प्राचीन नाम किरात कूप था तथा यह किसी समय परमार राजाओं की राजधानी था। इतिहासकारों के अनुसार किरातकूप पर गुजरात के चालुक्य राजवंश के प्रतिनिधि के रूप में परमार शासकों का शासन था। बताया जाता है कि चन्द्रावती के परमार राजा कृष्णराज द्वितीय के पुत्र सच्चा राजा ने 1075 एवं 1125 ईस्वी के मध्य इस स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। इन्हीं के वंशज सोमेश्वर ने सन् 1161 तक किराडू पर शासन किया तथा सन् 1178 तक यह महाराज पुत्र मदन ब्रह्मदेव के अधीन रहा और उसके बाद आसल ने यहाँ शासन किया था। यही वह काल था जब मोहम्मद गौरी ने आक्रमण किया। यहाँ के मंदिरों में काफी मात्रा में विध्वंस के चिह्न मौजूद है।

सोमेश्वर मंदिर इस स्थान का सबसे प्रमुख और बड़ा मंदिर है। इसके मूल मंदिर के बरामदे के बाहर तीन शिलालेख लगे हैं। विक्रम संवत 1209 का शिलालेख कुमारपाल सोलंकी का है तथा दूसरा शिलालेख संवत 1218 का है जिसमें परमार शासक सिंधुराज से लेकर सोमेश्वर तक की वंशावली अंकित है। संवत 1215 के तीसरे शिलालेख से किराडू के विध्वंस तथा इसके जीर्णोद्धार का पता चलता है।

कुछ लोग किरातकूप की उत्पत्ति किरात जाति से भी मानते हैं। किरात जाति का महाभारत में भी उल्लेख है। यह वनवासी जाति शिव तथा पार्वती को आराध्य देव के रूप में पूजने वाली थी। कहा जाता है कि एक बार किरातों का राजा धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन को पकड़ कर ले गया। उस समय धर्मराज युधिष्ठिर के कहने पर दुर्योधन को किरातों से भीम एवं अर्जुन ने छुड़वाया था। यह भी मान्यता है कि किराडू को उसी किरात जाति से संबंध के कारण ही किरात कूप कहा जाने लगा होगा।

किराडू में पत्थर पर उत्कीर्ण समस्त कलाकृतियां बेमिसाल हैं। मंदिरों की शायद कभी यहां पूरी श्रृंखला रही होगी परन्तु आज केवल पांच मंदिरों के भग्नावशेष ही दिखाई देते हैं। एक भगवान विष्णु का तथा अन्य मंदिर भगवान शिव के हैं।

यहाँ के खंडहरों में चारों ओर विलक्षण शिल्प बिखरा पड़ा है, बाह्य भाग अब भी कलाकृतियों से पूर्णत: सुसज्जित है। यहाँ 44 स्तम्भ इसके गौरवशाली अतीत को अभिव्यक्त करते हैं। सोमेश्वर मंदिर के पास ही एक छोटा-सा सुंदर शिवालय भी है। यहाँ के सोमेश्वर मंदिर में पग-पग पर तत्कालीन समृद्ध प्रस्तर कला का सौन्दर्य बिखरा पड़ा है, जैसे- युद्ध कौशल के दृश्य, बिगुल, तुरही, नगाड़े, पंच गणेश व नाना देव-देवी की प्रतिमाएँ, समुद्र मंथन, रामायण तथा महाभारत की विभिन्न दृश्यावलियां, मंदिरों के बीच के भाग में बिखरे पड़े कलात्मक स्तंभ, कला खंड व कलश खंड, मैथुन व रति क्रिया के सभी प्रमुख अंगों का स्पष्ट अंकन आदि।

मंदिर के मंडप के भीतर उत्कीर्ण नारी प्रतिमाएं नारी सौंदर्य की बेजोड़ कृतियां हैं जिनमें से एक कला खंड नारी केश विन्यास से संबद्ध है। इसे देखकर संवरी हुई केश राशि एवं वसन की सिलवटे नारी के सहज स्वरूप तथा भाव का साक्षात दर्शन कराती है। गर्भगृह के द्वार पर मंदिर परंपरा की अवधारणा के अनुरूप द्वारपाल, क्षेत्रपाल, देव-देवी तथा मंदिर के मूल नायक की सूक्ष्म कृतियों से सज्जित है। नागर शैली के मंदिर की परंपरा में बने शिव मंदिरों की श्रेणी में यह मंदिर मरुगुर्जर शैली की उच्च कोटि की कला का बेहतरीन नमूना है।



किराडू के सोमेश्वर मंदिर के पास स्थित छोटे शिव मंदिर की शैली में सोमेश्वर जितनी सूक्ष्मता नहीं है इसका भी गुंबद खंडित है किंतु यह अंदर से फिर भी सुरक्षित है व खंडित नहीं है। इस मंदिर की वीथिका के सामने की ओर ही कुछ दूर जाकर शिव, विष्णु और ब्रह्मा के मंदिर है। इनमें से एक मंदिर के प्रवेश द्वार की अर्गला पट्टी पर नीचे की ओर गौरी तथा गणेश की बहुत ही आकर्षक प्रतिमा है जिसमें गौरी के हाथ में मोदक है और बालक गणेश उस मोदक को अपनी सूँड से उठाने का प्रयास करते दिखते हैं।

राजस्थान के रेगिस्तान में अवस्थित इतिहास और स्थापत्य कला का संगम किराडू अपने आप में अति विशिष्ट है। इसमें उत्कीर्ण शिल्प दसवीं सदी के गौरवशाली अतीत और कला वैभव का प्रबल साक्षी है।