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बुधवार, 27 मई 2020

जैसलमेर सीमा पार से आने वाले तिलोर अब थार से मुंह मोड़ने लगे


जैसलमेर  सीमा पार से आने वाले तिलोर अब थार से मुंह मोड़ने लगे








जैसलमेर : घास के मैदान व आश्रय स्थल नष्ट होने से सीमा पार से थार में पहुंचने वाली हुबारा बस्टर्ड यानी तिलोर चिडि़या की संख्या अब कम होने लगी है। कोयम्बटूर स्थित ‘सालिम अली इंस्टीट्यूट ऑफ ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री’ द्वारा भारतीय मरूस्थल पर किए गए शोध के मुताबिक थार में तिलोर की संख्या लगातार कम हो रही है। तिलोर घास के मैदानों में प्रजनन करते हैं।सरहदी क्षेत्रो में सेवन घास वाले इलाको में सर्वाधिक तिलोर प्रवास पर आते थे ,अब सेवन घास के मैदान लगभग खत्म हो जाने से तिलोर आना बंद हो गए ,तिलोर को प्रजनन के लिए उपयुर्क्त स्थान नहीं मिलने के कारन तिलोर ने थार से मुंह मोड़ लिया।

पाकिस्तासन की सीमा से लगे राजस्थान के  जैसलमेर बाड़मेर जिले और जोधपुर जिले के कुछ इलाकों में मवेशियों की संख्या बढ़ने और चारागाह कम होने से सीमा पार से आने वाले तिलोर अब थार से मुंह मोड़ने लगे हैं।जैसलमेर बाड़मेर सरहदी गाँवो में कुछ स्थानो पर तिलोर देखे जा सकते हें। थोड़े बहुत बचे तिलोर शिकारियो के शिकार हो रहे हें.जैसलमेर के तालरो (पत्थरीले इलाको )में भी तिलोर बड़ी तादाद में आती थी ,सबसे ज्यादा सेवन घास वाले इलाको में आते रहे हैं ,

जैसलमेर  बाड़मेर  में भी नहीं दिखते

  पक्षी विशेषज्ञ डॉ. नारायण सिंह सोलंकी कहते हैं कि पहले बाड़मेर के आस-पास के इलाकों तिलोर अक्सर दिखाई दे जाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। कभी-कभार दूरस्थ ग्रामीण इलाकों में जरूर कुछ तिलोर देखे जाते हैं।बरसात के मौसम में थोड़े बहुत तिलोर देखे जा सकते हैं ,

सरहद पर पकड़ा था ट्रांसमिट लगा तिलोर

गत माह अप्रेल में जैसलमेर के नाचना क्षेत्र के बाहला गांव में सीमा सुरक्षा बल ने ट्रांसमिट लगा तिलोर पकड़ा था ,बाद में उसे जोधपुर स्थित मचिया सफारी पार्क में भिजवाया गया जंहा वो आज भी सुरक्षित हैं

कुरजां की संख्या बढ़ी

‘अंतरराष्ट्रीय क्रेंस फाउंडेशन’ के शोध के मुताबिक साइबेरिया से दक्षिणी पूर्वी एशिया में आने वाले क्रेन्स अफगानिस्तान ‘फ्लाई वे’ के बाद गायब हो जाते थे। वैज्ञानिकों ने इसकी जांच की, तो पता लगा कि अफगानिस्तान के आकाश के ऊपर से गुजरते इन पक्षियों को मनोरंजन और शिकार के लिए मार गिराया जाता था, लेकिन इसमें अब कमी आई है। पक्षी विशेषज्ञ डॉ. नारायण सिंह के अनुसार मारवाड़ के कुछ इलाकों में पानी व भोजन की उपलब्धता में कमी के कारण भी उन इलाकों में आने वाली कुरजां अब जोधपुर जिले के खींचन ,बाड़मेर के पचपदरा स्थित नवोड़ा बेर की और शिफ्ट हो गई। जैसलमेर के बड़ोदा गांव तालाब ,पोकरण ,लाठी के तालाबों ,पचपदरा ,नवोड़ा बेरा खींचन में कुरजां के लिए भोजन व पानी की पर्याप्त उपलब्धता है। कुल मिलाकर, पूरे राजस्थान में कुरजां की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है।




मंगलवार, 10 सितंबर 2019

बाड़मेर पाकिस्तान से सीमा पार कर आया बालक।

बाड़मेर पाकिस्तान से सीमा पार कर आया बालक।

बाड़मेर पाकिस्तान से सीमा पार कर आया बालक।।मुनाबाव अक्ली पाकिस्तान सरहद से यह बालक भारतीय सीमा से अकली गांव की सरहद में आया। ग्रामीणों ने अनजान बालक को देख सीमा सुरक्षा बल को सूचित कर उसे सुपुर्द किया। पाकिस्तानी बालक से प्रारंभिक पूछताछ की जा रही है।उसके पास पाकिस्तानी मुद्रा तीस रुपये मिले।।*

शनिवार, 8 मार्च 2014

बाड़मेर सीमा पार से आने वाले तिलोर अब थार से मुंह मोड़ने लगे

बाड़मेर सीमा पार से आने वाले तिलोर अब थार से मुंह मोड़ने लगे

चन्दन  सिंह भाटी


बाड़मेर: घास के मैदान व आश्रय स्थल नष्ट होने से सीमा पार से थार में पहुंचने वाली तिलोर चिडि़या की संख्या अब कम होने लगी है। कोयम्बटूर स्थित ‘सालिम अली इंस्टीट्यूट ऑफ ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री’ द्वारा भारतीय मरूस्थल पर किए गए शोध के मुताबिक थार में तिलोर की संख्या लगातार कम हो रही है। तिलोर घास के मैदानों में प्रजनन करते हैं।

पाकिस्तासन की सीमा से लगे राजस्थान के बाड़मेर-जैसलमेर जिले और जोधपुर जिले के कुछ इलाकों में मवेशियों की संख्या बढ़ने और चारागाह कम होने से सीमा पार से आने वाले तिलोर अब थार से मुंह मोड़ने लगे हैं।बाड़मेर सरहदी गाँवो में कुछ स्थानो पर तिलोर देखे जा सकते हें। थोड़े बहुत बचे तिलोर शिकारियो के शिकार हो रहे हें

बाड़मेर में भी नहीं दिखते

‘भारतीय प्राणी सर्वेक्षण’ के पक्षी विशेषज्ञ डॉ. नारायण सिंह सोलंकी कहते हैं कि पहले बाड़मेर के आस-पास के इलाकों तिलोर अक्सर दिखाई दे जाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। कभी-कभार दूरस्थ ग्रामीण इलाकों में जरूर कुछ तिलोर देखे जाते हैं।

कुरजां की संख्या बढ़ी

‘अंतरराष्ट्रीय क्रेंस फाउंडेशन’ के शोध के मुताबिक साइबेरिया से दक्षिणी पूर्वी एशिया में आने वाले क्रेन्स अफगानिस्तान ‘फ्लाई वे’ के बाद गायब हो जाते थे। वैज्ञानिकों ने इसकी जांच की, तो पता लगा कि अफगानिस्तान के आकाश के ऊपर से गुजरते इन पक्षियों को मनोरंजन और शिकार के लिए मार गिराया जाता था, लेकिन इसमें अब कमी आई है। पक्षी विशेषज्ञ डॉ. नारायण सिंह के अनुसार मारवाड़ के कुछ इलाकों में पानी व भोजन की उपलब्धता में कमी के कारण भी उन इलाकों में आने वाली कुरजां अब जोधपुर जिले के खींचन ,बाड़मेर के पचपदरा स्थित नवोड़ा बेर की और शिफ्ट हो गई। पचपदरा ,नवोड़ा बेरा खींचन में कुरजां के लिए भोजन व पानी की पर्याप्त उपलब्धता है। कुल मिलाकर, पूरे राजस्थान में कुरजां की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है।

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