जैसलमेर पाकिस्तान री सरहद माथे बसियोड़ो जैसलमेर आपरी लोक कला ,संस्कृति
और लोक जीवन रे कारन ख्याति अर्जित करी हें .अठै री जीवन शैली अर पहनावों
खास हें .अठै री वैशभुसा देश दिशांतर में आपरी न्यारी ओलखान बने हें ,अथे
रो साफो ,धोती कुरता ,जड़ मिनख परे तो ऊनि ओल्खान अलग इज लागे .जड़ लुगाया
कुर्ती कांचली अर लहंगो पैर न निकले तो रेगिस्तान री लोक परंपरा अर जीवन
शिली रा दर्शन मूंदे बोले .मध्यकाल तक राजस्थान रे लोक अंचल मे हर जाति
समुदाय री आपरी वेशभुषा होवे ही जिकी कपडो री आकृति ,रंग और बियारे पहनने
रे ढ़ंग सु अलग पहचाणी जा सकती ही।आजादी बाद वेशभुषा मे पेला जिसी
परम्पराओ रो निर्वहन नही होवे है फ़ेर भी लोक अंचल मे पलने वाळी राजस्थानी
संस्कृति मे आज भी वेशभुषा आपरो अलग महत्व राखे है और परंपरागत वेशभुषा
मानव मन रे भीतर लुक्यिोडी कलात्मकता और सौंदर्यबोध ने व्यक्त करे है।
वेशभूषा - -
गांव रा आदमी सफ़ेद धोती ,कुर्ता या अंगरखी पेरे है। पगा मे जुतिया और
माथे उपर कई रगो री पाग़ पग़डिया धारण करे है। ओढणा कई तरह रा हुवे
है।पोमचा पीलियो, लहरियो व चनुरी जयादा चलाण मे आवे है।
पोमचो - ओ कमल रे फ़ूल रो अर्थ व्यक त करे है। पोमचो दो प्रकार रो होवे है।
(1)लाल व गुलाबी रंगो सु बणीयोडो (2) पीले व लाल रंगो सु बणायोडो ।
बच्चे रे जन्म माथे बिरे ननाणे सु गुलाबी पोमचो भेजिजे है । बेटे रे जन्म
ऊपर पीलो व बेटी रे जन्म ऊपर गुलाबी पोमचो भेजिजे है।
लहरियो - श्रावण मास मे भाई ,बहेन वास्ते पति, पत्नी वास्ते लहरियो भेंट
करे है। लहरियो एक दो, तीन, पांच व सात रंगो मे बणीजे है। कई रंगो री आडी
धारियो सु रंगियोडो कपडो लहरियो कहलावे है। जयपुर मे समुद्र लहर नाम रो
लहरियो रंगीजे है।
चूनरी - जोधपुर सीकर मे बंधेज चूनरी रो विशेष प्रचलन है।आ ओढ्णी और पागडी
दोनो मे काम आवे ।कपडे पर पक्का व चमकीले और रंगो सु बारिक बंधेज री
रंगाई करिजे है।
चौकडी पतंगा व धनक - ए भी ओढ़णी और पागडियो रे रुप मे काम आवे है। अजमेर
मेरवाडा री गूजरिया लाल ओढ़णी और नीले काळे रंग रा घाघरा पेरे है जिके उपर
काँच लागोडा और कसीदो करोडो होवे है।ढूंढाण मे गहरा रंग मारवाड मे हल्का
रंग और गोटा और जरी रो काम प्रचलित है।
पागडिया - आज भी राजस्थान मे खास अवसरो पर पगडिया पेरिजे है।तीज पर
लहरिया दशहरेपर मदिल छपाई री सलमा सितारा लागोडी ,होली उपर सफ़ेद या पीला
,बरसा री ऋ तु मे हरी या कसुमबल ,सर्दियो मे कसुमब्ली और गरमियो मे
केसरिया पाग बांधिजे है।ब्याव उपर मोठडा बांधिजे है। पगडियो परलटकन ,फ़ते
पेच तुर्रा आदि आभुषण लगाविजे है।धनी वर्ग वाळा चीरा और फ़ेटा पेरे
है।माळी रेबारी गहरे लाल रंग री पगडी पेरे 35है।सुनार आंटे आळी व बणजारा
मोटी पट्टेदारपगडी पेरे है। राजपुत केसरिया मेघवाळ हल्के गुलाबी रंग रो
पागडी पेरे है।मारवाड मे विशेष समारोह मे विशेष लोगो मे साफ़ा बंधवाणे और
तलवार ,नारियल भेंट करिजे है।
आदिवासी आदमियो रा कपडा - दक्षिण राजस्थान मे भील जाति पाईजे है।भील माथे
ऊपर सफ़ेद रंग व लाल रंग रे बेल बूटे रो अंगरखो पेरे है इ उपर सफ़ेद रंग री
कढ़ाई करियोडी हुवे है। इरे साथे धोती पेरिजे है।
आदिवासी लुगाईया रा कपडा - आदिवासी लुगाईया बेलबूटे वाळी जामसाई साडी
पेरे है। अविवाहित युवतिया व लडकिया ओढ़णी ओढ़े है और काळे कपडे ऊपर लाल
भूरे बेल बूटो रा लहंगा ( रेनसाई )पेरे है।विवाहित लुगाईया लूगडा पेरे
है।लाल कपडे ऊपर ज्वारभांत सफ़ेद व पीळी बिंदियो रो बणियो लहरिये री ओढ्णी
ओढ़े है।इणा मे भूरे कपडे पर बणी तारा भांत री ओढ़णी ओढ़ण मे काम मे आवे है।
उदयपुर रे कने भीलो री चूनड छापीजे है।
खास हें .अठै री वैशभुसा देश दिशांतर में आपरी न्यारी ओलखान बने हें ,अथे
रो साफो ,धोती कुरता ,जड़ मिनख परे तो ऊनि ओल्खान अलग इज लागे .जड़ लुगाया
कुर्ती कांचली अर लहंगो पैर न निकले तो रेगिस्तान री लोक परंपरा अर जीवन
शिली रा दर्शन मूंदे बोले .मध्यकाल तक राजस्थान रे लोक अंचल मे हर जाति
समुदाय री आपरी वेशभुषा होवे ही जिकी कपडो री आकृति ,रंग और बियारे पहनने
रे ढ़ंग सु अलग पहचाणी जा सकती ही।आजादी बाद वेशभुषा मे पेला जिसी
परम्पराओ रो निर्वहन नही होवे है फ़ेर भी लोक अंचल मे पलने वाळी राजस्थानी
संस्कृति मे आज भी वेशभुषा आपरो अलग महत्व राखे है और परंपरागत वेशभुषा
मानव मन रे भीतर लुक्यिोडी कलात्मकता और सौंदर्यबोध ने व्यक्त करे है।
वेशभूषा - -
गांव रा आदमी सफ़ेद धोती ,कुर्ता या अंगरखी पेरे है। पगा मे जुतिया और
माथे उपर कई रगो री पाग़ पग़डिया धारण करे है। ओढणा कई तरह रा हुवे
है।पोमचा पीलियो, लहरियो व चनुरी जयादा चलाण मे आवे है।
पोमचो - ओ कमल रे फ़ूल रो अर्थ व्यक त करे है। पोमचो दो प्रकार रो होवे है।
(1)लाल व गुलाबी रंगो सु बणीयोडो (2) पीले व लाल रंगो सु बणायोडो ।
बच्चे रे जन्म माथे बिरे ननाणे सु गुलाबी पोमचो भेजिजे है । बेटे रे जन्म
ऊपर पीलो व बेटी रे जन्म ऊपर गुलाबी पोमचो भेजिजे है।
लहरियो - श्रावण मास मे भाई ,बहेन वास्ते पति, पत्नी वास्ते लहरियो भेंट
करे है। लहरियो एक दो, तीन, पांच व सात रंगो मे बणीजे है। कई रंगो री आडी
धारियो सु रंगियोडो कपडो लहरियो कहलावे है। जयपुर मे समुद्र लहर नाम रो
लहरियो रंगीजे है।
चूनरी - जोधपुर सीकर मे बंधेज चूनरी रो विशेष प्रचलन है।आ ओढ्णी और पागडी
दोनो मे काम आवे ।कपडे पर पक्का व चमकीले और रंगो सु बारिक बंधेज री
रंगाई करिजे है।
चौकडी पतंगा व धनक - ए भी ओढ़णी और पागडियो रे रुप मे काम आवे है। अजमेर
मेरवाडा री गूजरिया लाल ओढ़णी और नीले काळे रंग रा घाघरा पेरे है जिके उपर
काँच लागोडा और कसीदो करोडो होवे है।ढूंढाण मे गहरा रंग मारवाड मे हल्का
रंग और गोटा और जरी रो काम प्रचलित है।
पागडिया - आज भी राजस्थान मे खास अवसरो पर पगडिया पेरिजे है।तीज पर
लहरिया दशहरेपर मदिल छपाई री सलमा सितारा लागोडी ,होली उपर सफ़ेद या पीला
,बरसा री ऋ तु मे हरी या कसुमबल ,सर्दियो मे कसुमब्ली और गरमियो मे
केसरिया पाग बांधिजे है।ब्याव उपर मोठडा बांधिजे है। पगडियो परलटकन ,फ़ते
पेच तुर्रा आदि आभुषण लगाविजे है।धनी वर्ग वाळा चीरा और फ़ेटा पेरे
है।माळी रेबारी गहरे लाल रंग री पगडी पेरे 35है।सुनार आंटे आळी व बणजारा
मोटी पट्टेदारपगडी पेरे है। राजपुत केसरिया मेघवाळ हल्के गुलाबी रंग रो
पागडी पेरे है।मारवाड मे विशेष समारोह मे विशेष लोगो मे साफ़ा बंधवाणे और
तलवार ,नारियल भेंट करिजे है।
आदिवासी आदमियो रा कपडा - दक्षिण राजस्थान मे भील जाति पाईजे है।भील माथे
ऊपर सफ़ेद रंग व लाल रंग रे बेल बूटे रो अंगरखो पेरे है इ उपर सफ़ेद रंग री
कढ़ाई करियोडी हुवे है। इरे साथे धोती पेरिजे है।
आदिवासी लुगाईया रा कपडा - आदिवासी लुगाईया बेलबूटे वाळी जामसाई साडी
पेरे है। अविवाहित युवतिया व लडकिया ओढ़णी ओढ़े है और काळे कपडे ऊपर लाल
भूरे बेल बूटो रा लहंगा ( रेनसाई )पेरे है।विवाहित लुगाईया लूगडा पेरे
है।लाल कपडे ऊपर ज्वारभांत सफ़ेद व पीळी बिंदियो रो बणियो लहरिये री ओढ्णी
ओढ़े है।इणा मे भूरे कपडे पर बणी तारा भांत री ओढ़णी ओढ़ण मे काम मे आवे है।
उदयपुर रे कने भीलो री चूनड छापीजे है।