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शुक्रवार, 15 मार्च 2013

पितृ दोष क्या है ?पितृ दोष निवारण

पितृ दोष क्या है ?पितृ दोष निवारण

ज्योतिष शास्त्र, धर्म शास्त्र में ष्पितृ दोषष् शब्द गत कुछ वर्षो से अत्यधिक प्रचलन में आया है। यहां तक कि जो व्यकित ज्योतिष या धर्मशास्त्रों का सूक्ष्म ज्ञान नही रखते, वे भी इस शब्द से पूर्णत: परिचित है।

पितृ शब्द के दो शाबिदक अर्थ होते है प्रथम पिता दूसरे ष्पूर्वजष् या ष्सूक्ष्म देहधारी पितृगणष्। ज्योतिष के विभिन्न प्रसिद्ध शास्त्र जिसमें वृहत्याशर सारावली, ज्योतिष रत्नाकर, लाल किताब आदि में भी इन शब्दो के ही परिपेक्ष्य में पितर दोष का वर्णन किया है। अत: हम सूक्ष्म देहधारी पितर दोष का वर्णन करेंगे।

भारतीय धर्मशास्त्रो में विभिन्न लोको का प्रसंग वर्णित है जिनमें देवलोक, गंदर्भ लोक, नागलोक आदि से सभी जन साधारण परिचित है इन्ही लोको में से एक लोक है पितर लोक। मृत्यु उपरान्त इस लोक में रहने वाले पितरों को मोक्ष नही मिलता अपितु उनका मोह परिजनो से बंधा रहता है तथा उनकी आत्मा अतृप्त व अशान्त रहती है।

पितृ दोष, मातृ दोष की भयावह सिथति तब बनती है, जब पितरों के सम्मान में कमी आ जाती है। दोष होने पर परिवार में सन्तान न होना, धन में निरन्तर हानि होना, घर में झगडा, मानसिक अशानित, दरिद्रता या लम्बी बीमारी हमेशा बनी रहती है। आधुनिकता के रंग में रंगा परिवार इस प्रभाव को समझ नही पाता तथा इसके कारण नित्य घटने वाली घटनाओं को सहन नहीं कर पाता है तथा ना चाहकर भी दिन प्रतिदिन तनाव, चिन्ता, रोग, बाध में उलझता चला जाता हैं।

जो परिवार अपने पितरों की प्रसन्नता के लिए शास्त्र सम्मत विधान से श्राद्ध, तर्पण कर्म करते है उनके पितर उनसे प्रसन्न एवं तृप्त होकर उनको सुख सृमद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते है किन्तु जो गृहस्थ अपने पितरों का श्राद्ध तर्पण नही करते है उनके पूर्वज कमजोर हो जाते है तथा बलहीन, दुखित एवं कुपित होकर अशान्त रूप से विभिन्न निम्न योनियो में भटकते रहते है। इस अवस्था में वे अपने परिवार जनों से रूष्ट हो जाते है तथा उनके प्रत्येक कार्य में बाधा उत्पन्न करते है ऐसी सिथति के जातकों जो श्राद्ध तर्पण आदि नही करते उनको गरीबी, दुर्घटना, पारिवारिक कलह, विवाह, संतान, नोकरी आदि में बाधाएं तथा अशुभ फल या घटनाओं का सामना करना पडता है। इस सिथति को ही पितृ दोष के नाम से जाना जाता है।

पितृ दोष, मातृ दोष की जानकारी जन्म कुण्डली, प्रश्न कुण्डली या हस्तरेखा के माध्यम से आसानी से आचार्यो के द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तो के आधार मानकर की जा सकती है, जिनमें से कुछ का विवेचन निम्न प्रकार है।

1) गुरू लग्न, पंचम, अष्ठम, एकादश या द्वादश भाव में नीच राशि में या वक्री होकर राहू से दृष्ट या युति करता है।

2) जन्म पत्तिका में अष्ठम भाव में गुरू सिथत हो, तथा पाप कर्तरी योग में हो तो पितृ दोष होता है।

3) जन्म कुण्डली में गुरू पूर्ण बलवान हो तथा योग कारक भी हो परंतु जातक को विवाह, विधा, संतान, धन समृद्धि का शुभ फल प्राप्त नही हो रहा हो तो भी पितृदोष माना जाना चाहिए।

4) प्रश्न कुण्डली में गुरू यदि प्रमुख बाधक ग्रह रहा हो तो भी समझना चाहिए कि पितरों की अशानित से बाधाएं आ रही है।

5) सूर्य जो पिता या पितृ कारक है, उसका कुण्डली में दूषित होकर पंचम भाव से संबध बनाने पर पितृ पक्ष की ओर से दोष उत्पन्न होता हे।

6) षष्ठम भाव में चन्द्रमा का होना या चन्द्रमा का निर्बल होना भी पितर दोष उत्पन्न करता है। चूंकि चन्द्रमा माता का कारक होता है अत: उसके निर्बल या दूषित होने पर माता, मौसी या घर में कोर्इ विधवा की अकाल मोत हो तो स्त्री की ओर से पितर दोष उत्पन्न हुआ मानना चाहिए।

7) प्रथम, द्वितीय व द्वादश में केतु होने पर भी पितर दोष समझना चाहिएं।

8) सूर्य के साथ केतु होने पर भी पितृ दोष होता है। यह नाना की ओर से पितर दोष समझना चाहिएं।

9) पंचम भाव में तुला का सूर्य या सूर्य शनि के नवोश में होने पर भी पुत्र या पुत्र के समतुल्य भतीजा, छोटे भार्इ के पुत्र आदि की ओर से पितृ दोष आया हुआ मानना चाहिएं।

10) पंचमेश होकर सूर्य पंचम या नवम में हो तो भी पितृदोष होता है परंतु यह पितर दोष शुद्ध माना जाता है तथा कम व्याधि देता है। यदि इसको संतुष्ट किया जावे तो शुभफल भी देता है।

11) अष्ठम भाव या द्वादश भाव में राहू सिथत हो तो पितामह की ओर से पितृदोष माना जाता है।

12) लग्न, त्रिकोण में राहू केतु हो या पंचमश का राहू भी पितृ दोष देता है।

13) सूर्य या चन्द्रमा की राहू के साथ कुयुति हो तो भी पितरदोष उत्पन्न होता है।

14) अष्ठम या द्वादश भाव से राहू का संबंघ होने पर प्रेत योनि से पितृ दोष गुरू से संबंध होने पर घर के पितरो के कारण पितृदोष, सूर्य से संबंध पर कुलदेवी तथा शनि बुध से अकाल मृत्यु के कारण पितृ दोष का आंकलन किया जाना चाहिएं।

15) पहले, पांचवे भाव में किसी भी प्रकार से सूर्य, मंगल एवं शनि सिथत हो तथा आठवे-बारहवें भाव में राहू गुरू हो तो यह पितृ दोष कहलाता है।

16) पंचम भाव या माता के स्थान भाव में शनि राहू आ जावे तो मातृदोष होता है।

17) अगर भार्इ के स्थान भाव में मंगल एवं राहू की युति बन जावे है तो मातृत्व दोष बनता है।

18) पंचम भाव में बुध एवं गुरू मंगल एवं राहू के साथ युत हो तो मातुलशाप होता है।

19) उक्त के अतिरिक्त भी अगर कुण्डली में किसी भी भाव में राहू के साथ जो भी ग्रह बैठा हो, उसका दोष इस प्रकार होता है

- राहू चन्द्र की युति माता का दोष

- राहू सूर्य की युति पिता का दोष

- राहू गुरू की युति ब्राहम्मण का दोष

- राहू शुक्र की युति पतिन का दोष

- राहू शनि की युति सर्प का दोष



पितृ दोष निवारण

चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है। वह पृथ्वी से 3,84,401 कि.मी. दूर सिथत होकर पृथ्वी की एक परिक्रमा लगभग 27 दिन 7 घण्टे 43 मिनट में पूरी कर लेता है। यहां एक महत्वपूर्ण बात यह है कि चन्द्रमा का सदैव एक भाग ही पृथ्वी की ओर रहता है, चाहे वह किसी भी मात्रा में प्रकाशित हो। चन्द्रमा का दुसरा भाग कभी भी पृथ्वी की ओर नही आता है। अत: वह कभी भी पृथ्वी से दिखार्इ नही देता है। इसका कारण यह है कि चन्द्रमा जितनी अवधि में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करता है, उतनी ही अवधि में वह अपनी धुरी पर भी एक बार घुमता है। इसको समकालिक घुर्णन कहते है।

चन्द्रमा का दूसरा आधा (पृष्ठभाग) पृथ्वी की ओर आता है उसी को पितरलोक माना गया है। अत: जब हमारे यहां अमावस्या होती है तब चन्द्रमा का पृष्ठभाग ठीक सूर्य के सामने होता है। अत: पितर लोक में उस समय मध्यान्ह होता है, जो पितरो के भोजन का समय होता है। इसी कारण हमें प्रत्येक अमावस्या को भी पितरो की शांति हेतु तर्पण आदि करना चाहिएं।

सूर्य चन्द्र जब दोनो साथ साथ रहते है उस समय अमावस्या होती है। उसमें सब साध्यगण पितृ विशेष तथा इन्द्र आदि देवता एकत्र होते है इसलिए इस दिन किये गये श्राद्ध का विशेष फल होता है। अमावस्या का श्राद्ध पार्वण विधि से होता है, इसमें आशिवन तीन एवं माता आदि तीन के लिए श्राद्ध किया जाता है जबकि अन्य अमावस्या में सपत्नीक पिता आदि तीन एवं सपत्नीक मातामह आदि तीन के लिए श्राद्ध किया जाता है। अमावस्या का श्राद्ध अपरान्ह काल में किया जाता है।

पितृ दोषो को दूर करने के लिए ज्योतिष शास्त्र ने कर्इ उपाय बताए है जैसा कुण्डली में दोष होता है, उसका अलग अलग उपाय शास्त्रो में वर्णित है। वैसे सामान्य उपाय महानारायण गायत्री, षोडश पिण्ड, श्राद्ध, सर्प पूजन, बा्रहम्णों को गोदान, कन्यादान, कुअां, बावडी, तालाब बनाना, वृक्ष में बड, पीपल लगाना एवं विष्णु मंत्रो के जप करना पाठ करना आदि है।




1) प्रत्येक सोमवार को सूर्योदय होने के एक घडी पहले आधा गिलास दुध, आधा गिलास पानी ऐसे शिव लिंग पर ऊं नम: शिवाय के उच्चारण के साथ अर्पण करे, जिसके पास पीपल का पेड हो तथा उसमें से आधा बचा दूध पीपल को अर्पण करे तो पितृ दोष पूर्ण रूपेण समाप्त होता देखा गया है, क्योंकि सोमवार चन्द्रमा का दिन है, शंकर का नाग भी पितृ रूप है और पीपल भी देवस्वरूप है। यह सीधा, सरल एवं अचूक उपाय है।

2) जिस कक्ष मेें पितृो को स्थान दिया गया है, वहां श्रीमदभागवत कथा का श्रवण करावें।

3) गया में श्राद्ध करना।

4) सूर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण के समय पितरों को तर्पण करना।

5) नदी, तालाब या जलीय स्थल के निकट शिवालय में रूद्राभिषेक करवावें।

6) शनिवार या अमावस्या की रात को र्इशान कोण वाले कमरे के र्इशान कोण में जल के कलश के पास घी का दीपक जलाकर पितरों को प्रसन्न होने की प्रार्थना करें।

7) कुएं, नदी या तालाब के पास में सांयकाल सरसों के तेल का दीपक जलावें।

8) नाग बली विधान करावें।

9) कुलदेवी का पूजन करे।

10) गुरूवार के दिन सांयकाल पीपल के पेड की जड के पास घी का दीपक जलावे।

11) एकादशी व्रत कर केे।

12) पितृदोष से प्रभावित व्यकित से अभिषेक कराकर इस जल से सभी स्नान करे। इस प्रकार प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ उपाय अचूक है। इस प्रकार किये गये कार्य शास्त्र सम्मत होने के कारण मार्कण्डेय पुराण के अनुसार इससे तृप्त हुए पितर अपने वंशजो को आयु, आरोग्य, संतान एवं समृद्धि का आशीर्वाद देते है।

13) शास्त्रो में पितृ सुक्त का विधान इस दोष के निमित्त बताया गया है। प्रतिदिन रात्रिकाल में इसका पाठ करने से शीघ्र लाभ प्राप्त होता है।

14) रामचरित मानस का अखण्ड पाठ प्रत्येक माह की अमावस्या को पितरों के निमित्त किया जावें।

15) भोजन से पूर्व गाय, कुत्ते, कौए, देवता एवं चीटियो के निमित्त प्रथम पांच ग्रास निकालकर रखे तथा फिर निकाला गया अंश इन्हे खिला दे। यदि अलग अलग खिलाना संभव न हो तो गाय को खिलाना पर्याप्त रहेगा।



शाप एवं ऋण एक छाया है, जो निवृत्ति होने तक हमारा पीछा नही छोडती है। श्रीमदभागवत में धुंधुकारी की कथा आती है जिसमें धुंधुकारी ने अनन्त गुणा पाप किया जिसे गोकरणजी ने अपने श्री मुख से भागवत सुनाकर मुक्त किया। आगामी आने वाले श्राद्व पक्ष में अपने पितृों का तपर्ण कर पुण्य कमावे।




-:: इति श्री ::-
(श्री ओम प्रकाश शर्मा)

ज्योतिष भूषण 

के0आ0 श्री कृष्ण गोपाल जी

मार्केटिंग सोसाइटी के पीछे लंका गेट रोड

बून्दी (राज0)

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