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सोमवार, 18 मार्च 2013

ईलोजी फिर सज रहे हैं दूल्हे के वेश में


ईलोजी फिर सज रहे हैं दूल्हे के वेश में 

लोक आस्था और विश्वास से सम्मानित ईलोजी (नाथूरामजी) को रिझाने की कोशिश, चटख रंगों से हो रहा है शृंगार। होली से पहले होती है विशेष पूजा व आरती, आस्था के साथ हास-परिहास और होली की मस्ती भरे कहानी-किस्सों व गायन के दौर चलेंगे अब शहर में कई जगह 



 पाली



होली के लोकदेवता के तौर पर सम्मानित ईलोजी (नाथूरामजी) को रिझाने की कोशिश इन दिनों परवान चढ़ रही है। स्थानीय मौलिक मान्यताओं के अनुसार इनकी प्रतिमाओं को दूल्हे के गेटअप में सजाया जा रहा है। घी का झंडा और जर्दा बाजार स्थित इनके मंदिरों को निखारने में कई हुनरमंद हाथ जुट गए हैं। पटवा बाजार में मुख्य मार्ग पर विराजित करने के लिए कई साल पहले तैयार ईलोजी की प्रतिकृति की भी सार-संभाल की जा रही है। लोक आस्था और श्रद्धा के प्रतीक ईलोजी के शृंगार की शुरुआत इनके पाग की सजावट से होती है। इस पर तुर्रा व किलंगी भी लगाए जाएंगे। विराजित मुद्रा में स्थित इन भव्य प्रतिमाओं के बटनदार कोट व जामा को बेल-बूटों से डिजाइनर बनाया जा रहा है।



कानों में मोतियों की झूलती बालियां सजाई जाएंगी। हाथों में सिंह की मुखाकृति वाले ब्रेसलेट, पांवों में कड़े तथा गले में सुनहरी कंठी व नगीना जड़ी चेन से अलंकृत कर इनकी संपन्नता को दर्शाया जाएगा।

प्राकृतिक रंगों से सजते थे अतीत में : अतीत में यह शृंगार पूरी तौर पर प्राकृतिक रंगों से होता था। बरसों से इनके शृंगार से जुड़े रहे नैना भाई बताते हैं कि जंगाल, हिंगलू व पेवड़ी को सरेस के साथ उबालकर, बॉडी-कलर तैयार करते थे। माटी के बड़े दीपक में बारह अलग-अलग रंगों का घोल बनाकर ईलोजी के कोट व जामे को डिजाइनर बनाया जाता। माणक भाई बताते हैं कि फाल्गुन सुदी ग्यारस से ईलोजी की एक प्रतिकृति, पटवा बाजार में विराजित करने की भी पुरानी परंपरा है। पूरी श्रद्धा के साथ गोर-किनारी लगे इनके शृंगार आभूषणों को निखारा जा रहा है।

धूम धड़ाका पाटोत्सव का :इनके पाटोत्सव की तैयारियां भी शुरू हो गई हैं। इनके विधि-विधान पूर्वक फाल्गुन सुदी ग्यारस को तणी बांधने के साथ ही पाट बिठाया जाएगा। तब से आगामी सप्ताह भर तक इनकी गूगल धूप आरती होगी व झांझर, चंग-नगाड़े की सरगम पर लोकगीतों से इनका दरबार सजेगा। भैरुनाथ सेवा समिति के गौतम बाफना व केवलचंद तलेसरा ने बताया कि मनौतियों के कई रूप देखने को मिलते हैं, इन दिनों व्यापार में श्रीवृद्धि की कामना भी इनसे की जाती है।

परंपराएं जुड़ती हैं

मनौतियों को पूरा करने तथा धन धान्य भरी संपन्नता देने वाले के रूप में पूजे जाते हैं, ईलोजी होलिका से रिश्ता तय होने व बटुकनाथ अवतारी के किस्से बचपन से सुने हैं। कई समाजों के नव-दंपती को खुशहाल जीवन के लिए संयुक्त दर्शन (बोलचाल में जात लगाना) करते भी देखा है। पारंपरिक विश्वास से जुड़े हुए हैं ये।

-नैना भाई,

चलो ऐ सहेल्यां आपां भैरू ने मनावां, इनके सम्मान में गाया जाने वाला लोकप्रिय गीत है। इसमें शृंगार पक्ष को भी बताया गया है।

भैरू कालो भैरू गोरों भैरू संग मतवालो ऐ।

हाथ में सोना रो चिटियो तुर्रा किलंगी वाले ऐ।।

ठहाके व मस्ती : हंसी-ठिठोली और विनोद भी बहुत होता है इन्हें लेकर। शंकर भासा बताते हैं कि शहर के कई नामी-गिरामी डॉक्टरों को नगर सेठ का स्वास्थ्य खराब होने के बहाने यहां ला चुके हैं। दरअसल डॉक्टर साहब के घर जाकर विनती की जाती कि सेठ जी बीमार हो गए हैं। आप तुरंत साथ चलिए। डॉक्टर साहब का साथ होने पर, इन्हें लेकर यहां पहुंच जाते। फिर ठहाकों से कहते, ये ही हैं सेठ जी। और डॉक्टर साहब भी ठहाकों में शामिल हो जाते। ऐसे ही कई हास-परिहास के किस्से जुड़े हैं ईलोजी के साथ।

होलिका से विवाह नहीं हुआ तो आजीवन कुंवारे रहे ईलोजी!

जन श्रुतियों के अनुसार हिरण्यकश्यप की पुत्री होलिका का रिश्ता ईलोजी से तय हुआ था। फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा को उनका विवाह निश्चित हुआ था। वे बारात लेकर ससुराल पहुंचे मगर बारात के मंडप तक पहुंचने से पहले ही होलिका-दहन हो गया। ईलोजी को यह सूचा मिलने पर वे हतप्रभ हो गए। शेष जीवन कुंवारे ही रहते हुए नगर सेवा को समर्पित रहे। - अर्जुनसिंह शेखावत, शिक्षाविद्

नगर रक्षक के रूप में पूजे जाते हैं

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ईलोजी को नगर रक्षक-क्षेत्रपाल माना जाता है। प्रचलित कथा को आधार मानें तो पार्वती की कालका से रक्षा के लिए महादेव ने बटुकनाथ-भैरूनाथ का रूप लिया था। तब विष्णु ने प्रसन्न होकर महादेव को नगर रक्षक के रूप में पूजे जाने का वरदान दिया था। संभवत: ईलोजी वे ही वरदानित रूप हैं। - पं.अश्विन दवे, ज्योतिषी