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सोमवार, 29 अप्रैल 2013

पाकिस्तान की जेलों में बंद बाड़मेर जैसलमेर के कैदियों की सुरक्षा को लेकर घरवाले चिंतित

पाकिस्तान की जेलों में बंद बाड़मेर जैसलमेर के कैदियों की सुरक्षा को लेकर घरवाले चिंतित

बाड़मेर पाकिस्तान की लखपत जेल में बंद भारतीय कैदी सरबजीत पर हुए कातिलाना हमले के बाद राजस्थान के सरहदी जिले बाड़मेर जैसलमेर जिले के पाकिस्तानी जेलों में बंद नागरिको की सुरक्षा को लेकर घरवाले चिंतित हें ,बाड़मेर जिले के चौहटन तहसील के धनाऊ गाँव के भग सिंह ,स्वरूपे का तला निवासी सहुराम भीलो का तला निवासी तील सिंह ,जैसलमेर के रामगढ़ निवासी जमालदीन पिछले अट्ठाईस सालो से पाकिस्तान की जेलों में बंद हें .लम्बे समय से उनकी वतन वापसी की राह देखि जा रही हें ,इसके लिए उच्च स्तरीय प्रयास भी किये गए ,अब जबकि पक्लिस्तान की लखपत जेल में बंद सरबजीत पर हमले के बाद इस कैदियों के परिवार भी इनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित हें ,पाकिस्तान की जेल में बंद भाग सिंह के बीस वर्षीय पुत्र अर्जुन सिंह ने बताया की पिछले दो दशको से मेरी माँ मेरे पिता के लौटने का इंतज़ार कर रही हें .पहले उनकी चिठ्ठी पटरी आती थी मगर अब वो भी बंद हो गई ,वो कान्हा और किस हल में हें यह जानकारी नहीं हें मगर उनकी सुरक्षा को को लेकर अब चिंता हो रही हें .उन्होंने बताताया की भारत सरकार को इसके लिए पहल करनी चाहिए ताकि भारतीय बंदियों की सुरक्षा का दबाव पाकिस्तान पर बने .उनका मानना हें की भारत में कसब और अफज़ल को फांसी देने के बाद से कट्टरपंथी भारतीय नागरिको के जानी दुश्मन बन गए हें .इधर टीलाराम के भाई हुकमाराम और बहन राधा अपने भाई की सुरक्षा को लेकर चिंतित दिखे.वहि भाग सिंह की पत्नी लक्ष्मी कँवर कई दशको से अपने सुहाग के लौटने का इंतज़ार कर रही हें ,अब उसे अपने सुहाग की चिंता सता रही हें ,भाग सिंह के पुत्र अर्जुन सिंह और प्रताप सिंह अपने पिता की सुरक्षा की खबर पाने वके लिए हर संभव प्रयास कर रहे हें .जैसलमेर जिले के रामगढ़ निवासी जमालदीन की पत्नी हनीफा भी उसके लौटने का इंतज़ार कर राझी हें .उसकी आँखों में विशवास झलकता हें की जमालदीन वापस जरुर आएगा अलबता सरबजीत पर हमले के बाद चिंतित हें .हनीफा का मानना हें की भारत सरकार भरिय कैदियों की सुरक्षा को लेकर पुख्ता प्रबंध करे .पूर्व संसद मानवेन्द्र सिंह ने बताया की पाकिस्तान की जेलों में बंद भारतीयों की सुरक्षा को लेकर वो जल्द भारत सरकार के उच्च स्तरीय अधिकारियो से मिलेंगे .उनकी रिहाई के प्रयास करेंगे .

मेरा पति जरुर लौटकर आएगा


पाकिस्तान की जेल में बंद भाग सिंह की पत्नी को विशवास 
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मेरा पति जरुर लौटकर आएगा
बाड़मेर.अट्ठाईस वर्ष पूर्व लक्ष्मी का पति सीमा पार कर पाकिस्तान चला गया तो उस पर दु:खों का पहाड़ टूट गया। एक तरफ पति का वियोग तो दूसरी तरफ संतान की परवरिश की जिम्मेदारी। इस अग्नि परीक्षा की घड़ी में लक्ष्मी ने हिम्मत नहीं हारी। विकट परिस्थितियों में जिंदगी से संघर्ष शुरु किया। अपनी संतान पर जान न्यौछावर करने वाली लक्ष्मी ने दिहाड़ी मजदूरी से पालन पोषण किया। उसकी अट्ठाईस वर्ष की तपस्या से बेटी व दो बेटों की पढ़ाई के साथ विवाह की महत्वूपर्ण जिम्मेदारी बखूबी निभाते हुए उन्हें पिता की कमी का अहसास तक नहीं होने दिया।

पाकिस्तान के छाछारों के पास स्थित पाणियों गांव से आई लक्ष्मी ने वर्ष 1974 में धनाऊ निवासी भगूसिंह से शादी रचाई। महज ग्यारह साल तक पति का साथ मिला। इस बीच सन् 1985 में भगुसिंह पड़ौसी गांव गोहड़ का तला में पशुओं को चराने के साथ खेती करने की बात कहकर गया था। वह पशु चराते वक्त भूल से सीमा पार कर गया। यह दुखद समाचार मिलते ही लक्ष्मी की पैरों तले जमीन खिसक गई। इस गांव में लक्ष्मी के अलावा परिवार का कोई सदस्य नहीं होने से घर की पूरी जिम्मेदारी लक्ष्मी पर आ गई। वह पति के बिछोह का दर्द सहते हुए एक बेटी व दो बेटों के सहारे जिंदगी का सफर शुरु किया।

उसने कशीदाकारी के कार्य के बदले मिलने वाले मेहनताने से संतान का पालन पोषण शुरु किया। इस दौरान कभी काम नहीं मिलने पर वह भूखे ही सो जाती। संघर्ष के सफर में कई चुनौतियां का सामना करते हुए बच्चों की पढ़ाई शुरु करवाई। इसके साथ ही लक्ष्मी कशीदाकारी के साथ दिहाड़ी मजदूरी पर जाने लगी। धीरे -धीरे वक्त बीतता गया लेकिन लक्ष्मी पर दुखों का साया बना रहा। पति के लौटने की आस में हिम्मत से कार्य करती रही।

इस बीच लक्ष्मी पति की खैर खबर जानने सबसे पहले पुलिस थाना चौहटन पहुंची। जहां पर अपनी फरियाद सुनाई तो केवल आश्वासन देकर रवाना कर दिया। लंबे अर्से बाद जब कोई समाचार नहीं मिला तो फिर वह अपनी फरियाद लेकर तहसील कार्यालय की चौखट पहुंची। उसने अपनी पूरी कहानी सुनाते हुए पति का पता लगाने के साथ सहायता की गुहार लगाई।

यहां भी उसे आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। थकी हारी लक्ष्मी ने आखिरी दरखवास्त अपने गांव के मौजिज लोगों के सामने दर्ज करवाई। लेकिन सारे प्रयास विफल रहे। किसी ने भगुसिंह की पैरवी नहीं की। उसने ईश्वर पर पूरा भरोसे रखते हुए अपने बूते बेटी की शादी की। इसके बाद दो बेटों का विवाह कर दिया। तीनों की शादियां से लक्ष्मी कर्जदार बन गई। फिर भी उसने मेहनत कर धीरे -धीरे कर्जा उतारा। आज भी मुफलिसी की जिंदगी जी रही लक्ष्मी नरेगा कार्य पर दिहाड़ी मजदूरी करके परिवार का पालन पोषण कर रही है।
कलेक्टर का फरमान बेअसर
तत्कालीन जिला कलेक्टर रवि जैन ने वर्ष 2008 में धनाऊ गांव में रात्रि चौपाल आयोजित की। फरियाद लेकर पहुंची लक्ष्मी ने कलेक्टर को अपना दुखड़ा सुनाया। धनाऊ गांव निवासी अचलसिंह व संजय बोहरा बताते है कि पाक जेलों बंद पांच भारतीय रिहा होकर आ गए। लेकिन भगुसिंह के बारे में कोई सूचना नहीं मिली है।

सुख की आस में बेगानी हो गई. पाकिस्तान के छाछरों के पास स्थित पाणियों गांव में लक्ष्मी का बचपन गुजरा। भारत-पाक युद्ध के बाद हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के चलते कई परिवार सुख की आस में हिन्दुस्तान आ गए। इसमें लक्ष्मी का परिवार भी शामिल था। यहां आकर शादी रचाने के ग्यारह साल बाद पति पाकिस्तान चले जाने से उसकी खुशियां गम में बदल गई।
चिट्ठी आई न कोई संदेशपचीस वर्ष पूर्व पाकिस्तान गए भगुसिंह की न तो कोई चिट्ठी आई है और नहीं कोई संदेश। मां के आंचल में पले अर्जुन व प्रताप को विश्वास है उनके पिता के आने का शुभ समाचार आएगा।

मेरा पति जहां कहीं है, वह जरुर लौटकर आएगा। इसकी आस से मैने आज भी सुहाग की प्रतीक चुडियां पहन रखी है। मैने पच्चीस वर्ष तक संघर्ष करते हुए ईश्वर पर भरोसा किया है। वह मेरे साथ न्याय करेगा।
लक्ष्मी कंवर, पत्नी, भगुसिंह धनाऊ