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बुधवार, 22 अगस्त 2018

बाड़मेर। जीते जी बाप को किया चुप, मरने के बाद करते है धूप : साध्वी सुरंजना

बाड़मेर। जीते जी बाप को किया चुप, मरने के बाद करते है धूप : साध्वी सुरंजना


रिपोर्ट :- चन्द्रप्रकाश बी. छाजेड़ / बाड़मेर 


बाड़मेर। पहले के लोग संयुक्त कर्म नही बांधते थे लेकिन संयुक्त रहते थे लेकिन अब लोग संयुक्त कर्म बांधते है और रहते एकाकी है। सुख जाते देरी नही लगती है तो दुःख जाते भी समय नही लगेगा। जों बेटे जीते जी बाप को चुप कराते है वो मरने के बाद उसी बाप को धूप करते है। यह उद्बोधन साध्वी सुरंजनाश्री महाराज ने चातुर्मासिक प्रवचनमाला के दौरान स्थानीय जैन न्याति नोहरा में उपस्थित जनसमुदाय को दिया। 



साध्वीश्री कहा कि वंदितु सूत्र की आधारशीला से ये हमारे जीवन की दूरबीन है। वंदितुसूत्र के द्वारा हम अपने जीवन को पापों का तापमान मानने के लिए एक थर्मामीटर है। वंदितु सूत्र के द्वारा आत्मशुद्धि के लिए विशेष शुद्धि का वॉशिंग पाउडर या वॉशिंग मशीन भी कह सकते है। ये वंदितु सूत्र कही आगमों का खजाना है। यह वंदितु सूत्र कही महापुरूषों की घटित घटनाओं से संबंधित है। इस वंदितु सूत्र की एक-एक गाथे का एक-एक उदाहरण दस-बीस पेज से यह व्याप्त है। इस वंदितु सूत्र का एक भी उदाहरण हमारे जीवन को स्पर्श करे तो हमारा जीवन सार्थक हो जाता है। कहीं महापुरूषों ने इस वंदितु सूत्र के जरिए अपना जीवन बदला लेकिन हम अपने जीवन में परिवर्तन क्यों नही कर पाये। पापों से भयभीत क्यों नही हो पाये। हम दीर्घ दृष्टि बनकर सोचे की लुटेरा लूटकर भी क्या लूटेगा, हमारा धन, सम्पति, शरीर लेकिन अठारह पापस्थानक रूपी लूटेरे हमारे भवोभव की पुण्याई की सम्पति लूट लेगें। पाप करते समय अफसोस नही होता है, अफसोस तब होता है जब वो पाप प्लवित होकर होकर हमारे समक्ष आकर खड़ा होगा तब हमारे रोंगटे खड़े जायेगें। राग का त्याग करे त्याग का राग न करे। दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति नही है जो कर्मों का मारा न हो।



खरतरगच्छ चातुर्मास समिति, बाड़मेर के मिडिया प्रभारी चन्द्रप्रकाश छाजेड़ ने जानकारी देते हुए बताया कि बुधवार को प्रातः 11.30 बजे सौभाग्य तप की महिलाओं द्वारा तप की पूर्णाहूति निमित प.पू. गुरूमैया श्री सुरंजनाश्री महाराज की निश्रा में स्थानीय जैन न्याति नोहरा में पाश्र्व-पदमावती महापूजन का भव्य आयोजन किया गया। कार्यक्रम में आचार्य कविन्द्रसागरसूरि महाराज के शिष्य कल्पतरूसागर महाराज ने उपस्थिति प्रदान की। महापूजन पार्श्वनाथ भगवान व पदमावती माता की प्रतिमा के समक्ष का विभिन्न मंत्रोच्चार के माध्यम से आह्वान किया गया तथा जल, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य, फल आदि के माध्यम से पूजन किया गया। पूजन में विधिकारक उदय गुरूजी व संगीतकार गौरव मालू एण्ड द्वारा भजनों की प्रस्तुतियां दी गई।




शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

बाड़मेर। संस्कृति विकृति में बदल गई और विकृति ने पुरी प्रकृति को ही बदल दिया: साध्वी सुरंजना

बाड़मेर। संस्कृति विकृति में बदल गई और विकृति ने पुरी प्रकृति को ही बदल दिया: साध्वी सुरंजना

रिपोर्ट :- चन्द्रप्रकाश बी. छाजेड़ / बाड़मेर 


बाड़मेर। ‘‘आहार शुद्ध होने से अंतकरण की शुद्धि होती है । अंतकरण शुद्ध हो जाने से भावना दृढ़ हो जाती है और भावना की स्थिरता से हृदय की समस्त गांठे खुल जाती है । जैसा ‘‘खाएं अन्न, वैसा बने मन’’ वाली उक्ति अक्षरशः सत्य है।

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गुरूमां साध्वी सुरंजनाश्री महाराज ने शुक्रवार को स्थानीय जैन न्याति नोहरा में धर्मसभा में उपस्थिति धर्मावलम्बियों को उद्बोधन देते हुए कहा कि आत्मा को अनंतगुणा दोष से पावन करनेे का पाउडर है तो वो वंदितु सूत्र है। वंदितु सूत्र को एकबार भी अर्थ सहित भी इस्तेमाल कर देता है तो निश्चित भवोभव के दलों, का पापों का जो पिंड छिपा हुआ है वो हमें निर्मल कर देता है। व्यक्ति हिंसा कर रहा है लेकिन भीतर डर है, भय है, परमात्मा की आज्ञा है तो सबकुछ पाप करने के बाद भी कीचड़ में जैसे कमल रहता है पर कमल को कीचड़ से कोई लगाव नही वो कीचड़ से निर्लिप्ति रहता है उसी प्रकार संसारी प्राणी भी निर्लिप्ति रहता है। भी निर्लेप रहता है दीप स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है। अंधकार दूर करता है, लेकिन काला धुंआ अवश्य छोड़ता है। यह उसके भीतर के तेल का असर है। उसी प्रकार व्यक्ति भी जिस प्रकार अन्न खाता है, उसका स्वभाव और व्यवहार भी वैसा ही हो जाता है। कहा कि पाप की कमाई करने वाले के विचार भी कुत्सित हो जाते हैं। अतरू व्यक्ति को सात्विक भोजन व ईमानदारी से जीविकोपार्जन करना चाहिए। धर्म मार्ग पर चलने की नसीहत देते हुए उन्होंने कहा कि धर्म हमारी आत्मा को शुद्ध करता है। मानव जैसा करेगा आहार, वैसे बनेगा उसका विचार। मानव को चाहिए कि वो अंडा, मास का सेवन न करे। इस तरह का सेवन अगर मानव करता है तो वह राक्षस बन जाता है। शाकाहारी भोजन ग्रहण करना चाहिए। मासाहारी भोजन ग्रहण करने से राक्षस प्रवृत्ति के विचार मन में पैदा होने लगते है।

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उन्होंने कहा कि आज मनुष्य धन-दौलत जोड़ने के लिए दिन-रात पागलों की तरह मारा-फिरता है। इसके लिए यह नहीं देखता कि जो वह कार्य कर रहा है वह अच्छा है या बूरा है। मनुष्य को यह बात सोचनी चाहिए कि धन, दौलत कमाने के लिए मारा-मारा फिरता है, लेकिन अंत समय उसके क्या धन, दौलत जाएगी। इस बात का हर किसी को पता है कि अंत समय धन, दौलत नहीं जाएगी तो क्यों इतना धन, दौलत के पीछे मनुष्य पागल हो रहा है। माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी सेवा बताते हुए रमेश मुनि ने कहा कि अगर हम अपने माता-पिता की सेवा करेगे तो हमारे बच्चे भी हमारी सेवा करेगे। जैसे बच्चे परिवार में हमारा आचरण देखते है वैसा ही वो हमारे साथ व्यवहार करते है।

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साध्वी श्री ने कहा कि तामसिक और राजसिक भोजन करने से न केवल शारीरिक स्वास्थ्य की जड़ खोखली होती है, वरन् उन का प्रभाव मानसिक स्तर पर भी पड़ता है। आहार के अनुरूप ही मानसिक स्थिति में तमोगुण छाया रहता है। कुविचारं उठते हैं। उत्तेजनाएं छाई रहती है। चिंता, उद्विग्नता और आवेष का दौर चढ़ा रहता है। ऐसी स्थिति में न तो एकाग्रता सधती है और न ध्यान-धारण बन पड़ती है। मन की चंचलता ही इंद्रियों को चंचल बनाए रखती है। हमारा शरीर भी उसी के इषारे पर चलता है। उस विध्न को जड़ से काटने के लिए अध्यात्मपथ के पथिक सबसे पहले आहार की सात्विकता पर ध्यान देते हैं। साध्वीश्री ने कहा कि पेट हमारा है खाना विदेशियों का है, शरीर हमारा है पहनावा फिरंगियों का है। संस्कृति विकृति में बदल गई और विकृति ने पुरी प्रकृति को ही बदल दिया। पहले घर पर बाहर से कोई अतिथि आता था तो उसे घर में ही आदरपूर्वक भोजन करवाते थे अब उन्हेें भी होटल ले जाते हैं पहले घर में खाते थे और बाहर(शौच) जाते थे अब बाहर खाते है और घर में जाते है।

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मुनि वैराग्यसागर महाराज के देवलोकगमन पर सकल संघ ने दी श्रद्धांजलि

जैन समुदाय के संत मुनि श्री वैराग्यसागरजी महाराज के 16 अगस्त को कैवल्यधाम छतीसगढ़ में देवलोकगमन पर खरतरगच्छ संघ बाड़मेर द्वारा गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया। गुणानुवाद सभा में संबोधित करते हुए गुरूवर्या श्री ने कहा कि मुनिश्री ने गृहस्थ धर्म का निर्वाह कर ये जान लिया कि जीवन को यदि सत्यपथ पर ले जाना है तो संयम के बिना मुक्ति नहीं और संयम के बिना सच्चा सुख नहीं। और उन्होनें अध्यात्मयोगी महेन्द्रसागरजी महाराज के चरणों में अपना जीवन समर्पित किया। पूज्य आचार्य जिनपीयूषसागर सूरीश्वर महाराज के करकमलों से संयम जीवन अंगीकार कर वैराग्यरत्नसागर नाम प्राप्त किया। वो गाने में बड़ें अजोड़ थे, उनकी राग मधुर थी और दिल के भावों से गाते जिससे सुनने वाला ह्दय से भावविभोर हुए बिना नही रहतें थे। उनके भीतर में खरतरगच्छ के लिए बहुत बड़े-बड़े सपने थे कि हर व्यक्ति के भीतर में स्वाध्याय की ललक जगनी चाहिए, हर व्यक्ति स्वाध्यायी बने, हर व्यक्ति को प्रतिक्रमण आये। वो व्यक्ति संसार में आया, संसार को देखा और संसार को देखने के बाद में संयम को भी स्वीकार कर लिया। एक सुयोग्य गुरू के हाथों उनका जीवन पला और पलने के बाद कर्मसŸाा ने आकर किसी व्याधि ने उनको घेर लिया और 16 अगस्त को प्रातः 9.30 बजे कैवल्यधाम तीर्थ में इस नश्वर देह का त्याग कर पंचतत्व में विलीन हो गए। आने वाला चला गया, हमें ओर आपको भी जाना है पर जाने से पहले हमें ऐसा जीवन बनाना है कि प्रभु तुने हमें मनुष्य बनाकर भेजा है और इस संसार से जब भी विदा लूं तब मेरे जीवन में तेरे शासन के प्रति मेरा समर्पण, अनुराग और तेरे शासन की यशोगाथा गाता रहूं।

‘जब प्राण तन से निकले’ भव्य कार्यक्रम की प्रस्तुति रविवार को

खरतरगच्छ संघ चातुर्मास समिति के मिडिया प्रभारी चन्द्रप्रकाश बी. छाजेड़ ने बताया कि सोहनलाल संखलेचा ‘अरटी’ ने बताया कि 19 अगस्त को चैन्नई से पधार रहे बंधु-बेलड़ी मोहन-मनोज गोलछा द्वारा स्थानीय जैन न्याति नोहरा में प्रातः 8.30 बजे ‘जब प्राण तन से निकले’ भव्य संवेदना के कार्यक्रम की संगीतमय प्रस्तुति दी जायेगी। भगवान पाश्र्वनाथ के मोक्ष कल्याणक निमित 18 से 20 अगस्त तक अट्ठम की आराधना का आयोजन किया गया है जिसमें अधिक संख्या में जुड़ने का आह्वान किया गया। संघपूजन का लाभ ओमप्रकाश बोथरा परिवार गुड़ावालों ने लिया। सभी श्रावक-श्रविकाओं के मस्तक पर कुंकुम का तिलक करके संघ प्रभावना दी गई। किशनलाल छाजेड़ भादरेश का संघ की ओर से बहुमान किया गया।