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सोमवार, 17 मार्च 2014

बाड़मेर ताज़पोशी होली कि। । होली के रंग बाड़मेर कलमकारो के संग। बुरा न मानो होली हें।

ताज़पोशी होली कि। । होली के रंग कलमकारो के संग। बुरा न मानो होली हें।


बाड़मेर दोस्तों आज होली के रंगो से सब सरोबार हें। बाड़मेर के खबरनवीस भी होली में मस्त हें। होली ठिठोली का पर्व हें होली हो और पत्राकारों को उपाधियों से नवाज़ा न जाये तो बात बनती नहीं। बाड़मेर के कलमकारो के लिए कुछ ताजपोशिया पेश हें।

भूर चंद जैन। .......... हमें गोड़ा थाका

महावीर जैन। …… अब मेरी बारी

चन्दन सिंह भाटी। .... अब राज़ कि बात हें
पवन जोशी। …… बन्दे में अब भी हें दम

शिव प्रकाश सोनी। …। दबदबा ख़त्म होने को
मदन बारुपाल। .... सरकारी भोम्पू हवा में

धर्म सिंह भाटी। …… फिर कब बिकेगा बॉर्डर

रतन दवे ........... आंगनवाड़ी और शिक्षा विभाग का मारा यह बेचारा  

विमल भाटिया। ……। बाड़मेर कोई छोटी मोटी खबर

मुकेश मथरानी । … कैसी लगी स्टोरी


भूपेश आचार्य। .... अपनों का मारा


दिनेश बोहरा। ……। हैम तो तिल का ताड़ बनाते हें


कन्हैया डेलौरा । । …। हमें तो अपनों ने लूटा गैरो में कहाँ। ....


प्रेमदान देथा । ....... टेंडर केथ हें। ।कदे हें


दुर्ग सिंह राजपुरोहित। । … जी का मारा यह बेचारा


सुरेश जाटव। ……। पत्रकारिता के रंग मेलो के संग


पूनम सिंह राठोड। ……… मस्ती में मस्त


अशोक राजपुरोहित। ....... अब भी पत्रकार


प्रवीण। बोथरा … रोजी का सवाल


कालू माली। .......... हमें मजो चखावा इयेन


ओम माली। ....... पुरस्कारो कि भूख


दिलीप दवे। ………। खबरो इस तो लिखनी हें


लाखाराम जाखड़। ……… सनावड़ा ऋ बातां


हरीश चांडक। .......... हमें केरे लक्कड़ करा


सवाई माली। …भजनो रो रंग चढियो सा


प्रह्लाद प्रजापत। …। पार्टी प्रवक्ता


शुशीला। दैया …। तू जंहा जंहा चलेगा मेरा साया साथ होगा


अश्विनी रामावत। ……… मास्टर माइंड


मदन छाजेड़। …विज्ञापनो रो आसरो


भगवन आकोदा। ............. सूरज अस्त मैं मस्त


शैलेश वासु। ………… धोखा धोखा धोखा


विजय कुमार हफ्ते कि बात चालु हें


डी पी जोशी। ………। सब कुछ लुटा कर बने पत्रकार


प्रेम परिहार। …… कब हें पार्टी


तनराज सिंह। ………… पत्रकारिता में कि खावां। ।धन्धो करां


सबल सिंह भाटी। ……… नेट का वेट


रमेश पंवार। .......... डिस्कॉम। .... देख लूंगा


ठाकराराम मेघवाल। ……… एक अखबार भले लावा


पप्पू बृजवाल। ……… जय हो ओ पी उज्जवल कि


भेरा राम। …। दो पाटो के बीच फंस गया


छगन सिंह। ……… कोई म्हणे भी कार्ड दिरओ