भारत पाक युद्ध लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
भारत पाक युद्ध लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

6दिसम्बर 1971 भारत पाक युद्ध , छाछरो फ़तेह किया था भारतीय सेना ने , पाकिस्तान की 80 किमी इलाके पर भारतीय सेना ने जमाया था कब्ज़ा

6दिसम्बर 1971 भारत पाक युद्ध , छाछरो फ़तेह किया था भारतीय सेना ने , पाकिस्तान की 80 किमी इलाके पर भारतीय सेना ने जमाया था कब्ज़ा 



जैसलमेर ठीक 48 साल पहले आज के ही दिन भारत पाक युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान सेना के छक्के छुड़ा छाछरो सहित पाकिस्तान की अस्सी किलोटेर तक की जमीन पर भारतीय सेना ने फतेह कर कब्ज़ा कर लिया था,  पहले 16 दिसम्बर 1971 को शाम चार बजे पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के समक्ष समर्पण किया था। इस युद्ध में जयपुर के 12 जवानों समेत राजस्थान के 307 सपूतों ने शहादत दी थी। दो मोर्चो पर लड़े गए इस युद्ध में राजस्थान की सीमा पर जयपुर के ब्रिगेडियर भवानी सिंह के नेतृत्व में छाछरो इलाके को जीता गया था। पाकिस्तान की हुकूमत से परेशान वहां के हिन्दुओं ने तब राहत की सांस ली थी, लेकिन बाद में शिमला समझौते में यह जमीन लौटा दी गई। 50 हजार हिन्दू परिवार रातों-रात भारत आने को मजबूर हो गए। उन लोगों ने कई माह तक तम्बुओं में रात बिताई। छाछरो आज भी उन्हें भुलाए नहीं भूल रहा है।

कहां है छाछरो
छाछरो पाकिस्तान के सिंध प्रांत के थारपारकर जिले में तहसील मुख्यालय है। यह बाड़मेर से करीब 160 किलोमीटर की दूरी पर है और गडरा रोड बॉर्डर से मात्र 70 किलोमीटर दूर है।

971: 'द डेजर्ट स्कॉर्पियो' के डंक से पस्त हुआ था पाकिस्तान!


पाकिस्तान की 80 किमी इलाके पर कब्जा: थल सेना स्पेशल फोर्स 10 पैरा कमांडों 'द डेजर्ट स्कॉर्पियो' की स्थापना 1 जून, 1967 को लेफ्टिनेंट कर्नल एनएस उथाया के नेतृत्व में थार में विशेष ऑपरेशन के लिए की गई थी।
वर्ष 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में 'ऑपरेशन कैक्टस लिली' के दौरान 10 पैरा को पाकिस्तान के अंदर घुसकर 80 किमी से ज्यादा के क्षेत्र में सिंध क्षेत्र के छाछरों तक हमला की टास्क दी गई थी।
10 पैरा कमाण्डो ने युद्ध सम्मान दिवस मनाया 10 पैरा कमाण्डो स्पेशल प ाsर्सेज `द् डेजक्वर्ट स्कोर्पियो' ने शुक्रवार को एक खास समारोह में `छाछरो दिवस' मनाया। समारोह में बडक्वी संख्या में पूर्व सैनिक और उनके परिजन शामिल हुए। 10 पैरा कमाण्डो स्पेशल प ाsर्सेज की स्थापना 1 जून 1967 को ले. कर्नल एन.एस. उथाया के नेतृत्व में रेगिस्तान में स्पेशल ऑपरेशन करने के लिए हुई थी। 1971 के भारत-पाक युद्ध `ऑपरेशन कैक्टस लिली' के दौरान पल्टन को पाकिस्तानी सीमा के 80 किलोमीटर भीतर छाछरो-सिध पर हमला करने का आदेश मिला। पल्टन ने युद्ध के दौरान दुश्मन धरती छाछरो, वीरवाह, नागरपरकार, इस्लाम कोट पर 6-7 दिसम्बर 1971 की रात कई हमले किए। इन सप ल हमलों के कारण भारतीय सेनाओं को दुश्मन के भीतरी क्षेत्रों में जाकर बडक्वे क्षेत्रों पर कब्जा करने का मौका मिला। इस अदम्य साहस से, पल्टन को युद्ध सम्मान छाछरो तथा थियेटर ऑनर सिंध पदान किए गए। इस साहसिक नेतृत्व, दूरदर्शिता के प लस्वरूप 10 पैरा कमाण्डो स्पेशल प ाsर्सेज `द् डेजक्वर्ट स्कोर्पियो' के तत्कालीन कमान अधिकारी ब्रिगेडियर सेवानिवृत्त सवाई भवानी सिंह को महावीर चक पदान किया गया। इसके अतिरिक्प, यूनिट को भी दो वीर चक, 3 सेना मेडल और एक मेन्शन-इन-डिस्पेच पदान किया गया।

मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

खास रिपोर्ट पहली बार। भारत पाक युद्ध के महानायक। भारत को जीत दिलाने ख़ास योगदान था बलवंत सिंह बाखासर का।

खास रिपोर्ट पहली बार। भारत पाक युद्ध के महानायक। भारत को जीत दिलाने ख़ास योगदान था बलवंत सिंह बाखासर का। 

+91 75064 54326‬: यदुवंशी सुरेन्द्र सिंह 


बाड़मेर आज ही के दिन 1971 की लड़ाई में इस शेर बलवन्त सिंह जी बाखासर ने पाकिस्तान के छाछरो समेत 100 गाँवो पर अपना कब्जा जमाया था बाद में इंद्रा गांधी की बेवकुफी कहे या कुछ और वजह से सभी गांव पाकिस्तान को वापिस दिए थे धन्य हे धरा ऐसे सपूतो को जन्म दिया

भारत की आजादी के बाद 60-70वे दशक मे पश्चिमी राजस्थान के लिए एक जाना पहचाना नाम था बलवँत सिँह बाखासर!


गुजरात राजस्थान के सरकारी महकमे व पुलिस विभाग के लिए डकैत लेकिन बाडमेर साँचोर ओर उत्तरी गुजरात के वाव थराद सीमावर्ती गाँवो के लिए वे आधुनिक राबिन हुड समान थे

बलवंत सिंह का जन्म राजस्थान के बाड़मेर जिला के गांव बाखासर में चौहानो की नाडोला उप शाखा में हुआ आपकी शादी कच्छ गुजरात के विजेपासर गाव में जाडेजा राजपूतो के यहाँ हुयी आपका बचपन राजस्थान गुजरात और पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रो में गुजरा ये पूरी तरह यहाँ के सीमावर्ती क्षेत्रो को लेकर वाकिफ थे वक़्त के साथ बलवंत सिंह ने हथियार उठा दिए
आजादी के बाद पाकिस्तान के सिँधी मुस्लिमो का सीमावर्ती क्षेत्रो मे आतँक था उस वक़्त बॉर्डर खुला होने की वजह से सिँधी मुस्लिम आये दिन भारतीय सीमा में आकर लूट पाठ करने लगे इधर बलवंत सिंह बाखासर सरकारी खजाना व लुटेरो को लूट कर सारा धन गरीबो में बाँट देते थे ग्रामीणों की हर सम्भव मदद करते सरकारी महकमा इनके नाम तक से डरता था पुरे क्षेत्र के लोग जी जान देने को तैयार रहते और ये पुरे 100 किमी क्षेत्र के आधुनिक रोबिंन हुड बन चुके थे और लोगो में किसके फरिश्ते से कम न थे पाकिस्तान से आने वाले लूटेरे भी इनसे नाम से थर्राने लगते थे जिस गाव में ये रात गुजरते वहा का सारा प्रबन्ध ग्रामीण करते धीरे धीरे बलवंत सिंह बाखासर का नाम बढ़ता गया




बलवँत सिँह बाखासर देश में पहली बार चर्चा मे तब आए जब मीठी पाकिस्थान के सिन्धी मुसलमाँन एक साथ 100 गायो लेकर पाकिस्तान जा रहे थे जैसे ही इसकी खबर बलवंत सिंह जी को मिली फिर क्या था उसी क्षण अपने घोड़े पर सवार होकर बलँवत सिँह डाकुओ का पीछा करने निकले अकेले मुकाबला करते हुए 8 सिँधीयो को ढेर कर दिया ओर सभी गाय छुडवा लाए




बाड़मेर के चौहटन के नेता अब्दुल हादी जो 7 बार विधायक मंत्री रहे उनके बड़े भाई मोहम्मद हुसैन पर तस्करी लूट के संगीन आरोप लगे इन्हें भी बलवंत सिंह ने मार गिराया वही मोहम्मद हयात खान नाम के लूटेरे को भी बाड़मेर में लंबी नींद सुलाया

अब्दुल हादी से इनका मन मुटाव हो गया था तब कांग्रेस सरकार आते थे अब्दुल हादी और जाट नेता नाथूराम मिर्धा दोनों ने मिलकर इनको पकड़वाने की साजिश रची

1971 भारत पाक के रिश्ते बेहद तनावपूर्ण थे 71 युद्ध मे ईनकी अहम भूमिका रही, हमारे सैनिको में ज्यादातर बाहरी और रेगिस्तान के खतरों से अनजान थे बलवंत सिंह पाक सीमा से अच्छी तरह वाकिफ थे और काफी लोकप्रिय हो गए थे उस वक़्त लेफ्टीनेंट भवानी सिंह जी ने सूझ भुझ से काम लिया आखिर में देश हित में लेफ्टिनेँट महाराजा भवानी सिँह जयपुर ने इनको सेना की एक बटालियन और 4 जोन्गा जीपे तक सौँप दी थी पूरी बटालियन की अगुवाई इन्ही बलवंत सिंह बाखासर ने की और अपने धैर्य और सूझबुझ से भारतीय सेना को पाक के भीतर तक ले गए और नतिजा रहा की सुबह के 3 बजे पाकिस्तान के सिंध सूबे के छाछरो कस्बे पर कब्जा करने मे सफलता मिली और पाकिस्थान के 100 गावो पर कब्ज़ा हुआ सारे ठाणे भारतीय सेना के कब्जे में आ गए

भारतिय सैनिको को तब बड़ा ताज्जुब हुआ जब पाकिस्तान ग्रामीण आंचल के लोग सिर्फ बलवंत सिंह बाखासर को देखने के लिए कई किलोमीटर दूर से पैदल आये


इनकी देशभक्ति ओर वीरता से प्रभावित प्रसन्न होकर भारत सरकार ने इन पर लगाए सारे डकेती के केस वापस ले लिए थे

अभी इनके पोत्र रतन सिंह जी बाखासर अहमदाबाद में रह रहे है


इसकी लोकप्रियता का अंदाजा डिंगल भाषा में इन पर गीत तक लिखे गए है
सांचोर में लगने वाले मेले को भय मुक्त बनाने के लिए ये अपने ऊठ पर बैठ खुद निगरानी भी करते थे

राजस्थान ,गुजरात,कच्छ और रण क्षेत्र इनकी वीरता के वीर रस भजन आज तक गाए जाते है


Note - आप सभी को बता देते है 1971 में पाकिस्तान से हुयी जंग में राजस्थान पाकिस्तान बॉर्डर के काफी स्थानीय लोग  सक्रिए हुए थे और हर घर में बंदूको कि सफाई शुरू कर दी गयी थी और सेना को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सहयता कि थी … राजस्थान का बॉर्डर राजपूत बाहुल्य है और राजपूत किसी भी संदिग्ध गतिविधि होते है जल्दी अलर्ट हो जाते है और सेना को सारी जानकारी मिल जाती है  




  

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

1971 में भारत पाक युद्ध पाकिस्‍तान को झेलना पड़ा बड़ा नुकसान

(रिटायर्ड बिग्रेडियर और लोंगेवाल वॉर के हीरो कुलदीप सिंह चांदपुरी 


चंडीगढ़. 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तानी सेना की हार और भारतीय सेना की यादगार जीत में लोगोंवाल में तैनात 23 पंजाब रेजिमेंट की 120 जवानों की टुकड़ी की बहादुरी को आज भी हम नहीं भूले हैं। मैं इस टुकड़ी से जुड़ा था तो मेरे लिए यह टुकड़ी और इसका हर जवान दिल के बहुत ही करीब है।

लोंगेवाल की यह जंग काग़जों में 'फोर्टिन डेज ऑफ वॉर' के नाम से जानी जाती है। यह वॉर तीन दिसंबर को शुरू होकर 16 दिसंबर को भारतीय सेना की की जीत के साथ अंजाम पर पहुंची। 1971 की यह जीत हिंदुस्तानी फौज के लिए गौरव की बात थी। हमने इस युद्ध में दुश्मनों को करारी हार दी।

आर्मी, नेवी और एयरफोर्स में कमाल का तालमेल था। फौज को पहले ही पता लगा चुका था कि आने वाले दिनों में पाकिस्तान के साथ तनाव बढ़ जाएगा। बांगलादेश में हालात खराब हो रहे थे। पाकिस्तान की फौज ने आम लोगों को लूटना और उन पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था। वहां स्थानीय स्तर पर जागृति आ गई थी। खासकर 70 के आखिर में लग रहा था कि कुछ न कुछ होना है। कोई नहीं चाहता है कि जंग हो। हिंदुस्तान शांति चाहता था। बड़े देश भी यही यही कह रहे थे कि पड़़ोसी के साथ युद्ध नहीं होना चाहिए।

पाकिस्‍तान ने शुरू की लड़ाई

तीन दिसंबर को शाम साढ़े सात बजे के करीब कश्मीर से लेकर गुजरात तक सभी एयरपोर्टों पर पाकिस्तान ने बमबारी कर दी। इस बीच रेडियो पर स्पेशल न्यूज बुलेटिन आया। खबर में भारत की ओर से जंग का ऐलान कर दिया गया। वेस्टर्न सेक्टर (पश्चिमी सीमा) में शांति थी। लेकिन ईस्टर्न सेक्टर (पूर्वी सीमा) में हालात खराब हो गए। बॉर्डर पर बीएसएफ तैनात थी, लेकिन धीरे-धीरे फौज ने आगे बढऩा शुरू कर दिया। बीएसएफ अक्तूबर के मध्य में सीमा से हटने लगी और फौज आगे बढऩे लगी। अक्तूबर के आखिरी हफ़्ते में फौज ने अपनी तैयारी कर ली कि क्या-क्या टारगेट होंगे। दुश्मन कहां से आ सकता है। हमें क्या क्या करना है। हम पहले से तैयार थे। 'मुक्तिवाहनी' हमें बताती थी कि कहां क्या-क्या हो रहा है।

बड़ी तैयारी से आए थे पाकिस्‍तानी
लोंगेवाल में उस वक्त बतौर मेजर मेरे पास 120 जवानों की कमान थी। हम तो मिलिट्रीमैन थे, फिर भी देश के इस हिस्से में शांति के बावजूद पूरी तरह आश्वस्त होकर नहीं बैठ सकते थे। हमारा अंदेशा 3 दिसंबर की रात साढ़े सात बजे के आसपास उस वक्त सही साबित हुआ जब पाकिस्तानी एयरफोर्स ने कश्मीर से लेकर गुजरात तक सभी एयरपोर्ट पर हमला बोल दिया। हम लोंगेवाल पोस्ट पर थे लेकिन हमारा काम डिफेंसिव था। यानी हमें हमला नहीं करना था, बल्कि अपनी पोस्ट की हिफाजत करते हुए दुश्मनों को रोकना था। 3 दिसंबर की रात लोंगेवाल पोस्ट पर कुछ नहीं हुआ। वैसे भी हम भारत-पाकिस्तान सीमा से 16 किलोमीटर अंदर थे। तो हमें आगे पाकिस्तानी सेना के किसी मूवमेंट का अंदाजा नही था और अपनी पोस्ट छोडक़र हम आगे बढ़ नहीं सकते थे। लेकिन पाक सेना भारतीय सीमा पार करते हुए 4 दिसंबर की रात हमारे सामने खड़ी थी। पाक सेना बहावलपुर से गब्बर रेती होते हुए भारतीय सीमा में दाखिल होकर लोंगेवाल पहुंच चुकी थी। पाक सेना का हमला इतना सुनियोजित था कि पाकिस्तान सेना के 3 हजार जवान और 45 टैंक हमें घेर चुके थे। यहां पर अब हमें फैसला लेना था कि या तो लड़कर बहादुरी के साथ मरें या फिर हथियार डालकर बुजदिली की मौत। लिहाजा, मेरे जवानों ने किसी भी सूरत में हथियार डालने की बजाय लडऩे का फैसला लिया।

पूरी रात हमने पाकिस्तानी सेना को यहीं रोके रखा। सुबह साढ़े सात बजे भारतीय वायुसेना ने हमारे साथ मोर्चा संभाल लिया। इसके बाद पाकिस्तानी फौज को संभलने का मौका नहीं मिला। दोपहर तक पाकिस्तानी खेमे में भगदड़ मच चुकी थी। पाक फौज पीछे हट रही थी लेकिन हमने एयरफोर्स के साथ मिलकर पाक सेना पर हमला जारी रखा। भारतीय सीमा से खदेडऩे तक पाक सेना के सामने आए 45 टैंकों के अलावा पीछे बैकअप के तौर पर रखे गए 13 टैंक भी निशाने पर आ चुके थे।

पाकिस्‍तान को झेलना पड़ा बड़ा नुकसान
एयरफोर्स के लिए रेगिस्तान में टैंकों को निशाना बनाना आसान नहीं था। लेकिन जैसे ही पाकिस्तानी सेना के टैंक मूवमेंट करते तो एयरफोर्स उन्हें निशाना बनाकर बर्बाद कर रही थी। हमारी टुकड़ी जमीनी हमला करते हुए पाक सेना को पीछे खदेड़ रही थी। आखिर में शाम तक हमने एयरफोर्स के साथ मिलकर लोंगेवाल पोस्ट पर जीत दर्ज की। हमने भी इस युद्ध में 23 पंजाब रेजिमेंट के जवानों को खोया। हमारी पेट्रोलिंग में मदद करने वाले ऊंटों की मौत हुई और जीपें बर्बाद हो गई। लेकिन 1971 में भारत पाक युद्ध में पाक सेना के लिए लोंगेवाल में हुई लड़ाई बहुत बड़ा नुकसान थी। हमने पाकिस्तान के 58 में से 52 टैंक बर्बाद कर दिए। बाकी बचे 6 टैंक कब्जे में ले लिए।

इस युद्ध की यादें मेरे जहन में आज भी ताजा हैं, लेकिन साथ ही याद है इस युद्ध में मेरे 120 जवानों की 3 हजार पाक फौजियों को शिकस्त देने की बहादुरी का हर किस्सा। मेरी इस टुकड़ी ने पाक सेना के लोंगेवाल में ब्रेकफास्ट, जैसलमेर में लंच और जोधपुर में डिनर के प्लान को मिट्टी में मिला दिया। पाक सेना का यह डाइनिंग प्लान पाक सैनिकों से ही हमें पता चला था। 1971 के भारत-पाक युद्ध की जीत की याद में 'विजय दिवस' पर मैं अपने 120 जवानों की बहादुरी को सलाम करता हूं।

अपने बारे में
मैं बचपन से ही फौज में जाना चाहता था। लेकिन मैं अकेला बेटा थो तो मां को मेरी यह ख्वाहिश पंसद नहीं आई। लेकिन पिताजी ने मेरी मां को समझाया और 1962 में मैंने सेना में कमीशन हासिल की।
जिंदगी में अनुशासन को निहायत जरूरी मानता हूं। जिंदगी में कभी भी शराब को मुंह से नहीं लगाया। अरसा पहले नॉन वेज भी छोड़ दिया। जिंदगी में सादगी और अनुशासन बहुत ही जरूरी है। यहीं मैं आने वाली पीढ़ी को बताना चाहता हूं।