आगरा. ताजनगरी में इन दिनों देशभर से आईं किन्नरों का सम्मेलन चल रहा है। इसमें मंगलमुखी अपने गुरु मंगलमुखियों के लिए पारम्परिक पूजन और सामूहिक भोज का आयोजन कर रहे हैं। सम्मेलन 15 जनवरी तक चलेगा। यहां पहुंची किन्नरों की सुंदरता और मेकअप को देखकर हर कोई दंग है। वे सुंदरता और श्रृंगार में महिलाओं से भी दो कदम आगे नजर आ रही हैं।
चमकदार चेहरा, नीली आंखों में काजल और बदन पर गुदा टैटू डिबाई से आई मंगलामुखी की सुंदरता में चार चांद लगा रहा था। मंगलामुखी भी श्रृंगार की आधुनिक विधियों का खूब प्रयोग कर रहे हैं।
सम्मेलन में कपड़ों तथा मेकअप की भी दुकानें सजाई गई हैं। आभूषणों की भी बिक्री की जा रही है। यहां किन्नरों की भारी भीड़ देखी जा रही है। समारोह में किसी गैर-किन्नर को जाने की अनुमति नहीं है। केवल दो कार्यक्रम कलश यात्रा और चाक पूजन ही वाटिका के बाहर होगा।
मंगलमुखियों का कहना है युवा मंगलमुखियों को अपने बुजर्ग मंगलमुखियों के सम्मान के लिए भोज सम्मेलन आयोजित करते हैं। इसमें मंगलामुखी अपने गुरुओं का सम्मान करेंगे। इस सम्मेलन में करीब 300 किन्नरों के भाग लेने पहुंचे हैं।
मंगलामुखी हरियाबाई कहती हैं कि हमारे सभी यजमान स्वस्थ रहें। वह फले-फूलें उनके बच्चे खुशहाल रहे इसी मंगलकामना के साथ इस सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। मंगलमुखी जीवन में सिर्फ दो बार बधाई मांगने जाता है पहली बार जब तब बच्चा जन्म लेता है, दूसरी बार जब तब उसका विवाह होता है।
मंगलामुखियों ने कहा कि उन्हें सिर्फ वोटों की राजनीति के लिए ही इस्तेमाल किया जाता है। वोटर लिस्ट में भी किसी में स्त्री तो किसी में पुरुष दर्ज किया जाता है, जबकि किन्नर अंकित होना चाहिए। वोट लेने के बाद उनके लिए कोई काम नहीं करता है। किन्नर पढ़-लिखे नहीं हैं, इसलिए आगरा से कोई किन्नर राजनीति में भागीदारी नहीं कर पाया।
किन्नरों के ऊपर किए गए एक शोध से पता चला था कि किन्नर सामान्य लोगों की तुलना में ज़्यादा दिनों तक जीवित रहते हैं। शोधकर्ताओं ने कोरियाई प्रायद्वीप में सैंकड़ों सालों से रहने वाले किन्नरों के जीवन से जुड़े घरेलू दस्तावेज़ों का अध्ययन किया था। अध्ययन से ये नतीजा निकला कि बधियाकरण के कारण किन्नर ज्यादा दिनों तक ज़िंदा रहते हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि पुरूषों का हार्मोन उनकी उम्र को कम कर देता है। हर संस्कृति और सभ्यता में किन्नरों का एक अहम रोल होता है। वे कुछ विशेष काम करते हैं। जैसे हरम या जनानख़ाने की रखवाली करना किन्नरों की ख़ास ज़िम्मेदारी होती थी। हरम यानी वो जगह जहां शाही घराने की महिलाएं रहतीं थीं।
शोधकर्ताओं के अनुसार अगर बचपन की शुरुआत में ही बालकों के अंडकोष को काट दिया जाए तो उससे उनका विकास बाधित होता है और वे बालक कभी भी पूरी तरह से पुरुष नहीं बन पाते।
अक्सर किन्नरों को देखकर बहुत से लोगों के मन में सवाल पैदा होता है कि क्या उनके मन में कभी सेक्स करने की इच्छा नहीं होती है। उनकी सेक्स क्रियाएं सामान्य पुरुष की ही तरह होती हैं लेकिन उनको स्त्री के रूप में अपनी पहचान बनाना ज्यादा स्वाभाविक लगता है। ज्यादातर किन्नरों का यौनांग बधिया किया हुआ होता है और वह समलिंगी होते हैं। जिन किन्नरों का बधिया नहीं किया होता वह द्विलिंगी भी होते हैं।
किन्नर शबनम का कहना है कि गांव वाले हंसते और मज़ाक उड़ाते थे, इसलिए उसको 12 साल की उम्र में अपने परिवार को छोड़ना पड़ा। वेश-भूषा उसने औरतों जैसी रखी ज़रूर है मगर आंखें बंद कर अगर कोई उसकी आवाज़ सुने तो आगरा में रिक्शेवालों की आवाज़ और राधा की आवाज में फ़र्क करना उसके लिए संभव नहीं होगा। उसने घर छोड़ने के बाद अपनी ज़िंदगी के पच्चीस साल एक शहर की एक पिछड़ी बस्ती में बिताए। उसके पास पेट भरने के लिए देह व्यापार को छोड़ दूसरे धंधे नज़र नही आ रहे थे। कई बार तो उन्होंने बस दुकानों में जाकर सीधे पैसे मांगे। मगर ज़िंदगी उनकी मुश्किलों भरी थी - आम दुनिया के लिए वो अजनबी थे- हैरत की चीज़ थे।
चमकदार चेहरा, नीली आंखों में काजल और बदन पर गुदा टैटू डिबाई से आई मंगलामुखी की सुंदरता में चार चांद लगा रहा था। मंगलामुखी भी श्रृंगार की आधुनिक विधियों का खूब प्रयोग कर रहे हैं।
सम्मेलन में कपड़ों तथा मेकअप की भी दुकानें सजाई गई हैं। आभूषणों की भी बिक्री की जा रही है। यहां किन्नरों की भारी भीड़ देखी जा रही है। समारोह में किसी गैर-किन्नर को जाने की अनुमति नहीं है। केवल दो कार्यक्रम कलश यात्रा और चाक पूजन ही वाटिका के बाहर होगा।
मंगलमुखियों का कहना है युवा मंगलमुखियों को अपने बुजर्ग मंगलमुखियों के सम्मान के लिए भोज सम्मेलन आयोजित करते हैं। इसमें मंगलामुखी अपने गुरुओं का सम्मान करेंगे। इस सम्मेलन में करीब 300 किन्नरों के भाग लेने पहुंचे हैं।
मंगलामुखी हरियाबाई कहती हैं कि हमारे सभी यजमान स्वस्थ रहें। वह फले-फूलें उनके बच्चे खुशहाल रहे इसी मंगलकामना के साथ इस सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। मंगलमुखी जीवन में सिर्फ दो बार बधाई मांगने जाता है पहली बार जब तब बच्चा जन्म लेता है, दूसरी बार जब तब उसका विवाह होता है।
मंगलामुखियों ने कहा कि उन्हें सिर्फ वोटों की राजनीति के लिए ही इस्तेमाल किया जाता है। वोटर लिस्ट में भी किसी में स्त्री तो किसी में पुरुष दर्ज किया जाता है, जबकि किन्नर अंकित होना चाहिए। वोट लेने के बाद उनके लिए कोई काम नहीं करता है। किन्नर पढ़-लिखे नहीं हैं, इसलिए आगरा से कोई किन्नर राजनीति में भागीदारी नहीं कर पाया।
किन्नरों के ऊपर किए गए एक शोध से पता चला था कि किन्नर सामान्य लोगों की तुलना में ज़्यादा दिनों तक जीवित रहते हैं। शोधकर्ताओं ने कोरियाई प्रायद्वीप में सैंकड़ों सालों से रहने वाले किन्नरों के जीवन से जुड़े घरेलू दस्तावेज़ों का अध्ययन किया था। अध्ययन से ये नतीजा निकला कि बधियाकरण के कारण किन्नर ज्यादा दिनों तक ज़िंदा रहते हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि पुरूषों का हार्मोन उनकी उम्र को कम कर देता है। हर संस्कृति और सभ्यता में किन्नरों का एक अहम रोल होता है। वे कुछ विशेष काम करते हैं। जैसे हरम या जनानख़ाने की रखवाली करना किन्नरों की ख़ास ज़िम्मेदारी होती थी। हरम यानी वो जगह जहां शाही घराने की महिलाएं रहतीं थीं।
शोधकर्ताओं के अनुसार अगर बचपन की शुरुआत में ही बालकों के अंडकोष को काट दिया जाए तो उससे उनका विकास बाधित होता है और वे बालक कभी भी पूरी तरह से पुरुष नहीं बन पाते।
अक्सर किन्नरों को देखकर बहुत से लोगों के मन में सवाल पैदा होता है कि क्या उनके मन में कभी सेक्स करने की इच्छा नहीं होती है। उनकी सेक्स क्रियाएं सामान्य पुरुष की ही तरह होती हैं लेकिन उनको स्त्री के रूप में अपनी पहचान बनाना ज्यादा स्वाभाविक लगता है। ज्यादातर किन्नरों का यौनांग बधिया किया हुआ होता है और वह समलिंगी होते हैं। जिन किन्नरों का बधिया नहीं किया होता वह द्विलिंगी भी होते हैं।
किन्नर शबनम का कहना है कि गांव वाले हंसते और मज़ाक उड़ाते थे, इसलिए उसको 12 साल की उम्र में अपने परिवार को छोड़ना पड़ा। वेश-भूषा उसने औरतों जैसी रखी ज़रूर है मगर आंखें बंद कर अगर कोई उसकी आवाज़ सुने तो आगरा में रिक्शेवालों की आवाज़ और राधा की आवाज में फ़र्क करना उसके लिए संभव नहीं होगा। उसने घर छोड़ने के बाद अपनी ज़िंदगी के पच्चीस साल एक शहर की एक पिछड़ी बस्ती में बिताए। उसके पास पेट भरने के लिए देह व्यापार को छोड़ दूसरे धंधे नज़र नही आ रहे थे। कई बार तो उन्होंने बस दुकानों में जाकर सीधे पैसे मांगे। मगर ज़िंदगी उनकी मुश्किलों भरी थी - आम दुनिया के लिए वो अजनबी थे- हैरत की चीज़ थे।