पश्चिमी सरहद से थलसेनाध्यक्ष ने किया युद्धाभ्यास ‘दृढ़ संकल्प’ का अवलोकन
थलसेनाध्यक्ष जनरल दलबीर सिंह ने दक्षिणी कमान के युद्धाभ्यास ‘दृढ़ संकल्प’, जो कि अपने चरम एवं अंतिम चरण में था, उसका अवलोकन किया। यह युद्धाभ्यास पिछले दो माह से राजस्थान के रेगिस्तान में चल रहा था जिसमें सेना ने वास्तविक युद्ध परिस्थितियों जैसे हालात निर्मित कर प्रषिक्षण प्राप्त किया। इस युद्धाभ्यास का ध्येय सेना की यूनिट एवं फाॅर्मेषन को रेगिस्तानी इलाकों में नेटवर्क केन्द्रित परिवेष में तोपखाने और वायुसेना के साथ समन्वित तीव्र आक्रमण के लिए प्रषिक्षित करना था। यह सभी सैनिकों के लिए प्रषिक्षण का एक उत्तम अवसर था जिसमें वह अपने रणकौषल को गतिषील एवं पल-पल बदलती युद्ध स्थिति के अनुसार सफलतापूर्वक ढाल सकें, और युद्ध में विजयी हों।
इस युद्धाभ्यास में दक्षिणी कमान के सभी लड़ाकू सैनिकों एवं सहायक सेवाओं ने हिस्सा लिया। इसी के साथ इस बार विषेष रूप से इलैक्ट्र्ाॅनिक युद्ध प्रणाली, एविएषन, स्पेषल फोर्सेज़ और वायुसेना का भी पूरे तालमेल के साथ प्रयोग किया गया।
थलसेनाध्यक्ष जनरल दलबीर सिंह ने इस युद्धाभ्यास के कुछ खास अंष देखे और इसमें भाग ले रहे सैनिकों से भी मुलाकात की। उन्हें दक्षिण कमान के जनरल आॅफिसर कमाण्डिंग इन चीफ लेफ्टिनेन्ट जनरल अषोक सिंह ने पूरे प्रषिक्षण, युद्धाभ्यास के प्लान एवं परिप्रेक्ष्य से अवगत कराया।
थलसेनाध्यक्ष ने सेना एवं वायुसेना के एकीकृत अभ्यास का भी अवलोकन किया। उन्होंने इस युद्धाभ्यास के कुषल संचालन एवं उच्चस्तरीय प्रषिक्षण पर सभी सैनिकों को बधाई दी। साथ ही उन्होंने सभी सैनिकों को बदलते युद्ध परिवेष में नई तकनीक को अवधारण करने के साथ, शारीरिक एवं मानसिक रूप में सजग रहने एवं अपने साजो-सामान व हथियारों को उच्चतम मानक के अनुरूप तैयार रखने की हिदायत दी।
इस युद्धाभ्यास में पैदल सैनिकों एवं मैकेनाइज़्ड सेना ने हवाई मार्ग में उतारे गए सैनिकों के साथ समन्वय रखते हुए अपने युद्ध कौषल को परखा। साथ ही सूचना तंत्र का पूरा प्रयोग करते हुए नेटवर्क राडार, मानव रहित टोही विमान और अन्य खुफिया जानकारी एकत्र करने के साधनों का उपयोग करते हुए सेना ने निरंतर प्राप्त हो रही नई जानकारी का आकलन कर कमांडरों को एक नई शक्ति प्रदान की जिससे उन्हें युद्ध क्षेत्र में बदलती स्थिति के अनुसार निर्णय लेने में सहायता मिली। इस प्रकार के विषाल युद्धाभ्यास सुरक्षा परिवेष को मद्देनजर रखते हुए तीन से चार वर्ष में एक बार किए जाते हैं।