मांडू मध्यप्रदेश का एक ऐसा पर्यटनस्थल है, जो रानी रूपमती और बादशाह बाज बहादुर के अमर प्रेम का साक्षी है। यहां के खंडहर व इमारतें हमें इतिहास के उस झरोखे के दर्शन कराते हैं, जिसमें हम मांडू के शासकों की विशाल समृद्ध विरासत व शानो-शौकत से रूबरू होते हैं।
कहने को लोग मांडू को खंडहरों का गांव भी कहते हैं परंतु इन खंडहरों के पत्थर भी बोलते हैं और सुनाते हैं हमें इतिहास की अमर गाथा। हरियाली की खूबसूरत चादर ओढ़ा मांडू विदेशी पर्यटकों के लिए विशेष तौर पर एक सुंदर पर्यटनस्थल रहा है। यहां के शानदार व विशाल दरवाजे मांडू प्रवेश के साथ ही इस तरह हमारा स्वागत करते हैं। मानों हमने किसी समृद्ध शासक के नगर में प्रवेश कर रहे हो।
मांडू में प्रवेश के घुमावदार रास्तों के साथ ही मांडू के बारे में जानने की तथा इसकी खूबसूरत इमारतों को देखने की हमारी जिज्ञासा चरम तक पहुंच जाती है। यहां के विशाल इमली के पेड़ व मीठे सीताफलों से लदे पेड़ों को देखकर हमारे मुंह में पानी आना स्वभाविक है।
यहां की कबीटनुमा स्पेशल इमली के स्वाद के चटखारे लिए बगैर भला कैसे हमारी मांडू यात्रा पूरी हो सकती है। आप भी यदि मांडू दर्शन को जा रहे हैं तो एक बार अवश्य यहां की इमली, सीताफल व कमलगट्टे का स्वाद चखिएगा। आइए चलते हैं मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक स्थल मांडू की सैर पर।
मांडू के बारे में कुछ बातें : मांडू का दूसरा नाम 'मांडवगढ़' भी है। यह विन्ध्याचल की पहाड़ियों पर लगभग 2,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। मांडू को पहले 'शादियाबाद' के नाम से भी जाना जाता था, जिसका अर्थ है 'खुशियों का नगर'।
मांडू पहाड़ों व चट्टानों का इलाका है, जहां पर ऐतिहासिक महत्व की कई पुरानी इमारते हैं। मालवा के राजपूत परमार शासक भी बाहरी आक्रमण से अपनी रक्षा के लिए मांडू को एक महफूज स्थान मानते थे।
मांडू में यहां जरूर जाएं : मांडू में पर्यटकों के लिए देखने लायक बहुत से स्थान हैं, जिनमें रानी रूपमती का महल, हिंडोला महल, जहाज महल, जामा मस्जिद, अशरफी महल आदि स्थान प्रमुख हैं।
इसी के साथ ही मांडू को 'मांडवगढ़ जैन तीर्थ' के नाम से भी जाना जाता है। यहां भगवान सुपार्श्वनाथ की पद्मासन मुद्रा में विराजित श्वेत वर्णी सुंदर प्राचीन प्रतिमा है। इस प्रतिमा की स्थापना सन् 1472 में की गई थी। मांडवगढ़ में कई अन्य पुराने ऐतिहासिक महत्व के जैन मंदिर भी है, जिसके कारण यह जैन धर्मावलंबियों के लिए एक तीर्थ स्थान है।
स्वागत करते प्रवेश द्वार : मांडू में लगभग 12 प्रवेश द्वार है, जो मांडू में 45 किलोमीटर के दायरे में मुंडेर के समान निर्मित है। इन दरवाजों में 'दिल्ली दरवाजा' प्रमुख है। यह मांडू का प्रवेश द्वार है। इसका निर्माण सन् 1405 से 1407 के मध्य में हुआ था। यह खड़ी ढाल के रूप में घुमावदार मार्ग पर बनाया गया है, जहां पहुंचने पर हाथियों की गति धीमी हो जाती थी।
इस दरवाजे में प्रवेश करते ही अन्य दरवाजों की शुरुआत के साथ ही मांडू दर्शन का आरंभ हो जाता है। मांडू के प्रमुख दरवाजों में आलमगीर दरवाजा, भंगी दरवाजा, रामपोल दरवाजा, जहांगीर दरवाजा, तारापुर दरवाजा आदि अनेक दरवाजे हैं।
जामा मस्जिद (जामी मस्जिद) : मांडू का मुख्य आकर्षण जामा मस्जिद है, इस विशाल मस्जिद का निर्माण कार्य होशंगशाह के शासनकाल में आरंभ किया गया था तथा महमूद प्रथम के शासनकाल में यह मस्जिद बनकर तैयार हुई थी। इस मस्जिद की गिनती मांडू की नायाब व शानदार इमारतों में की जाती है। यह भी कहा जाता है कि जामा मस्जिद डेमास्कस (सीरिया देश की राजधानी) की एक प्रसिद्ध मस्जिद का प्रतिरूप है।
अशरफी महल : जामा मस्जिद के सामने ही अशरफी महल है। अशरफी का अर्थ होता है 'सोने के सिक्के'। इस महल का निर्माण होशंगशाह खिलजी के उत्तराधिकारी मोहम्मद खिलजी ने इस्लामिक भाषा के विद्यालय (मदरसा) के लिए किया था। यहां विद्धार्थियों के रहने के लिए कई कमरों का निर्माण भी किया गया था।
जहाज महल : जहाज महल का निर्माण 1469 से 1500 ईस्वी के मध्य कराया था। यह महल जहाज की आकृति में दो कृत्रिम तालाबों कपूर तालाब व मुंज तालाब दो तालाबों के मध्य में बना हुआ है। लगभग 120 मीटर लंबे इस खूबसूरत महल को दूर से देखने पर ऐसा लगता है मानों तालाब के बीच में कोई सुंदर जहाज तैर रहा हो। संभवत: इसका निर्माण श्रृंगारप्रेमी सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी ने विशेष तौर पर अंत:पुर (महिलाओं के लिए बनाए गए महल) के रूप में किया था।
होशंगशाह की कब्र : होशंगशाह की कब्र, जो कि भारत में मार्बल से बनाई हुई ऐसी पहली कब्र है, जिसमें आपको अफगानी शिल्पकला का बेहतर नमूना देखने को मिलता है। यह यहां का गुंबज, बरामदे तथा मार्बल की जाली आदि की खूबसूरती बेजोड़ है।
हिंडोला महल : हिंडोला महल मांडू के खूबसूरत महलों में से एक है। हिंडोला का अर्थ होता 'झूला'। इस महल की दीवारे कुछ झुकी होने के कारण यह महल हवा में झुलते हिंडोले के समान प्रतीत होता है। अत: इसे हिंडोला महल के नाम से जाना जाता है। हिंडोला महल का निर्माण ग्यासुद्दीन खिलजी ने 1469 से 1500 ईस्वी के मध्य सभा भवन के रूप में निर्मित सुंदर महल है। यहां के सुंदर कॉलम इसे और भी खूबसूरती प्रदान करते हैं। इस महल के पश्चिम में कई छोटे-बड़े सुंदर महल है। इसके समीप ही चंपा बाबड़ी है।
रानी रूपमती का महल : रानी रूपमती के महल को देखे बगैर मांडू दर्शन अधूरा सा है। 365 मीटर ऊंची खड़ी चट्टान पर स्थित इस महल का निर्माण बाजबहादुर ने रानी रूपमती के लिए कराया था। इसी के साथ ही सैनिकों के लिए मांडू की सुरक्षा व्यवस्था पर नजर रखने के बेहतर स्थान के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता था।
कहा जाता है कि रानी रूपमती सुबह ऊठकर मां नर्मदा के दर्शन करने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करती थी। अत: रूपमती के नर्मदा दर्शन को सुलभ बनाने हेतु बाजबहादुर ने ऊंचाई पर स्थित इस महल का निर्माण कराया था।
बाज बहादुर का महल : बाज बहादुर के महल का निर्माण 16वीं शताब्दी में किया गया था। इस महल में विशाल आंगन व हॉल बने हुए हैं। यहां से हमें मांडू का सुंदर नजारा देखने को मिलता है।