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सोमवार, 21 जुलाई 2014

सावन के सोमवार का उपाय: दांपत्य जीवन में प्रेम लाए

ज्योतिष शास्त्र के दिन-शास्त्रों में सावन के सोमवार का सर्वाधिक महात्म्य है। इस महीने में सोमवार के दिन शिव आराधना का विशेष महत्व है। सावन को मनोकामनाओं की पूर्ति का महीना भी कहा गया है। ज्योतिष के अनुसार इस महीने की एक विशेषता यह भी है कि इसका कोई भी दिन और व्रत शून्य नहीं होता। वार प्रणाली के अनुसार सोम अर्थात चंद्रमा को हिमांशु की संज्ञा दी जाती है। शब्द हिमांशु का अर्थ बर्फ की तरह ठंडा और कर्पूर की तरह उज्ज्वल होता है। चंद्रमा की पूजा भी स्वयं परमेश्वर शिव को समर्पित होती है क्योंकि चंद्रमा का निवास भी भुजंग भूषण शिव का मस्तक है। श्रावण मास व श्रवण नक्षत्र के स्वामी चंद्रमा हैं और चंद्र के स्वामी स्वयं शिव है। शास्त्रों में शिव को चन्द्रशेखर और चन्द्रमोलेश्वर कहकर संबोधित किया गया है।सावन के सोमवार का उपाय:  दांपत्य जीवन में प्रेम लाए
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार दांपत्य जीवन में चंद्रमा और शुक्र ग्रह का अत्यधिक महत्व है। शुक्र अगर भोग और विलासिता का ग्रह है तो चंद्रमा मन और प्रेम का ग्रह है। सुखी दाम्पत्य हेतु शारीरिक आकर्षण से बढ़कर पति-पत्नी के बीच मानसिकता मिलना और पारस्परिक प्रेम का होना अत्यधिक आवश्यक है। कालपुरुष सिद्धांत अनुसार किसी भी जातक की कुण्डली में चंद्रमा का मूल स्थान चौथा घर जो घर और ग्रहस्थी को दर्शता है। चंद्रमा का उच्च स्थान व्यक्ति की कुण्डली का दूसरा घर जो सुख और धन को दर्शता है तथा चंद्रमा का पक्का घर व्यक्ति की कुण्डली का सातवां स्थान जो प्रेम, भोग प्रणय और दांपत्य को दर्शता है।

जिस किसी व्यक्ति के दांपत्य जीवन में समस्याएं है अथवा पति-पत्नी के बीच में पारस्परिक प्रेम की कमी है अथवा जहां कहीं गृहस्थी की गाड़ी पटरी से उतर गई है उनके लिए सर्वश्रेष्ठ है सावन के सोमवार की शिव उपासना। सोमवार का दिन गौरी और शंकर को समर्पित होता है अर्थात सोमवार की शिव उपासना और उपायों से गौरी (पत्नी) और शंकर (पति) के बीच की दूरियां भी समाप्त होती है।

उपाय: सोमवार के दिन शाम के समय लगभग 5 बजे घर में विराजमान पारद शिवलिंग अथवा किसी ऐसे शिवालय जाएं जहां सफ़ेद शिवलिंग स्थापित हों। यह उपाय करते समय मन को एकाग्र रखें और पूरा ध्यान गौरी और शंकर के युग्मित स्वरुप पर लगाएं। मन से ऐसा संकल्प लें के मैं अपनी गृहस्थी और दांपत्य में सुख वृद्धि हेतु ये उपाय कर रहा हूं अथवा कर रही हूं। सफेद कपड़े पहने और पूजा हेतु सफेद आसन का प्रयोग करें। सर्वप्रथम गाय के शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करें। चंदन की धूप करें। शिवलिंग पर सफ़ेद कनेर के फूल चढ़ाएं। सफेद चंदन से शिवलिंग से त्रिपुंड बनाएं। साबूदाने की खीर का भोग लगाएं। गाय के दूध में देसी शक्कर, गंगाजल, मंदकिनी का इत्र और शतावरी मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करें और इस मंत्र का 108 बार जाप करें।

मंत्र: ॐ श्रीं अर्धनारीश्वराय प्रेमतत्त्वमूर्तये नमः शिवाय।।

उपाय पूरा होने पश्चात बची हुई खीर पति-पत्नी मिलकर बराबर खाएं। शिवलिंग पर चढ़े हुए सफेद कनेर के फूल शयन कक्ष में रखें। शिवलिंग से उतरा हुआ अभिषेक के द्रव्य से शयनकक्ष में छिड़काव करें। इस उपाय से निश्चित ही दांपत्य जीवन में पुनः प्रेम की गंगा बहेगी।

आचार्य कमल नंदलाल

सोमवार, 29 जुलाई 2013

घर बैठे करिए 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन

 घर बैठे करिए 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन
धर्म शास्त्रों के अनुसार सावन के महीने में भगवान शिव की विधि-विधान से की गई पूजा मनचाहा फल देती है। ऐसी मान्यता भी है कि इस महीने में यदि भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों के दर्शन किए जाएं तो जन्म-जन्म के कष्ट दूर हो जाते हैं। यही कारण है कि इस समय भारत के प्रमुख 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता हैं।


सावन के इस पवित्र महीने के पहले दिन जीवन मंत्र अपने पाठकों के लिए घर बैठे 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने का मौका लाया है।


1- सोमनाथ



सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत का ही नहीं अपितु इस पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर कि यह मान्यता है, कि जब चंद्रमा को दक्ष प्रजापति ने श्राप दिया था तब चंद्रमा ने इसी स्थान पर तप कर इस श्राप से मुक्ति पाई थी। ऐसा भी कहा जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं चन्द्रदेव ने की थी। विदेशी आक्रमणों के कारण यह 17 बार नष्ट हो चुका है। हर बार यह बिगड़ता और बनता रहा है।


2- मल्लिकार्जुन



यह ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्री शैल नाम के पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर का महत्व भगवान शिव के कैलाश पर्वत के समान कहा गया है। भारत के अनेक धार्मिक शास्त्र इसके धार्मिक और पौराणिक महत्व की व्याख्या करते है। कहते हैं कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से ही व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार जहां पर यह ज्योतिर्लिंग है, उस पर्वत पर आकर शिव का पूजन करने से व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्त होते है।
3- महाकालेश्वर

यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी कही जाने वाली उज्जैन नगरी में स्थित है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषता है कि ये एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। यहां प्रतिदिन सुबह की जाने वाली भस्मारती विश्व भर में प्रसिद्ध है। महाकालेश्वर की पूजा विशेष रूप से आयु वृद्धि और आयु पर आए हुए संकट को टालने के लिए की जाती है। उज्जैनवासी मानते हैं कि भगवान महाकालेश्वर ही उनके राजा हैं और वे ही उज्जैन कि रक्षा कर रहे है।


4- ओंकारेश्वर



ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर में स्थित है। जिस स्थान पर यह ज्योतिर्लिंग स्थित है, उस स्थान पर नर्मदा नदी बहती है और पहाड़ी के चारों ओर नदी बहने से यहां ऊँ का आकार बनता है। ऊँ शब्द की उत्पति ब्रह्मा के मुख से हुई है इसलिए किसी भी धार्मिक शास्त्र या वेदों का पाठ ऊँ के साथ ही किया जाता है। यह ज्योतिर्लिंग औंकार अर्थात ऊँ का आकार लिए हुए है, इस कारण इसे औंकारेश्वर नाम से जाना जाता है।
5- केदारनाथ



केदारनाथ स्थित ज्योतिर्लिंग भी भगवान शिव के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में आता है। यह उत्तराखंड में स्थित है। बाबा केदारनाथ का मंदिर बद्रीनाथ के मार्ग में स्थित है। केदारनाथ समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। केदारनाथ का वर्णन स्कन्द पुराण एवं शिव पुराण में भी मिलता है। यह तीर्थ भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है, जिस प्रकार कैलाश का महत्व है उसी प्रकार का महत्व शिव जी ने केदार क्षेत्र को भी दिया है।
6- भीमाशंकर

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पूणे जिले में सहाद्रि नामक पर्वत पर स्थित है। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के विषय में मान्यता है कि जो भक्त श्रद्वा से इस मंदिर के प्रतिदिन सुबह सूर्य निकलने के बाद दर्शन करता है, उसके सात जन्मों के पाप दूर होते है तथा उसके लिए स्वर्ग के मार्ग खुल जाते है।
7- काशी विश्वनाथ



विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह उत्तर प्रदेश के काशी नामक स्थान पर स्थित है। काशी सभी धर्म स्थलों में सबसे अधिक महत्व रखती है इसलिए सभी धर्म स्थलों में काशी का अत्यधिक महत्व कहा गया है। इस स्थान की मान्यता है, कि यह स्थान सदैव बना रहेगा अगर कभी पृथ्वी पर किसी तरह की कोई प्रलय आती भी है तो इसकी रक्षा के लिए भगवान शिव इस स्थान को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे और प्रलय के टल जाने पर काशी को इसके स्थान पर रख देगें।
8- त्रयम्बकेश्वर

यह ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के करीब महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग के सबसे अधिक निकट ब्रह्मागिरि नाम का पर्वत है। इसी पर्वत से गोदावरी नदी शुरु होती है। भगवान शिव का एक नाम त्रयम्बकेश्वर भी है। कहा जाता है कि भगवान शिव को गौतम ऋषि और गोदावरी नदी के आग्रह पर यहां ज्योतिर्लिंग रूप में रहना पड़ा।


9- वैद्यनाथ



श्री वैद्यनाथ शिवलिंग का समस्त ज्योतिर्लिंगों की गणना में नौवाँ स्थान बताया गया है। भगवान श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मन्दिर जिस स्थान पर अवस्थित है, उसे वैद्यनाथधाम कहा जाता है। यह स्थान झारखण्ड प्रान्त, पूर्व में बिहार प्रान्त के सन्थाल परगना के दुमका नामक जनपद में पड़ता है।


10- नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के बाहरी क्षेत्र में द्वारिका स्थान में स्थित है। धर्म शास्त्रों में भगवान शिव नागों के देवता है और नागेश्वर का पूर्ण अर्थ नागों का ईश्वर है। भगवान शिव का एक अन्य नाम नागेश्वर भी है। द्वारका पुरी से भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी 17 मील की है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा में कहा गया है कि जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यहां दर्शनों के लिए आता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
11- रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग

यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरं नामक स्थान में स्थित है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ-साथ यह स्थान हिंदुओं के चार धामों में से एक भी है। इस ज्योतिर्लिंग के विषय में यह मान्यता है, कि इसकी स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी। भगवान राम के द्वारा स्थापित होने के कारण ही इस ज्योतिर्लिंग को भगवान राम का नाम रामेश्वरम दिया गया है।


12- घृष्णेश्वर मन्दिर

घृष्णेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के समीप दौलताबाद के पास स्थित है। इसे घृसणेश्वर या घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। दूर-दूर से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं और आत्मिक शांति प्राप्त करते हैं। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएँ इस मंदिर के समीप स्थित हैं। यहीं पर श्री एकनाथजी गुरु व श्री जनार्दन महाराज की समाधि भी है।