ECLUSIVE...बाड़मेर लाशो की कीमत लगा मानवीय संवेदनाए ख़त्म की कंपनियों ने
बाड़मेर कभी अपनी लोक संस्कृति और परम्न्पराव के लिए जाना जाने वाला रेगिस्तानी जिला बाड़मेर देशी विदेशियों कंपनियों के फेर में मानवीय संवेदनाए भूल कर शवो की कीमत लगाने के घ्रमित कार्यो को अंजाम दे रहा हें। पैसो के लालच में लोग अपने रिश्तेदारों और पत्रिजानो के शवो की कीमत लगा कर पैसा बटोरने में थोड़ी भी शर्म महसूस नहीं कर रहे। निजी कंपनियों ने जो लालच का बीज बद्स्मेर वासियों के मन में बोया था आज पूरा पेड़ बन कर पुरे समाज को निगल रहा हें। कंपनियों द्वारा लालच रूपी नोटों की थैलिय परोस अपनी गलतियों पर पर्दा डालने के लिए बाड़मेर की जनता का बेजा इस्तेमाल कर रही हें वही जनता भी थोड़े से पैसो के लालच में अपना जमीर बेच रहे हें। कभी आदिवासी क्षेत्रो में मौताणे की परंपरा थी। कभी दुर्घटना या में कोई व्यक्ति दम तोड़ देता तो उसका शव रख उसके मुआवजे की मांग कर लेते। वो आदिवासी थे जिन्हें किसी समझदार श्रेणी में समाज नहीं रखता। मौताणे की घटनाओ पर अक्सर राजनेता हो हल्ला करते ,मगर अब इस परंपरा का चलन बाड़मेर जैसे शांतप्रिय इलाके में धड़ल्ले से हो रहा हें। जहा कंपनी के शेत्र में या ब्बाहर किसी की मौत हो जाये ,तो शव को सड़क पर रख उसकी कीमत वसूलने में जुट जाते हें ,बेसक मुआवजा मृतक के आश्रितों का वाजिब हक़ हें मगर यह हक़ मांगने का तरीका बिलकुल गलत हें। बाड़मेर की जनता को केयर्न और जिंदल कंपनियों ने शवो के सौदे करने तो सिखाये ही साथ ही जिले की क़ानून व्यवस्था को भी चुनौती देना सिखा दिया। बात बात पर राष्ट्रिय राजमार्ग जाम करना ,गाडियों के शीशे तोड़ना। सड़क जाम करना , टायर जलना ,रस्ते जाम करना ,उपद्रव फैलाना सब कुछ सिखा दिया जनता को। पिछले पांच छ सालो में बाड़मेर में कोई एक दर्जन से अधिक मामले हो गए जिसके चलते किसी कंपनी में कार्यरत व्यत्कि की मौत हो गयी ,.शव अस्पताल पहुंचे उससे पहले मुआवजे को लेकर शव सड़को पर रख उसकी कीमत लगाने लग जाते हें। इसमे जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन और जन प्रतिनिधि बराबर के दोषी हे जो ऐसे कानून तोड़ने वाले लोगो को शह देते हें। कंपनियों के अधिकारियो और आन्दोलन करियो के बीच बताकर अपनी भूमिका निभाते हें जहा पुलिस को कानून तोड़ने वालो के खिलाफ कार्यवाही अमल में लाने की बजे उन्हें शह देकर लाशो के सौदे तय किये जाते हें ,यह तो नहीं थी हमारे थार की थाती। आखिर लोग लाशो के पैसो से पूरी जिंदगी निकल लेंगे ,क्यूँ बाड़मेर के लोग मानवता औरसंवेदनशीलता छोड़ पशु बन गए। क्यूँ थोड़े से लालच के कारण मरे हुए व्यक्ति की आत्मा को शांति प्रदान करने की बजाय कीमत लगाने में जुटे रहते हें।बीस से पेंतीस लाख रुपये कीमत लगते हें शवो के। जब उच्च न्यायलय ने स्पष्ट आदेश कर रखा हें की हाई जाम करने वालो से सख्ती से निपटा जाए तो फिर पुलिस उन्हें क्यूँ पुचकारती हें ,क्यूँ अनुनय विनय करती हें समझौते के लिए। अगर कंपनी की गलती से किसी की मृत्यु हुई हें तो नियमानुसार उसे मुआवजा देना ही पडेगा ,मगर बाड़मेर के लोगो ने जो रास्ता मुआवजे लेने के लिए चुना हें उससे इंसानियत शर्षर होती हें एक बार नहीं बार बार। अभी भी वक़्त हें। कंपनियों के हाथो में खेलने की बजे कंपनियों की कमजोरियों को उजागर कर उनके खिलाफ कार्यवाही अमल में लाने का प्रयास करना चाहिए। लाशोकी कीमत लगाना थी नहीं।
बाड़मेर कभी अपनी लोक संस्कृति और परम्न्पराव के लिए जाना जाने वाला रेगिस्तानी जिला बाड़मेर देशी विदेशियों कंपनियों के फेर में मानवीय संवेदनाए भूल कर शवो की कीमत लगाने के घ्रमित कार्यो को अंजाम दे रहा हें। पैसो के लालच में लोग अपने रिश्तेदारों और पत्रिजानो के शवो की कीमत लगा कर पैसा बटोरने में थोड़ी भी शर्म महसूस नहीं कर रहे। निजी कंपनियों ने जो लालच का बीज बद्स्मेर वासियों के मन में बोया था आज पूरा पेड़ बन कर पुरे समाज को निगल रहा हें। कंपनियों द्वारा लालच रूपी नोटों की थैलिय परोस अपनी गलतियों पर पर्दा डालने के लिए बाड़मेर की जनता का बेजा इस्तेमाल कर रही हें वही जनता भी थोड़े से पैसो के लालच में अपना जमीर बेच रहे हें। कभी आदिवासी क्षेत्रो में मौताणे की परंपरा थी। कभी दुर्घटना या में कोई व्यक्ति दम तोड़ देता तो उसका शव रख उसके मुआवजे की मांग कर लेते। वो आदिवासी थे जिन्हें किसी समझदार श्रेणी में समाज नहीं रखता। मौताणे की घटनाओ पर अक्सर राजनेता हो हल्ला करते ,मगर अब इस परंपरा का चलन बाड़मेर जैसे शांतप्रिय इलाके में धड़ल्ले से हो रहा हें। जहा कंपनी के शेत्र में या ब्बाहर किसी की मौत हो जाये ,तो शव को सड़क पर रख उसकी कीमत वसूलने में जुट जाते हें ,बेसक मुआवजा मृतक के आश्रितों का वाजिब हक़ हें मगर यह हक़ मांगने का तरीका बिलकुल गलत हें। बाड़मेर की जनता को केयर्न और जिंदल कंपनियों ने शवो के सौदे करने तो सिखाये ही साथ ही जिले की क़ानून व्यवस्था को भी चुनौती देना सिखा दिया। बात बात पर राष्ट्रिय राजमार्ग जाम करना ,गाडियों के शीशे तोड़ना। सड़क जाम करना , टायर जलना ,रस्ते जाम करना ,उपद्रव फैलाना सब कुछ सिखा दिया जनता को। पिछले पांच छ सालो में बाड़मेर में कोई एक दर्जन से अधिक मामले हो गए जिसके चलते किसी कंपनी में कार्यरत व्यत्कि की मौत हो गयी ,.शव अस्पताल पहुंचे उससे पहले मुआवजे को लेकर शव सड़को पर रख उसकी कीमत लगाने लग जाते हें। इसमे जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन और जन प्रतिनिधि बराबर के दोषी हे जो ऐसे कानून तोड़ने वाले लोगो को शह देते हें। कंपनियों के अधिकारियो और आन्दोलन करियो के बीच बताकर अपनी भूमिका निभाते हें जहा पुलिस को कानून तोड़ने वालो के खिलाफ कार्यवाही अमल में लाने की बजे उन्हें शह देकर लाशो के सौदे तय किये जाते हें ,यह तो नहीं थी हमारे थार की थाती। आखिर लोग लाशो के पैसो से पूरी जिंदगी निकल लेंगे ,क्यूँ बाड़मेर के लोग मानवता औरसंवेदनशीलता छोड़ पशु बन गए। क्यूँ थोड़े से लालच के कारण मरे हुए व्यक्ति की आत्मा को शांति प्रदान करने की बजाय कीमत लगाने में जुटे रहते हें।बीस से पेंतीस लाख रुपये कीमत लगते हें शवो के। जब उच्च न्यायलय ने स्पष्ट आदेश कर रखा हें की हाई जाम करने वालो से सख्ती से निपटा जाए तो फिर पुलिस उन्हें क्यूँ पुचकारती हें ,क्यूँ अनुनय विनय करती हें समझौते के लिए। अगर कंपनी की गलती से किसी की मृत्यु हुई हें तो नियमानुसार उसे मुआवजा देना ही पडेगा ,मगर बाड़मेर के लोगो ने जो रास्ता मुआवजे लेने के लिए चुना हें उससे इंसानियत शर्षर होती हें एक बार नहीं बार बार। अभी भी वक़्त हें। कंपनियों के हाथो में खेलने की बजे कंपनियों की कमजोरियों को उजागर कर उनके खिलाफ कार्यवाही अमल में लाने का प्रयास करना चाहिए। लाशोकी कीमत लगाना थी नहीं।