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बुधवार, 29 जनवरी 2014

मेड़ता में मिलीं 10वीं शताब्दी की धरोहरें और शिलालेख!


मेड़ता में मिलीं 10वीं शताब्दी की धरोहरें और शिलालेख!


धरोहरों का करेंगे संरक्षण 1857 की क्रांति के वीरों के स्मारक जीर्ण-शीर्ण


मीरा शोध संस्थान ने सर्वेक्षण कर खोजे कई शिलालेख, इतिहासकारों से कराएंगे परीक्षण




   मेड़ता सिटी  मीरा शोध संस्थान ने प्रथम चरण में मेड़ता उपखंड में 10वीं शताब्दी तक के कई महत्वपूर्ण शिलालेख और पुरातात्विक धरोहरों की खोज की है जो राजस्थान के इतिहास कई नई कडिय़ों को खोल रहे हैं। इनमें सबसे खास खोज 1062 ईस्वी का एक शिलालेख है। विडंबना यह है कि कई गांवों में पड़ी इन धरोहरों का कोई धणी धोरी नहीं है। यह शोध और सर्वेक्षण मीरा शोध संस्थान के संस्थापक और अध्यक्ष दीपचंद सुथार व उपाध्यक्ष नरेंद्र सिंह ने मिलकर किया है। सुथार ने बताया कि प्रथम चरण में जिले की मेड़ता, रियां बड़ी व डेगाना क्षेत्र के जसनगर, जलवाणा, चंपाखेड़ी, सिरासना, धौलेराव, चुई, रेण, डाबरियाणी, खेडूली, गंगारड़ा, भंवाल सहित अन्य गांवों से करीब 50 शिलालेख खोजे गए हैं।
राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के इतिहासकार नरेंद्र सिंह ने बताया कि इन गांवों के शोध एवं सर्वेक्षण से बरसों से गुमनाम अनेक पुरा संपदाओं और उनसे जुड़ी ऐतिहासिक जानकारी भी मिली है। कई धरोहरें ऐसी भी हैं जो किंवदंतियों व जनश्रुति में तो जीवित हैं लेकिन इतिहास के पन्नों में आज तक दर्ज नहीं हैं। मारवाड़ का यह क्षेत्र प्राचीन शिलालेखों का विपुल भंडार है। प्राचीन बस्तियों के अलावा कई युद्ध भी इस धरा पर हुए हैं। इन युद्धों में हुए शहीदों की स्मृतियां भी पाई गई हैं। उस काल में कई शहीदों के स्मारक बनाए गए थे। इन स्मारकों की प्रामाणिकता साबित करने के लिए पर्यटन, पुरातत्वविदों और इतिहासकारों की सेवाएं ली जाएंगी। इन नई खोजों को इतिहास में स्थान मिल सकेगा।
॥मीरा शोध संस्थान का यह प्रयास अनूठा और प्रेरणादायक है। इस शोध में मिली जानकारी को पुरातत्व व संग्रहालय विभाग को भेजकर इन धरोहरों के संरक्षण का प्रयास किया जाएगा।  -सोहनलाल चौधरी, अधीक्षक, पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग, अजमेर
> मेड़ता सिटी. डांगावास में 1857 की क्रांति के शहीदों के स्मारक को देखते दीपचंद सुथार व नरेंद्र सिंह तथा घटेला की ढाणी में मिला 1062 ईस्वी का शिलालेख।

प्राचीन राजवंश के प्रमाण मिले 
शोध एवं सर्वेक्षण के दौरान मिले इन शिलालेखों से ज्ञात होता है कि मारवाड़ क्षेत्र में राजसत्ता में राठौड़ों का अभ्युदय होने से पहले यहां गुहिल, चौहान, सांखला, पंवार, इंदा, हुल व दहिया वंश का आधिपत्य रहा था। चुई, डावोली, डाबरियाणी, धौलेराव, ढावा, जारोड़ा, मेड़ता, घटेला की ढाणी, गंगारड़ा व जसनगर में गोरधन स्तंभ व लेख खोजने में सफलता मिली है।

महाभारतकालीन अवशेष भी मिले 
सर्वेक्षण एवं शोध अभियान के तहत डेगाना तहसील के रेवंत, तामडोली व आछोजाई गांव में महाभारतकालीन राजा परीक्षित व जन्मेजय, जसनगर (केकींद) में उज्जैन के सम्राट वीर विक्रमादित्य, राजा भर्तृहरि, मोर्रा में राजा मोरध्वज की नगरी व कुराड़ा में कुषाणकालीन सभ्यता के भी पुरा अवशेष मिले हैं।

ऐतिहासिक मेड़ता नगरी के सर्वेक्षण के दौरान राव वर सिंह, राव दूदा, जयमल मेड़तिया के अलावा जोधपुर के राजा विजय सिंह, अभय सिंह, जसवंत सिंह, मान सिंह, दिल्ली के बादशाह औरंगजेब के लेख के साथ 1857 के क्रांतिवीर रियां के शेर सिंह, आऊवा के कुशाल सिंह की छतरी भी मेड़ता में होने की जानकारी मिली है। शिलालेखों में पुरोहित बैजनाथ, सिंघवी, भींवराज, धनराज, नेकापुरी गोसाईं, मंत्री मंछाराम, रुघनाथ भंडारी आदि भामाशाहों द्वारा दिए गए योगदान के कई लेख मिले हैं।