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गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

ऑस्ट्रेलिया की सारा मैंडी मांगणियार लोक गायन










ऑस्ट्रेलिया की सारा मैंडी मांगणियार लोक गायन

भारत के थार मरुस्थल की सतरंगी सांस्कृतिक विरासत और गीत-संगीत ने ऑस्ट्रेलिया की सारा मैंडी को इतना प्रभावित किया कि वो राजस्थानी गीत सीखने बाड़मेर चली आईं.


मरुस्थल में आज जब मांगणियार लोक गायकों की स्वर लहरी गूँजती है तो उसमें सारा की आवाज़ का माधुर्य भी शामिल होता है.


सारा ने मांगणियार बिरादरी की प्रसिद्ध कलाकार रुक़मा को अपना उस्ताद बनाया और बड़ी लगन से राजस्थानी गीतों का रियाज़ किया.


लगभग एक साल की मेहनत के बाद सारा जब ठेठ मारवाड़ी ज़बान में हिचकी, निंबूड़ा और पधारो म्हारो देश जैसे गीतों को स्वर देती है तो लोग हैरत में पड़ जाते हैं.


वो रुक़मा के साथ जयपुर विरासत उत्सव जैसे कार्यक्रमों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी हैं.

सारा का इरादा अब अपने वतन में अपनी गायकी का जादू बिखेरने का है.



वह ऑस्ट्रेलिया में मरुस्थल के इन मीठे गीतों का लोगों को प्रशिक्षण भी देंगी.


सारा कहती हैं, " मुझे इन गीतों के बोल, भावार्थ, लय और प्रस्तुति का अंदाज़ बहुत अच्छा लगता है. मैंने इन गीतों का अनुवाद समझा तो इनकी गहराई ने मुझे बहुत प्रभावित किया. "


रुक़मा भी अपने इस विदेशी शागिर्द की कला के प्रति ललक और समर्पण से बेहद खुश हैं.


रुक़मा के दोनों पैर बचपन से पोलियोग्रस्त है. रुक़मा की मुसीबत तब और बढ़ गई जब वो विधवा हो गईं.


रुक़मा मांगणियार बिरादरी की पहली महिला हैं जिसने सामाजिक वर्जना को तोड़कर गायन का काम शुरु किया.


संकल्प और समर्पण


रुक़मा कहती हैं," सारा ने बहुत मेहनत की है. हालाँकि भाषा एक समस्या थी लेकिन सारा के संकल्प ने भाषा की बाधा को हरा दिया. "


सारा जहाँ भी कार्यक्रम प्रस्तुत करती हैं उन्हें रुक़मा की जुगलबंदी की ज़रूरत पड़ती है.


रुक़मा का ज़ोर अब सारा को अपने बूते गायकी का कार्यक्रम पेश करने की शक्ति और सामर्थ्य देने पर है.



सारा कहती हैं, " राजस्थान का गीत-संगीत ऑस्ट्रेलिया या पश्चिम के गीत-संगीत से बिल्कुल भिन्न है. "


सारा इन दो संगीत विधाओं की परंपरा पर प्रयोग भी करना चाहती है.


रुक़मा कहती हैं, " कोई उस्ताद अपने शागिर्द को अच्छा प्रदर्शन करते हुए देखता है तो बेहद खुश होता है. सारा जब अपनी कला का प्रदर्शन करती है तो मुझे बेहद खुशी होती है. "




रविवार, 26 दिसंबर 2010

लोक व सुफी गायकी का पर्याय हैं फकीरा खान







लोक व सुफी गायकी का पर्याय हैं फकीरा खान

बाड़मेर: पश्चिमी राजस्थान की धोरा धरती की कोख से ऐसी प्रतिभाएं उभर कर सामने आई हैं, जिन्होंने ‘थार की थळी’ का नाम सात समंदर पार रोशन कर लोक गायिकी को नए शिखर प्रदान किए हैं। इसी कड़ी में एक अहम नाम है-फकीरा खान। लोक गायकी में सुफियाना अन्दाज का मिश्रण कर उसे नई उंचाईयां देने वाले लोक गायक फकीरा खान ने अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर अपना एक मुकाम बनाया है।

राजस्‍थान के सीमावर्ती बाड़मेर जिले के छोटे से गांव विशाला में सन 1974 को मांगणियार बसर खान के घर में फकीरा खान का जन्‍म हुआ था। उनके पिता बसर खान शादी-विवाह के अवसर पर गा-बजाकर परिवार का पालन-पोषण करते थे। बसर खान अपने पुत्र को उच्च शिक्षा दिलाकर सरकारी नौकरी में भेजना चाहते थे ताकि परिवार को मुफलिसी से छुटकारा मिले, मगर कुदरत को कुछ और मंजूर था।

आठवीं कक्षा उर्तीण करने तक फकीरा अपने पिता के सानिध्य में थोड़ी-बहुत लोक गायकी सीख गए थे। जल्दी ही फकीरा ने उस्ताद सादिक खान के सानिध्य में लोक गायकी में अपनी खास पहचान बना ली। उस्ताद सादिक खान की असामयिक मृत्यु के बाद फकीरा ने लोक गायकी के नये अवतार अनवर खान बहिया के साथ अपनी जुगलबन्दी बनाई। उसके बाद लोक गीत-संगीत की इस नायाब जोड़ी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्‍होंने लोक संगीत की कला को सात समंदर पार ख्याति दिलाई। फकीरा-अनवर की जोड़ी ने परम्परागत लोक गायकी में सुफियाना अन्दाज का ऐसा मिश्रण किया कि देश-विदेश के संगीत प्रेमी उनके फन के दीवाने हो गए। फकीरा की लाजवाब प्रतिभा को बॉलीवुड़ ने पूरा सम्मान दिया।

फकीरा ने ‘मि. रोमियों’, ‘नायक’, ‘लगान’, ‘लम्हे’ आदि कई फिल्मों में अपनी आवाज का जलवा बिखेरा। फकीरा खान ने अब तक उस्ताद जाकिर हुसैन, भूपेन हजारिका, पं. विश्वमोहन भट्ट, कैलाश खैर, ए.आर. रहमान, आदि ख्यातिनाम गायकों के साथ जुगलबंदियां देकर अमिट छाप छोडी। फकीरा ने 35 साल की अल्प आयु में 40 से अधिक देशों में हजारों कार्यक्रम प्रस्तुत कर लोक गीत-संगीत को नई उंचाइयां प्रदान की। फकीरा के फन का ही कमाल था कि उन्‍होंने फ्रांस के मशहूर थियेटर जिंगारो में 490 सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर राजस्थान की लोक कला की अमिट छाप छोड़ी।

फकीरा ने अब तक पेरिस, र्जमनी, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया, फ्रांस, इजरायल, यू.एस.ए बेल्जियम, हांगकांग, स्पेन, पाकिस्तान सहित 40 से अधिक देशों में अपने फन का प्रदर्शन किया। मगर, फकीरा राष्‍ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस पर वर्ष 1992, 93, 94, 2001, 2003 तथा 2004 में नई दिल्‍ली के परेड ग्राउंड में दी गई अपनी प्रस्तुतियों को सबसे यादगार मानते हैं।

फकीरा खान ने राष्‍ट्रीय स्तर के कई समारोहों में शिरकत कर लोक संगीत का मान-सम्मान बढ़ाया है। उन्होंने समस्त आकाशवाणी केन्द्रों, दूरदर्शन केन्द्रों, डिश चैनलों पर अपनी प्रस्तुतियां दी हैं।

फकीरा खान ने सितम्बर 2009 में जॉर्डन के सांस्कृतिक मंत्रालय द्वारा आयोजित ‘द सुफी फेस्टिवल’ में अपनी लोक गायिकी से धूम मचा दी। उनके द्वारा गाये राजस्थान के पारम्परिक लोक गातों के साथ सुफियाना अन्दाज को बेहद पसंद किया गया।

फकीरा लोक गीत-संगीत की मद्धम पड़ती लौ को जिलाने के लिए मांगणियार जाति के बच्चों को पारम्परिक जांगड़ा शैली के लोक गीतों, भजनों, लोक वाणी और सुफियाना शैली का प्रशिक्षण देकर नई पौध तैयार कर रहे हैं। फकीरा ने हाल में ही ‘वर्ल्‍ड म्यूजिक फैस्टिवल’, शिकागो द्वारा आयोजित 32 देशों के 57 ख्यातिनाम कलाकारों के साथ लोक संगीत की प्रस्तुतियां दे कर परचम लहराया। फकीरा खान को ‘दलित साहित्य अकादमी’ द्वारा सम्मानित किया गया। राज्य स्तर पर कई मर्तबा समानित हो चुके फकीरा खान के अनुसार, लोक संगीत खून में होता है, घर में जब बच्चा जन्म लेता है और रोता है, तो उसके मुंह से स्वर निकलते हैं।

उनके अनुसार, लोक गीत संगीत की जांगड़ा, डोढ के दौरान लोक-कलाकारों के साज बाढ में बह गए थे। फकीरा खान ने खास प्रयास कर लगभग दो हजार लोक कलाकारों को सरकार से निःशुल्क साज दिलाए।