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सोमवार, 19 अगस्त 2013

कन्या वध वाले गाँव बेटियों को अफसर बनाने में जुटे

कन्या वध वाले गाँव बेटियों को अफसर बनाने में जुटे 
जिस जमी को बेटियों की कब्रगाह कहा जाता था उसी रेतीले  राजस्थान के देवड़ा गाँव के युवा  अपने पुरखो के कलंक को धोने के साथ साथ आज बेटी को न केवल बचाने का बल्कि उसके सम्पूर्ण लालन पोषण का जिम्मा अपने कंधे पर उठा चुके है . बेटियों को पढ़ा लिखा कर अफसर बनाने में लग गए हें। उनका यह काम न केवल काबिल-ए- गोर है बल्कि काबिल -ए- तारीफ है . 
 
चन्दन सिंह भाटी 


जैसलमेर बाडमेर जिस गाँव पर बच्चियों को पैदा होते ही मरने का कलंक लगा था आज उन्ही गाँवो की बेतिया पढ़ लिख कर अफसर बन्ने की तैयारियों में जुटी हें। युवाओं की पहल रंग लाई जैसलमेर के भाटी राजपूतो के बसिया क्षेत्र में। भाटी  राजपूत जाती बाहुल्य इन तेरह गाँवो के समूह को बसिया क्षेत्र कहते हें। 

बाडमेर जैसलमेर जिलों की सरहद पर बसे देवडा गांव में अब किसी भाई की कलाई सूनी नही हैं।कई सदियों तक इस गांव के ठाकुरों के परिवारों में किसी कन्या का जन्म नही होने दिया,मगर बदलाव और जागरूकता की बयार के चलतें इस गांव में अब हर आंगन बेटी की किलकारियॉ गूॅज रही हैं।इस गांव के भाईयों की कलाईयॉ सदियों तक सूनी रही।इसी गाँव में एक सौ बीस साल बाद भाटियो के घर बारात आई थी। सामाजिक परम्पराओं और कुरीतियों के चलते इस गॉव सहित आसपास के दर्जनों गांवों सिंहडार,रणधा,मोडा,बहिया,कुण्डा,गजेसिंह का गांव,तेजमालता,झिनझिनियाली,मोघा,चेलक में कन्या के जन्म लेते ही उसें मार दिया जाता था।जिसके चलतें ये गांव बेटियों से वीरान थे।कोई एक दशक पहलें गांव में ठाकुर इन्द्रसिह के घर पहली बारात आई थी।जो पूरे देश में सूर्खियों में छाई थी। 

 बसिया क्षेत्र में अब इस कलंक से निजात मिली हें .बसिया में अब कन्याओं को लक्ष्मी का रूप मान उन्हें उचित मान सम्मान देकर पढ़ाया लिखाया जा रहा हें .देवड़ा के युवा उत्तम सिंह भाटी ने बताया की देवड़ा में कन्या के प्रति अब काफी जागरूकता आई हें .अब हर घर में बालिकाए अपनी जिंदगी जी रही हें ,उन्हें पढाया लिखाया जा रहा हें ,उच्च शिक्षा के लिए आगे बड़े शहरों में भी भेजा जा रहा हें ,बसिया के
अब इस गांव में शिक्षा तथा सामाजिक जागरूकता के चलतें बेटियों को बडे नाज से पाला जा रहा हैं।इस गांव के हर परिवार में बेटी हैं।गांव की जागरूकता की सबसे बडी मिशाल हैं।इस गांव में उच्च प्राथमिक स्तर का विद्यालय है।पांच साल पहले इस विद्यालय में एक भी बेटी का नामांकन नही था।आज इस विद्यालय में लगभग 35 बालिकाऐं शिक्षित हो रही हैं।विद्यालय के प्रधानाध्यापक देवाराम मेघवाल ने बताया कि इतना बदलाव नई पी के युवाओं के शिक्षित होने तथा शहरी माहौल में रहने के कारण आया हैं।गांव के युवा शिक्षित हो गयें सरकारी सेवाओं के साथ,वकालात,व्यापार में आ गयें।
इस गांव के बुजुर्ग मलसिंह भाटी ने बताया कि विभाजन से पहले जैसलमेर के इन गांवों में अफगानी आताताइयों का आंतक था।अफगानी हुर लडकियों को उठा कर ले जाते थे।इसी से बचने के लिऐं भाटीयों के 13 गांवों ने सामुहिक निर्णय किया था कि घर में कन्या का जन्म नहीं होने देंगें।इसके बाद इसने कुप्रथा का जन्म ले लिया।सदियों तक इन गांवों में कन्या का जन्म होने नही दिया।रक्षा बन्धन का पता गांव में तब लगता जब शहर से ब्राहमण राखी बांधने गांव आता।अब बदलाव की बयार चल पडी हैं कि सिंहडार में 20,देवडा में 43,बहिया में 30 कन्याऐं घरों की रोशनी बन  रही हैं।बहुत खुशी होती कि लक्ष्मी रूप कन्याऐं हमारे आंगन की शोभा बढ़ा रही हैं।

शहरी क्षैत्र का सकारात्मक प्रभाव के कारण आज घरों में कन्याऐं बडें नाज से पल रही हैं।पंचायत समिति के पूर्व सदस्य दुर्जनसिंह भाटी नें बताया कि सामाजिक जागरूकता और शिक्षा के कारण गांव में कुरीतियों का अन्त हो गया।जिन घरों में सदियों से बालिकाऐं नही थी,उन घरों के ऑगन बेटियों की खुश्बु से महक रहें हैं। हमारी कलाईयों पर कभी राखी नही बंधी।हमारी कलाईयॉ आज भी सूनी हैं।मगर आज की पीढ़ी  के हर भाई की कलाई पर राखी सजती हैे।

इस गांव की बुजुर्ग महिला श्रीमति राम  कंवर ने बताया कि दस साल पहले तक इस गांव में राखी का त्यौहार मनाया ही नही जाता था क्योकि बहनें थी ही नहीं।अब हर घर में कन्या होने के कारण विशोष रूप से राखी सामुहिक रूप से मनाया जाता हैं।अब पुरानी बातें काला इतिहास हो गयी।अब नई उम्र की नइ र्फुसलें हैं।जी सोरो होवे जदै छोरियों नें स्कूल जावते देखा।गांव में आया बदलाव कन्या वघ के कलंक को धोने के लियें काफी हैं।यह बदलाव केवल देवडा गांव में ही नही अपितु आसपास के सभी उन गांवों में आया हैं,जहॉ कन्या को जन्म लेते ही मारने की कुर्प्रथा थीा।इन गांवों में रक्षा बन्धन का पर्व बडी धूमधाम से मनाया  जाता हैं।परम्परागत रूप से मांगणियार गाने बजाने आते हैं ,हंसी खुशी से बहनें भाइयों के राखी बांधती हें।कल तक कन्याओं के वध करने वाले हाथ आज बडे नाज से कन्याओं को पाठशाला शिक्षा के लिऐं भेजते हैं।सिहडार गांव की दिव्या दसवी  कक्षामें तथा नेमु कंवर बाहरवी  वीं कक्षा में पढ रही हैं।इतना ही नहीं इन गाँवो की बालिकाएं बड़े शहरों में अफसर बनाने की तैयारियों में जुटी हें। दिव्या कंवर को उनके पिता दुर्जन सिंह भाटी ने प्रेरणा देकर एन सी सी की परीक्षा भी उतीर्ण कराई। दिव्या का कहना हें उसे सेना में अफसर बनाना हें। इसी सपने को पूरा करने के लिए अपने गाँव से कोसो दूर विद्या वाड़ी होस्टल में रह कर पढाई कर रही हें। यह बदलाव शकुन देने वाला हें। 

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बुधवार, 1 अगस्त 2012

बाडमेर जैसलमेर कन्या हत्या का कलंक धोने में जुटे देवड़ा के युवा





जैसलमेर के बसिया क्षेत्र में राजपूत परिवारों के आँगन में खिलते फूल 
कन्या हत्या  का कलंक धोने में जुटे देवड़ा के युवा
जिस जमी को बेटियों की कब्रगाह कहा जाता था उसी रेलिले राजस्थान के देवड़ा गाव के युवा  अपने पुरखो के कलंक को धोने के साथ साथ आज बेटी को न केवल बचने का बल्कि उसके सम्पूर्ण लालन पोषण का जिम्मा अपने कंधे पर उठा चुके है . उनका यह काम न केवल काबिल-ए- गोर है बल्कि काबिल -ए- तारीफ है . 
 जैसलमेर 

बाडमेर बाडमेर जैसलमेर जिलों की सरहद पर बसे देवडा गांव में अब किसी भाई की कलाई सूनी नही हैं।कई सदियों तक इस गांव के ठाकुरों के परिवारों में किसी कन्या का जन्म नही होने दिया,मगर बदलाव और जागरूकता की बयार के चलतें इस गांव में अब हर आंगन बेटी की किलकारियॉ गूॅज रही हैं।इस गांव के भाईयों की कलाईयॉ सदियों तक सूनी रही।सामाजिक परम्पराओं और कुरीतियों के चलते इस गॉव सहित आसपास के दर्जनों गांवों सिंहडार,रणधा,मोडा,बहिया,कुण्डा,गजेसिंह का गांव,तेजमालता,झिनझिनियाली,मोघा,चेलक में कन्या के जन्म लेते ही उसें मार दिया जाता था।जिसके चलतें ये गांव बेटियों से वीरान थे।कोई एक दशक पहलें गांव में ठाकुर इन्द्रसिह के घर पहली बारात आई थी।जो पूरे देश में सूर्खियों में छाई थी।आमिर खान के सत्मेव जयते के प्रथम प्रसारण के बाद एक बार फिर देवड़ा और बसिया क्षेत्र चर्चाओ में आ गया था .गत तीन माह में जैसलमेर में नवजात कन्याओं के चार शव बरामद भी हुए मगर इस बसिया क्षेत्र में अब इस कलंक से निजात मिली हें .बसिया में अब कन्याओं को लक्ष्मी का रूप मान उन्हें उचित मान सम्मान देकर पढ़ाया लिखाया जा रहा हें .देवड़ा के युवा उत्तम सिंह भाटी ने बताया की देवड़ा में कन्या के प्रति अब काफी जागरूकता आई हें .अब हर घर में बालिकाए अपनी जिंदगी जी रही हें ,उन्हें पढाया लिखाया जा रहा हें ,उच्च शिक्षा के लिए आगे बड़े शहरों में भी भेजा जा रहा हें ,बसिया के
अब इस गांव में शिक्षा तथा सामाजिक जागरूकता के चलतें बेटियों को बडे नाज से पाला जा रहा हैं।इस गांव के हर परिवार में बेटी हैं।गांव की जागरूकता की सबसे बडी मिशाल हैं।इस गांव में उच्च प्राथमिक स्तर का विद्यालय है।पांच साल पहले इस विद्यालय में एक भी बेटी का नामांकन नही था।आज इस विद्यालय में लगभग 35 बालिकाऐं शिक्षित हो रही हैं।विद्यालय के प्रधानाध्यापक देवाराम मेघवाल ने बताया कि इतना बदलाव नई पी के युवाओं के शिक्षित होने तथा शहरी माहौल में रहने के कारण आया हैं।गांव के युवा शिक्षित हो गयें सरकारी सेवाओं के साथ,वकालात,व्यापार में आ गयें।
इस गांव के बुजुर्ग मलसिंह भाटी ने बताया कि विभाजन से पहले जैसलमेर के इन गांवों में अफगानी आताताइयों का आंतक था।अफगानी हुर लडकियों को उठा कर ले जाते थे।इसी से बचने के लिऐं भाटीयों के 12 गांवों ने सामुहिक निर्णय किया था कि घर में कन्या का जन्म नहीं होने देंगें।इसके बाद इसने कुप्रथा का जन्म ले लिया।सदियों तक इन गांवों में कन्या का जन्म होने नही दिया।रक्षा बन्धन का पता गांव में तब लगता जब शहर से ब्राहमण राखी बांधने गांव आता।अब बदलाव की बयार चल पडी हैं कि सिंहडार में 20,देवडा में 43,बहिया में 30 कन्याऐं घरों की रोशनी बा रही हैं।बहुत खुशी होती कि लक्ष्मी रूप कन्याऐं हमारे आंगन की शोभा बा रही हैं।

शहरी क्षैत्र का सकारात्मक प्रभाव के कारण आज घरों में कन्याऐं बडें नाज से पल रही हैं।पंचायत समिति के पूर्व सदस्य दुर्जनसिंह भाटी नें बताया कि सामाजिक जागरूकता और शिक्षा के कारण गांव में कुरीतियों का अन्त हो गया।जिन घरों में सदियों से बालिकाऐं नही थी,उन घरों के ऑगन बेटियों की खुश्बु से महक रहें हैं। हमारी कलाईयों पर कभी राखी नही बंधी।हमारी कलाईयॉ आज भी सूनी हैं।मगर आज की पी के हर भाई की कलाई पर राखी सजती हैे।

इस गांव की बुजुर्ग महिला श्रीमति हरखा कंवर ने बताया कि दस साल पहले तक इस गांव में राखी का त्यौहार मनाया ही नही जाता था क्योकि बहनें थी ही नहीं।अब हर घर में कन्या होने के कारण विशोष रूप से राखी सामुहिक रूप से मनाया जाता हैं।अब पुरानी बातें काला इतिहास हो गयी।अब नई उम्र की नइ र्फुसलें हैं।जी सोरो होवे जदै छोरियों नें स्कूल जावते देखा।गांव में आया बदलाव कन्या वघ के कलंक को धोने के लियें काफी हैं।यह बदलाव केवल देवडा गांव में ही नही अपितु आसपास के सभी उन गांवों में आया हैं,जहॉ कन्या को जन्म लेते ही मारने की कुर्प्रथा थीा।इन गांवों में रक्षा बन्धन का पर्व बडी धूमधाम से मनायार जाता हैं।परम्परागत रूप से मांगणियार गाने बजाने आते हैं ,हशी खुशी से बहनें भाइयों के राखी बांधती हें।कल तक कन्याओं के वध करने वाले हाथ आज बडे नाज से कन्याओं को पाठशाला शिक्षा के लिऐं भेजते हैं।सिहडार गांव की दिव्या नवी कक्षामें तथा नेमु कंवर ग्यारवीं वीं कक्षा में पढ रही हैं।

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शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

अब इन गाँवो के भाइयो की कलाइयां सुनी नहीं रहती















अब इन गाँवो के भाइयो की कलाइयां सुनी नहीं रहती
बाडमेर बाडमेर जैसलमेर जिलों की सरहद पर बसे देवडा गांव में अब किसी भाई की कलाई सूनी नही हैं।कई सदियों तक इस गांव के ठाकुरों के परिवारों में किसी कन्या का जन्म नही होने दिया,मगर बदलाव और जागरूकता की बयार के चलतें इस गांव में अब हर आंगन बेटी की किलकारियॉ गूॅज रही हैं।इस गांव के भाईयों की कलाईयॉ सदियों तक सूनी रही।सामाजिक परम्पराओं और कुरीतियों के चलते इस गॉव सहित आसपास के दर्जनों गांवों सिंहडार,रणधा,मोडा,बहिया,कुण्डा,गजेसिंह का गांव,तेजमालता,झिनझिनियाली,मोघा,चेलक में कन्या के जन्म लेते ही उसें मार दिया जाता था।जिसके चलतें ये गांव बेटियों से वीरान थे।कोई एक दशक पहलें गांव में ठाकुर इन्द्रसिह के घर पहली बारात आई थी।जो पूरे देश में सूर्खियों में छाई थी। 

कन्या भ्रूणहत्या के लिए बदनाम राजस्थान के देवड़ा गांव के युवकों की कलाई इस बार सूनी नहीं रहेगी। यहां की 42 लड़कियों ने जात-पांत, ऊंच-नीच और भेदभाव से ऊपर उठकर गांव के 250 युवकों को राखी बांधने का संकल्प लिया है। इससे उन युवाओं के चेहरे में खुशी लौट आई है, जिनके बहनें नहीं हैं।

गांव की 42 लड़कियों गांव के सभी लड़कों को सामूहिक राखी बांधने का फैसला किया है। भाटी राजपूतों के देवड़ा गांव के उत्तम सिंह ग्का कहना है कि यहां मौजूदा समय में बयालीस लड़कियां ही हैं। जबकि लड़के कई गुना ज्यादा हैं।

टेलीविजन में कन्या भू्रणहत्या के खिलाफ चल रहे सीरियलों को देखकर इन लड़कियों ने यह संकल्प लिया है। गांव की पूजा कंवर कहती हैं कि सगा भाई हो या दूर का रिश्तेदार, किसी की भी कलाई इस बार सूनी नहीं रहेगी। पूजा ने बताया कि हाल ही में गांव में बारात आई थी। यह इस इलाके में बहुत दिनों बाद देखने को मिला था।

गांव के मूल सिंह भाटी कहते हैं कि मेरे कई दोस्तों की बहनें हैं, लेकि न मैं अकेला महसूस करता था। इसलिए मूल सिंह उन जैसे कई लोग गांव की लड़कियों के इस फैसले खुश हैं। इस बार सब लोग इस त्योहार को पूरे उत्साह के साथ मनाएंगे। साम पंचायत समिति के सदस्य उमेद सिंह तंवर ने बताया कि गांव में शिक्षा और सामाजिक जागरूकता के कारण कन्या भ्रूण हत्या में भारी गिरावट आई है। लेकिन अभी भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। उम्मीद है कि देवड़ा गांव की लड़कियों का यह फैसला कन्याओं की हत्या करने की मानसिकता में बदलाव लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।देवड़ा गाँव में पुराणी कुरीतियों तो त्यागने का सिलसिला ठाकुर इन्दर सिंह ने किया जब सदियों बाद भाटी परिवार में पहली बार बारात आई ,छः साल में गाँव में बदलाव की बयार हें आज गाँव में तीन दर्जन से अधिक बालिकाए हें जो भाटी परिवारों की हें ,कन्या हत्या के लिए बदनाम रहा देवड़ा गाँव के लोगो ने कन्या वध के कलंक को धोने की ठान ली हें ..सामूहिक रक्षा बंधन मानाने का फैसला भी ग्रामीणों ने मिल कर लिया हें ..बाड़मेर जैसलमेर की सरहद पर बसे बसिया क्षेत्र जो भाटी राजपूत बाहुल्य हें में बालिका शिक्षा के प्रति ज़बरदस्त जागरूकता आई हें .सरकारी स्कूलों में बड़ी तादाम में पढ़ रही बालिकाए सुखद बदलाव को ब्यान करती हें.सिह्डार गाँव के दुर्जन सिंह भाटी ने बताया की ग्रामीण क्षेत्रो में अब पुरानी परम्पराए लगभग ख़तम सी हो गई हें आज बालिका हर राजपूत के घर में हें मेरे खुद की दो बालिकाए दिव्या कंवर तथा नेमु कंवर हें जो आठवी तथा दशवी में पढ़ती हें .अब इन गाँवो के भाइयो की कलाइयां सुनी नहीं रहती