संत नरसिंह मेहता गुजरात के एक महान कवि संत थे| महात्मा गाँधी जी को अति प्रिय भजन “वैष्णव जन तो ते ने कहिये रे जो पीड पराई जाने रे “ नरसिंह मेहता द्वारा ही रचा गाया है| बचपन से ही आप कृष्ण भगवान के भजन गाते थे |
आप का जन्म १४०० इ. के लगभग तलाजा, जिल्हा भावनगर, सौराष्ट्र में हुआ | आप काफी कम उम्र के थे जब आप जी के माता पिता का देहांत हो गाया| माता पिता के देहांत के बाद आप अपने भाई और भाभी के साथ जूनागढ़ में रहने लगे| आप घर के काम काज में बिलकुल भी ध्यान नहीं देते थे| सारा समय कृष्ण भगति में ही लगे रहते| आप के भाई ने आप की शादी मानेकबाई से कार दी ताकि आप घर की जिम्मेदारी सँभालने लगें, लेकिन शादी से भी नरसिंह को कोई फरक नहीं पडा |
नरसिंह मेहता की भाभी आप को बहुत भला बुरा कहती थी| एक दिन भाभी की बातों से तंग आकर आप जंगल चले गए और बिना खाए पिये ७ दिन तक शिवजी के मंदिर में आराधना की | भगवान शिव एक साधु के रूप में प्रगट हुए| नरसिंह जी के अनुरोध पर भगवान शिव आप को वृन्दावन में रास लीला दिखाने को ले गए| आप रास लीला देखते हुए इतने खो गए की मशाल से अपना हाथ जला बेठे | भगवान कृष्ण ने अपने स्पर्श से हाथ पहले जैसा कर दिया और नरसिंह जी को आशीर्वाद दिया | घर आकर आप ने भाभी का धन्यवाद किया |
इसके बाद आप को दो संताने हुई पुत्र श्यामलदास और पुत्री कुंवरबाई | आप हमेशा कृष्ण भगति में खोए रहते, खुद को गोपियों की तरह सजा लेते|
नरसिंह जी सब में परमेश्वर को हि देखते थे| उनके लिये ऊँच नीच कुछ नहीं था | भजन उनके जीवन का अभिन्न अंग था| परमेश्वर के प्रति उनका अपार प्रेम था | जहां नरसिंह अपनी भक्ति के कारण विख्यात हो गये थे वहीं ब्राह्मण समाज उनसे जलने लगा था |
नरसिंह जी के जीवन में कई बार चमत्कार हुए|
एक समय नरसिंह और उनके भाई तीर्थ यात्रा पर जाते समय एक जंगल में से गुजर रहे थे| दोनों बहुत थक चुके थे और भूख भी बहुत लगी थी | कुछ दुरी पर एक गाँव दिखाई दिया | उस गाँव के कुछ लोग इन दोनों के पास आये और कहा की अगर आप कहें तो हम आप के लिये खाना ले आते हैं, पर लेकिन हम शुद्र (नीच ) जाती के हैं | नरसिंह जी ने उन्हें कहा की सभी परमेश्वर की संतान हैं आप तो हरि के जन हैं मुझे आप का दिया भोजन खाने में कोई आपत्ति नहीं | नरसिंह ने खुशी से भोजन खाया लेकिन उनके भाई ने भोजन खाने से इनकार कार दिया | चलने से पहले नरसिंह जब गाँव वालों का धन्यवाद करने के लिये उठे तो उन्हें कहीं भी गाँव नजर नहीं आया |
आचार्य श्री गरीब दास महाराज जी ने भक्त माल में नरसिंह मेहता जी के साथ हुए दो घटनाओं का वर्णन किया है |
१. सांवल शाह की घटना
आये हैं साधु नरसीला के पास | हुंडी करो नै नरसीला जो दास || ५५ ||
पांच सौ रूपये जो दीन्हें जो रोक | करो बेग हुंडी द्वारा नाथ पोष || ५६ ||
सड़ सड़ लिखी बेग कागज मंगाय | टीके दिया शाह सांवल चढाय || ५७ ||
द्वारा नगर बीच पौहंचे हैं संत | पाया न सांवल लिया है जु अंत || ५८ ||
द्वारा नगर के जु बोले बकाल | नहीं शाह सांवल नरसीला घर घाल || ५९ ||
करी है जु करुणा अबरना आनंद | भये शाह सांवल जो साहिब गोविन्द || ६० ||
चिलकी करारे हजारे हजार | दिने दुचंद जो सांवल मुरार || ६१ ||
दोहरी कलम टांक बहियां बिनोद | भये शाह सांवल नरसीला प्रमोध || ६२ ||
चौरे गिने बेग पल्ला बिछाय | देखैं द्वारा नगर के सकल शाह || ६३ ||
खरचे खाये संतौं किन्हें मुकाम | द्वारा नगर बीच दीन्हें जु दाम || ६४ ||
सांवल शाह संतौं से किन्हा बसेख | नरसीला से बन्दगी हुंडी ध्यों अनेक || ६५ ||
पहली नरसीला नै दीन्हा भंडार | पीछे सांवल शाह पौहंचे पुकार || ६६ ||
एक बार द्वारका को जाने वाले कुछ साधु नरसिंह जी के पास आये और उन्हें पांच सौ रूपये देते हुए कहा की आप काफी प्रसिद्ध व्यक्ति हो आप अपने नाम की पांच सौ रुपयों की हुंडी लिख कर दे दो हम द्वारका में जा कर हुंडी ले लेंगे| पहले तो नरसिंह जी ने मना करते हुए कहा की मैं तो गरीब आदमी हूँ , मेरे पहचान का कोई सेठ नहीं जो तुम्हे द्वारका में हुंडी दे देगा, पर जब साधु नहीं माने तो उन्हों ने कागज ला कर पांच सौ रूपये की हुंडी द्वारका में देने के लिये लिख दी और देने वाले (टिका) का नाम सांवल शाह लिख दिया|
( हुंडी एक तरह के आज के डिमांड ड्राफ्ट के जैसी होती थी| इससे रास्ते में धन के चोरी होने का खतरा कम हो जाता था | जिस स्थान के लिये हुंडी लिखी होती थी, उस स्थान पर जिस के नाम की हुंडी हो वह हुंडी लेन वाले को रोख दे देता था | )
द्वारका नगरी में पहुँचने पर संतों ने सब जगह पता किया लेकिन कहीं भी सांवल शाह नहीं मिले | सब कहने लगे की अब यह हुंडी तुम नरसीला से हि लेना |
उधर नरसिंह जी ने उन पांच सौ रुपयों का सामान लाकर भंडारा देना शुरू कर दिया| जब सारा भंडारा हो गाया तो अंत में एक वृद्ध संत भोजन के लिये आए | नरसिंह जी की पत्नी ने जो सारे बर्तन खाली किये और जो आटा बचा था उस की चार रोटियां बनाकर उस वृद्ध संत को खिलाई | जैसे ही उस संत ने रोटी खाई वैसे ही उधर द्वारका में भगवान ने सांवल शाह के रूप में प्रगट हो कर संतों को हुंडी दे दी |
आचार्य जी अन्न्देव की छोटी आरती में भी इस बात का प्रमाण देते हैं| जैसे
रोटी चार भारजा घाली, नरसीला की हुंडी झाली |
(भारजा – पत्नी, घाली- डाली, देना, झाली- हो गई)
सांवल शाह एक सेठ का भेष बनाकर संतों के सामने आए | और भरे चौक में संतों को हुंडी के रूपये दिये | द्वारका के सभी सेठ देखते ही रह गये |
२. नरसीला जी की ध्योती की शादी की घटना
बेटी नरसीला की भेली चढ़ाय | चालो पिता तेरी ध्योती का व्याह || ६७ ||
मैं निर्धन भिखारी नहीं मेरै दाम | आऊंगा बेटी मैं सुमरुन्गा राम || ६८ ||
नरसीला खाली गये पल्ला झार | आगे खरी एक समधनि उजार || ६९ ||
भातई आये हैं जो धी के पिता | करुवे के घाल्या जु हम कूं बता || ७० ||
समधनि कहै सखियों मैं सुनाय | दो भाठे घाले हैं करुवे पिताय || ७१ ||
नरसीला सुनि कर जो हुये आधीन | लज्जा राखो मेरे साहिब प्रबीन || ७२ ||
आये विश्वम्भर जो गाडे लदाय | ल्याये माल मुक्ता जो कीन्ही सहाय || ७३ ||
सुहे जरीबाब मसरू अपार | गहना सुनहरी और मोती हजार || ७४ ||
हीरे हरी भांति लाली सुरंग | चाहै सु देवै छुटी धार गंग || ७५ ||
नगदी और जिनसी खजानें मौहर | उतरैं जरीबाब झीनी दौहर || ७६ ||
चुन्नरी चिदानन्द ल्याये अनूप | झालर किनारी जरीदार सरूप || ७७ ||
समधनि सुलखनी खरी है जु पास | भरे भात नरसी जो हीर्यों निवास || ७८ ||
घोरे तुरंगम दिये हैं जो दान | अरथ बहल पालकी किये हैं कुर्बान || ७९ ||
कलंगी रु झब्बे सुनहरी हमेल | हीरे जड़ाऊँ मोती रंगरेल || ८० ||
नरसी अरसी है समुद्र में सिर | गैबी खजाने अमाने जो चीर || ८१ ||
भाठे परे दोय धूं धूं धमाक | देखें दुनी चिश्म खौलै जो आंख || ८२ ||
चांदी सोने के हैं भाठे जु दोय | समधनि लिया मुख उलटाई गोय || ८३ ||
भेली – गुड की डली ( शगुन के तोर पर दी जाती थी| जैसे आज कल कार्ड के साथ मिठाई का डिब्बा देते है|)
समधनि – कुडमनी (बेटी/बेटे की साँस )
भातई – मामा
भात – नानकशक (लड़की या लड़के के विवाह में नाना / मामा की तरफ से दि जाने वाली सामग्री)
करुवे – कन्यादान
भाठे – मिट्टी के ठेले या बर्तन,
एक समय नरसिंह की ध्योती की शादी थी| नरसिंह की लड़की उन्हें शगुन के तोर पर गुड देते हुए बोली की पिता जी आप ने शादी में जरुर आना है | नरसिंह बहुत गरीब थे उन्होंने कहा की बेटी मेरे पास तो शादी में देने के लिये कुछ भी नहीं है | मैं आ जाऊंगा लेकिन भगवान का नाम ही लूँगा | जब नरसिंह जी ध्योती की शादी में पहुंचे तो किसी स्त्री ने उन की समधनि ने पूछा की लड़की के मामा और नाना में आये है, उन्होंने कन्यादान में क्या दिया है | आगे से समधनि ने मजाक में कह दिया की दो भाठे दिये हैं|
यह सुन कर नरसिंह शर्मिंदा हो गये और भगवान को याद कर उन्हें उसकी इज्जत बचाने को कहने लगे | तभी भगवान बैल गाडी लाद कर सामान की लाए | भगवान लड़की के लिये लाल सूट, चुनरी, विवाह की सारी जरी(कपडे), गहना, मोती, हीरे, घोड़े, पालकी तथा अनेक तरह के उपहार ले कर आए | नरसिंह जी ने खुशी खुशी भात (नानकशक) दिया | तभी दोनों भाठे धूं धूं कर टूट गये और सभी देख कर हैरान रह गये की दोनों भाठे सोने और चांदी से भरे थे | और इस तरह भगवान ने अपार सामग्री देकर अपने प्रिय भगत नरसिंह की लाज रख ली |
इसी तरह भगवान ने कई बार नरसीला की मदत की |