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शनिवार, 21 दिसंबर 2013

पिण्डारियों ने राजकुमारी कृष्णाकुमारी को जहर पीने पर विवश कर दिया



पिण्डारियों ने राजकुमारी कृष्णाकुमारी को जहर पीने पर विवश कर दिया


उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ में मराठों और पिण्डारियों के निरंतर आक्रमणों ने राजपूताना की राजनैतिक शक्ति को तोड़कर रख दिया था जिससे त्रस्त होकर राजपूताने की रियासतों ने सिंधियों तथा पठानों को अपनी सेनाओं में जगह दी। ये नितांत अनुशासनहीन सिपाही थे जो किसी विधि–विधान को नहीं मानते थे। इस काल में अंग्रेजों, फ्रांसीसियों, पुर्तगालियों तथा डच सेनाओं के खूनी पंजे भी भारत पर अपना कब्जा जमाने के लिये जोर आजमाइश कर रहे थे।

इन सब खतरों से बेपरवाह राजपूताना के बड़े रजवाड़ों के मध्य छोटी –छोटी बातों को लेकर मन–मुटाव और संघर्ष चल रहा था। इस काल में राजपूताना की चारों बड़ी रियासतें– जोधपुर, बीकानेर, उदयपुर तथा जयपुर परस्पर खून की होली खेल रही थीं।

लेखक। . डॉ एम् एल गुप्ता 



ई. 1803 में मानसिंह जोधपुर राज्य की गद्दी पर बैठा। उसके पूर्ववर्ती जोधपुर नरेश भीमसिंह की सगाई उदयपुर की राजकुमारी कृष्णाकुमारी के साथ हुई थी किंतु विवाह होने से पहले ही जोधपुर नरेश भीमसिंह की मृत्यु हो गयी। इस पर मेवाड़ नरेश भीमसिंह ने अपनी पुत्री का विवाह जयपुर के राजा जगतसिंह के साथ करना निश्चित कर दिया। जोधपुर नरेश मानसिंह ने इस सगाई का विरोध करते हुए महाराणा को लिखा कि राजकुमारी कृष्णाकुमारी का विवाह तो जोधपुर नरेश से होना निश्चित हुआ था। इसलिये राजकुमारी का विवाह मेरे साथ किया जाये। मानसिंह की इस बात से जयपुर नरेश बिगड़ गया और उसने जोधपुर के ठाकुर सवाईसिंह के साथ मिलकर जोधपुर राज्य पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में बीकानेर नरेश सूरतसिंह भी जयपुर की तरफ से जोधपुर राज्य पर चढ़ आया।

दुर्ग को चारों तरफ प्रबल शत्रुओं से घिरा हुआ जानकर जोधपुर नरेश मानसिंह ने पिण्डारी नेता अमीरखां की सेवाओं को प्राप्त किया। अमीरखां उदयपुर गया तथा उसने महाराणा को उकसाया कि वह राजकुमारी को अपने हाथों से जहर दे दे अन्यथा उसे जोधपुर राज्य तथा पिण्डारियों की सम्मिलित सेना से निबटना पड़ेगा। महाराणा भीमसिंह के शक्तावत सरदार अजीतसिंह ने भी अमीरखां का समर्थन किया। जब राजकुमारी कृष्णाकुमारी ने देखा कि उसके कारण लाखों हिन्दू वीरों के प्राण संकट में आने वाले हैं तो उसने जहर पी लिया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि महाराणा ने अपने हाथों से राजकुमारी कृष्णाकुमारी को जहर पिला दिया।

जब चूण्डावत अजीतसिंह को इस बात का पता लगा तो उसने भरे दरबार में महाराणा भीमसिंह तथा शक्तावत अजीतसिंह की लानत–मलानत की तथा शक्तावत अजीतसिंह और उसकी पत्नी को श्राप दिया कि वे भी संतान की मृत्यु का कष्ट देखें। कहते हैं कि चूण्डावत सरदार के श्राप से कुछ दिनों बाद ही शक्तावत अजीतसिंह के पुत्र और पत्नी की मृत्यु हो गयी। शक्तावत अजीतसिंह जीवन से विरक्त होकर मंदिरों में भटकने लगा।

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

पिण्डारियों ने पोकरण ठाकुर का सिर काटकर राजा को भिजवाया

डॉ एम एल  गुप्ता 


पिण्डारियों ने पोकरण ठाकुर का सिर काटकर राजा को भिजवाया


ई. 1803 में राजा मानसिंह जोधपुर की गद्दी पर बैठा। उस समय उसके पूर्ववर्ती राजा भीमसिंह की विधवा रानी गर्भवती थी जिसने कुछ दिन बाद धोकलसिंह नामक पुत्र को जन्म दिया। पोकरण के ठाकुर सवाईसिंह ने पाली, बगड़ी, हरसोलाव, खींवसर, मारोठ, सेनणी, पूनलू आदि के जागीरदारों को अपने पक्ष में करके धोकलसिंह को मारवाड़ का राजा बनाना चाहा। उसने जयपुर के राजा जगतसिंह तथा बीकानेर के राजा सूरतसिंह को भी अपनी ओर मिला लिया। इन तीनों पक्षों ने लगभग एक लाख सिपाहियों की सेना लेकर जोधपुर राज्य पर चढ़ाई कर दी। मानसिंह ने गीगोली के पास इस सेना का सामना किया किंतु जोधपुर राज्य के सरदार जबर्दस्ती मानसिंह का घोड़ा युद्ध के मैदान से बाहर ले आये। शत्रु सेना ने परबतसर, मारोठ, मेड़ता, पीपाड़ आदि कस्बों को लूटते हुए जोधपुर का दुर्ग घेर लिया।


इस पर मानसिंह को पिण्डारी नेता अमीरखां की सेवाएं लेनी पड़ीं। उसने अमीरखां को पगड़ी बदल भाई बनाया और उसे अपने बराबर बैठने का अधिकार दिया। इतना ही नहीं मानसिंह ने अमीर खां को पाटवा, डांगावास, दरीबा तथा नावां आदि गाँव भी प्रदान किये। अमीरखां ने महाराजा को वचन दिया कि वह सवाईसिंह को अवश्य दण्डित करेगा।


अमीरखां ने एक भयानक जाल रचा। उसने महाराजा मानसिंह से पैसों के लिये झगड़ा करने का नाटक किया तथा जोधपुर राज्य के गाँवों को लूटने लगा। जब सवाईसिंह ने सुना कि अमीर खां जोधपुर राज्य के गाँवों को लूट रहा है तो उसने अमीरखां को अपने पक्ष में आने का निमंत्रण दिया। अमीर खां ने सवाईसिंह से कहा कि यदि सवाईसिंह अमीरखां के सैनिकों का वेतन चुका दे तो अमीरखां सवाईसिंह को जोधपुर के किले पर अधिकार करवा देगा। सवाईसिंह अमीरखां के आदमियों का वेतन चुकाने के लिये तैयार हो गया। इस पर अमीरखां ने सवाईसिंह को अपने साथियों सहित मूण्डवा आने का निमंत्रण दिया।



सवाईसिंह चण्डावल, पोकरण, पाली और बगड़ी के ठाकुरों को साथ लेकर मूण्डवा पहुँचा। अमीरखां के आदमियों ने इन ठाकुरों को एक शामियाने में बैठाया तथा धोखे से शामियाने की रस्सि्यां काटकर चारों तरफ से तोल के गोले बरसाने लगे। इसके बाद मृत ठाकुरों के सिर काटकर राजा मानसिंह को भिजवाये गये। इस घटना से सारे ठाकुर डर गये और उन्होंने महाराजा से माफी मांग ली।कुछ दिनों बाद अमीरखां महाराजा से पैसों की मांग करने लगा। जब महाराजा ने पैसे देने से मना कर दिया तो उसने गाँवों में आतंक मचा दिया। एक दिन उसके आदमियों ने जोधपुर के महलों में घुसकर राजा मानसिंह के प्रधानमंत्री इन्द्रराज सिंघवी तथा राजा के गुरु आयस देवनाथ की हत्या कर दी।