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गुरुवार, 26 जून 2014

महात्मा बुद्ध को माना गया भगवान विष्णु का तेइसवां अवतार


बिहार में हिन्दुओं के गया तीर्थ में श्राद्ध कर्म पूर्ण करने के बाद भगवान विष्णु के दर्शन करने से मनुष्य पितृ, माता और गुरु के ऋण से मुक्त हो जाता है। गया के समीप ही बौध धर्म को समर्पित बौध गया प्रमुख तीर्थ माना गया है। गया से 1 किमी की दूरी पर स्थित बौद्ध गया, बौद्ध धर्म के अनुयायियों का प्रमुख तीर्थ स्थल है। भगवान बुद्ध ने इसी स्थान पर ईसा पूर्व 531 में फाल्गु नदी के तट पर पवित्र बोधिवृक्ष की छाया में बैठ कर तपश्चर्या के द्वारा ज्ञान के प्रकाश का प्रथम साक्षात्कार किया था तत्पश्चात वह भगवान बुद्ध कहलाने लगे।



ज्ञान प्राप्ति के पश्चात वे सात सप्ताह तक उरुवेला के समीप ही मनन करते रहे। काशी अथवा वाराणसी से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित सारनाथ प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ है। सारनाथ वाराणसी से इतना करीब है की इसे वाराणसी से अलग नहीं कहा जा सकता। पहले यहां घना वन था और मृग-विहार किया करते थे। उस समय इसका नाम ‘ऋषिपत्तन मृगदाय’ था। ज्ञान प्राप्त करने के बाद गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश अपने पांच शिष्यों को दिया था। सम्राट अशोक के समय में यहां बहुत से निर्माण-कार्य हुए।


मान्यता है की सम्राट अशोक की पुत्री संघमित्रा ने बोध गया स्थित पवित्र बोधि वृक्ष की एक शाखा श्री लंका के अनुरधपूरा में लगाईं थी, उसी पेड़ की एक शाखा को यहां सारनाथ में लगाया गया है। गौतम बुद्ध तथा उनके शिष्यों की प्रतिमाएं म्यांमार के बौद्ध श्रद्धालुओं की सहायता से यहां लगाईं गई हैं। इसी परिसर में भगवान बुद्ध के अट्ठाईस रूपों की प्रतिमाएं भी स्थित हैं।

जिस परम पवित्र स्थान पर भगवान बुद्ध ने वैशाख महीने में पूर्णिमा के दिन ज्ञान प्राप्त किया था उस स्थान को बौध गया तथा वह शुभ दिन बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु का तेइसवां अवतार माना गया है। बुद्ध पूर्णिमा का पर्व बुद्ध के आदर्शों व धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

बौध गया का सबसे प्रमुख मन्दिर महा बोधि मन्दिर है। आम जनमानस का भरोसा है कि महाबोधि मन्दिर में स्थापित बुद्ध की मूर्ति का संबध साक्षात भगवान बुद्ध से है। भगवान बुद्ध बौध भिक्षु के स्वप्न में आए और उस से कहा कि इस प्रतिमा का निर्माण स्वयं उन्होने हीे किया है। भगवान बुद्ध की इस प्रतिमा को बौध धर्म में अत्यधिक मान-सम्मान प्राप्त है तथा नालन्दा और विक्रमशिला के बौध मन्दिरों में भी इसी का प्रतिरुप स्थापित है। सन् 2002 में यूनेस्को ने इस मन्दिर एवं क्षेत्र को विश्व विरासत स्थल घोषित किया है।