बहुत कम लोगों का मालूम है कि श्रीराधे कहां अवतरित हुई थीं। मंदिरों की साज-सज्जा और हरे-भरे पर्वत पर महल में स्थापित प्रतिमाओं के कारण उनका जन्म स्थल बरसाना ही माना जाता है। श्री राधा के यहां जन्म लेने के पीछे कई पौराणिक कहानियां हैं। जिनमें से एक सबसे ज्यादा प्रचलित है। आईए जानते हैं बरसाना नहीं, तो किस जगह हुआ था श्रीराधा का जन्म।
यहां हुआ श्री राधे का जन्म
गोप मुखिया वृषभानु के कोई संतान नहीं थीं। बताते हैं हरि-प्रार्थना के पश्चात एक संध्या उन्हें यमुना किनारे दिव्य प्रकाश दिखा। निकट जाने पर वहां एक बच्ची सफेद वस्त्रों में लिपटी मिली। उन्होने ईश्वरीय प्रभाव मान कर सहर्ष स्वीकार कर लिया। यह जगह गोकुल के पास यमुना के पूर्वी तट पर स्थित रावल गांव था जो बरसाना से करीब दस कोस पर है। वृषभानु गोप बरसाना लौट आए, श्री राधा का लालन-पालन यहीं हुआ। ब्रजभूमि के इतिहास पर वर्णित संपादक गोपाल प्रसाद, रामबाबू द्विवेदी की पुस्तकों में यह बताया गया है कि जिस समय भगवान कृष्ण का जन्म हुआ, उस समय नंद बाबा का निवास गोकुल में था और वृषभानु गोप रावल में थे। उसी स्मृति में कुछ सौ साल पहले यहां मंदिर बनवाया गया। मंदिर का शिखर मराठों ने बनवाया। राधाजी की मां कीर्ति रानी का पीहर भी रावल था।
हजारों साल पहले निकली कृष्ण-राधा की प्रतिमा
इतना ही नहीं उनकी स्वयं भू प्रतिमा भी यहां आज भी मंदिर में विराजमान है। गोकुल से जुडे इस गांव के एक टीले पर करील के ऊंचे पेड़ के पास श्रीकृष्ण के साथ उनकी प्रतिमा कई हजार बरस पहले स्वंय भूमि से निकली बताई जाती हैं। आज भी वह पेड़ गर्भ गृह के ऊपर है। श्री हरि के मंदिर के अलौकिक नजारे और प्राचीनता का गवाह यह गांव है रावल। रावल यमुना किनारे स्थित है। वृषभानु गोप उन्हें बरसाना लाए। वे बरसाना में ही रहीं। कान्हा भी गोकुल से नंदगांव में गाय चराते थे।
श्रीकृष्ण की झलक पाकर ही नेत्र खोले थे
मान्यता है कि, राधा का जन्म कान्हा से साढ़े ग्यारह महीने पूर्व रावल में हुआ था। कन्हैया के नंदोत्सव में बधाई देने के लिए वृषभानु व माता कीर्ति करीब एक बरस की श्री जी को लेकर गोकुल आए। तब तक राधा ने अपने नेत्र नहीं खोले थे। दोनों पहली बार यहीं मिले थे। इसी अवसर पर श्रीराधा ने अपने नेत्र खोलकर श्री कृष्ण के दर्शन किए। यानी इस तरह श्रीकृष्ण से ग्यारह महीने पहले ही प्रगटी थी राधा जी। -
यहां हुआ श्री राधे का जन्म
गोप मुखिया वृषभानु के कोई संतान नहीं थीं। बताते हैं हरि-प्रार्थना के पश्चात एक संध्या उन्हें यमुना किनारे दिव्य प्रकाश दिखा। निकट जाने पर वहां एक बच्ची सफेद वस्त्रों में लिपटी मिली। उन्होने ईश्वरीय प्रभाव मान कर सहर्ष स्वीकार कर लिया। यह जगह गोकुल के पास यमुना के पूर्वी तट पर स्थित रावल गांव था जो बरसाना से करीब दस कोस पर है। वृषभानु गोप बरसाना लौट आए, श्री राधा का लालन-पालन यहीं हुआ। ब्रजभूमि के इतिहास पर वर्णित संपादक गोपाल प्रसाद, रामबाबू द्विवेदी की पुस्तकों में यह बताया गया है कि जिस समय भगवान कृष्ण का जन्म हुआ, उस समय नंद बाबा का निवास गोकुल में था और वृषभानु गोप रावल में थे। उसी स्मृति में कुछ सौ साल पहले यहां मंदिर बनवाया गया। मंदिर का शिखर मराठों ने बनवाया। राधाजी की मां कीर्ति रानी का पीहर भी रावल था।
हजारों साल पहले निकली कृष्ण-राधा की प्रतिमा
इतना ही नहीं उनकी स्वयं भू प्रतिमा भी यहां आज भी मंदिर में विराजमान है। गोकुल से जुडे इस गांव के एक टीले पर करील के ऊंचे पेड़ के पास श्रीकृष्ण के साथ उनकी प्रतिमा कई हजार बरस पहले स्वंय भूमि से निकली बताई जाती हैं। आज भी वह पेड़ गर्भ गृह के ऊपर है। श्री हरि के मंदिर के अलौकिक नजारे और प्राचीनता का गवाह यह गांव है रावल। रावल यमुना किनारे स्थित है। वृषभानु गोप उन्हें बरसाना लाए। वे बरसाना में ही रहीं। कान्हा भी गोकुल से नंदगांव में गाय चराते थे।
श्रीकृष्ण की झलक पाकर ही नेत्र खोले थे
मान्यता है कि, राधा का जन्म कान्हा से साढ़े ग्यारह महीने पूर्व रावल में हुआ था। कन्हैया के नंदोत्सव में बधाई देने के लिए वृषभानु व माता कीर्ति करीब एक बरस की श्री जी को लेकर गोकुल आए। तब तक राधा ने अपने नेत्र नहीं खोले थे। दोनों पहली बार यहीं मिले थे। इसी अवसर पर श्रीराधा ने अपने नेत्र खोलकर श्री कृष्ण के दर्शन किए। यानी इस तरह श्रीकृष्ण से ग्यारह महीने पहले ही प्रगटी थी राधा जी। -