राजस्थान के करौली नगर में मदन मोहन का एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में भगवान मदन मोहन यानी श्री कृष्ण विराजमान हैं। यहां के निवासियों में मदन मोहन के प्रति अपार श्रद्धा और आस्था है। करौली के मदन मोहन की एक कथा यहां काफी लोकप्रिय है। कथा है कि ताज खां नाम का एक मुसलमान कृष्ण की प्रतिमा की एक झलक पाते ही उनका अनन्य भक्त बन बैठा।
ताज खां कचहरी में एक चपरासी था। एक बार कचहरी के काम से इन्हें मदनमोहन जी के पुजारी गोस्वामी जी के पास भेजा गया। ताज खां मंदिर के बाहर खड़े रहकर ही गोस्वामी जी को अवाज लगाने लगे। इसी समय उनकी नजर मंदिर में स्थित मदनमोहन जी की मूर्ति पर गयी और वे कृष्ण के मुख को देखते रह गये। गोस्वामी जी के आने पर उनका ध्यान भंग हुआ और कचहरी का संदेश गोस्वमी जी को देकर ताज खां विदा हो गये।
ताज खां के मन मस्तिष्क पर मदन मोहन की ऐसी छवि बनी की हर पल उन्हें देखने की ताक में रहने लगे। मुसलमान होने के कारण वह मंदिर में जाने से डरते और बाहर से ही मदनमोहन को निहारते रहते। गोस्वामी जी को जब शंका हुई कि ताज खां छुपकर मदनमोहन का दर्शन करते हैं तो ताज खां को मंदिर आने से मना कर दिया। ताज खां गोस्वामी जी के मना करने के बाद भी मदर्शन के लिए मंदिर पहुंच गये तो एक कार्यकर्ता ने ताज खां को धक्का मार कर भगा दिया।
ताज खां इससे बहुत दुःखी हुए और भोजन पानी त्याग कर मदनमोहन को याद करके रोते रहे। कहते हैं कि भक्त की इस लगन पर भगवान का हृदय करूणा से भर उठा। मंदिर का नियम है कि रात्रि में आरती पूजा के बाद भगवान के सामने प्रसाद का थाल रखकर मंदिर का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया जाता है। रात्रि पूजा के बाद जब मंदिर बंद हुआ तो भगवान ने मंदिर के कार्यकर्ता का रूप धारण किया और प्रसाद की थाल लेकर भक्त ताज खां के घर पहुंच गये।
भगवान ने ताज खां से कहा कि गोस्वामी जी ने आपके लिए प्रसाद भेजा है। आप प्रसाद ग्रहण कर लें और सुबह थाल लेकर मंदिर में मदनमोहन के दर्शन के लिए पधारें। ताज खां को विश्वास नहीं हो रहा था कि गोस्वामी जी ने ऐसा कहा है। फिर भी ताज खां ने मंदिर के कार्यकर्ता का रूप धारण किये हुए भगवान की बात मानकर भावुक मन से प्रसाद ग्रहण किया।
इसके बाद भगवान वहां से विदा हो गये। दूसरी ओर गोस्वमी जी को भगवान ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि वह प्रसाद की थाल ताज खां के घर छोड़ आये हैं सुबह जब वह प्रसाद की थाल लेकर आए तो उसे मेरे दर्शन से मना मत करना।
गोस्वामी जी सुबह उठे तो देखा सचमुच मंदिर में प्रसाद का थाल नहीं था। गोस्वामी जी दौरकर महाराज के पास गये और सब हाल कह सुनाया। महाराज और गोस्वामी जी दोनों मंदिर लौट आये। मंदिर में पूजा के समय जब ताज खां आया तो उसके हाथ में प्रसाद का थाल देखकर सभी लोग हैरान रह गये। महाराज ने आगे बढ़कर ताज खां को गले से लगा लिया। सभी लोग भक्त ताज खां की जयजयकार कर उठे।
भक्त ताज खां को आज भी करौली के मदनमोहन मंदिर में संध्या आरती के समय 'ताज भक्त मुसलिम पै प्रभु तुम दया करी। भोजन लै घर पहुंचे दीनदयाल हरी।।' इस दोहे के साथ याद किया जाता है।
ताज खां कचहरी में एक चपरासी था। एक बार कचहरी के काम से इन्हें मदनमोहन जी के पुजारी गोस्वामी जी के पास भेजा गया। ताज खां मंदिर के बाहर खड़े रहकर ही गोस्वामी जी को अवाज लगाने लगे। इसी समय उनकी नजर मंदिर में स्थित मदनमोहन जी की मूर्ति पर गयी और वे कृष्ण के मुख को देखते रह गये। गोस्वामी जी के आने पर उनका ध्यान भंग हुआ और कचहरी का संदेश गोस्वमी जी को देकर ताज खां विदा हो गये।
ताज खां के मन मस्तिष्क पर मदन मोहन की ऐसी छवि बनी की हर पल उन्हें देखने की ताक में रहने लगे। मुसलमान होने के कारण वह मंदिर में जाने से डरते और बाहर से ही मदनमोहन को निहारते रहते। गोस्वामी जी को जब शंका हुई कि ताज खां छुपकर मदनमोहन का दर्शन करते हैं तो ताज खां को मंदिर आने से मना कर दिया। ताज खां गोस्वामी जी के मना करने के बाद भी मदर्शन के लिए मंदिर पहुंच गये तो एक कार्यकर्ता ने ताज खां को धक्का मार कर भगा दिया।
ताज खां इससे बहुत दुःखी हुए और भोजन पानी त्याग कर मदनमोहन को याद करके रोते रहे। कहते हैं कि भक्त की इस लगन पर भगवान का हृदय करूणा से भर उठा। मंदिर का नियम है कि रात्रि में आरती पूजा के बाद भगवान के सामने प्रसाद का थाल रखकर मंदिर का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया जाता है। रात्रि पूजा के बाद जब मंदिर बंद हुआ तो भगवान ने मंदिर के कार्यकर्ता का रूप धारण किया और प्रसाद की थाल लेकर भक्त ताज खां के घर पहुंच गये।
भगवान ने ताज खां से कहा कि गोस्वामी जी ने आपके लिए प्रसाद भेजा है। आप प्रसाद ग्रहण कर लें और सुबह थाल लेकर मंदिर में मदनमोहन के दर्शन के लिए पधारें। ताज खां को विश्वास नहीं हो रहा था कि गोस्वामी जी ने ऐसा कहा है। फिर भी ताज खां ने मंदिर के कार्यकर्ता का रूप धारण किये हुए भगवान की बात मानकर भावुक मन से प्रसाद ग्रहण किया।
इसके बाद भगवान वहां से विदा हो गये। दूसरी ओर गोस्वमी जी को भगवान ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि वह प्रसाद की थाल ताज खां के घर छोड़ आये हैं सुबह जब वह प्रसाद की थाल लेकर आए तो उसे मेरे दर्शन से मना मत करना।
गोस्वामी जी सुबह उठे तो देखा सचमुच मंदिर में प्रसाद का थाल नहीं था। गोस्वामी जी दौरकर महाराज के पास गये और सब हाल कह सुनाया। महाराज और गोस्वामी जी दोनों मंदिर लौट आये। मंदिर में पूजा के समय जब ताज खां आया तो उसके हाथ में प्रसाद का थाल देखकर सभी लोग हैरान रह गये। महाराज ने आगे बढ़कर ताज खां को गले से लगा लिया। सभी लोग भक्त ताज खां की जयजयकार कर उठे।
भक्त ताज खां को आज भी करौली के मदनमोहन मंदिर में संध्या आरती के समय 'ताज भक्त मुसलिम पै प्रभु तुम दया करी। भोजन लै घर पहुंचे दीनदयाल हरी।।' इस दोहे के साथ याद किया जाता है।