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रविवार, 16 मार्च 2014

रियासतकाल से जारी है भीनमाल की 'घोटा गेर'

भीनमाल में दूसरे दिन घोटा गेर का होता है आयोजन, इस वजह से तीसरे दिन होती है धुलंडी
 
रियासतकाल से जारी है भीनमाल की 'घोटा गेर'
भीनमाल भीनमाल शहर में रिसायतकाल में शुरू हुई घोटा गेर आज भी अपनी पहचान बनाए हुए हैं। होली के पर्व पर प्रति वर्ष परंपरागत घोटा गेर का आयोजन होता है, जिसमें नगर सहित उपखंड क्षेत्र से बड़ी संख्या में लोग शिरकत करते है। भीनमाल शहर में शांति और भाईचारा को बढ़ावा देने के लिए रियासतकाल से घोटा गेर का आयोजन हो रहा है। होली के दूसरे दिन नगर के आथमणा वास व उगमणा वास में अलग-अलग गेरों का आयोजन होता है, जो नगर के विभिन्न मंदिरों में धोक लगाने के बाद अंतिम दर्शन चंडीनाथ महादेव में होता है। इसके बाद गैर नृत्य करते हुए दोनों गैरों का संगम बड़े चोहटे पर होता है। जहां घोटे से करीब दो घंटे तक लगातार भीनमाल के प्रसिद्ध बाबरिया ढोल पर गेर नृत्य का आयोजन होता है। जहां लोग नृत्य कर अपनी शक्ति और कुशलता का परिचय देते है। इस दौरान विभिन्न समाजों के मौजिज लोग ढोल के पास बैठकर नृत्य का लुत्फ उठाते हैं। 
तीसरे दिन होती है धुलंडी
देशभर में होली के दूसरे दिन धुलंडी का आयोजन होता है, लेकिन भीनमाल में दूसरे दिन घोटा गेर की वजह से तीसरे दिन धुलंडी का आयोजन होता है। इस कारण होली के बाद लगातार दो दिन तक बाजार बंद रहता है।
आग के वेग से देखते है शगुन : होली के पर्व पर नगर के विभिन्न गली-मौहल्लों में होलिका दहन का आयोजन होता है। जिसमें आग के वेग के अनुसार आगामी वर्ष का शगुन देखते हैं। वहीं होलिका दहन वाले स्थान पर जमीन में मिट्टी के पात्र में बाजरा सहित सात प्रकार का अनाज व पानी भरकर जमीन में गाड देते हैं। जिसे दूसरे दिन निकालकर अनाज को देखते है, जो अनाज ज्यादा मुलायम होगा। उसकी फसल अगले वर्ष में अच्छी मानी जाती है।