जैसलमेर विधानसभा क्षेत्र चुनाव पूर्व सर्वे रिपोर्ट
राजपूतो के बीच घमाशान होने के प्रबल आसार
सियासत के डोर राजपूतो के पास गाजी फ़क़ीर के पास नहीं
- दुनिया के सबसे बड़े विधानसभा चुनाव क्षेत्र के रूप में जैसलमेर की छठा निराली है।गोवा, त्रिपुरा, नगालैंड, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, दिल्ली, अंडमान-निकोबार, दादर, नगर हवेली और लक्षद्वीप वगैरह से भी बड़ा है यह विधानसभा चुनाव क्षेत्र।
इसका क्षेत्रफल 28 हजार 875 वर्ग किलोमीटर है, जिसका करीब साढ़े चार सौ किलोमीटर भाग भारत पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटा है।जैसलमेर विधानसभा क्षेत्र में राजपूतो का दबदबा रहा हें। अब तक हुए तेरह विधानसभा चुनावो में ग्यारह राजपूत उम्मीदवार विधायक बने एक एक बार ब्राहमण और मेघवाल जाती से विधायक बने। राजपूत बाहुल्य इस विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस चार बार तो भाजपा तीन बार चुनाव जीती चार बार निर्दलीय ,एक एक बार जनता पार्टी ,जनता दल और स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार जीते।
जातिगत समीकरण। जैसलमेर विधानसभा क्षेत्र में राजपूत बाहुल्य तीन क्षेत्र खडाल ,सोढाण और बसिया हें जन्हा उनसितर हज़ार राजपूत बसते हें वाही 37 हज़ार सिन्धी मुस्लिम ,छबीस हज़ार अनुसूचित जाती ,तेरह हज़ार अनुसूचित जन जाती बीस हज़ार रवाना राजपूत और हजुरी,तेरह हज़ार अनुसूचित जनजाति ,अन्य बड़े समाजो में ब्राहमण ,माली ,शामिल हें। इस बार करीब बीस हज़ार नए युवा मतदाता जुड़े हें। मुस्लिम और अनुसूचित जाती कांग्रेस के साथ रहे हें वाही राजपूत भाजपा के हें ,गैर कांग्रेसी विचारधारा के राजपूत इस सीट से जीते हें। कुछ राजपूत कांग्रेस में भी हें।
गत चुनाव। । गत चुनावों में भाजपा के छोटू सिंह भाटी और कांग्रेस की श्रीमती सुनीता भाटी के बीच मुकाबला था मगर कांग्रेस के बागी गोवर्धन कल्ला ,रेशमाराम ,भाजपा के किशन सिंह भाटी भी मैदान में थे ,जिसके कारन भाजपा यह सीट निकलने में कामयाब हुई
इस बार विधानसभा चुनावो में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर होने की संभावना हें कांग्रेस के दावेदारों की फेहरिस्त में सुनीता भाटी के आलावा रुपाराम धनदे ,उम्मेद सिंह तंवर ,दिनेश्पल सिंह ,अशोक तंवर ,जनक सिंह ने भी दावेदारी कर राखी हें ,संभावना बलवंती हें की पुराने प्रतिद्वंदियों सुनीता बहती और छोटू सिंह के बीच मुकाबला होना तय हें। शहरी क्षेत्र के मतदाताओं पर परिणाम निर्भर हें जो शहर के अधिक से अधिक मत लेगा विजय उसी की होगी। कांग्रेस के इस फरमान के बाद की बाहरी प्रत्यासी को मैदान उतरा जायेगा के बाद सुनीता पर फिर तलवार लटक सकती हें। हालांकि वो पिछला चुनाव जैसलमेर से लड़ी थी। साले मोहम्मद विधायक पोकरण भी बाहरी प्रत्यासी हें। वो खुद जैसलमेर हें।
वर्तमान विधायक। गत पांच सालो में वर्तमान विधायक छोटू सिंह हर मोर्चे पर सक्रीय रहे ,विकास के काम ज्यादा नहीं हुए क्यूंकि सत्ता उनके विरोधी दल की हें फिर भी उन्होंने सक्रियता दिखाई लोगो की समस्याओ के समाधान के लिए उनके साथ खड़े नज़र आये। विधायक कोष की राशी का भी उन्होंने पूरा उपयोग जन हित में किया ,उन पर भेदभाव या भरष्टाचार का कोई आरोप नहीं हें। साफ़ छवि के कारन उन्हें पार्टी दुबारा मौका दे सकती हें हालांकि पूर्व विधायक संघ सिंह उन्हें कड़ी चुनौती दे रहे हें ,सांग सिंह भी पांच सालो तक किसानो की समस्याओ के निदान के लिए उनके साथ तत्परता से खड़े रहे।
गाजी फ़क़ीर का हौवा। ज़ब जब चुनाव आते हें अल्पसंख्यक धर्म गुरु फक्लिर को रहनुमा बताकर जैसलमेर की राजनीती उनके इशारे पर चलने की बात कही जाती हें मगर पिछले तरह चुनावो में गाजी फ़क़ीर का एक मात्र उम्मीदवार मुल्तानाराम बारुपाल ही जीत पाए ,गाजी का भाई भी विधानसभा चुनाव लड़ा मगर सफल नहीं हुआ ,एक बार भी जैसलमेर से अल्पसंख्यक विधायन नहीं बना। गाजी फ़क़ीर के वोटो की राजनीती इस बार कितना सारा दिखाएगी यह समय के गर्भ में हें ,फ़क़ीर परिवार और सुनीता भाटी के बीच राजनीती मतभेद जग जाहिर हें ऐसे में फ़क़ीर के अनुयायी सुनीता भाटी के साथ खड़े रहेंगे पर संशय बरकरार हें। गत चुनावो में कांग्रेस के उम्मीदवार की हार का कारन फ़क़ीर परिवार था।
गाजी परिवार की रणनीति। । गाजी फ़क़ीर परिवार मुस्लिम मेघवाल गठजोड़ को फिर आजमाने के लिए प्रयासरत हें इसके लिए उन्होंने रुपाराम धनदे को चुना हें ,फ़क़ीर परिवार उन्हें टिकट दिलाने के लिए पूरा जोर लगा रहे हें। इसमे वो सफल होते नज़र आ रहे थे मगर सुनीता भाटी ने आलाकमान को स्पष्ट कहा की वो चुनावो में निष्क्रिय रहेगी ,सुनीता बहती का दबदबा अछ ख़ासा हें। पार्टी ने रुपाराम की जीत की जिम्मेदारी पोकरण विधायक साले मोहम्मद को लेने को कहा तो वो पीछे खिसक गए। गाजी फ़क़ीर परिवार पिछले चार माह से विवादों में घिरा हें। पुलिस द्वारा गाजी फ़क़ीर की हिस्ट्रीशीट खोलने ,विधायक साले मोहम्मद पर पाक जासूस को पनाह देने ,और छोटे पुत्र पर भर्ष्टाचार के आरोप लगने से फ़क़ीर परिवार की राजनितिक पायदान निचे गिरी हें। जैसलमेर शहर में फ़क़ीर परिवार समर्थको का दबदबा हें। सरकारी विभागों में इनके हसक्षेप के कारण अन्य समाज अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहे हें।
भाजपा और कांग्रेस के पास अपनी प्रतिष्ठा बचने के अवसर हें इस बार। कांग्रेस हमेशा राजपूत उम्मीदवारों के सहारे ही चुनाव जीती हें एक बार ब्राहमण उम्मीदवार गोर्धन कल्ला चुनाव जीते।
राजपरिवार का दखल। । राजपरिवार का जैसलमेर की राजनीती में कोई विशेष दखल नहीं हें। लम्बे समय तक जैसलमेर की राजनीती राजपरिवार के इर्द गिर्द घुमि बाद में लगातार हारो के कारन इनका मोहभंग हो गया। सीधे तौर पर राजघराने के सदस्य स्वर्गीय चंद्रवीर सिंह की पत्नी श्रीमती रेणुका भाटी भाजपा के साथ जुडी हें सक्रीय भी हें। मगर अब चुनावो में राजपरिवार के दबदबे जैसी बात नहीं हें।
भितरघात। …. भीतरघात का डर दोनों दलों को सता रहा हें। सांग सिंह भाटी सशक्त दावेदार हें उन्हें टिकट नहीं मिलती तो उनका रुख भाजपा का कांग्रेस में सुनीता भाटी के उम्मीदवार होने की स्थति में गाजी फक्लिर परिवार पर निगाहें रहेगी। जैसलमेर के उभरते राजनितिक सितारे सुनीता भाटी को जीता कर अपने राजनितिक भविष्य पर ग्रहण लगेंगे ऐसा नहीं लगता।
- दुनिया के सबसे बड़े विधानसभा चुनाव क्षेत्र के रूप में जैसलमेर की छठा निराली है।गोवा, त्रिपुरा, नगालैंड, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, दिल्ली, अंडमान-निकोबार, दादर, नगर हवेली और लक्षद्वीप वगैरह से भी बड़ा है यह विधानसभा चुनाव क्षेत्र।
इसका क्षेत्रफल 28 हजार 875 वर्ग किलोमीटर है, जिसका करीब साढ़े चार सौ किलोमीटर भाग भारत पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटा है।जैसलमेर विधानसभा क्षेत्र में राजपूतो का दबदबा रहा हें। अब तक हुए तेरह विधानसभा चुनावो में ग्यारह राजपूत उम्मीदवार विधायक बने एक एक बार ब्राहमण और मेघवाल जाती से विधायक बने। राजपूत बाहुल्य इस विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस चार बार तो भाजपा तीन बार चुनाव जीती चार बार निर्दलीय ,एक एक बार जनता पार्टी ,जनता दल और स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार जीते।
जातिगत समीकरण। जैसलमेर विधानसभा क्षेत्र में राजपूत बाहुल्य तीन क्षेत्र खडाल ,सोढाण और बसिया हें जन्हा उनसितर हज़ार राजपूत बसते हें वाही 37 हज़ार सिन्धी मुस्लिम ,छबीस हज़ार अनुसूचित जाती ,तेरह हज़ार अनुसूचित जन जाती बीस हज़ार रवाना राजपूत और हजुरी,तेरह हज़ार अनुसूचित जनजाति ,अन्य बड़े समाजो में ब्राहमण ,माली ,शामिल हें। इस बार करीब बीस हज़ार नए युवा मतदाता जुड़े हें। मुस्लिम और अनुसूचित जाती कांग्रेस के साथ रहे हें वाही राजपूत भाजपा के हें ,गैर कांग्रेसी विचारधारा के राजपूत इस सीट से जीते हें। कुछ राजपूत कांग्रेस में भी हें।
गत चुनाव। । गत चुनावों में भाजपा के छोटू सिंह भाटी और कांग्रेस की श्रीमती सुनीता भाटी के बीच मुकाबला था मगर कांग्रेस के बागी गोवर्धन कल्ला ,रेशमाराम ,भाजपा के किशन सिंह भाटी भी मैदान में थे ,जिसके कारन भाजपा यह सीट निकलने में कामयाब हुई
इस बार विधानसभा चुनावो में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर होने की संभावना हें कांग्रेस के दावेदारों की फेहरिस्त में सुनीता भाटी के आलावा रुपाराम धनदे ,उम्मेद सिंह तंवर ,दिनेश्पल सिंह ,अशोक तंवर ,जनक सिंह ने भी दावेदारी कर राखी हें ,संभावना बलवंती हें की पुराने प्रतिद्वंदियों सुनीता बहती और छोटू सिंह के बीच मुकाबला होना तय हें। शहरी क्षेत्र के मतदाताओं पर परिणाम निर्भर हें जो शहर के अधिक से अधिक मत लेगा विजय उसी की होगी। कांग्रेस के इस फरमान के बाद की बाहरी प्रत्यासी को मैदान उतरा जायेगा के बाद सुनीता पर फिर तलवार लटक सकती हें। हालांकि वो पिछला चुनाव जैसलमेर से लड़ी थी। साले मोहम्मद विधायक पोकरण भी बाहरी प्रत्यासी हें। वो खुद जैसलमेर हें।
वर्तमान विधायक। गत पांच सालो में वर्तमान विधायक छोटू सिंह हर मोर्चे पर सक्रीय रहे ,विकास के काम ज्यादा नहीं हुए क्यूंकि सत्ता उनके विरोधी दल की हें फिर भी उन्होंने सक्रियता दिखाई लोगो की समस्याओ के समाधान के लिए उनके साथ खड़े नज़र आये। विधायक कोष की राशी का भी उन्होंने पूरा उपयोग जन हित में किया ,उन पर भेदभाव या भरष्टाचार का कोई आरोप नहीं हें। साफ़ छवि के कारन उन्हें पार्टी दुबारा मौका दे सकती हें हालांकि पूर्व विधायक संघ सिंह उन्हें कड़ी चुनौती दे रहे हें ,सांग सिंह भी पांच सालो तक किसानो की समस्याओ के निदान के लिए उनके साथ तत्परता से खड़े रहे।
गाजी फ़क़ीर का हौवा। ज़ब जब चुनाव आते हें अल्पसंख्यक धर्म गुरु फक्लिर को रहनुमा बताकर जैसलमेर की राजनीती उनके इशारे पर चलने की बात कही जाती हें मगर पिछले तरह चुनावो में गाजी फ़क़ीर का एक मात्र उम्मीदवार मुल्तानाराम बारुपाल ही जीत पाए ,गाजी का भाई भी विधानसभा चुनाव लड़ा मगर सफल नहीं हुआ ,एक बार भी जैसलमेर से अल्पसंख्यक विधायन नहीं बना। गाजी फ़क़ीर के वोटो की राजनीती इस बार कितना सारा दिखाएगी यह समय के गर्भ में हें ,फ़क़ीर परिवार और सुनीता भाटी के बीच राजनीती मतभेद जग जाहिर हें ऐसे में फ़क़ीर के अनुयायी सुनीता भाटी के साथ खड़े रहेंगे पर संशय बरकरार हें। गत चुनावो में कांग्रेस के उम्मीदवार की हार का कारन फ़क़ीर परिवार था।
गाजी परिवार की रणनीति। । गाजी फ़क़ीर परिवार मुस्लिम मेघवाल गठजोड़ को फिर आजमाने के लिए प्रयासरत हें इसके लिए उन्होंने रुपाराम धनदे को चुना हें ,फ़क़ीर परिवार उन्हें टिकट दिलाने के लिए पूरा जोर लगा रहे हें। इसमे वो सफल होते नज़र आ रहे थे मगर सुनीता भाटी ने आलाकमान को स्पष्ट कहा की वो चुनावो में निष्क्रिय रहेगी ,सुनीता बहती का दबदबा अछ ख़ासा हें। पार्टी ने रुपाराम की जीत की जिम्मेदारी पोकरण विधायक साले मोहम्मद को लेने को कहा तो वो पीछे खिसक गए। गाजी फ़क़ीर परिवार पिछले चार माह से विवादों में घिरा हें। पुलिस द्वारा गाजी फ़क़ीर की हिस्ट्रीशीट खोलने ,विधायक साले मोहम्मद पर पाक जासूस को पनाह देने ,और छोटे पुत्र पर भर्ष्टाचार के आरोप लगने से फ़क़ीर परिवार की राजनितिक पायदान निचे गिरी हें। जैसलमेर शहर में फ़क़ीर परिवार समर्थको का दबदबा हें। सरकारी विभागों में इनके हसक्षेप के कारण अन्य समाज अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहे हें।
भाजपा और कांग्रेस के पास अपनी प्रतिष्ठा बचने के अवसर हें इस बार। कांग्रेस हमेशा राजपूत उम्मीदवारों के सहारे ही चुनाव जीती हें एक बार ब्राहमण उम्मीदवार गोर्धन कल्ला चुनाव जीते।
राजपरिवार का दखल। । राजपरिवार का जैसलमेर की राजनीती में कोई विशेष दखल नहीं हें। लम्बे समय तक जैसलमेर की राजनीती राजपरिवार के इर्द गिर्द घुमि बाद में लगातार हारो के कारन इनका मोहभंग हो गया। सीधे तौर पर राजघराने के सदस्य स्वर्गीय चंद्रवीर सिंह की पत्नी श्रीमती रेणुका भाटी भाजपा के साथ जुडी हें सक्रीय भी हें। मगर अब चुनावो में राजपरिवार के दबदबे जैसी बात नहीं हें।
भितरघात। …. भीतरघात का डर दोनों दलों को सता रहा हें। सांग सिंह भाटी सशक्त दावेदार हें उन्हें टिकट नहीं मिलती तो उनका रुख भाजपा का कांग्रेस में सुनीता भाटी के उम्मीदवार होने की स्थति में गाजी फक्लिर परिवार पर निगाहें रहेगी। जैसलमेर के उभरते राजनितिक सितारे सुनीता भाटी को जीता कर अपने राजनितिक भविष्य पर ग्रहण लगेंगे ऐसा नहीं लगता।