कौन करे याद कुर्बानी....आज़ादी का गुमनाम योधा चौहटन के शहीद श्याम सिंह
स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम योद्घा श्याम सिंह चौहटन
बाड़मेर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जुझने वाले राजस्थानी योद्घाओं में टाकुर श्याम सिह राठौड का बलिदान विस्मृत नही किया जा सकता।1857 के दोव्यापी अंग्रेज सत्ता विरोधी सास्त्र संर्घश के पूर्व भी राजस्थान में ऐसे अनेक स्वातं़त्रयचेता सपूत हो चुके हैं जिन्होने ब्रिटि सत्ता के वरदहस्त को विशौला वरदान समझा था।मालानी के भासक रावळ मल्लीनाथ स्वाभिमानी और वीर छक के लिऐ जाने जाते थे।
मलानी में अंग्रेजों के बार बार धावों से त्रस्त होकर स्वतंत्रता संग्राम प्रेमी मालानी के योद्घा उत्तेजित हो उठे और अंग्रेजो के विरूद्ध धावे मारने लगे।अंग्रेजों ने संवंत 1891वि सं में मालानी पर सैनिक चाई बोल दी।बाहडमेर में भी ठाकुर श्याम सिह के नेतृत्व में युद्ध की रणभेरी बजायी।अपनी ढाले भाले,सांगे,और तलवारेों की धारें तीक्ष्ण की।कवि कहता हैं
ग भरुजां तिलंग रचै जंग गोरा,चूरै गिर ग तोप चलाय ।
माहव किण पातक सूं मेली,बाडमेर पर इसी बलाय॥
बाहडमेर के कोट पर तोपो के प्रहारों से कोट की दीवारें टूट टूट कर गिर रहा था।बाहडमेर पर ऐसी आपत्ति देख क्षत्रियों की भुजाऐं फडक उठी।अंग्रेजों की फोजे आक फोग को रौंदती हुई चौहटन को फतेह करने के इरादें से पहूचीॅ।ठाकुर भयामसिह राठौड रण मद की छक में छका हुआ अपने भात्रुओं को दक्षिण दि के दिग्पाल का पुरी का पहुआ बनाने के लिऐ सामने उद्धत था। अंग्रेज सेनानायक ने श्याम सिंह को युद्ध ना कर आत्म समर्पण करने के लिऐ संदो भेजा। श्याम सिंह तो दो के शत्रुओ और स्वतंत्रता के विरोधी अंग्रेजों से रण भूमि में दो दो हाथ करने के अवसर खेज रहा था।राश्ट्रिस कवि बांकीदास आिया के काव्य में व्यक्त अंग्रेज सेनानायक और श्याम सिंह को भाोर्य पूर्ण प्रन का उत्तर सुनिऐ...
अंग्रेत बोलियों तेज उफणै,
कसर नम झोड म रौपै सिरदार।
हिन्दु आवध छोड हमै साहब नख,
सुणियों विण कहै बिना विचार॥
धरा न झल्ो लडवां धारवां
स्याम कहै किम नाखूं सांग।
पूजू। खाग घणै परमेसर,
ऊठै जाग खाग मझ आग॥
कळहण फाटा बाक कायरां,
बीर हाक बज चंहू वळां।ं।
छळ दळ कराबीण कै छूटो,
कै पिस्तौलां पथर कळां॥
अ्रंग्रेज सेनापति पे आक्रोश में उतेजित होकर कहा दृओ सरदार!युद्ध मत ठान।आत्मसर्मपण कर अपने जीवन की रक्षा कर।हे हिन्दु योद्घा ,अपने आयुध साहब के समक्ष रख दे।तूं सुन तो सही ,आगे पीछे भले बुरे ,हानि लाभ का बिना विचार किऐ व्यर्थ ही मरने के लिऐ हठ ठान रहा हैं।
वीरवर श्याम सिंह ने मृत्यु की उपेक्षा करते हुऐ कहा .यदि मरण भय से आत्मसर्मपण करुं तो यह क्षमा शील पृथ्वी भार झेलना त्याग देगी।तब फिर मैं शस्त्र सुपुर्द कैसे करू।तलवार और परमेवर का मैं समान रूप से आराधक हूॅ।अत;शस्त्र त्याग जीवन की भिक्षा याचना के लिये तो मैंने शस्त्र उठाया ही नहीं हैं।बैरियों के सिरच्छदन के लिये मैं अपने हाथ में तलवार रखता हूॅ।
कायरों के मुॅह फटे से रह गये।चारों ओर मारो काटों की आवाजें गूंजने लगी।कराबीनें पत्थर कलायें और पिस्तोल के गोले गोलियों की आवाजें गूॅजने लगी।कायरों के कलेजे कॉपने लगे।वीर नाद से धरा आका में कोहराम मच गया।क्षण मात्र में देखते देखते ही नर मुण्डों के पुंज लग गये।मरूस्थल में रक्त की सरिता उमडने लगी।
मालानी प्रदो के कीर्ति रूपी जल से सींचने वाला वीर श्याम सिंह अपने दो की स्वतंत्रता के लिये जुॅझने लगा।अपने प्रतापी पूर्वज रावल मल्लीनाथ,रावल जगमाल,रावल हापा की र्कीति गाथओं का स्मरण कर अंग्रेजों की सेंना पर टूट पडा।उसके पदाति साथियों ने जय मल्लीनाथ ,जय दुर्गे के विजय घोश से भात्रु सेना को विचहलत कर दिया।
उस हटीले वीर श्याम सिंह ने सादी जैसे साहसी साथियों को अपने संग लेकर सिंह की तरह दहाडते हुऐ आक्रमण किया और सुमेर कहकर िखर की भांति अडिगबाहडमेर ने गोरंगों से भयानक युद्ध छेडा।उस वीर भोरसिह तनेय श्याम सिंह ने अंग्रेजों ेी तोप ,तमंचों से सनद्ध सेना का तनिक भी भय नहीं माना।शत्रुओं का संहार कर उसने बाहउमेरों की खांप को किर्तित किया तथा चौहटन वालों की वीरता का प्रतीक बन गया।अंग्रेजों की पलटनों को अपने प्रतापी पूर्वज सोमा की भांति तलवार उठा कर अत्यंत उत्साह के साथ भयानक युद्ध लडा।मरणेत्साही ऐसे क्षत्रिय सपूतों को रंग हैं जो मातृभूमि की गौरव रक्षा के लिये प्राणें कोत1ण तुल्य मानते हैं।
सेना रूपी दुल्हन का दुल्हा वी श्याम सिंह रणागण में दृतापूर्वक अपने पेरो को स्थिर कर युद्ध करने लगा और अन्त में अपने प्यारे वतन की आजादी का टेक का निर्वहन करता हुआ रणौया पर सो गया।कवि मरसिया ने कहा कि
स्यामा जिसा सपूत,मातभौम नेही मरद।
रजधारी रजपूत ,विधना धडजै तुं वळै॥ े
स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम योद्घा श्याम सिंह चौहटन
बाड़मेर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जुझने वाले राजस्थानी योद्घाओं में टाकुर श्याम सिह राठौड का बलिदान विस्मृत नही किया जा सकता।1857 के दोव्यापी अंग्रेज सत्ता विरोधी सास्त्र संर्घश के पूर्व भी राजस्थान में ऐसे अनेक स्वातं़त्रयचेता सपूत हो चुके हैं जिन्होने ब्रिटि सत्ता के वरदहस्त को विशौला वरदान समझा था।मालानी के भासक रावळ मल्लीनाथ स्वाभिमानी और वीर छक के लिऐ जाने जाते थे।
मलानी में अंग्रेजों के बार बार धावों से त्रस्त होकर स्वतंत्रता संग्राम प्रेमी मालानी के योद्घा उत्तेजित हो उठे और अंग्रेजो के विरूद्ध धावे मारने लगे।अंग्रेजों ने संवंत 1891वि सं में मालानी पर सैनिक चाई बोल दी।बाहडमेर में भी ठाकुर श्याम सिह के नेतृत्व में युद्ध की रणभेरी बजायी।अपनी ढाले भाले,सांगे,और तलवारेों की धारें तीक्ष्ण की।कवि कहता हैं
ग भरुजां तिलंग रचै जंग गोरा,चूरै गिर ग तोप चलाय ।
माहव किण पातक सूं मेली,बाडमेर पर इसी बलाय॥
बाहडमेर के कोट पर तोपो के प्रहारों से कोट की दीवारें टूट टूट कर गिर रहा था।बाहडमेर पर ऐसी आपत्ति देख क्षत्रियों की भुजाऐं फडक उठी।अंग्रेजों की फोजे आक फोग को रौंदती हुई चौहटन को फतेह करने के इरादें से पहूचीॅ।ठाकुर भयामसिह राठौड रण मद की छक में छका हुआ अपने भात्रुओं को दक्षिण दि के दिग्पाल का पुरी का पहुआ बनाने के लिऐ सामने उद्धत था। अंग्रेज सेनानायक ने श्याम सिंह को युद्ध ना कर आत्म समर्पण करने के लिऐ संदो भेजा। श्याम सिंह तो दो के शत्रुओ और स्वतंत्रता के विरोधी अंग्रेजों से रण भूमि में दो दो हाथ करने के अवसर खेज रहा था।राश्ट्रिस कवि बांकीदास आिया के काव्य में व्यक्त अंग्रेज सेनानायक और श्याम सिंह को भाोर्य पूर्ण प्रन का उत्तर सुनिऐ...
अंग्रेत बोलियों तेज उफणै,
कसर नम झोड म रौपै सिरदार।
हिन्दु आवध छोड हमै साहब नख,
सुणियों विण कहै बिना विचार॥
धरा न झल्ो लडवां धारवां
स्याम कहै किम नाखूं सांग।
पूजू। खाग घणै परमेसर,
ऊठै जाग खाग मझ आग॥
कळहण फाटा बाक कायरां,
बीर हाक बज चंहू वळां।ं।
छळ दळ कराबीण कै छूटो,
कै पिस्तौलां पथर कळां॥
अ्रंग्रेज सेनापति पे आक्रोश में उतेजित होकर कहा दृओ सरदार!युद्ध मत ठान।आत्मसर्मपण कर अपने जीवन की रक्षा कर।हे हिन्दु योद्घा ,अपने आयुध साहब के समक्ष रख दे।तूं सुन तो सही ,आगे पीछे भले बुरे ,हानि लाभ का बिना विचार किऐ व्यर्थ ही मरने के लिऐ हठ ठान रहा हैं।
वीरवर श्याम सिंह ने मृत्यु की उपेक्षा करते हुऐ कहा .यदि मरण भय से आत्मसर्मपण करुं तो यह क्षमा शील पृथ्वी भार झेलना त्याग देगी।तब फिर मैं शस्त्र सुपुर्द कैसे करू।तलवार और परमेवर का मैं समान रूप से आराधक हूॅ।अत;शस्त्र त्याग जीवन की भिक्षा याचना के लिये तो मैंने शस्त्र उठाया ही नहीं हैं।बैरियों के सिरच्छदन के लिये मैं अपने हाथ में तलवार रखता हूॅ।
कायरों के मुॅह फटे से रह गये।चारों ओर मारो काटों की आवाजें गूंजने लगी।कराबीनें पत्थर कलायें और पिस्तोल के गोले गोलियों की आवाजें गूॅजने लगी।कायरों के कलेजे कॉपने लगे।वीर नाद से धरा आका में कोहराम मच गया।क्षण मात्र में देखते देखते ही नर मुण्डों के पुंज लग गये।मरूस्थल में रक्त की सरिता उमडने लगी।
मालानी प्रदो के कीर्ति रूपी जल से सींचने वाला वीर श्याम सिंह अपने दो की स्वतंत्रता के लिये जुॅझने लगा।अपने प्रतापी पूर्वज रावल मल्लीनाथ,रावल जगमाल,रावल हापा की र्कीति गाथओं का स्मरण कर अंग्रेजों की सेंना पर टूट पडा।उसके पदाति साथियों ने जय मल्लीनाथ ,जय दुर्गे के विजय घोश से भात्रु सेना को विचहलत कर दिया।
उस हटीले वीर श्याम सिंह ने सादी जैसे साहसी साथियों को अपने संग लेकर सिंह की तरह दहाडते हुऐ आक्रमण किया और सुमेर कहकर िखर की भांति अडिगबाहडमेर ने गोरंगों से भयानक युद्ध छेडा।उस वीर भोरसिह तनेय श्याम सिंह ने अंग्रेजों ेी तोप ,तमंचों से सनद्ध सेना का तनिक भी भय नहीं माना।शत्रुओं का संहार कर उसने बाहउमेरों की खांप को किर्तित किया तथा चौहटन वालों की वीरता का प्रतीक बन गया।अंग्रेजों की पलटनों को अपने प्रतापी पूर्वज सोमा की भांति तलवार उठा कर अत्यंत उत्साह के साथ भयानक युद्ध लडा।मरणेत्साही ऐसे क्षत्रिय सपूतों को रंग हैं जो मातृभूमि की गौरव रक्षा के लिये प्राणें कोत1ण तुल्य मानते हैं।
सेना रूपी दुल्हन का दुल्हा वी श्याम सिंह रणागण में दृतापूर्वक अपने पेरो को स्थिर कर युद्ध करने लगा और अन्त में अपने प्यारे वतन की आजादी का टेक का निर्वहन करता हुआ रणौया पर सो गया।कवि मरसिया ने कहा कि
स्यामा जिसा सपूत,मातभौम नेही मरद।
रजधारी रजपूत ,विधना धडजै तुं वळै॥ े