तनोट माता मंदिर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
तनोट माता मंदिर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 27 मार्च 2020

कोरोना लॉक डाउन का असर सरहदी सैन्य शक्ति और भक्ती आस्था केंद्र तनोट माता मंदिर में सन्नाटा ,पुजारी के आलावा कोई नहीं

कोरोना लॉक डाउन का असर

सरहदी सैन्य शक्ति और भक्ती आस्था केंद्र तनोट माता मंदिर में सन्नाटा ,पुजारी के  आलावा कोई नहीं

जैसलमेर सदियों में पहली बार सैन्य भक्ति और शक्ति आस्था केंद्र तनोट माता मंदिर में कोरोना संक्रमण के चलते  लॉक डाउन के कारन सन्नाटा पसरा हैं ,जबकि आम नवरात्रि में हज़ारो की तादाद में श्रद्धालु दर्शार्थ स्थानीय और बहरी प्रांतो से आते हैं ,खासकर सैनिक परिवारों की इस मंदिर के प्रति प्रगाढ़ आस्था हैं ,इस बार करोनाबन्दी के चलते मंदिर व्यवस्थापक ने मंदिर 31 मार्च तक आमजन के लिए  बंद रखने की घोषणा की थी ,तब से मंदिर में सिर्फ पुजारी द्वारा ही पूजा अर्चना करवाई जा रही हैं ,


तनोट राय माता  मंदिर का इतिहास

जैसलमेर से करीब 130 किमी दूर स्थि‍त माता तनोट राय (आवड़ माता) का मंदिर है। तनोट माता को देवी हिंगलाज माता का एक रूप माना जाता है। हिंगलाज माता शक्तिपीठ वर्तमान में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के लासवेला जिले में स्थित है।

भाटी राजपूत नरेश तणुराव ने तनोट को अपनी राजधानी बनाया था। उन्होंने विक्रम संवत 828 में माता तनोट राय का मंदिर बनाकर मूर्ति को स्थापित किया था। भाटी राजवंशी और जैसलमेर के आसपास के इलाके के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी तनोट माता की अगाध श्रद्धा के साथ उपासना करते रहे। कालांतर में भाटी राजपूतों ने अपनी राजधानी तनोट से हटाकर जैसलमेर ले गए परंतु मंदिर तनोट में ही रहा।

तनोट माता का य‍ह मंदिर यहाँ के स्थानीय निवासियों का एक पूज्यनीय स्थान हमेशा से रहा परंतु 1965 को भारत-पाक युद्ध के दौरान जो चमत्कार देवी ने दिखाए उसके बाद तो भारतीय सैनिकों और सीमा सुरक्षा बल के जवानों की श्रद्धा का विशेष केन्द्र बन गई।

सितम्बर 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हुआ। तनोट पर आक्रमण से पहले श‍त्रु (पाक) पूर्व में किशनगढ़ से 74 किमी दूर बुइली तक पश्चिम में साधेवाला से शाहगढ़ और उत्तर में अछरी टीबा से 6 किमी दूर तक कब्जा कर चुका था। तनोट तीन दिशाओं से घिरा हुआ था। यदि श‍‍त्रु तनोट पर कब्जा कर लेता तो वह रामगढ़ से लेकर शाहगढ़ तक के इलाके पर अपना दावा कर सकता था। अत: तनोट पर अधिकार जमाना दोनों सेनाओं के लिए महत्वपूर्ण बन गया था।

17 से 19 नवंबर 1965 को श‍त्रु ने तीन अलग-अलग दिशाओं से तनोट पर भारी आक्रमण किया। दुश्मन के तोपखाने जबर्दस्त आग उगलते रहे। तनोट की रक्षा के लिए मेजर जय सिंह की कमांड में 13 ग्रेनेडियर की एक कंपनी और सीमा सुरक्षा बल की दो कंपनियाँ दुश्मन की पूरी ब्रिगेड का सामना कर रही थी। शत्रु ने जैसलमेर से तनोट जाने वाले मार्ग को घंटाली देवी के मंदिर के समीप एंटी पर्सनल और एंटी टैंक माइन्स लगाकर सप्लाई चैन को काट दिया था।

दुश्मन ने तनोट माता के मंदिर के आसपास के क्षेत्र में करीब 3 हजार गोले बरसाएँ पंरतु अधिकांश गोले अपना लक्ष्य चूक गए। अकेले मंदिर को निशाना बनाकर करीब 450 गोले दागे गए परंतु चमत्कारी रूप से एक भी गोला अपने निशाने पर नहीं लगा और मंदिर परिसर में गिरे गोलों में से एक भी नहीं फटा और मंदिर को खरोंच तक नहीं आई।

सैनिकों ने यह मानकर कि माता अपने साथ है, कम संख्या में होने के बावजूद पूरे आत्मविश्वास के साथ दुश्मन के हमलों का करारा जवाब दिया और उसके सैकड़ों सैनिकों को मार गिराया। दुश्मन सेना भागने को मजबूर हो गई। कहते हैं सैनिकों को माता ने स्वप्न में आकर कहा था कि जब तक तुम मेरे मंदिर के परिसर में हो मैं तुम्हारी रक्षा करूँगी।

सैनिकों की तनोट की इस शानदार विजय को देश के तमाम अखबारों ने अपनी हेडलाइन बनाया।

एक बार फिर 4 दिसम्बर 1971 की रात को पंजाब रेजीमेंट की एक कंपनी और सीसुब की एक कंपनी ने माँ के आशीर्वाद से लोंगेवाला में विश्व की महानतम लड़ाइयों में से एक में पाकिस्तान की पूरी टैंक रेजीमेंट को धूल चटा दी थी। लोंगेवाला को पाकिस्तान टैंकों का कब्रिस्तान बना दिया था।

1965 के युद्ध के बाद सीमा सुरक्षा बल ने यहाँ अपनी चौकी स्थापित कर इस मंदिर की पूजा-अर्चना व व्यवस्था का कार्यभार संभाला तथा वर्तमान में मंदिर का प्रबंधन और संचालन सीसुब की एक ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है। मंदिर में एक छोटा संग्रहालय भी है जहाँ पाकिस्तान सेना द्वारा मंदिर परिसर में गिराए गए वे बम रखे हैं जो नहीं फटे थे।

लोंगेवाला विजय के बाद माता तनोट राय के परिसर में एक विजय स्तंभ का निर्माण किया, जहाँ हर वर्ष 16 दिसम्बर को महान सैनिकों की याद में उत्सव मनाया जाता है।

हर वर्ष आश्विन और चै‍त्र नवरात्र में यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। अपनी दिनोंदिन बढ़ती प्रसिद्धि के कारण तनोट एक पर्यटन स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध होता जा रहा है।

इतिहास: मंदिर के वर्तमान पुजारी सीसुब में हेड काँस्टेबल कमलेश्वर मिश्रा ने मंदिर के इतिहास के बारे में बताया कि बहुत पहले मामडि़या नाम के एक चारण थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्त करने की लालसा में उन्होंने हिंगलाज शक्तिपीठ की सात बार पैदल यात्रा की। एक बार माता ने स्वप्न में आकर उनकी इच्छा पूछी तो चारण ने कहा कि आप मेरे यहाँ जन्म लें।

माता कि कृपा से चारण के यहाँ 7 पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया। उन्हीं सात पुत्रियों में से एक आवड़ ने विक्रम संवत 808 में चारण के यहाँ जन्म लिया और अपने चमत्कार दिखाना शुरू किया। सातों पुत्रियाँ देवीय चमत्कारों से युक्त थी। उन्होंने हूणों के आक्रमण से माड़ प्रदेश की रक्षा की।



माड़ प्रदेश में आवड़ माता की कृपा से भाटी राजपूतों का सुदृढ़ राज्य स्थापित हो गया। राजा तणुराव भाटी ने इस स्थान को अपनी राजधानी बनाया और आवड़ माता को स्वर्ण सिंहासन भेंट किया। विक्रम संवत 828 ईस्वी में आवड़ माता ने अपने भौतिक शरीर के रहते हुए यहाँ अपनी स्थापना की।

विक्रम संवत 999 में सातों बहनों ने तणुराव के पौत्र सिद्ध देवराज, भक्तों, ब्राह्मणों, चारणों, राजपूतों और माड़ प्रदेश के अन्य लोगों को बुलाकर कहा कि आप सभी लोग सुख शांति से आनंदपूर्वक अपना जीवन बिता रहे हैं अत: हमारे अवतार लेने का उद्देश्य पूर्ण हुआ। इतना कहकर सभी बहनों ने पश्चिम में हिंगलाज माता की ओर देखते हुए अदृश्य हो गईं। पहले माता की पूजा साकल दीपी ब्राह्मण किया करते थे। 1965 से माता की पूजा सीसुब द्वारा नियुक्त पुजारी करता है।

रविवार, 22 जून 2014

जैसलमेर दुनिया का एक मात्र देवी मंदिर जन्हा अमर बकरों की बलि नहीं देखभाल होती हे।

जैसलमेर दुनिया का एक मात्र देवी मंदिर जन्हा अमर बकरों की बलि नहीं देखभाल होती हे। 




जैसलमेर पश्चिमी पाकिस्तानी सरहद से सटा जैसलमेर जिले का सैन्य देवी मंदिर तनोट माता मंदिर अपनी विशेषताओ के कारण देश भर में ख्याति अर्जित कर रहा हें।1965 और 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान सरहद वासियों की सुरक्षा माता जी के द्वारा करने के बाद सुर्खियों में आये इस मंदिर की पूजा से लेकर यात्रियों की सुविधा मंदिर की देख भाल सीमा सुरक्षा बल के जवान करते हें। इस मंदिर में अपनी मनोकामनाए पूर्ण होने के बाद बकरे की बलि चढाने सेकड़ो की तादाद में लोग अपनी कुलदेवी को प्रसन्न करने बकरे बलि चढाने के लिए लाते हे। पूर्व में इस मंदिर में बकरों की बलि चढ़ती थी। मगर बाद में मंदिर प्रबंधन सीमा सुरक्षा बल के अधिकारियो ने बलि पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया। 

इसके बावजूद लोग अपनी कुलदेवी को समर्पण के लिए चढ़ावे के रूप में बकरे लाते हे। सीमा सुरक्षा बल के पास अब तक एक हज़ार से अधिक बकरे एकत्रित हो चुके हे। चूँकि बलि पर रोक के बाद इन बकरों को देवी के नाम अमर कर दिया। इनके चारे पानी का प्रबंध बल के जवान करते हें। एक हज़ार से अधिक बकरों की एवड के लिए वन भूमि की व्यवस्था भी की हें। इनकी पूरी देख भाल होती हें। भारतीय महीनो में भद्रवा और चेत्र बड़े महीने माने जाते हे। इन महीनो में सर्वाधिक बकरे बलि के लिए श्रद्धालु लाते हे। सबसे बड़ी बात की बकरों को बांध के नहीं रखा जाता। 
बकरे मंदिर परिसर में आसानी से विचरण कर अपने बाड़े में चले जाते हें। अमूमन जैसलमेर की सभी नौ देवी मंदिरों में से आठ मंदिरों में बकरों की बलि आज भी चढ़ाई जाती हें ।मगर तनोट मंदिर प्रबंधन ने अनूठी पहल कर बकरों को न केवल जीवन दान दे रहे अपितु उनकी समुचित देखभाल भी करते हें। इसी मंदिर परिसर में मुस्लिम धर्म के बाबा की दरगाह हें। हिन्दू मंदिर परिसर में दरगाह वाला यह संभवत पहला मंदिर हें। इस मंदिर में श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ण के लिए परिसर में रुमाल बंधाते हें ।इस परिसर में हजारो रुमाल बंधे हें ।मनोकामना पूर्ण होने के बाद रुमाल को वापस खोलते हे शराद्धालू। तनोत माता का यह चमत्कारिक मंदिर देश भर में ख्याति अर्जित कर रहा हें ।हजारो की तादाद में देश भर से सेना के जवान अधिकारी जनप्रतिनिधि धोक देने पहुंचाते हें।

मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

सैन्य शक्ति और भक्ति का अनूठा संगम तनोट माता मंदिर में



सीमा की चौकसी के साथ भक्तों की सेवा 


जैसलमेर रामगढ़ सीमा सुरक्षा बल के जवानों द्वारा भारतीय सीमा की चौकसी के साथ साथ तनोट माता के दर्शनार्थ आने वाले भक्तों की सेवा भी की जा रही है। मुख्य द्वार से माता के मंदिर तक पैदल चलकर पहुंचने में असमर्थ भक्तों को बीएसएफ के जवान व्हील चेयर पर बिठा कर माता के दर्शन करवा रहे हैं। जवानों की इसी भक्ति भावना से माता के दर्शनार्थ आने वाला हर श्रद्धालु प्रभावित है। 62वीं वाहिनी सीमा सुरक्षा बल के समादेष्टा मनोज कार्की के निर्देशन में जवानों द्वारा तनोट में व्यवस्था सुचारू रूप से चलाई जा रही है। प्रतिदिन दो समय चलने वाले माता के भण्डारे में जवानों की ओर से मान मनुहार कर भक्तों को भोजन करवाया जाता है। जवान सीमा की चौकसी के साथ तनोट मंदिर का जिम्मा बखूबी निभा रहे हैं। तनोट आने वाला हर भक्त सीमा सुरक्षा बल के जवानों के सेवा भावना से किए जा रहे कार्य की सराहना करता है। बीएसएफ द्वारा रात्रि विश्राम करने वाले भक्तों को बिस्तर आदि मुहैया करवाए जा रहे हैं वहीं मंदिर परिसर में निशुल्क चिकित्सा शिविर भी लगाया गया है। सुरक्षा की दृष्टि से सीमा सुरक्षा बल के जवानों के साथ पुलिसथाना रामगढ़ के सहायक उप निरीक्षक देवीसिंह मय जाब्ते के मौजूद है। 

तनोट में जमता है आरती का अनूठा रंग 

सीमा क्षेत्र में स्थित शक्तिपीठ मातेश्वरी तनोटरॉय मंदिर में आस्था का सैलाब उमड़ रहा है। नवरात्र के मौके पर तनोट में इन दिनों माहौल भक्तिमय बना हुआ है। मातेश्वरी तनोटरॉय मंदिर में प्रतिदिन सीमा सुरक्षा बल के जवानों द्वारा की जाने वाली आरती में भक्ति भावना के साथ जोश का अनूठा रंग नजर आता है। आरती के दौरान मंदिर परिसर में उपस्थित हर श्रद्धालु झूमने पर विवश हो जाता है। मातेश्वरी तनोटरॉय मंदिर में प्रतिदिन तीन समय आरती होती है इस दौरान समूचा मंदिर परिसर खचाखच भर जाता है। नौ दिनों तक चलने वाले माता तनोट के मेले में दूर दराज से हजारों की संख्या में भक्त पहुंच रहे हैं वहीं सैकड़ों श्रद्धालु पैदल यात्रा कर माता के दरबार में पहुंच रहे हैं।

दैनिक हवन में दी आहुतियां

सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित शक्तिपीठ मातेश्वरी तनोटरॉय मंदिर में आस्था का ज्वार उमड़ रहा है। तनोट में माता के जयकारों से वातावरण गुंजायमान हो जाता है। मंदिर में सोमवार को हुए हवन में भक्तजनों ने आहुतियां देकर देश में खुशहाली की कामना की। सांयकालीन आरती में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शरीक हुए तथा आरती के बाद माता के भण्डारे में प्रसाद के रूप में भोजन ग्रहण किया। बाहरी जिलों से आए भक्तों ने तनोट में रात्रि विश्राम किया।