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रविवार, 10 अक्टूबर 2021

गिरनार की रंगत ,स्वर्ग से सुंदर श्री गोरखनाथ आश्रम

 गिरनार की रंगत  ,स्वर्ग से सुंदर श्री गोरखनाथ आश्रम 











आप गुजरात के                                                                                                                                        गिरनार जा रहे हे तो ठहरने की चिंता से मुक्त होकर जा सकते हैं ,आपको गिरनार में सर्वाधिक खूबसूरत ,शकुन और शनि प्रदान करने वाला श्री  आश्रम मिल जायेगा ,सफ़ेद रंग का विशाल आश्रम मन को  शांति प्रदान करता हैं ,आश्रम एक दम साफ़ सुथरा जिसकी मिसाल  दी जा सकती हैं आश्रम में करीब 90 से अधिक कमरे हैं जो किसी भी फाइव स्टार होटल के मुकाबले कहीं कम नहीं ,एकदम साफ़ सुथरे ,आपको ए सी ,नॉन ए सी दोनों श्रेणी के कमरे उपलब्ध हो सकते हं। ए सी कमरा सौलह सौ ,नॉन ए  सी बारह सौ में उपलब्ध हो जायेंगे ,आश्रम में बड़े हॉल भी हैं ,साथ ही बैठने के लिए शकुन भरा चौक हैं ,आश्रम की व्यवस्था गुरु महेन्द्रनाथ देखते हैं ,

आश्रम में चाय की निशुल्क व्यवस्था तो हे ही साथ ही आश्रम परिसर में भंडारा संचालित होता हे जंहा सात्विक और स्वादिष्ट भोजन यात्रियों को निशुल्क उपलब्ध होता हे ,आश्रम के सेवादार बड़े स्नेह के साथ आपको भोजन करवाते हे ,भोजन जितना भाये उतना ले नष्ट न करे यहाँ थाली में अन्न व्यर्थ न हो  ख्याल रखे ,भोजन में सब्जी ,दाल ,कड़ी ,चावल ,भजिया ,मिठाई ,चपाती ,बाजरे की रोटी ,छाछ मिलती हैं ,साथ ही यहाँ सुबह अल्पाहार भी निशुल्क उपलब्ध होता हैं ,आश्रम में आप चप्पल ,जूतें पहनकर नहीं जा सकते ,उन्हें बाहर मुख्य द्वार के पास उतारे या पॉलीथिन में डालकर अपने कमरे में ले जा सकते हैं ,आश्रम में गुरु गोरखनाथ जी ,त्रिलोकनाथ का प्राचीन धूणा हे जंहा अखंड ज्योत अनवरत चल रही हैं ,आश्रम परिसर में भगवन शिव का मंदिर हे वही गोरखनाथ जी ,त्रिलोकनाथ जी के भी मंदिर बेहद खूबसूरत बने हुए हैं ,शाम सात बजे यहाँ आरती होती हे गुरु शेरनाथ बापू खुद आरती करते हैं ,करीब एक घंटे तक यह आरती चलती हैं,आश्रम प्रमुख गुरु शेरनाथ बापू के चेहरे पर अलौकिक तेज़ हैं ,जो हर किसी को प्रभावित करता हैं ,अमूमन शेरनाथ बापू आश्रम  में अपने आसान पर ही विराजित रहते हैं ,दर्शार्थियों से बड़े आदर,प्रेमभाव और स्नेह के साथ मिलते हैं ,साथ ही आने वाले हर दर्शनार्थी के लिए चाय और प्रसाद की व्यवस्था रहती हैं ,मुखवास भी हर दरसनार्थी को उपलब्ध रहता हैं ,

 गौशाला जंहा गिर नस्ल की गायों का होता सरंक्षण 

आश्रम प्रमुख गुरु शेरनाथ बापू ने हमे आश्रम द्वारा संचालित गौ शाला के दर्शन करवाए ,बापू के साथ हमने गौ शाला देखि आश्चर्य हुआ की कोई गौ शाला  इतनी साफ़ सुथरी कैसे हो सकती हैं ,करीं नब्बे गिर नस्ल की गाये इस गौशाला में उपब्ध थी साथ ही गिर नस्ल का नंदी भी गौ शाला में हे जिनके दर्शन करने प्रत्येक यात्री आता हैं ,गौ शाला के दर्शन कर धन्य हो गए ,गायों की सेवा निस्वार्थ भाव से होती हैं ,गंदगी का टुकड़ा तक नहीं मिला ,गुरु शेरनाथ बापू ने विस्तार से गौ शाला की जानकारी उपलब्ध कराई  ,

भोजनशाला 

आश्रम परिसर के सामने भोजनशाला कम भंडरा संचालित किया जाता हैं ,जंहा प्रतिदिन डेढ़ से दो  हजार श्रद्धालु निशुल्क भोजन और अल्पाहार लेते हैं ,बापू शेरनाथ खुद भोजन शाला की व्यस्था देखने  आते रहते हैं। भोजन में सात्विक प्रसाद आपकी थाली में परोसा जाता हैं भोजन के बाद आपको अपनी थाली खुद चार स्तरीय बर्तन साफ़ करने की व्यवस्था की राखी हैं ,

छोटे कपड़े पहन आश्रम में प्रवेश  नहीं 

श्री गोरखनाथ आश्रम में निकर ,हाफ पेण्ट ,कम कपड़े वालो को प्रवेश नहीं दिया जाता ,भारतीय संस्कृति और परम्पराओं का निर्वहन अच्छे से होते देख शकुन मिला गुरु  शेरनाथ बापू भारतीय संस्कृति और परम्पराओ के हिमायती हैं ,



मंगलवार, 24 जून 2014

गिरनार पहाड़ियों की तलहटी में बसा है जूनागढ़



जूनागढ़  
गुजरात के सौराष्ट्र इलाके का हिस्सा है। जूनागढ़ गिरनार पहाड़ियों के निचले हिस्से पर स्थित है। मंदिरों की भूमि जूनागढ़ के प्राचीन शहर का नामकरण एक पुराने दुर्ग के नाम पर हुआ है। यहां पूर्व-हड़प्पा काल के स्थलों की खुदाई हुई है। इस शहर का निर्माण नौवीं शताब्दी में हुआ था। गिरनार के रास्ते में एक गहरे रंग की बेसाल्ट चट्टान है जिस पर तीन राजवंशों का प्रतिनिधित्व करने वाला शिलालेख अंकित है। शहर के निकट स्थित कई मंदिर और मस्जिदें इसके लंबे और जटिल इतिहास को उद्घाटित करते हैं। जूनागढ़ इतिहास व वास्तुकला की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण शहर है। अपनी हरियाली और नवाबों के समकालीन किलों और महलों के कारण पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। गिरनार पर्वत पर स्थित जैन, हिंदू, मुस्लिम अनुयायियों को भी बरबस अपनी ओर खिंचता है।
प्रमुख आकर्षण:-

अशोक के शिलालेख (आदेशपत्र)-गिरनार जाने के रास्ते पर सम्राट अशोक द्वारा लगवाए गए शिलालेखों को देखा जा सकता है। ये शिलालेख विशाल पत्थरों पर उत्कीर्ण हैं। अशोक ने चौदह शिलालेख लगवाए थे। इन शिलालेखों में राजकीय आदेश खुदे हुए हैं। इसके अतिरिक्त इसमें नैतिक नियम भी लिखे हुए हैं। ये आदेशपत्र राजा के परोपकारी व्यवहार और कार्यो का प्रमाणपत्र है। अशोक के शिलालेखों पर ही शक राजा रुद्रदाम तथा [स्कंदगुप्त] के खुदवाए अभिलेखों को देखा जा सकता है। रुद्रदाम ने 150 ई. में तथा स्कंदगुप्त ने 450 ई. में ये अभिलेख खुदवाये थे। इस अभिलेख की एक विशेषता यह भी है कि रुद्रदाम के अभिलेख को ही संस्कृत भाषा का प्रथम शिलालेख माना जाता है।

अपरकोट किला-माना जाता है कि इस किले का निर्माण यादवों ने द्वारिका आने पर करवाया था (जो कृष्ण भगवान से संबंधित थे)। अपरकोट की दीवारें किसी-किसी स्थान पर 20 मीटर तक ऊंची है। किले पर की गई नक्काशी अभी भी सुरक्षित अवस्था में है। इस किले में पश्चिमी दीवार पर दो तोपे लगी हैं। इन तोपों का नाम नीलम और कांडल है। इन तोपों का निर्माण मिस्त्र में हुआ था। इस किले के चारों ओर 200 ईस्वी पूर्व से 200 ईस्वी तक की बौद्ध गुफाएं है।

सक्करबाग प्राणी उद्यान-जूनागढ़ का यह प्राणीउद्यान गुजरात का सबसे पुराना प्राणीउद्यान है। यह प्राणीउद्यान गिर के विख्यात शेर के अलावा चीते और तेंदुआ के लिए प्रसिद्ध है। गिर के शेरों को लुप्तप्राय होने से बचाने के लिए जूनागढ़ के नवाब ने 1863 ईस्वी में इस प्राणीउद्यान का निर्माण करवाया था। यहां शेर के अलावा बाघ, तेंदुआ, भालू, गीदड़, जंगली गधे, सांप और चिड़िया भी देखने को मिलती है। यह प्राणीउद्यान लगभग 500 एकड़ में फैला हुआ है।

गिर राष्ट्रीय उद्यान-वन्य प्राणियों से समृद्ध गिर राष्ट्रीय उद्यान गिरनार जंगल के करीब है। यह राष्ट्रीय उद्यान आरक्षित वन है और एशियाई शेरों के लिए एकमात्र घर है। इस वन्य अभ्यारण्य में अधिसंख्य मात्रा में पुष्प और जीव-जन्तुओं की प्रजातियां मिलती है। यहां स्तनधारियों की 30 प्रजातियां, सरीसृप वर्ग की 20 प्रजातियां और कीड़ों-मकोड़ों तथा पक्षियों की भी बहुत सी प्रजातियां पाई जाती है। यहां हिरण, सांभर, चीतल, नीलगाय, चिंकारा, बारहसिंगा, भालू और लंगूर भी देखा जा सकता है।

बौद्ध गुफा-बौद्ध गुफा चट्टानों को काट कर बनायी गई है। इस गुफा में सुसज्जित खंभे, गुफा का अलंकृत प्रवेशद्वार, पानी के संग्रह के लिए बनाए गए जल कुंड, चैत्य हॉल, वैरागियों का प्रार्थना कक्ष, चैत्य खिड़कियां स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण पेश करती हैं। शहर में स्थित खापरा-कोडिया की गुफाएं भी देखने लायक है।

अड़ी-काड़ी वेव और नवघन कुआं-अड़ी-काड़ी वेव और नवघन कुआं का निर्माण चूडासमा राजपूतों ने कराया था। इन कुओं की संरचना आम कुओं से बिल्कुल अलग तरह की है। पानी के संग्रह के लिए इसकी अलग तरह की संरचना की गई थी। ये दोनों कुएं युद्ध के समय दो सालों तक पानी की कमी को पूरा कर सकते थे। अड़ी-कड़ी वाव तक पहुंचने के लिए 120 पायदान नीचे उतरना होता है, जबकि नवघन कुंआ 52 मीटर की गहराई में है। इन कुंओं तक पहुंचने के लिए गोलाकार सीढि़यां बनी हुई है।

जामा मस्जिद-जामा मस्जिद मूलत: रानकीदेवी का निवास स्थान था। मोहम्मद बेगड़ा ने जूनागढ़ फतह के दौरान (1470 ईस्वी) अपनी विजय की याद में इसे मस्जिद में तब्दील कर दिया था । यहां अन्य आकर्षणों में नीलम तोप है जिसे तुर्की के राजा सुलेमान के आदेश पर पुर्तगालियों से लड़ने के लिए बनवाया गया था। यह तोप मिस्त्र से दीव के रास्ते आई थी।

भावनाथ मंदिर-यहां पर हर साल दो त्योहार मनाए जाते हैं। अक्टूबर-नवंबर के महीने में पांच दिनों की अवधि के दौरान पांचवे दिन यानी पूर्णिमा के दिन कार्तिक महीने के समापन पर इस मंदिर की परिक्रमा करने के बाद झंडा लगाने के बाद आयोजित किया जाता है। गिरनार पर्वत के चारों ओर लगभग 40 किमी की परिक्रमा या परिपत्र यात्रा पांच दिनों तक चलती है। फरवरी-मार्च के दौरान माघ महीने के अमावस्या के दिन इस मंदिर में महाशिवरात्री का त्योहार मनाया जाता है।



दामोदर कुंड-इस पवित्र कुंड के चारों ओर घाट (नहाने के लिए) का निर्माण किया गया है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस घाट पर भगवान श्री कृष्ण ने महान संत कवि नरसिंह मेहता को फूलों का हार पहनाया था।

बोली जाने वाली भाषाएं:-

गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी

जाने का सही समय:-

अक्टूबर से मार्च

कैसे पहुंचे:-

वायुमार्ग-निकटतम हवाई अड्डा राजकोट है जो भारत के प्रमुख शहरों से हवाई मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।

रेलमार्ग-जूनागढ़ भारत में कई महत्वपूर्ण शहरों को जोड़ने वाला एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है।

सड़कमार्ग-जूनागढ़ गुजरात के सभी स्थानों से सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है।