बॉर्डर सिक्योरिटी टेक्नोलॉजी : घुसपैठ रोकने के लिए भारत-पाक सीमा पर अदृश्य ‘लेजर वाल’
भारत-पाकिस्तान सीमा दुनिया की अत्यधिक संवेदनशील सीमाओं में शामिल है. सीमापार घुसपैठ की घटनाओं को रोकने के लिए सीमा सुरक्षा बल की ओर से अनेक प्रयास किये जा रहे हैं. हाल ही में बीएसएफ ने इस सीमा पर कई इलाकों में अदृश्य लेजर वाल खड़ी की है, जो घुसपैठियों को पकड़ने में सक्षम है. हालांकि फिलहाल इसे आठ दुर्गम जगहों पर ही सक्रिय किया गया है, लेकिन धीरे-धीरे इसकी संख्या बढ़ायी जायेगी. सीमा की निगरानी करनेवाले इस आधुनिक सिस्टम की क्या है खासियत, क्या है इसकी टेक्नोलॉजी और किसने किया था इसका आविष्कार आदि समेत इससे संबंधित महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में बता रहा है साइंस टेक्नोलॉजी पेज ...
पाकिस्तान से सटे पंजाब के अनेक सीमावर्ती इलाकों में घुसपैठ को रोकने की मुहिम के तहत आधुनिक तकनीक से लैस आठ लेजर सिस्टम ने काम करना शुरू कर दिया है. खबरों के मुताबिक, जल्द ही ऐसे 45 सिस्टम पूरी तरह काम करने लगेंगे. इन लेजर वाल सिस्टम के पूरी तरह काम शुरू करने की दशा में पाकिस्तान और बांग्लादेश से जुड़ी सीमा पर संवेदनशील क्षेत्रों में हाइटेक निगरानी मुमकिन हो पायेगी.
सीमा पर लेजर वाल लगाने की परियोजना के दायरे में जम्मू-कश्मीर, पंजाब, गुजरात और पश्चिम बंगाल की अंतरराष्ट्रीय सीमा है. दरअसल इन इलाकों में नदियों, घाटियों समेत दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते सीमापार से होनेवाली घुसपैठ एक बड़ी समस्या बन चुकी है.
पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा के पास ऐसी कई संवेदनशील जगहें हैं, जहां से आतंकी घुसपैठ होती रहती है. ऐसे इलाकों में फेंसिंग यानी तारबंदी भी मुश्किल है. लिहाजा पायलट प्रोजेक्ट के तहत लेजर वाल का उपाय निकाला गया और पहले चरण में अनेक लेजर उपकरण इंस्टॉल किये गये हैं.
अंधेरे के अलावा कोहरे में भी निगरानी
इन लेजर दीवारों के आसपास किसी तरह की अवांछित गतिविधि दिखने पर यह सिस्टम उसे डिटेक्ट कर लेगा. अगर कोई घुसपैठिया इस लेजर वाल को पार करने की कोशिश करेगा, तो तेज आवाज में सायरन बजने लगेगा. सेंसर के माध्यम से सेटेलाइट आधारित सिगनल कमांड सिस्टम के जरिये इस पर निगरानी रखी जायेगी.
यह सिस्टम रात के अंधेरे के अलावा कोहरे के दौरान भी यह निगरानी करने में सक्षम होगा. यह वाल लेजर लाइटों के अलावा इंफ्रारेड प्रणाली से भी लैस है, जो घुसपैठ का समग्रता से पता लगाने में सक्षम है. इसकी सबसे खास बात यह है कि इसका पता आतंकी घुसपैठियों को भी नहीं चल पायेगा कि इस सिस्टम को कहां इंस्टॉल किया गया है और कितने इलाके में यह निगरानी कर रहा है.
लेजर सुरक्षा बाड़ तंत्र
जहां तक दुनिया के अन्य देशों में इस सिस्टम से सीमा सुरक्षा की बात की जाये, तो इजराइल के अलावा किसी देश में अब तक व्यापक पैमाने पर लेजर सिक्योरिटी सिस्टम का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है. हालांकि, अमेरिका समेत कई अन्य देशों में इसका इस्तेमाल अनेक जगहों पर किया जा रहा है, जिसमें मुख्य रूप से सैन्य प्रतिष्ठान शामिल हैं.
इसके अलावा अनेक ऐसी जगहें भी हैं, जहां कई कारणों से पुख्ता सुरक्षा इंतजाम की जरूरत होती है. भारत-पाकिस्तान की सीमा पर लगाये गये लेजर सिक्योरिटी वाल की सटीक तकनीक के बारे में सार्वजनिक रूप से खुलासा नहीं किया गया है. वैसे दुनिया में इस तरह की अनेक तकनीकें मौजूद हैं, लेकिन बारीकी तौर पर इनमें बहुत कम ही फर्क है. इन्हीं में से एक प्रमुख सिस्टम है- लेजर सिक्योरिटी फेंस एपरेटस यानी लेजर सुरक्षा बाड़ तंत्र. इसके जरिये एक खास दायरे में घुसपैठ होने की दशा में यह वार्निंग सिगनल जारी होता है.
इस सिस्टम में एक लेजर जेनरेटर होता है, जो लेजर बीम पैदा करता है और प्रकाश के परावर्तन की प्रक्रिया के अनुरूप काम करता है. इसमें एक खास दूरी पर दो मिरर इस तरह से लगाये जाते हैं, ताकि लेजर से निकली बीम को ये आपस में रिफ्लेक्ट कर सकें. इसके लिए इनका एलाइनमेंट एकदम सटीक तरीके से किया जाता है और इन्हें एक लेजर कलेक्टर से जोड़ा जाता है. इस लेजर कलेक्टर और लेजर जेनरेटर के साथ एक माइक्रोप्रोसेसर को भी संबद्ध किया जाता है.
किसी तरह की घुसपैठ होने की दशा में बीम का फोकस टूट या बिखर जाता है. ऐसा होने पर लेजर कलेक्टर लेजर बीम को पूरी तरह से रिसीव नहीं कर पाता है. ऐसी दशा में माइक्रोप्रोसेसर से जोड़ा गया अलार्म सिस्टम तत्काल यह सिगनल जारी करता है कि लेजर बीम के बीच में कोई बाधा पैदा हो रही है, जो किसी घुसपैठ की वजह से हो सकती है. यानी लेजर बीम के बीच में किसी तरह के व्यवधान की दशा में माइक्रोप्रोसेसर उसे तुरंत डिटेक्ट कर लेता है और संबंधित अलर्ट जारी करता है.
अलार्म सिस्टम से जारी होता है अलर्ट
इसके अलावा इसमें अनेक और भी सिस्टम लगे होते हैं. बीम को एकत्रित करने के लिए लेजर कलेक्टर में एक कलेक्टिंग लेंस भी लगा होता है. कलेक्टिंग लेंस द्वारा बीम हासिल करने के लिए उसे एक इलेक्ट्रिक सर्किट से जोड़ा जाता है, ताकि वह बीम के इलेक्ट्रिक सिगनल को आसानी से जान सके. माइक्रोप्रोसेसर से इलेक्ट्रिक सिगनल को ट्रांसमिट करने के लिए एक ट्रांसमीटर का इस्तेमाल किया जाता है. यह ट्रांसमीटर एक रेडियो ट्रांसमीटर है, जो माइक्रोप्रोसेसर से रेडियो फ्रिक्वेंसी वेव को ट्रांसमिट करता है यानी रेडियो तरंगों को प्रेषित करता है. लेजर बीम के मॉनीटरिंग सेंटर में बजनेवाले अलार्म सिस्टम से इन रेडियो फ्रिक्वेंसी वेव को जोड़ा जाता है.
लेजर बीम के प्रवाह में किसी तरह के व्यवधान की दशा में मॉनीटरिंग सेंटर में लगे खास डिवाइस में रेडियो फ्रिक्वेंसी वेव हासिल होने में दिक्कत होती है. इससे अलार्म बजने लगता है और तुरंत यह पता चल जाता है कि किस खास इलाके में कोई घुसपैठ की जा रही है.
लेजर जेनरेटर में इलेक्ट्रिकल एनर्जी हासिल होने के स्रोत के तौर पर 9 वोल्ट डीसी से उसे जोड़ा जाता है. लेजर जेनरेटर एक प्रकार से लेजर डायोड लाइट होता है. इसके अलावा लेजर बीम को फोकस करने के लिए लेजर जेनरेटर में एक फोकल लेंस भी लगा होता है.
बीम की सेंसिटिविटी और इंटेंसिटी यानी संवेदनशीलता और तीव्रता को समायोजित करने के लिए फोकल लेंस में एक कैपेसिटर भी लगा होता है. यह कैपेसिटर अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग जरूरतों के लिहाज से विविध क्षमता के अनुरूप लगाया
जाता है.
लेजर सिक्योरिटी फेंस एपरेटस का िवकास
जेम्स हैगर और रिचर्ड ए कर्चिनर ने लेजर सिक्योरिटी फेंस एपरेटस को विकसित किया था. ‘गूगल पेटेंट्स’ के मुताबिक, वर्ष 2001 में इन दोनों शोधकर्ताओं को इस सिस्टम का पेटेंट मुहैया कराया गया था. शुरुआत में इन्होंने इसका आविष्कार अन्य मकसद से किया था.
दरअसल आवासीय परिसर में पानी के स्रोतों, जैसे- पूल आदि के आसपास बच्चों के पहुंचने पर अलर्ट जारी करने के लिए इसका आविष्कार किया गया था. बाद में इन्होंने इसकी क्षमता को बढ़ाते हुए किसी खास इलाके में होने वाली घुसपैठ को डिटेक्ट करने के लिए इसे विकसित किया. छावनी इलाकों में लेजर सिक्योरिटी फेंस लगाते हुए घुसपैठ को पकड़ना आसान हो गया.
सेना में इस्तेमाल होनेवाली कुछ अन्य डिटेक्शन टेक्नोलॉजी
घुसपैठ समेत सीमापार से होने वाली कई अन्य अवांछित गतिविधियों को डिटेक्ट करने के लिए सेना में अनेक तरह की डिटेक्शन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है. इनमें कुछ खास तकनीक इस प्रकार हैं :
- राडार : थल सेना राडार का इस्तेमाल मुख्य रूप से घुसपैठ की पहचान करने के लिए करती है और वायु सेना दुश्मन के किसी लड़ाकू विमान के घुसने पर निगाह रखने में करती है.
- रेडियो सेंसर्स : इसका इस्तेमाल दुश्मन के रेडियो सिगनल को पकड़ने के लिए किया जाता है. शत्रु देश द्वारा भेजे गये रेडियो मैसेज को पकड़ कर उसे समझने की कोशिश की जाती है.
- सिस्मिक डिटेक्टर्स : सिस्मिक डिटेक्टर्स भूमिगत तरीके से आवाज को पकड़ने की तकनीक पर आधारित है. इसमें लगे सेंसर से घुसपैठ की पहचान की जाती है.
- न्यूक्लियर डिटेक्टर : भूमिगत परमाणु विस्फोटकों का पता लगाने के लिए सेंसिटिव सिस्मोग्राफ का इस्तेमाल किया जाता है.
- मैग्नेटिक डिटेक्टर्स : इसका इस्तेमाल समुद्री इलाके में उड़ान भरनेवाले विमानों द्वारा किया जाता है, जो समुद्र के भीतर किसी पनडुब्बी के बारे में पता लगाते हैं. इसके लिए मैग्नेटिक डिटेक्टर्स का सहारा लिया जाता है. चूंकि पनडुब्बी में ज्यादा मात्रा में धातुओं का इस्तेमाल किया जाता है, लिहाजा इनके आसपास चुंबकीय क्षेत्र में गड़बड़ी होने के आधार पर ये डिटेक्टर्स इसका पता लगाते हैं.
इन्हें भी जानें
लेजर का अर्थ
लेजर (एलएएसइआर) का फुल फार्म होता है- लाइट एंप्लीफिकेशन बाइ स्टिमुलेटेड इमिशन ऑफ रेडिएशन यानी विकिरण के उत्सर्जन द्वारा प्रेरित प्रकाश का प्रवर्धन. स्टिमुलेटेड इमिशन मूल रूप से एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कुछ सेमीकंडक्टर मटेरियल द्वारा चरणबद्ध तरीके से फोटोन्स या एनर्जी पैकेट्स का उत्पादन होता है.
इस प्रक्रिया के आखिर में ये फोटोन्स या एनर्जी पैकेट्स संगत बीम के रूप में तब्दील हो जाते हैं, जिन्हें लेजर कहा जाता है. इसी संगत बीम, जिसे हम लेजर कह सकते हैं, की फ्रिक्वेंसी और वेवलेंथ के आधार पर यह तय होता है कि वह एक निश्चित दायरे में दृश्य होगा या अदृश्य यानी नंगी आखों से उसे महसूस किया जा सकेगा या नहीं.
अदृश्य लेजर वाल
हॉलीवुड की कई फिल्मों में आपने देखा होगा कि किसी बैंक, घर या म्यूजियम में चोरी की घटना को पकड़ने के लिए अनेक सुरक्षा तंत्र लगे होते हैं. विकसित देशों में अदृश्य लेजर दीवार से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये जा रहे हैं. जैसा कि हम जानते हैं सामान्य प्रकाश को नंगी आंखों से पहचाना जा सकता है, लेकिन इन्फ्रा-रेड और अल्ट्रावायलेट किरणों को नंगी आंखों से नहीं पहचाना जा सकता. इसलिए बैंकों या म्यूजियम में किसी चीज को चोरी होने से बचाने के लिए उसके आसपास अदृश्य लेजर की दीवार तैयार करने के लिए इन्फ्रा-रेड किरणों का इस्तेमाल किया जाता है.
लाइट स्कैन सिक्योरिटी सिस्टम
लाइट स्कैन सिक्योरिटी सिस्टम किसी खास दायरे में सर्विलांस और नियंत्रण के लिए एक एक्टिव इंफ्रारेड लेजर साेलुशन है. यूनिक लेजर राडार टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से निर्दिष्ट इलाके में किसी भी घुसपैठ को चाहे वह स्थिर हो या मोशन अवस्था में हो, उसे डिटेक्ट किया जा सकता है.
इतना ही नहीं, इसके जरिये रीयल-टाइम में यानी महज एक सेकेंड के भीतर ही घुसपैठ या किसी अवांछित गतिविधि को ट्रैक करते हुए उसे आइडेंटिफाइ किया जा सकता है. किसी खतरे की दशा में इससे जुड़े सभी सुरक्षा उपकरण, जैसे- लाइट्स, कैमरा, पीटीजेड डिवाइस, विजिबल और ऑडिबल अलार्म्स स्वत: सक्रिय हो जाते हैं, जिससे सुरक्षाकर्मी त्वरित कार्यवाई में सक्षम होते हैं.
इस सिस्टम में एक्टिव इंफ्रारेड स्कैनर सेंसर लगे होते हैं, जो रणनीतिक रूप से सर्विलांस के अधिकतम दायरे में नजर रखते हैं. इससे कवर्ड इलाका पूरी तरह से सुरक्षित होता है और यदि कोई व्यक्ति इस दायरे में अवांछित गतिविधियों को अंजाम देने की कोशिश करता है, तो उसका पकड़ा जाना अवश्यंभावी है.
- कन्हैया झा