जीते जी किसी ने सार नहीं की मरने के बाद श्रद्धांजलियों का दौर
कोटड़ी पाड़े की गलियां हुई स्वर विहीन ,रानी महल के बाहर सन्नाटा
जैसलमेर विभा श्रॉफ के साथ थार का विख्यात लोक गीत मूमल गाकर दिलाने
वाले मांगणियार लोक गायक दापु खान के निधन के साथ ही जैसलमेर के सोनार
किले की स्वर विहीन हो गयी ,अब इन गलियों में दपु खान के कमायचे मधुर
संगीत के साथ सुरीली आवाज़ नहीं गूंजेगी ,वर्षों से किले ऊपर कोटड़ी पाड़ा
स्थित कंवर और रानी पदाके बाहर बैठकर पर्यटकों को अपने मधुर स्वर लहरियों
से आकर्षित करने वाला लोक कलाकार दापु खान अब इस दुनिया में नहीं रहा
,मस्त मलंग दपु खान ताउम्र फटेहाल रहा ,जैसलमेर की ऐतिहासिक लोक नायिका
मूमल की सुंदरता का अपने गीतों में बखान कर अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त
करने के बाद भी दपु खान की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया था ,दापु खान
के हुनर का उपयोग कर विभा श्रॉफ ने जो ख्याति मूमल से अर्जित की उसका
फायदा दपु को नहीं मिला ,यु ट्यूब पर करोड़ो लोगो तक पहुंचे मूमल गीत की
रॉयल्टी दपु खान को नहीं नहीं मिली ,दपु सामान्यतः अपनी मौत के दो दिन
पहले तक कोटड़ी पाड़ेकी गलियों में बेथ पर्यटकों के लिए स्वागत गीत गता रहा
,दपु खान को न तो जिला प्रशासन से न ही पर्यटन विभाग से कभी कोई सहायता
मिली यहाँ तक की उसे जिला प्रशासन ने कभी मरू महोत्सव सांस्कृतिक
कार्यक्रमों में शामिल नहीं किया ,उसकी रोजी रोटी पर्यटकों की और से
मिलने वाली बक्शीश से चलती थी ,दपु को दो वक़्त की रोटी कोटड़ी पाड़े के
घरों से बच्ची खुची मिलती थी इसी में खुस था ,छोटे बच्चों से लेकर बड़े
बुजुर्गो के मुंह लगा था दपु ,हर कोई उसका ख्याल रखता था ,मगर राज्य
सरकार या जिला उसकी प्रतिभा के साथ कभी न्याय नहीं किया ,विभा श्रॉफ ने
दपु के साथ मूमल गाकर ख्याति और पैसा खूब कमाया मगर उसकी हिस्सा राशि दपु
को नहीं दी ,फिर भी दपु को कोई मलाल नहीं था ,साउथ में सरकारी बसों पर
राजस्थान की लोक संस्कृति के चित्रों में दपु खान का फोटो प्रमुखता से
दर्शाया गया था ,विगत दिनों दपु खान को अक्षय कुमार के वीडियो में भी
प्रमुखता से दिखाया गया था ,बावजूद इसके दापु खान को न कभी प्रशासन ने
सहयोग किया न पर्यटन विभाग ने ,दो दिन पूर्व उसकी तबियत बिगड़ी तो उसे
जोधपुर के निजी अस्पताल में उपचार के लिए दाखिल कराया ,शनिवार को उसने
अंतिम सांस ली ,भाडली गांव का निवासी दपु खान महीने में बीस दिन किले की
गलियों में लोक गीत गाकर गुजरता था ,दस दिन में बक्शीश का पैसा इकट्ठा कर
गांव चला जाता ,दस दिन गांव रहता फिर जैसलमेर आ जाता ,उसकी पसंदीदा बैठने
की जगह कोटड़ी पांडे स्थित रानी महल और कंवर पदा थी जिसके बाहर बैठक
कमायचे की मधुर धुनों के साथ स्वर लहरियां बिखेरता ,जीते जी दपु खान के
हाल सिवाय कोटड़ी पाड़े के निवासियों के किसी ने नहीं जाने ,अब उसकी मौत
पर प्रधानमंत्री से लेकर आम खास सोसल मिडिया पर श्रद्धांजलियां दे
रहेदपु खान ताउम्र फटेहाल रहा ,एक कत्थई रंग का कट्टा फटता कमीज और धोती
उसका स्थाई परिधान था ,बहरहाल दपु खान के असामयिक निधन के बा किले से
कमायचे के साथ गूंजती दपु की स्वर लहरियाँ खामोश हो गयी सदा के लिए ,