मांगणियार लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
मांगणियार लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 16 मार्च 2021

जीते जी किसी ने सार नहीं की मरने के बाद श्रद्धांजलियों का दौर कोटड़ी पाड़े की गलियां हुई स्वर विहीन ,रानी महल के बाहर सन्नाटा

 जीते जी किसी ने सार नहीं की मरने के बाद  श्रद्धांजलियों का दौर

कोटड़ी पाड़े की गलियां हुई स्वर विहीन ,रानी महल  के बाहर सन्नाटा



जैसलमेर विभा श्रॉफ के साथ थार का विख्यात लोक गीत मूमल गाकर  दिलाने

वाले मांगणियार लोक गायक दापु खान के निधन के साथ ही जैसलमेर के सोनार

किले की  स्वर विहीन हो गयी ,अब इन गलियों में दपु खान के कमायचे  मधुर

संगीत के साथ सुरीली आवाज़ नहीं गूंजेगी ,वर्षों से किले ऊपर कोटड़ी पाड़ा

स्थित कंवर और रानी पदाके बाहर बैठकर पर्यटकों को अपने मधुर स्वर लहरियों

से आकर्षित करने वाला लोक कलाकार दापु खान अब इस दुनिया में नहीं रहा

,मस्त मलंग दपु खान ताउम्र फटेहाल रहा ,जैसलमेर की ऐतिहासिक लोक नायिका

मूमल की सुंदरता का अपने गीतों में बखान कर अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त

करने के बाद भी दपु खान की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया था ,दापु खान

के हुनर का उपयोग कर विभा श्रॉफ ने जो ख्याति मूमल से अर्जित की उसका

फायदा दपु को नहीं मिला ,यु ट्यूब पर करोड़ो लोगो तक पहुंचे मूमल गीत की

रॉयल्टी दपु खान को नहीं नहीं मिली ,दपु सामान्यतः अपनी मौत के दो दिन

पहले तक कोटड़ी पाड़ेकी गलियों में बेथ पर्यटकों के लिए स्वागत गीत गता रहा

,दपु खान को न तो जिला प्रशासन से न ही पर्यटन विभाग से कभी कोई सहायता

मिली यहाँ तक की उसे जिला प्रशासन ने कभी मरू महोत्सव  सांस्कृतिक

कार्यक्रमों में शामिल नहीं किया ,उसकी रोजी रोटी पर्यटकों की और से

मिलने वाली बक्शीश से चलती थी ,दपु को दो वक़्त की रोटी कोटड़ी पाड़े के

घरों से बच्ची खुची मिलती थी इसी में खुस था ,छोटे बच्चों से लेकर बड़े

बुजुर्गो के मुंह लगा था दपु ,हर कोई उसका ख्याल रखता था ,मगर राज्य

सरकार या जिला  उसकी प्रतिभा के साथ कभी न्याय नहीं किया ,विभा श्रॉफ ने

दपु के साथ मूमल गाकर ख्याति और पैसा खूब कमाया मगर उसकी हिस्सा राशि दपु

को नहीं दी ,फिर भी दपु को कोई मलाल नहीं था ,साउथ में सरकारी बसों पर

राजस्थान की लोक संस्कृति के चित्रों में दपु खान का फोटो प्रमुखता से

दर्शाया गया था ,विगत दिनों दपु खान को अक्षय कुमार  के वीडियो में भी

प्रमुखता से दिखाया गया था ,बावजूद इसके दापु खान को न कभी प्रशासन ने

सहयोग किया न पर्यटन विभाग ने ,दो दिन पूर्व उसकी तबियत बिगड़ी तो उसे

जोधपुर के निजी अस्पताल में उपचार के लिए दाखिल कराया ,शनिवार को उसने

अंतिम सांस ली ,भाडली गांव का निवासी दपु खान महीने में बीस दिन किले की

गलियों में लोक गीत गाकर गुजरता था ,दस दिन में बक्शीश का पैसा इकट्ठा कर

गांव चला जाता ,दस दिन गांव रहता फिर जैसलमेर आ जाता ,उसकी पसंदीदा बैठने

की जगह कोटड़ी पांडे स्थित रानी महल और कंवर पदा थी जिसके बाहर बैठक

कमायचे की मधुर धुनों के साथ स्वर लहरियां  बिखेरता ,जीते जी दपु खान के

हाल सिवाय कोटड़ी पाड़े के निवासियों के किसी ने नहीं जाने ,अब उसकी मौत

पर प्रधानमंत्री से लेकर आम खास सोसल मिडिया पर  श्रद्धांजलियां दे

रहेदपु खान ताउम्र फटेहाल रहा ,एक कत्थई रंग का कट्टा फटता कमीज और धोती

उसका स्थाई परिधान था ,बहरहाल दपु खान के असामयिक निधन के बा किले से

कमायचे के साथ गूंजती दपु की स्वर लहरियाँ खामोश हो गयी सदा के लिए ,


मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

पाकिस्तान सिंध के ख्याति प्राप्त राजस्थानी मांगणियार लोक कलाकार

पाकिस्तानी लोक गायक सफी फ़क़ीर के साथ बाड़मेर के सूफी गायक फकीरा खान 

पाकिस्तान सिंध के ख्याति प्राप्त राजस्थानी मांगणियार लोक कलाकार

पाकिस्तान में मांगणियार जाति के लोक कलाकारों ने अपनी गायकी से अलग पहचान बना रखी हैं।पाक के सिन्ध प्रान्त के मिटठी,रोहड़ी,गढरा,थारपारकर,उमरकोट,खिंपरो,सांगड़ आदि जिलों में मांगणियार जाति के लोग निवास करते हैं।पाक में रह रहे मांगणियार मूलतःबाड़मेर-जैसलमेर जिलों के हैं,जो भारत-पाक युद्ध 1965 और 1971 में पलायन कर पाक चले गए।थार संस्कृति और परम्परा को लोक गीतों के माध्यम से अपनी छटा बिखेरने वाले मांगणियार कलाकारों की पाक में सम्मान जनक स्थिति नहीं थी।पाक के मांगणियार भी राजपूत जाति के यॅहा यजमानी कर अपना पालन पोषण करते थे।सोढा राजपूतों का सिन्ध में बाहुल्य हैं।सोढा राजपूतों की सिन्ध में जागीरदारी होने के कारण कई मांगणियार परिवार भारत-पाक विभाजन के दौरान पाक में रह गए तो कई परिवार युद्ध के दौरान पाक चले गए।बाड़मेर से गये एक परिवार में सन1961 में संगीत के कोहिनूर ने जन्म लिया।इस कोहिनूर जिसे पाकिस्तान और विदेशों में उस्ताद सफी मोहम्मद फकीर के नाम से जाना जाता हैं,ने मोगणियार गायकी को पाक में अलग पहचान और ख्याति दिलाई।उनके अलावा अनाब खान,शोकत खान,हयात खान,मोहम्मद रफीक,सच्चु खान,सगीर खान ढोली, ने मांगणियार संस्कृति को पाक में नई पहचान दी हैं।इसके अलावा बाड़मेर-जैसलमेर सीमा पर स्थित देवीकोट के मूल निवासी फिरोज गुल ने पाक में लुप्त हो चुके हारमोनियम कला को पुर्नजीवित कर काफी नाम कमाया,पाक में आज फिरोज गुल का हारमोनियम बजाने में कोई सानी नहीं हैं।पाक की मशहूर लोक गायिका आबदा परवीन के दल के साथ फिरोज देश-विदेशों में ख्याति अर्जित कर रहे हैं।पाक में मारवाड़ी लोक गीतों की जबरदस्त मांग को मांगणियार लोक कलाकार पूरा कर रहे हैं।वहीं पाक में मांगणियार गायकी को नया आयाम प्रदान किया तथा मारवाड़ी लोक गीत संगीत को पाक में मान-सम्मान दिलाया।इसके अलावा पाक में कृष्ण भील,सुमार भीलमोहन भगत,जरीना,माई नूरी,माईडडोली,माई सोहनी,सबीरा सुल्तान,दिलबर खान,फरमान अली,आमिर अली असलम खान,लाॅग खान सुमार खानमोहम्मद इकबाल जैसे मांगणियार लोक गीत संगीत के पहरुओं ने राजस्थान की लोक कला ,गीत संगीत,संस्कृति और परम्परा को पाक में जिन्दा रखा तथा मान सम्मान दिला रहे हैं।सिन्ध और थार की लोक संस्कृति ,परम्पराओं गीत संगीत ,कला में महज देश का फर्क हैं।मांगणियार लोक गायकों ने लोक गीत संगीत के जरिए दोनों देशों की सीमाऐं तोड़ दी।इसके अलावा ख्यातनाम गायिका रेशमा राजस्थान के बीकानेर की पैदाईश हैं।रेशमा ने पाक की लोक गायिकी को नई पहचान दी।ंजेसलमेर के हाजी भुटिका पाक की जेल में सरहद पार के जुम्र में सजायाप्ता था।हाजी भुटिका की सुरीली आवाज सुन कर हाजी की सजा पाक प्रशासक ने माफ कर नया जीवन दिया था।दी।पाकिस्तान गए भारतीय मांगणियार परिवारों नें थार शैली के लोक गीत-संगीत कों पाकिस्तान में ना केवल जिन्दा रखा अपितु उसे देनिया भर में नई उॅचाईयाॅ दी।पाकिस्तान में एक वक्त हारमेानियम समाप्त सा हो गया था।ऐसे में फिरोज मांगणियार नें हारमोनियम को नया जन्म देकर पाकिस्तान में हारमोनियम को लोकप्रियता के षिखर पर पहुॅचाया।फिरोज मांगणियार आज पाकिस्तान की मषहूर लोक गायिका आबिदा परवीन कें दल में ष्षामिल हो कर नयें आयाम छू रहे हैं।पाकिस्तान की मषहूर लोक गायिका रेषमा जिन्होंने देष विदेषों में अपनी अलग गायन ष्षैली सें अपना अलग मुकाम बनाया।रेषमा मूलतः राजस्थान के बीकानेर क्षैत्र की निवासी थी,रेषमा का परिवार विभाजन के दौरान पाकिस्तान चला गया।बिना लिखी पढी रेषमा नें विष्व भरमेंअपनी खास पहचान बनाई।दोनों देषों की सरहदें लोक गीत संगीत की सौंधी महक को बांट नहीं सकी।लोक गीत संगीत कें माध्यम सें दोनो देषों की अवाम अपने रिष्ते कायम रखे हुए हैं। श्



गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

करिश्माई कलाकार ममे खाँ माँगणियार रेत के धोरों से सात समन्दर पार बिखेरा फन का जादू

करिश्माई कलाकार ममे खाँ माँगणियार
रेत के धोरों से सात समन्दर पार बिखेरा फन का जादू



जैसलमेर

रेतीले धोरों की धरा पश्चिमी राजस्थान कला और लोक संस्कृति की नदियाँ बहाने वाली रही है। ठेठ सीमावर्ती दुर्गम इलाकों से लेकर ढांणियों और शहरों तक गूंजती लोक लहरियाँ यहाँ की सांगीतिक परम्पराओं का आज भी जीवंत दिग्दर्शन कराती हुई यह संदेश मुखरित करती हैं कि यहाँ का लोक संगीत दुनिया के मुकाबले इ€कीस ही ठहरता है।
पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर जिलों में निवासरत मांगणियार ऐसा अनूठा समुदाय है जिसका हर सदस्य परम्परागत लोक संगीत का संवाहक है। गाने-बजाने का मौलिक हुनर इनकी वंश परम्परा का मूल हिस्सा रहा है जो पीढिय़ों से पूरे वेग के साथ प्रवाहित होता आया है।
इस क्षेत्र के मांगणियार कलाकार दुनिया के कई मुल्कों में अपने लोक संगीत की छाप छोड़ चुके हैं। प्रदेश व देश का कोई सा भी लोक साँस्कृतिक महोत्सव मांगणियारों के बिना अधूरा ही है। इन्हीं मांगणियारों में नई पीढ़ी के हुनरमंद कलाकार ममे खां बॉलीवुड से लेकर सात समन्दर पार तक के लोक गायन और संगीत परिवेश में अपनी पैठ रखते हैं।
विरासत में मिला गायन का हुनर
जैसलमेर जिले के छोटे से गाँव सत्तों में अपने जमाने के महान लोक गायक राणे खाँ के घर जन्मे ममे खाँ को लोक संगीत विरासत में मिला। पिता ही उनके पहले गुरु रहे जिनसे ममे खाँ ने परम्परागत लोक संगीत और सूफी म्यूजिक की दीक्षा ली व खूब अभ्यास करते हुए पिता के न€शे कदम पर चल कर यह हसीन मुकाम पाया।
बचपन से ही दुनिया में छा जाने वाला कलाकार बनने की तमन्ना संजोने वाले ममे खाँ ने पूरी लगन से अपने संास्कृतिक व्यक्तित्व को निखारा। मात्र बारह वर्ष की आयु में इस होनहार बालक को साँस्कृतिक स्त्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र (सीसीआरटी) नई दिल्ली में अपने मौलिक हुनर का परिचय देने और निखारने का अवसर मिला।
अपनी आवाज और अदाओं से ही हर किसी को मंत्र मुग्ध कर देने वाले ममे खाँ के लिए किशोरावस्था के बाद से ही शौहरत के कई रास्ते खुल गए। वे मुम्बई, दिल्ली, मद्रास, केरल और देश के विभिन्न हिस्सों के साथ ही विश्व के कई देशों में अपनी विलक्षण प्रतिभा व वाणी माधुर्य की पहचान कायम कर चुके हैं। आधुनिक व पुरातन संगीत से सम्बंधित कई महत्वपूर्ण आयोजनों में वे शिरकत कर चुके हंै। खासकर यूरोप, यूएसए, कनाड़ा, एशिया और अरब देशों में कई बार यात्रा कर उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।
कई शैलियों के उस्ताद हैं
ममे खाँ मांगणियार संगीत की कई विधाओं में महारथ हासिल कर चुके हैं। मांगणियारी संगीत की विभिन्न शैलियों में उनका गायन बेमिसाल है। मुख्य रूप से कल्याण, कमायचा, दरबारी, तिलंग, सोरठ, बिलवाला, कोहियारी, देश, करेल, सुहाब, सामेरी, बिरवास, मलार आदि का गायन हर आयोजन को ऊँचाई देता है।
देश-विदेश में कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर ममे खाँ ने अपनी धाक जमायी है। अमेरिका, इंगलैण्ड, जर्मनी, फ्रंास, सिंगापुर, स्पेन, स्वीडन, पोलेण्ड, आस्ट्रिया, मलेशिया, आस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, कनाडा, इटली, बैकहोम आदि में कई बार साँस्कृतिक आयेाजनों में वे शिरकत कर चुके हैं। देश के नामी कला संस्कृति व संगीत संस्थानों में उनकी प्रस्तुतियों को खूब सराहा गया है। रूपायन संस्थान ने मेमे खाँ पर केन्द्रित ’’राजस्थान डेजर्ट वंडर फोक सोंग्स ’’ कार्यक्रम पर सी.डी. भी जारी की है जिसमें ममे खाँ के गाए संगीत, भजनों, परम्परागत सूफी संगीत का समावेश है।
ममे खाँ ने दुनिया की नामी हस्तियों के समक्ष अपना हुनर दिखाया है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के मुख्य आतिथ्य में नइ दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस राष्ट्रीय समारोह, बोरुण्डा संगीत समारोह, प्रदेश के विभिन्न जिलों में स्थापना दिवस पर आयोजित महोत्सवों, पर्यटन उत्सवों, साँस्कृतिक केन्द्रों के कार्यक्रमों, सूफी महोत्सव, देश के तमाम प्रतिष्ठित समारोहों तथा लोक संगीत से जुड़े कई कार्यक्रमों में वे अपनी अलग पहचान कायम कर चुके हैं।
कई देशों में है पहचान
ममे खाँ देश-विदेश में डेढ़ सौ से अधिक प्रतिष्ठित महोत्सवों और समारोहों में अपना कमाल दिखा चुके हैं। इनमें कोटा, जयपुर, जैसलमेर, जोधपुर, पुष्कर के फेस्टिवलों, दिल्ली ट्यूरिज्म व क्राफ्ट फेस्टिवल, भोपाल के आदिवासी लोक कला मण्डल, रवीन्द्र मंच शिल्पग्राम उत्सव, राजस्थान फेस्टिवल, मरु महोत्सव, मारवाड़ महोत्सव, थार महोत्सव, पश्चिमी व दक्षिणी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्रों, रवीन्द्र भवन(भोपाल), दिल्ली में दस्तकार महोत्सव, आईसी.सी.आर सूफी महोत्सव, जनेन्द्र भवन(मद्रास), स्वर लयम इन्स्टीट्यूट (केरल) ,कोच्चि, अर्नाकुलम, दिल्ली हाट (स्पीक मैके), इंदिरा गांधी मानव संग्रहालय(भोपाल), टाटा नगर, जीएल इण्डिया कंपनी, संगीत एवं नाटक प्रभाग (भोपाल), रुहानियत सूफी कार्यक्रम(मुम्बई), रवीन्द्र मंच (पूणे), सिकंदरा €लब हैदराबाद, रुहानियत(कोलकाता), जोधपुर, नेहरु मेमोरियल त्रिमूर्ति भवन दिल्ली, पेट्रोनेट कंपनी(जयपुर), चित्रकला परिषद बैंग्लोर आदि में अपने कार्यक्रम पेश कर चुके हैं।
इसी प्रकार खमानी ऑडिटोरियम(दिल्ली), ऑल इण्डिया सूफी एवं मैजेस्टिक म्यूजिक फेस्टिवल(पूणे), छतीसगढ़ पर्यटन महोत्सव, जमशेदपुर थियेटर टाटा, आइडिया जलसा(मुम्बई), नागौर फोर्ट सूफी दरबार, उस्ताद राणे खाँ वार्षिकोत्सव (जैसलमेर), संगीत महाभारती व Žल्यू फ्रोग (मुम्बई), गोल्फ €लब (कोलकाता), चोईस €लब कोच्चि आदि में हुए कार्यक्रमों में अपने फन का कमाल दिखा चुके हैं।
ममे खाँ पचास से अधिक देशों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित संस्थाओं की ओर से आयोजित महत्त्वपूर्ण समारोहों व उत्सवों में शिरकत कर यादगार छाप छोड़ चुके हैं। इनमें फ्रांस, बेल्जियम, यूएसए, स्पेन, स्वीडन, लंदन, स्कॉटलैण्ड, जर्मनी, इटली, हॉलेण्ड, कनाड़ा, टर्की, यमन, अफ्रीका, पाकिस्तान, लेबनान, आस्ट्रिया, मलेशिया, मोर€को, दुबई, पौलेण्ड, क्रोएशिया, ऑयरलैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, अल्जीरिया, सिंगापुर, न्यूजीलैण्ड आदि प्रमुख हैं।


बालीवुड में पैठ
ममे खाँ के कार्यक्रमों ने विदेशों में काफी प्रसिद्घि पायी है। विदेशी मीडिया ने भी उनके कार्यक्रमों को प्रमुखता से स्थान दिया है। देश भर में 200 से अधिक कार्यक्रमों में भागीदारी निभा चुके ममे खाँ दुनिया के 50 से ज्यादा देशों में शताधिक बार अपनी कला का शानदार प्रदर्शन कर चुके हैं। बॉलीवुड में भी अपनी पैठ रखने वाले ममे खाँ ने कविता सेठ के साथ आईएम फिल्म का गीत गाया है। ऋतिक रोशन की ‘लक बाई चाँस’ फिल्म में ममे खाँ ने शंकर महादेवन के साथ गीत पेश किया है।
जैसलमेरी मांगणियारों की गायन शैली को साम समंदर पार पहुँचा कर ख्याति दिलाने वाले ममे खाँ जाँगड़ा एवं सूफी शैली के अपनी तरह के बेजोड़ गायक हैं। भगवान श्रीकृष्ण के भजन, नीम्बूड़ा, दमादम मस्त कलंदर व रियासतकालीन संस्कृति के गीतों पर केन्द्रित उनका गायन श्रोताओं की $खास पसंद रहा है।
दिल्ली में तीन बार सूफी फेस्टीवल में अपनी गायकी का परिचय देने वाले ममे खाँ देश-विदेश के दो दर्जन थियेटरों में भी अपने हुनर का कमाल दिखा चुके हैं। परम्परागत संगीत के संरक्षण व प्रचार-प्रसार के साथ ही ममे खाँ ने कई नवीन विधाओं को भी आत्मसात किया है। संसार भर में गायकी के लिए मशहूर मि€स फ्यूजन ग्रुप में ममे खाँ के साथ फ्रांस व ईरान के कलाकार भी शामिल हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकगायन में मशहूर कलाकार ममे खाँ राजस्थान प्रदेश ही नहीं बल्कि हिन्दुस्तान की वह श$िख्सयत हंै जिस पर सभी को ना$ज है। राजस्थान भर के लिए यह गौरव की बात है कि रेत के धोरों से निकला यह कलाकार पूरी दुनिया में धूम मचा रहा है।

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

पाकिस्तान के लोकप्रिय लोक एवं सूफी गायक सफी मोहम्मद फकीर -


पाकिस्तान के लोकप्रिय लोक एवं सूफी गायक सफी मोहम्मद फकीर
-

लोक एवं सूफी गायक सफी मोहम्मद फकीर











पाकिस्तान के लोकप्रिय लोक एवं सूफी गायक सफी मोहम्मद फकीर मूलतः बाड़मेर जिले के निवासी हैं। 1965 में फकीर का परिवार भारत से पाकिस्तान के सिन्ध चला गया था। फकीर के पिता क्षेत्र के जाने-माने लोक गायक थे। थार के लोक गीत और संगीत का परचम उन्होंने पाक में भी लहराया। अपने पिता से विरासत में मिले लोक गीत-संगीत के खजाने को फकीर ने संजीदगी से अपनाया। लोक गीतों को में फकीर नायाब शैली में गाते हैं। सफी फकीर का सुफियाना अन्दाज पाक में बेहद लोकप्रिय हुआ। गायकी के निराले अन्दाज के कारण सफी फकीर को जल्दी ही अन्तरराष्‍ट्रीय मंच मिल गया। 

अन्तरराष्टीय मंचों पर सफी फकीर ने धूम मचा दी। सफी फकीर के लोक गीत तो रसभरे और सुरीले होते ही हैं, भक्ति गायकी में भी उनका जवाब नहीं हैं। सुफियाना अन्दाज में जब फकीर अमीर खुसरो, बाबा बुल्ले शाह, माधो शाह हुसैन, सुल्तान बाहु, ख्वाजा गुलाम फरीद की रचनाएं गाते हैं, तब श्रोता दीवाने हो जाते हैं। फकीर अनेक भषाओं सिन्धी, मारवाड़ी, सिरैकी, पंजाबी, उर्दू और पूर्वी में जब अपने अलग अन्दाज में गाते हैं, तो श्रोता उनकी गायकी के रस में डूब जाते हैं।

1961 में थार क्षेत्र के बाड़मेर जिले में जन्मे सफी फकीर ने अपने पिता से परम्परागत मांगणियार लोक गायकी और कमायचा वादन सीखा। बाद में उन्होने सारंगी वादक उस्ताद मजीद खान, जो उस वक्त पाक रेडियो के मशहूर गायक और सारंगी वादक थे, से लोक गीत-संगीत की बारीकियां सीखीं और सारंगी वादन में निपुणता हासिल की। वहीं सुफी गायकी की बारीकियां उन्होंने शाम चौरासी घराना के उस्ताद सलामत अली खान साहब से सीखीं।

सफी मीरा, कबीर, तुलसीदास, अब्दुल लतीफ भिटाई, सचल सरमस्त, बाबा बुल्‍ले शाह की भक्ति रचनाओं को बेहद संजीदगी से गाते हैं। सफी मांगणियार बच्चों को लोक गीत-संगीत का प्रशिक्षण देकर परम्परागत लोक गीत-संगीत की परम्‍परा को आगे बढ़ा रहे हैं। फकीर भारत में कई मर्तबा अपने कार्यक्रमों के माध्यम से सुफी और भक्ति गायकी के स्वर बिखेर चुके हैं।

रविवार, 26 दिसंबर 2010

लोक व सुफी गायकी का पर्याय हैं फकीरा खान







लोक व सुफी गायकी का पर्याय हैं फकीरा खान

बाड़मेर: पश्चिमी राजस्थान की धोरा धरती की कोख से ऐसी प्रतिभाएं उभर कर सामने आई हैं, जिन्होंने ‘थार की थळी’ का नाम सात समंदर पार रोशन कर लोक गायिकी को नए शिखर प्रदान किए हैं। इसी कड़ी में एक अहम नाम है-फकीरा खान। लोक गायकी में सुफियाना अन्दाज का मिश्रण कर उसे नई उंचाईयां देने वाले लोक गायक फकीरा खान ने अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर अपना एक मुकाम बनाया है।

राजस्‍थान के सीमावर्ती बाड़मेर जिले के छोटे से गांव विशाला में सन 1974 को मांगणियार बसर खान के घर में फकीरा खान का जन्‍म हुआ था। उनके पिता बसर खान शादी-विवाह के अवसर पर गा-बजाकर परिवार का पालन-पोषण करते थे। बसर खान अपने पुत्र को उच्च शिक्षा दिलाकर सरकारी नौकरी में भेजना चाहते थे ताकि परिवार को मुफलिसी से छुटकारा मिले, मगर कुदरत को कुछ और मंजूर था।

आठवीं कक्षा उर्तीण करने तक फकीरा अपने पिता के सानिध्य में थोड़ी-बहुत लोक गायकी सीख गए थे। जल्दी ही फकीरा ने उस्ताद सादिक खान के सानिध्य में लोक गायकी में अपनी खास पहचान बना ली। उस्ताद सादिक खान की असामयिक मृत्यु के बाद फकीरा ने लोक गायकी के नये अवतार अनवर खान बहिया के साथ अपनी जुगलबन्दी बनाई। उसके बाद लोक गीत-संगीत की इस नायाब जोड़ी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्‍होंने लोक संगीत की कला को सात समंदर पार ख्याति दिलाई। फकीरा-अनवर की जोड़ी ने परम्परागत लोक गायकी में सुफियाना अन्दाज का ऐसा मिश्रण किया कि देश-विदेश के संगीत प्रेमी उनके फन के दीवाने हो गए। फकीरा की लाजवाब प्रतिभा को बॉलीवुड़ ने पूरा सम्मान दिया।

फकीरा ने ‘मि. रोमियों’, ‘नायक’, ‘लगान’, ‘लम्हे’ आदि कई फिल्मों में अपनी आवाज का जलवा बिखेरा। फकीरा खान ने अब तक उस्ताद जाकिर हुसैन, भूपेन हजारिका, पं. विश्वमोहन भट्ट, कैलाश खैर, ए.आर. रहमान, आदि ख्यातिनाम गायकों के साथ जुगलबंदियां देकर अमिट छाप छोडी। फकीरा ने 35 साल की अल्प आयु में 40 से अधिक देशों में हजारों कार्यक्रम प्रस्तुत कर लोक गीत-संगीत को नई उंचाइयां प्रदान की। फकीरा के फन का ही कमाल था कि उन्‍होंने फ्रांस के मशहूर थियेटर जिंगारो में 490 सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर राजस्थान की लोक कला की अमिट छाप छोड़ी।

फकीरा ने अब तक पेरिस, र्जमनी, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया, फ्रांस, इजरायल, यू.एस.ए बेल्जियम, हांगकांग, स्पेन, पाकिस्तान सहित 40 से अधिक देशों में अपने फन का प्रदर्शन किया। मगर, फकीरा राष्‍ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस पर वर्ष 1992, 93, 94, 2001, 2003 तथा 2004 में नई दिल्‍ली के परेड ग्राउंड में दी गई अपनी प्रस्तुतियों को सबसे यादगार मानते हैं।

फकीरा खान ने राष्‍ट्रीय स्तर के कई समारोहों में शिरकत कर लोक संगीत का मान-सम्मान बढ़ाया है। उन्होंने समस्त आकाशवाणी केन्द्रों, दूरदर्शन केन्द्रों, डिश चैनलों पर अपनी प्रस्तुतियां दी हैं।

फकीरा खान ने सितम्बर 2009 में जॉर्डन के सांस्कृतिक मंत्रालय द्वारा आयोजित ‘द सुफी फेस्टिवल’ में अपनी लोक गायिकी से धूम मचा दी। उनके द्वारा गाये राजस्थान के पारम्परिक लोक गातों के साथ सुफियाना अन्दाज को बेहद पसंद किया गया।

फकीरा लोक गीत-संगीत की मद्धम पड़ती लौ को जिलाने के लिए मांगणियार जाति के बच्चों को पारम्परिक जांगड़ा शैली के लोक गीतों, भजनों, लोक वाणी और सुफियाना शैली का प्रशिक्षण देकर नई पौध तैयार कर रहे हैं। फकीरा ने हाल में ही ‘वर्ल्‍ड म्यूजिक फैस्टिवल’, शिकागो द्वारा आयोजित 32 देशों के 57 ख्यातिनाम कलाकारों के साथ लोक संगीत की प्रस्तुतियां दे कर परचम लहराया। फकीरा खान को ‘दलित साहित्य अकादमी’ द्वारा सम्मानित किया गया। राज्य स्तर पर कई मर्तबा समानित हो चुके फकीरा खान के अनुसार, लोक संगीत खून में होता है, घर में जब बच्चा जन्म लेता है और रोता है, तो उसके मुंह से स्वर निकलते हैं।

उनके अनुसार, लोक गीत संगीत की जांगड़ा, डोढ के दौरान लोक-कलाकारों के साज बाढ में बह गए थे। फकीरा खान ने खास प्रयास कर लगभग दो हजार लोक कलाकारों को सरकार से निःशुल्क साज दिलाए।

शनिवार, 15 मई 2010

देखिये तस्वीरे सरहदें रोक नहीं सकीं लोक संगीत की सोंधी महक को फैलने से

सरहदें रोक नहीं सकीं लोक संगीत की सोंधी महक को फैलने से

 













बाड़मेर: पाकिस्तान में मांगणियार जाति के लोक कलाकारों ने अपनी गायकी से अलग पहचान बना रखी है। पाक के सिन्ध प्रान्त के मिटठी, रोहड़ी, गढरा, थारपारकर, उमरकोट, खिंपरो, सांगड आदि जिलों में मांगणियार जाति के लोग निवास करते हैं। पाक में रह रहे मांगणियार मूलतः राजस्‍थान के बाड़मेर और जैसलमेर जिलों के हैं, जो भारत-पाक युद्ध (1965 और 1971) में पलायन कर पाक चले गए।

लोक गीतों के माध्यम से थार संस्कृति और परम्परा की छटा बिखेरने वाले मांगणियार कलाकारों की पाक में सम्मानजनक स्थिति नहीं थी। पाक के मांगणियार भी राजपूत जाति के यहां यजमानी कर अपना पालन-पोषण करते थे। सोढा राजपूतों का सिन्ध में बाहुल्य हैं। सोढा राजपूतों की सिन्ध में जागीरदारी होने के कारण कई मांगणियार परिवार भारत-पाक विभाजन के दौरान पाक में रह गए, तो कई परिवार युद्ध के दौरान पाक चले गए।

बाड़मेर से गये एक परिवार में सन 1961 में संगीत के कोहिनूर ने जन्म लिया। इस कोहिनूर ने, जिसे पाकिस्तान और विदेशों में उस्ताद सफी मोहम्मद फकीर के नाम से जाना जाता हैं, मांगणियार गायकी को पाक में अलग पहचान और ख्‍याति दिलाई। उनके अलावा अनाब खान, शौकत खान, हयात खान, मोहम्मद रफीक, सच्चु खान, सगीर खान ढोली ने मांगणियार संस्कृति को पाक में नई पहचान दी है।

इसके अलावा, बाड़मेर-जैसलमेर सीमा पर स्थित देवीकोट के मूल निवासी फिरोज गुल ने पाक में लुप्त हो चुके हारमोनियम कला को पुनर्जीवित कर काफी नाम कमाया। पाक में आज फिरोज गुल का हारमोनियम बजाने में कोई सानी नहीं है। पाक की मशहूर लोक गायिका आबदा परवीन के दल के साथ फिरोज देश-विदेश में ख्‍याति अर्जित कर रहे हैं। पाक में मारवाड़ी लोक गीतों की जबरदस्त मांग को मांगणियार लोक कलाकार पूरा कर रहे हैं। इन लोक कलाकारों ने पाक में मांगणियार गायकी को नया आयाम प्रदान किया है और मारवाडी लोक गीत-संगीत को पाक में मान-सम्मान दिलाया है।

इसके अलावा पाक में कृष्‍ण भील, सुमार भील, मोहन भगत, जरीना, माई नूरी, माई डोली, माई सोहनी, सबीरा सुल्तान, दिलबर खान, फरमान अली, आमिर अली, असलम खान, लॉग खान, सुमार खान, मोहम्मद इकबाल जैसे मांगणियार लोक गीत-संगीत के पहरुओं ने राजस्थान की लोक कला, गीत संगीत, संस्कृति और परम्परा को पाक में जिन्दा रखा है। सिन्ध और थार की लोक संस्कृति, परम्पराओं, गीत-संगीत, कला में महज देश का फर्क है।

मांगणियार लोक गायकों ने लोक संगीत के जरिए दोनों देशों की सीमाएं तोड़ दी हैं। पाकिस्तान गए भारतीय मांगणियार परिवारों ने थार शैली के लोक गीत-संगीत को पाकिस्तान में ना केवल जिन्दा रखा, अपितु उसे दुनिया भर में नई उंचाइयां दीं। पाकिस्तान में एक वक्त हारमोनियम समाप्त सा हो गया था, ऐसे में फिरोज मांगणियार ने हारमोनियम को नया जन्म देकर पाकिस्तान में हारमोनियम को लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाया।