राजस्थानी भाषा को मान्यता सहित सत्रह सूत्रीय मांगो का ज्ञापन सोनिया गाँधी को सौंपा
इस बार राजस्थानी को मान्यता मिलेगी ..सोनिया गांधी
बाड़मेर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के बेनर तले गुरूवार को बाड़मेर स्थित आदर्श स्टेडियम में कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी को राजस्थानी भाषा को संवेधानिक मान्यता दिलाने की मांग को लेकर समिति के जोधपुर संभाग उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी ,महासचिव विजय कुमार ,जिला पाटवी रिडमल सिंह दांता ,जैसलमेर जिला महिला कांग्रेस अध्यक्षा प्रेमलता चौहान ,राम कंवर देवड़ा ,अशोक राजपुरोहित ,हिन्दू सिंह तामलोर ,अशोक सारला ,जैसलमेर नगर परिषद् सभापति अशोक तंवर और राजस्थानी भाषा समिति जैसलमेर के सरंक्षक उम्मेद सिंह तंवर के नेतृत्व में सत्रह सूत्रीय ज्ञापन दिया .इस अवसर पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ,कांग्रेस महासचिव मुकुल वासनिक ,विधायक मेवाराम जैन सांसद हरीश चौधरी भी मौजूद थे ,.ज्ञापन लेकर सोनिया गांधी ने कहा की आप राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाना चाहते हें ,मुकुल वासनिक ने कहा की इस बार काम हो जाएगा ,.जोधपुर संभाग उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी ने बताया प्रदेश महामंत्री राजेन्द्र बारहट और राणा के चेयर पर्सन प्रेम भंडारी के निर्देशानुसार यु पी ऐ चेयरपर्सन सोनिया गांधी को ज्ञापन सौंप राजस्थानी भाषा को संवेधानिक मान्यता दिलाने के साथ सत्रह सूत्रीय ज्ञान सौंपा गया .समिति के जिला पाटवी रिडमल सिंह दांता ,सुलतान सिंह रेडाना ,फकीरा खान ,रमेश गौड़ ,प्रकाश जोशी ,अनिल सुखानी ,दुर्जन सिंह गुड़ीसर,कबूल खान ,रमेश सिंह इन्दा ,रहमान जायादू ,,इन्दर प्रकाश पुरोहित ,सांग सिंह लूनू ,रघुवीर सिंह तामलोर ,सहित कई कार्यकर्ताओ की उपस्थिति में ज्ञापन देकर राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की पुरजोर मांग की गयी ,भाटी ने बताया की ज्ञापन में लिखा हें कीजिस देश का साहित्य जगमगाता हो,वह देश अपने आप में जगमगाता है ,और इस लिए संस्कृति की जो मौलिक अभिव्यक्ति है,उसकीभाषा संवाहक होती है । बिना खुद की जुबान के राष्ट्र ,प्रदेश या व्यक्ति के स्वाभिमान का होना बडा़ असम्भव काम है ज्ञापन में लिखा हें कि, भारतीय भाषाओं के शब्द भंडार से हिन्दी बहुत समृद्ध हुई है । दुर्भाग्यवश पांच दशक बीत जाने के बाद स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती का वर्ष आ गया फ़िर भी इन पच्चास वर्षों के अन्दर जिस राजस्थानी भाषा के अन्दर आज़ादी के गीत लिखे गए थे,जिन गीतों को, जिस साहित्य को सुन कर लोगों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए,आज उस राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची के अन्दर मान्यता नहीं मिली । इस कारण से राजस्थानी साहित्य बहुत उपेक्षित हो रहा है । हम मीरा के गीत ,उसके पद को ठीक प्रकार से नहीं समझ पा रहे है । नरहरि दास,बांकीदास,चंदरबरदाई,राजिया के दूहे, और पृथ्वीराज की कविताओं का हम अभी तक इंतजार कर रहे हैं । एक विजयदान देथा ज़रूर हैं, जिनकी कहानियां सुन कर हम देश-देशान्तर में गौरव का अनुभव करते हैं । , चाहे राजस्थान हो,चाहे महाराष्ट्र हो, चाहे पश्चिम बंगाल हो, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, मध्यप्रदेश, असम में बसे हुए लगभग 8 करोड़ के आसपास राजस्थानी भाषा का उपयोग करने वाले लोग हैं, जिनकी मातृभाषा आज संविधान की आठवीं सूची का इंतजार कर रही है ।राजस्थान वासियों का और राजस्थान की भाषा बोलने वालने वालों का हक छीनने का कोई औचित्य प्रकट नहीं होता । राजस्थानी भाषा का जहां तक सवाल है, इसका अस्तित्व आठवीं शताब्दी में आया, और इस में लिखे हुए ग्रन्थ आज भी उपलब्ध हैं ।आर टेट में राजस्थानी भाषा को शामिल करने तथा माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में राजस्थानी साहित्य विषय के संकाय शुरू करने सोनिया गाँधी के नाम राजस्थानी भाषा,साहित्य, संस्कृति व शिक्षा को बढ़ावा दिए जाने संबंधी 17 सूत्री ज्ञापन दिया गया