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रविवार, 9 सितंबर 2012

अमर शहीद पूनम सिंह भाटी के 55 वें बलिदान दिवस पर विशेष जान की बाजी लगा कर की भुट्टेवाला चौकी की रक्षा


अमर शहीद पूनम सिंह भाटी के 55 वें बलिदान दिवस पर विशेष


जान की बाजी लगा कर की भुट्टेवाला चौकी की रक्षा

पाक रेंजरों पर भारी पड़ा जैसाणा का सपूत


 जैसलमेर 9 सितंबर 1965 के दिन भुट्ïटोवाला चौकी पर एक हैड कांस्टेबल की अगुवाई में मात्र 8-9पुलिस के जवान अपना नियमित चौकसी का कार्य कर रहे थे। घास-फूस से बनी चौकी में उनकी बंदूक जंग लगी पड़ी थी। अचानक करीब 60 पाकिस्तान रेंजरों ने पुलिस चौकी को घेर लिया। उनके पास युद्ध करने की पूरी तैयारी थी। सूर्यास्त के बाद यद्यपि सैनिक हथियारों का इस्तेमाल नहीं करते हैं, लेकिन पाकिस्तानी रेंजरों ने युद्ध तमाम मर्यादाएं तोड़कर भुट्ïटोवाला चौकी पर कब्जा करने के लिए धावा बोल दिया। रेंजरों की ओर से आई गोलियों की आवाज से पुलिस के जवान चौकस हो गए। चौकी के हवालदार लूण सिंह रावलोत व अन्य सिपाहियों ने राष्ट्र रक्षा के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया। इस चौकी पर ही उस समय एक सिपाही भाटी पूनम सिंह भी मुकाबले में सबसे आगे था। एक तरफ रात पड़ जाने से पुलिस जवानों को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। वहीं दूसरी ओर चारों ओर से पाक रेंजरों ने इन्हें घेर रखा था। लेकिन उसके बावजूद हवालदार लूण सिंह ने दुश्मन को घेरने की जोरदार योजना तैयार कर ली। उन्होंने अपने अल्प साथियों को निर्देश दिया कि अब घबराने की कोई बात नहीं है। सभी जवान चारों दिशाओं से अपने मोर्चे खोलकर वार करने शुरू कर दें। ऐसा चमत्कार हुआ कि चंद ही क्षणों में पाक के पांच रेंजर रेत के धोरों में धराशायी हो गए।

पुलिस के जवानों ने जोश भरे पाक रेंजरों के हौसले पस्त कर दिए लेकिन दूसरी ओर पुलिस जवानों के सामने कारतूसों के खाली स्टॉक का संकट खड़ा हो गया। इस संकट पूर्ण स्थिति में शहीद पूनम सिंह ने हिम्मत के साथ काम लिया। वे रेंगकर मरे हुए पाक रेंजरों के पास पहुंचे तथा उनके हथियार व बंदूक लाकर अपने साथियों को देकर एक बार युद्ध का माहौल बदल दिया। इसी दरम्यान पूनम सिंह भाटी के हाथों पाक के दो और रेंजर शिकार हो गए। कुल मिलाकर शहीद भाटी ने पाक कमांडर अफजल खां सहित आठ रेंजरों को मौत के घाट उतार दिया। इस बीच उधर से आई एक गोली पूनम सिंह को शहीद चिता पर ले गई। शेष त्न पेज १२

मरणोपरांत पुलिस अग्नि सेवा पदक दिया गया: गौरतलब है कि शहीद भाटी हाबूर गांव के निवासी जयसिंह भाटी की दूसरी संतान थे। उनकी माता का नाम श्रीमती धाय कंवर था। अपने देश के लिए जब भाटी ने प्राण न्यौछावर किए तब उनकी आयु मात्र 25 वर्ष ही थी। वह अविवाहित थे। सीमा के सपूत व शहीद भाटी को 26 जनवरी 1966 को गणतंत्र दिवस समारोह में तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा पुलिस अग्नि सेवा पदक द्वारा सम्मानित किया था। शहीद की यादगार में पुलिस अधीक्षक कार्यालय के सामने तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरो सिंह शेखावत ने शहीद की प्रतिमा का अनावरण कर उनकी याद चिर स्थाई की है।