*थार की चुनाव रणभेरी 2018*
*सुनहरे शहर की राजनीति में राजपरिवार और डॉ जालम सिंह की सक्रियता से कई स्थापित नेताओ की सियासी जमीन खिसकने की संभावना*
साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए राजस्थान में सियासी दलों ने अपनी बिसात बिछानी शुरू कर दी है. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की गौरव यात्रा का समापन अजमेर संभाग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में हो गई. वहीं कांग्रेस भी संकल्प यात्रा रैली के माध्यम से अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रही है.राहुल गांधी के दौरों ने सियासी हलचल तेज कर दी।।सरहदी जिले जैसलमेर की राजनीति उफान पर है। रोज नए समीकरण बनते बिगड़ते है।।राजपरिवार की राजनीति प्रवेश के बाद कई स्थापित नैरो की जमीन खिसक गई।।भाजपा नया दांव खेला रही। बाड़मेर के पूर्व जिला अध्यक्ष ,शिव के पूर्व विधायक डॉ जालम सिंह रावलोत को जैसलमेर की राजनीति में सक्रिय कर कई सवाल खड़े कर दिए।।
सीटों के लिहाज से राजस्थान के सबसे बड़े क्षेत्र मारवाड़ में जोधपुर संभाग के 6 जिले-बाड़मेर, जैसलमेर, जालौर, जोधपुर, पाली, सिरोही की कुल 33 सीट और नागौर जिले की 10 सीटों को मिलाकर कुल 43 विधानसभा क्षेत्र हैं. कभी कांग्रेस का गढ़ रहे मारवाड़ में पिछले चुनाव में बीजेपी ने 39 सीट जीत कर इस गढ़ को ढहा दिया. कांग्रेस के खाते में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सीट समेत महज तीन सीट आई जबकि एक सीट पर निर्दलीय ने कब्जा जमाया.
जैसलमेर का इतिहास
भारत के सुदूर पश्चिम में स्थित थार के मरुस्थल में जैसलमेर की स्थापना भारतीय इतिहास के मध्यकाल के प्रारंभ में 1156 ई. के लगभग यदुवंशी भाटी के वंशज रावल-जैसल द्वारा की गई थी. रावल जैसल के वंशजों ने यहां भारत के गणतंत्र में परिवर्तन होने तक बिना वंश क्रम को भंग किए हुए 770 वर्ष सतत शासन किया, जो अपने आप में एक महत्वपूर्ण घटना है. जैसलमेर राज्य ने भारत के इतिहास के कई कालों को देखा व सहा है.
जैसलमेर शाही परिवार का सियासी इतिहास
इस बार कयास लगाए जा रहे हैं कि जैसलमेर राजघराने की बहू राजेश्वरी राज्य लक्ष्मी विधानसभा चुनावी लड़ सकती हैं. हालांकि वो किस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगी अभी तय नहीं हुआ है लेकिन माना जा रहा है कि उनके लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों दलों के दरवाजे खुले हैं. राजेश्वरी राज्य लक्ष्मी नेपाल के सिसोदिया राणा राजघराने की राजकुमारी हैं, जिनकी शादी जैसलमेर शाही परिवार के वंशज बृजराज सिंह से 1993 में हुई थी.
जैसलमेर राजपरिवार से सियासत में प्रवेश करने वाली वह पहली सदस्य नहीं हैं. 1957 में पूर्व महाराजा रघुनाथ सिंह सांसद बने थे, वहीं राजघराने के ही हुकुम सिंह 1957-67 तक लगातार दो कार्यकाल के लिए विधायक रहे. इसके बाद वर्तमान वंशज बृजराज सिंह के चाचा चंद्रवीर सिंह 1980 में विधायक निर्वाचित हुए. उनके बाद डॉ. जितेंद्र सिंह का बतौर विधायक 3 साल का छोटा कार्यकाल रहा. इसके बाद से जैसलमेर रॉयल फैमिली का कोई सदस्य चुनाव नहीं जीत सका.
क्षेत्रफल के लिहाज से जैसलमेर देश का सबसे बड़ा जिला है जिसके अंतर्गत दो विधानसभा जैसलमेर और पोकरण आते हैं. दोंने ही सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. जैसलमेर विधानसभा क्षेत्र संख्या 132 की बात करें तो यह सामान्य सीट है. 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या 366257 है जिसका 82.12 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण और 17.88 प्रतिशत हिस्सा शहरी है. वहीं कुल आबादी का 15.35 फीसदी अनुसूचित जाति और 6.81 फीसदी अनुसूचित जनजाति हैं.
2017 की वोटर लिस्ट के अनुसार जैसलमेर में मतदाताओं की संख्या 215384 और 353 पोलिंग बूथ हैं. 2013 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर 84.69 फीसदी वोटिंग हुई थी और 2014 के लोकसभा चुनाव में 74.82 फीसदी वोटिंग हुई थी. पिछली तीन विधानसभा चुनाव में इस सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा है.
2013 विधानसभा चुनाव का परिणाम
साल 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी विधायक छोटू सिंह भाटी ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज करते हुए कांग्रेस के रूपाराम ढांड़े को 2867 वोटों से पराजित किया. बीजेपी के छोटू सिंह को 78790 और कांग्रेस से रूपाराम ढांड़े को 75923 वोट मिले थें.
2008 विधानसभा चुनाव का परिणाम
साल 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के छोटू सिंह भाटी ने कांग्रेस की सुनीता भाटी को 5775 मतों से शिकस्त दी. बीजेपी के छोटू सिंह भाटी को 34072 और कांग्रेस की सुनीता भाटी को 28297 वोट मिले थें.
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