सरहदी गांवों में धम परम्परा जंहा जन्म से मृत्यु तक का सम्पूर्ण खर्च जजमान उठाते

 सरहदी गांवों में धम परम्परा  जंहा जन्म से मृत्यु तक का सम्पूर्ण खर्च जजमान उठाते

लोक कलाकार जूठे खान के निधन पर जजमानों ने पांच घोड़े ,पांच लाख रूपये और तीन तोला सोना अर्पित किया परिवार को

चन्दन सिंह भाटी





जैसलमेर जैसलमेर के ग्रामीण इलाकों में बसी प्रमुख जातियों के लोग आज भी धम परम्परा का निर्वहन कर रहे हैं ,जिसमे गांव के गरीब जरूरतमंद परिवारों को केवल सरंक्षण प्रदान करते बल्कि उनके जन्म से लेकर शादी ,मृत्यु का खर्चा मिलकर उठाते हैं ,यह परम्परा सदियों से  चली आ रही हैं ,सांकड़ा के बोनाडा गांव के सिद्धस्त मांगणियार लोक कलाकार जूठे खान के निधन पर धम परम्परा  बानगी देखी गयी

,लोक कलाकार जूठे खान बोनाड़ा की स्मृति में धम्म का सफल आयोजन

हाल ही में दिवगंत हुए लोक कलाकार जूठे खान बोनाड़ा की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा एवं विरासती परम्परा धम्म का आयोजन किया गया। धम्म का संपूर्ण आयोजन बोनाड़ा गांव के जजमानों द्वारा अपने खर्चे से करवाया गया। जिसमें बाड़मेर - जैसलमेर व फलोदी जिलों के हजारों मांगणियार समाज के लोग उपस्थित रहे।जूठे खान के ज्येष्ठ पुत्र कुटले खान आज विश्व में राजस्थान का लोकप्रिय नाम है ।बॉलीवुड , टॉलीवुड तथा प्रतिष्ठित कार्यक्रमों में प्रस्तुति देने वाले कुटले खान जजमानी प्रथा को सर्वाधिक महत्व देते है तथा जजमानों के भी हर कार्यक्रम में उपस्थिति देते है।

राजस्थान का जटिल सामाजिक ताना-बाना जजमानी प्रथा (संरक्षण प्रणाली) से जुड़ा हुआ है, जो जाति-आधारित सामाजिक-आर्थिक परम्परा है जिसने सत्ता की एक विचलित करने वाली यथास्थिति बनाई है। संरक्षण की यह प्रणाली राजपूतों (प्रमुख क्षत्रिय जाति) से शुरू होती है, जो पिरामिड के शीर्ष पर बैठते हैं, और धीरे-धीरे जाति और वर्ग परम्परा  में अंतिम सदस्यों तक पहुँचती है।

जजमान एक संरक्षक होता है जो अपने अधीन काम करने वाले समुदायों और व्यक्तियों को वित्तीय सहायता और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता है या किसी भी तरह की सेवा प्रदान करता है। ऐसी दुनिया में जहाँ किसी व्यक्ति का व्यवसाय उसकी जाति से निर्धारित होता था, एक समाज अनिवार्य रूप से विभिन्न जातियों के सदस्यों से बना होता था जो अलग-अलग सेवाएँ प्रदान करते थे और जिन्हें शासक या ज़मींदार द्वारा एक साथ लाया जाता था। एक गाँव या बस्ती में अक्सर नाई (नाई), लोहार (लोहार), धोबी (धोबी) से लेकर ब्राह्मण (पुजारी/शिक्षक) तक सभी होते थे। कलाकारों और मनोरंजन करने वालों जैसे कि मंगनियार ने इन सामाजिक संरचनाओं के भीतर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


मीरासी जाति की एक उपजाति, मंगनियार, वंशानुगत संगीतकार, भाट और वंशावलीकार हैं। सदियों से, वे दो प्रमुख राजपूत वंशों, मारवाड़ के राठौर और जैसलमेर के भाटियों की वंशावली और इतिहास को रिकॉर्ड करके अपनी आजीविका कमाते रहे हैं। मंगनियारों को मांगलिक (शुभ) माना जाता है, और इसलिए राजपूत घरों में जीवन की शुरुआत और अंत एक मंगनियार की उपस्थिति से होता है।

इस प्रकार, गांव के भाटियों द्वारा मंगणियार जूठे  खान को बोनाडा  लाया गया। पांच पीढ़ियों के बाद भीजूठे खान  के परिवार का अपने जजमानों के साथ एक मजबूत रिश्ता बना हुआ है। शादी से लेकर मृत्यु तक का खर्च जजमान परिवार उठाते हैं  , गत दिनों बोनाड़ा के जूठे खान का निधन हो गया ,इनके पुत्र चम्पे खान ,अंतराष्ट्रीय सूफी फ्यूजन लोक कलाकार जिन्होंने हाल ही में जयपुर में आयोजित आईफा अवार्ड में लगातार तीसरी बार प्रस्तुति दी ,गफूर खान अपने पिता की मृत्यु के बाद से गांव में शोक सभा में हे ,जूठे खान के परिवार की तीसरी पीढ़ी आज भी  गांव के ठाकुरों की जजमानी करते हैं ,जूठे खान मृत्यु के बाद आज तेहरवी पर जजमानों द्वारा धम परम्परा का विधिवत निर्वाह किया गया , जूठे खान के मृत्यु के तेहरवी को जजमानों द्वारा शोक समाप्ति की रस्म धम का आयोजन किया जिसमे गांव के  समस्त जाति के लोग सम्मिलित हुए ,जजमानों ने जूठे खान के परिवार को पांच घोड़े ,तीन तोला सोना और पांच लाख रूपये लाग के दिए ,जूठे खान के परिवार की महिलाएं सर पर कलश धर चल रही थी तो इनके सरंक्षण के लिए जजमान हाथों में तलवारे लिए इन्हे  सुरक्षा प्रदान कर रहे थे ,आसपास के गांवों के समस्त मांगणियार बड़ी तादाद में उपस्थित थे ,जजमानी और सरंक्षण की उत्कृष्ट  आज भी निर्वहन हो रहा हैं ,  मांगणियार आज भी अपने जजमान परिवारों के यहाँ जिसमें कभी न खत्म होने वाली खम्मा घणी (मारवाड़ी अभिवादन जिसका मोटे तौर पर अनुवाद 'मैं आपसे क्षमा मांगता हूं' होता है) और शुभराज (वंशावली इतिहास) का पाठ करना होगा, जिसके लिए उन्हें पैसे, अनाज और कभी-कभी कुछ सोना या चांदी भी दी जाती हे


 धम मृत्यु में धन और भौतिक योगदान देने की प्रथा


मांगणियार (मांगणी-हार) का नाम इसी मांगने और पाने के रिश्ते से लिया गया है। खाद्यान्न से लेकर मृत्यु खर्च तक , जजमान अपने मांगणियार द्वारा किए जाने वाले हर महत्वपूर्ण खर्च में हिस्सा लेता है। मांगणियार को क्या दिया जाना है, यह तय किया जाता है। इस वित्तीय संरक्षण के साथ-साथ सामाजिक अनुबंध भी आता है; कृपया मैं इसे प्रदान करता हूँ। उच्च जाति-निम्न जाति के रिश्ते के सभी सामान्य लक्षणों के अलावा, मांगणियार ऊर्ध्वगामी गतिशीलता की धारणा की एक और आकर्षक विशेषता प्रदर्शित करते हैं। मांगणियार, सदियों से जाति हिंदुओं के संरक्षण में रहने वाला मुस्लिम समुदाय है, जो इस्लाम से दूर होता जा रहा है और अपने जजमानों की तरह हिंदू प्रथाओं के करीब पहुँच रहा है। उन्होंने अपने लिए एक दिलचस्प और जटिल बहुसांस्कृतिक पहचान बनाई है।


जजमानों का संस्कृति एवं संगीत संरक्षण में अदभुत योगदान है। इन्होंने सदियों से संगीत एवं हमारी संस्कृति को जीवित रखा । बोनाडा गांव में पिताजी के साथ जजमानों के घर गा- गाकर मेरी संगीत यात्रा शुरू की। कही पर भी परफॉर्म करे बोनाडा गांव हमेशा जेहन में रहता है।मैं बोनाडा गांव के समस्त जजमानों का आभार व्यक्त करता हु। की इन्होंने अपने संपूर्ण खर्चे से मेरे परिवार को दूसरी बार धम्म के आयोजन करवाया । कुटले खान, बॉलीवुड सिंह लोक गायक


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