शनिवार, 8 सितंबर 2012

युद्ध के दौरान रेल लाइन ठी करते हुए शहीद हुए थे रेलकर्मी



युद्ध के  दौरान रेल लाइन ठी करते हुए शहीद हुए थे रेलकर्मी

शहीदों की चिताओं  पर ,हर वर्ष लगेंगे मेले

बाड़मेर। भारतपाक 1965 के  युद्ध में टैंकों की गर्जना,लड़ाकू विमानों की बमबारी के धमाको  और चारों ओर गोलियों की बौछारें,सैनिकों की रेलमपेल का दृश्य रोंगटे खड़े करने वाला था। ऐसे में वीर सपूतों का हौंसला कम होने े बजाय दुगुना हो गया था। क्षतिग्रस्त रेल लाइन की मरम्मत करने की समस्या आई तो कई रेलकर्मी ेसरिया साफा पहनकर आगे आए। इनमें से 17 रेलकर्मी शहीद हुए। इनकी याद में सालाना गडरारोड़ कस्ब्ो में शहीद मेला लगता है।

भारतपाक युद्ध े दौरान पाकिस्तानी सेना ने कच्छ े नगरपार इलो में अपना दावा पेश किया। बदले में भारत ने पाक सेना को खदेड़ने तथा बाड़मेर से पाक कूच करने े लिए सिन्ध से मोर्चा खोलने े आदेश दिए। विकट परिस्थितियों में सैनिकों ने बहादूरी का परिचय देते हुए गडरासिटी में प्रवेश कर 8 सितंबर 1965 को तिरंगा फहरा दिया। भारतीय सेना की इस कार्रवाई से हतप्रत पाक ने भविष्य े संदर्भ में आंलन कर गडरारोड़ कस्ब्ो की रेल लाईन को बम वर्षा से क्षतिग्रस्त कर दिया। इससे परिणामस्वरूप अग्रिम मोर्चो पर डटी भारतीय सेना े लिए आवश्यक वस्तुओं और सामग्री का संकट खड़ा हो गया। इसे बावजूद शौर्य,साहस,संयम और अनुशासन पर टिकी भारतीय सेना का मनोबल कायम रहा। भारत े अनेक सपूत विकट परिस्थिति में भी अग्रिम मोर्चो पर शत्रुओं से भिड़ते रहे। हमारे शुरवीरों का मनोबल बनाए रखने और युद्ध जीतने े लिए गडरारोड़ की रेलवे लाईन अर्थान जीवन रेखा को दुरुस्त करने की आवश्यकता को पहली प्राथमिकता दी गई। सैनिकों को आवश्यक वस्तुएं एवं युद्ध सामग्री पहुंचाने की रेल ले जाने े लिए रेलवे े साहसी कर्मचारी आगे आए। किसी कवि े शब्दों में......

जननी ऐसो जन्म दे का दाता या शूर।

नहीं तो रहीजे बांजणी मत गवाईजे नूर॥

राजस्थान की इस मरुभूमि में ऐसे वीरों की कोई कमी नहीं थी। देश पर मरमिटने का ऐसा सुनहरा अवसर पाकर रेलवे कर्मचारी तत्काल रेलवे लाईन को दुरुस्त करने े लिए ेसरिया साफा बांधकर एवं देश भिक्त े गीत गाते हुए गडरा रोड़ पहुंचे। हवाई हमलों एवं गोलाबारी े सिहरन भरे माहौल में अपने काम पर जुट गए। यह वह क्षण था जब हर कर्मचारी अपने आप को गौरवांवित महसूस कर रहा था। पाक को अपने घुसपैठियों की मदद से रेलवे लाईन ठीक करने की सूचना मिल चूकी थी। भारत े लिए जीवन रेखा पाकिस्तान े लिए मृत्यु रेखा साबित होगी। यह सोचकर पाकिस्तान ने इस मरम्मत कार्य को निशाना बनवाने का आदेश दिया। उधर हवाई हमलों से बेखबर रेलवेकर्मियों ने भारत माता े उद्घोष े साथ काफी तेजी से कार्य करते हुए रेलवे लाईन को ठीक कर दिया। जब ये रेलवे कर्मचारी काम खत्म करे वापिस रवाना हो रहे थे, इस दौरान पाक े विमानों ने बमबारी करना शुरू कर दी। इस अप्रत्याशित हमले में रेलवे े 14 बहादूर कर्मचारी मातृभूमि की वेदी पर बलिदान हो गए। शहीद होने वालों में मुल्तानाराम खलासी,भंवरिया कांटेवाला, करना ट्रालीमेन, नंदराम गेंगमेन, हेमाराम खलासी, माला गैंगमेन, मघा गेंगमेन, हुकमा गेंगमेन, रावता गैंगमेन, चीमा, खीमराज गैंगमेन, लाला गैंगमेन, जेहा गैंगमेन तथा देवीसिंह खलासी शामिल थे। इस दौरान सैनिकों को खाद्य सामग्री एवं युद्ध सामग्री पहुंचाने े लिए रेल ले जाना अति आवश्यक था। ऐसे माहौल में वीर सपूत चालक चुन्नीलाल, फायरमैन चिमनसिंह तथा माधोसिंह ने देश सेवा का बीड़ा उठाया। ये सीमा पर रेल े जरिए सामग्री पहुंचाने े लिए स्वेच्छा से आगे आए। जब ये गडरारोड़ पहुंचने े बाद वापिस बाड़मेर े लिए रवाना हुए तो दुश्मन ने चालबाजी से संचार व्यवस्था कट कर दी। पाकिस्तानी घुसपैठिए े गलत सिगनल देने से बाड़मेर की तरफ से आने वाली मालगाड़ी गडरारोड़ से आने वाले इंजन से टकरा गई। इससे सवार रेल तीन रेल कर्मचारी देश की खातिर शहीद हो गए। रेलवे लाईन साफ हो जाने े बाद सेना े आयुध एवं आवश्यक सामग्री गडरारोड़ स्टेशन पर पहुंची तो शहीद रेलवे कर्मचारियों की निष्ठा और बलिदान को याद कर सैन्य अधिकारियों े गले रूंध गए। भारत माता की जय एवं अमर शहीदों की जय जयकार से गडरारोड़ स्टेशन गूंज उठा। गैर सैनिकों की कुर्बानी की खबर जब मोर्चे पर डटे सैनिकों को मिली तो वे दुगुने जोश से दुश्मनों पर टूट पड़े। इसमें से शहीद माधोसिंह की शादी हुए महज 15 दिन ही हुए थे। विभाग को आवश्यकता होने पर वे अपनी छुट्टियां निरस्त कर डयूटी पर आए थे। रेलवे विभाग ने इन शहीदों की याद में सालाना 9 सितंबर को शहीद दिवस मनाने का निर्णय लिया। इसे अलावा गडरारोड़ से बाड़मेर की ओर करीब आधाआधा किमी की दूरी पर अविस्थत शहीद घटनास्थलों पर रेलवे लाइन े पास स्मारक बनाने का भी निर्णय लिया गया। तब से प्रतिवर्ष इस शहादत स्थल पर हजारों लोग एकत्रित होकर शहीदों को याद करते है। गडरारोड़ रेलवे स्टेशन भवन की दीवार पर संगमरमर े एक शिलाखंड पर भी इन 17 अमरशहीदों का सामूहिक नामपट्ट स्थापित है। इसे सम्मुख प्रति वर्ष श्रद्घाजंलि अर्पित की जाती है।

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