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शनिवार, 3 अगस्त 2019

Hariyali Teej 2019: 3 अगस्‍त को है हरियाली तीज, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्‍व

Hariyali Teej 2019: 3 अगस्‍त को है हरियाली तीज, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्‍व

Hariyali Teej 2019: 3 अगस्‍त को है हरियाली तीज, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्‍व
हरियाली तीज का पर्व हिन्‍दू धर्म को मानने वाली महिलाओं के लिए बेहद खास है. तीज (Teej) पर्व को भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन की याद में मनाया जाता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए दिन-भर व्रत-उपवास रखती हैं. यही नहीं अच्‍छे पति की कामना के लिए अविवाहित लड़कियां भी इस व्रत को रखती हैं. मान्‍यता है कि हरियाली तीज (Hariyali Teej 2019) का व्रत रखने से विवाहित स्त्रियों के पति की उम्र लंबी होती है, जबकि अविवाहित लड़कियों को मनचाहा जीवन साथी मिलता है. हरियाली तीज का त्‍योहार मुख्‍य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्‍थान और मध्‍य प्रदेश में मनाया जाता है.
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हरियाली तीज कब है
हिन्‍दू कैलेंडर के अनुसार हरियाली तीज सावन महीने की शुक्‍ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक यह त्‍योहार हर साल जुलाई या अगस्‍त महीने में आता है. इस बार हरियाली तीज 3 अगस्‍त को मनाई जाएगी.


हरियाली तीज की तिथि और शुभ मुहूर्त
हरियाली तीज की तिथि: 03 अगस्‍त 2019
हरियाली तीज की तिथि आरंभ: 03 अगस्‍त 2019 की सुबह 07 बजकर 06 मिनट से.
हरियाली तीज की तिथि समाप्‍त: 04 अगस्‍त 2019 की सुबह 03 बजकर 36 मिनट तक.

हरियाली तीज का महत्‍व
हरियाली तीज को 'छोटी तीज' और 'श्रावण तीज' के नाम से भी जाना जाता है. सावन में पड़ने वाली यह तीज सुहागिन स्त्रियों के लिए बेहद महत्‍वपूर्ण है. हिन्‍दू धर्म की मान्‍यताओं के अनुसार यह त्‍योहार पति के प्रति पत्‍नी के समर्पण का प्रतीक है. मान्‍यता है कि इस दिन गौरी-शंकर की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. सुहागिनों के पति दीर्घायु होते हैं और लड़कियों को मनचाहा वर मिल जाता है. आपको बता दें कि सुहागिन महिलाओं के बीच तीज पर्व का खास महत्‍व है. मान्‍यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्‍त करने के लिए पूरे तन-मन से करीब 108 सालों तक घोर तपस्‍या की. पार्वती के तप से प्रसन्‍न होकर शिव ने उन्‍हें पत्‍नी के रूप में स्‍वीकार कर लिया. तीज पर्व पार्वती को समर्पित है, जिन्‍हें 'तीज माता' कहा जाता है.

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कैसे मनाते हैं हरियाली तीज?
हरियाली तीज के दिन सुहागिन महिलाएं दिन भर व्रत-उपवास करती हैं. साथ ही इस दिन स्त्रियां सोलह श्रृंगार करती हैं, जिनमें हरी साड़ी और हरी चूड़‍ियों का विशेष महत्‍व है. दिन-भर स्त्रियां तीज के गीत गाती हैं और नाचती हैं. हरियाली तीज पर झूला झूलने का भी विधान हैं. स्त्रियां अपनी सहेलियों के साथ झूला झूलती हैं. कई जगह पति के साथ झूला झूलने की भी परंपरा है. शाम के समय भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन के बाद चंद्रमा की पूजा की जाती है. इस दिन सुहागिन स्त्रियों को श्रृंगार का सामान भेंट किया जाता है. खासकर घर के बड़े-बुजुर्ग या सास-ससुर बहू को श्रृंगार दान देते हैं. हरियाली तीज के दिन खान-पान पर भी विशेष ज़ोर दिया जाता है. हालांकि इस दिन स्त्रियां निर्जला व्रत रखती हैं, लेकिन फिर भी बिना मिठाइयों के त्‍योहार कैसा? तीज के मौके पर विशेष रूप से घेवर, जलेबी और मालपुए बनाए जाते हैं. रात के समय खाने में पूरी, खीर, हल्‍वा, रायता, सब्‍जी और पुलाव बनाया जाता है.

हरियाली तीज के लिए जरूरी पूजा और श्रृंगार सामग्री
हरियाली तीज के दिन व्रत रखा जाता है और पूजा के लिए कुछ जरूरी सामान की आवश्‍यकता होती है. पूजा के लिए काले रंग की गीली मिट्टी, पीले रंग का कपड़ा, बेल पत्र, जनेऊ, धूप-अगरबत्ती, कपूर, श्रीफल, कलश, अबीर, चंदन, तेल, घी,दही, शहद दूध और पंचामृत चाहिए . वहीं, इस दिन पार्वती जी का श्रृंगार किया जाता है और इसके लिए चूड़‍ियां, आल्‍ता, सिंदूर, बिंदी, मेहंदी, कंघी, शीशा, काजल, कुमकुम, सुहाग पूड़ा और श्रृंगार की अन्‍य चीजों की जरूरत होती है.

हरियाली तीज की पूजा विधि
- सुबह उठकर स्‍नान करने के बाद मन में व्रत का संकल्‍प लें.
- सबसे पहले घर के मंदिर में काली मिट्टी से भगवान शिव शंकर, माता पार्वती और गणेश की मूर्ति बनाएं.
- अब इन मूर्तियों को तिलक लगाएं और फल-फूल अर्पित करें.
- फिर माता पार्वती को एक-एक कर सुहाग की सामग्री अर्पित करें.
- इसके बाद भगवान शिव को बेल पत्र और पीला वस्‍त्र चढ़ाएं.
- तीज की कथा पढ़ने या सुनने के बाद आरती करें.
- अगले दिन सुबह माता पार्वती को सिंदूर अर्पित कर भोग चढ़ाएं.
- प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रत का पारण करें.

हरियाली तीज की व्रत कथा
हरियाली तीज की व्रत कथा इस प्रकार है: शिवजी कहते हैं, 'हे पार्वती! बहुत समय पहले तुमने हिमालय पर मुझे वर के रूप में पाने के लिए घोर तप किया था. इस दौरान तुमने अन्न-जल त्याग कर सूखे पत्ते चबाकर दिन व्यतीत किया था. मौसम की परवाह किए बिना तुमने निरंतर तप किया. तुम्हारी इस स्थिति को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुःखी और नाराज़ थे. ऐसी स्थिति में नारदजी तुम्हारे घर पधारे.

जब तुम्हारे पिता ने उनसे आगमन का कारण पूछा तो नारदजी बोले- 'हे गिरिराज! मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहां आया हूं. आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वह उससे विवाह करना चाहते हैं. इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूं.' नारदजी की बात सुनकर पर्वतराज अति प्रसन्नता के साथ बोले- हे नारदजी! यदि स्वयं भगवान विष्णु मेरी कन्या से विवाह करना चाहते हैं तो इससे बड़ी कोई बात नहीं हो सकती. मैं इस विवाह के लिए तैयार हूं.'

शिवजी पार्वती जी से कहते हैं, 'तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी, विष्णुजी के पास गए और यह शुभ समाचार सुनाया. लेकिन जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम्हें बहुत दुख हुआ. तुम मुझे यानी कैलाशपति शिव को मन से अपना पति मान चुकी थी.

तुमने अपने व्याकुल मन की बात अपनी सहेली को बताई. तुम्हारी सहेली ने सुझाव दिया कि वह तुम्हें एक घनघोर वन में ले जाकर छुपा देगी और वहां रहकर तुम शिवजी को प्राप्त करने की साधना करना. इसके बाद तुम्हारे पिता तुम्हें घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए. वह सोचने लगे कि यदि विष्णुजी बारात लेकर आ गए और तुम घर पर ना मिली तो क्या होगा? उन्होंने तुम्हारी खोज में धरती-पाताल एक करवा दिए लेकिन तुम ना मिली.

तुम वन में एक गुफा के भीतर मेरी आराधना में लीन थी. श्रावण तृतीय शुक्ल को तुमने रेत से एक शिवलिंग का निर्माण कर मेरी आराधना कि जिससे प्रसन्न होकर मैंने तुम्हारी मनोकामना पूर्ण की. इसके बाद तुमने अपने पिता से कहा, 'पिताजी! मैंने अपने जीवन का लंबा समय भगवान शिव की तपस्या में बिताया है और भगवान शिव ने मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर मुझे स्वीकार भी कर लिया है. अब मैं आपके साथ एक ही शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह भगवान शिव के साथ ही करेंगे.' पर्वत राज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और तुम्हें घर वापस ले गए. कुछ समय बाद उन्होंने पूरे विधि-विधान के साथ हमारा विवाह किया.'

भगवान् शिव ने इसके बाद बताया, 'हे पार्वती! श्रावण शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका. इस व्रत का महत्‍व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मन वांछित फल देता हूं.'

भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा कि इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा से करेंगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा.

बुधवार, 29 मई 2013

राजस्‍थान: सरहद पर दो बूंद पानी के लिए तरसते दलित



राजस्‍थान: सरहद पर दो बूंद पानी के लिए तरसते दलित

चन्दन सिंह भाटी



बाडमेर: भारत-पाकिस्तान सरहद पर बसे परंपरागत रूप से अभावग्रस्त राजस्‍थान के बाड़मेर जिले में भीषण गर्मी के साथ-साथ पेयजल संकट से आम आदमी का जीना मुहाल हो गया है। अभावों के आदी होने के बावजूद थारवासी इस बार के पेयजलसंकट और भीषण गर्मी को सहन नहीं कर पा रहे हैं। सरहदी क्षेत्रों में पेयजल संकट किसी सजा से कम नहीं है। विशेषकर, दलित वर्ग के लोगों के लिए।

बाड़मेर जिले के समस्त , गांव अभावग्रस्त घोषित हैं, मगर राज्य सरकार ने अभावग्रस्त जनता को राहत देने के लिए किसी प्रकार के ठोस कदम नहीं उठाए हैं, जिसके चलते दलित परिवारों के सामने जीवन का संकट पैदा हो गया है। दलितों की जिंदगी दो बूंद पानी की तलाश तक सिमट कर रह गई है। पूरा दिन एक घड़ा पानी की तलाश में निकल जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में दलित परिवारों के लिए पेयजल की अलग से व्यवस्था परंपरागत रूप से है। आज भी सवर्ण जातियां दलित वर्ग के लोगों को अपने साव, तालाबों और टांकों से पानी भरने नहीं देती। अभिशप्त दलित वर्ग दो बूंद पानी के लिये संर्घष कर रहा है। गाँवो में आज भी दलित वर्ग के पेयजल स्रोत गाँव के छोर पर बने हें .दलित वर्ग के लिए गाँवो में टाँके ,बेरिया और कुँए अलग से बने हुए हें .तालाबो पर दलितों को आज भी पानी भरने नहीं दिया जाता

जाति के आधार पर बंटे इन पेयजल स्रोतों का निर्माण सरकार ने भले ही सार्वजनिक तौर पर कराया हो, मगर जमीनी हकीकत यही है कि दलित को सार्वजनिक कुओं से पानी भरने की इजाजत तथाकथित सभ्य समाज नहीं देता। कहने को जिला प्रशासन द्वारा सभी आठों तहसीलों में पानी के टैंकरों की व्यवस्था कर रखी है, मगर ये पानी के टैंकर जरूरतमंद लोगों तक पहुंचने से पहले गांवों के प्रभावशाली लोगों के हत्थे चढ जाते हैं। सार्वजनिक टांकों में पानी भरे जाने के बजाय प्रभावशाली सवर्ण जाति के निजी टांकों में भरे जाने के कारण दलितों के पेयजल स्रोत खाली ही रहते हैं। ऐसे में दलित परिवार की महिलाओं को आसपास के गांवों में पानी की तलाश में निकलना पडता है।

गांव के सार्वजनिक टांकों पर दलितों को पानी भरने की इजाजत नहीं

गांव-गांव में यही कहानी दोहराई जाने के कारण आज दलितों के पानी के टांके खाली पड़े हैं। जाति के आधार पर बंटे पानी के कारण दलित वर्ग के लोग पलायन को मजबूर हैं। गांवों में बाकायदा सवर्ण जातियों के लिए अलग से टांके बने हैं, तो दलित वर्ग के लिए ‘मेधवालों की बेरी’, ‘भीलों की बेरी’, ‘सांसियों का तला’, ‘मिरासीयों का पार’ नाम से पानी के स्रोत अलग से गांव की सरहदों पर बने हुए हैं। जिले में लगभग 70-80 सरपंच, जिला परिषद सदस्य तथा पंचायत समिति सदस्य और एक विधायक दलित समाज से होने के बावजूद ग्रामीण अंचलों में दलितों का सरेआम शोषण हो रहा है। दो बूंद पानी के लिए दलित वर्ग को बार-बार अपमानित होना पड रहा है।

जाति आधारित बंटवारा महज पानी में ही हो, ऐसा नहीं हैं। हर योजना का बंटवारा जाति आधारित हो रहा है। जिला प्रशासन द्वारा संचालित पेयजल राहत टैंकर चलाने वाले किशनाराम ने बताया, ‘‘हम गरीबों तक पानी पहुंचाना चाहते हैं, मगर गांव के प्रभावशाली लोग हमें गांव में घुसने पर ‘देख लेने’ की धमकिया देते हैं, जोर-जबरदस्ती कर पानी के टैंकर अपने घरों के टांकों में खाली कराते हैं। हमें गांवों में बार-बार जाना होता है। किस-किस से दुश्‍मनी मोल लें।’’

रूघाराम मेघवाल कहते हैं, ‘राहत के पेयजल टैंकर गरीब और दलितों तक पहुंचने ही नहीं दिए जाते। गांवों में दलितों के टांकों में पानी रीत (रिक्‍त) चुका हैं। पानी खरीदने की हमारी हैसियत नही है। बीस-बीस किलोमीटर परिवार की महिलाएं और बच्चे पैदल चल कर पानी की तलाश में भटकते रहते हैं। दिन भर की तलाश के बाद एक घड़ा ला पाते हैं। ऐसी स्थिति कब तक चलेगी? जिला प्रशासन को बार-बार सूचित किया, मगर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है।


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