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शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

थार चुनावी रणभेरी २०१३ राजनितिक शख्शियत - बाड़मेर जैसलमेर के संसद रहे रामनिवास मिर्धा

थार चुनावी रणभेरी २०१३ राजनितिक शख्शियत - बाड़मेर जैसलमेर के संसद रहे रामनिवास मिर्धा

जीवन परिचय :
कांग्रेस के कद्दावर नेता रामनिवास मिर्धा इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकारों में वर्षो तक विभिन्न मंत्रालयों में मंत्री रहे। उनका जन्म 24 अगस्त 1924 को नागौर जिले के कुचेरा ग्राम में तत्कालीन जोधपुर रियासत के पुलिस महानिरीक्षक बलदेवराम मिर्धा के यहां हुआ। उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में एमए तथा लखनऊ विश्वविद्यालय से विधि स्त्रातक किया। मिर्धा ने कुछ दिनों तक जिनेवा में भी अध्ययन किया। मिर्धा राजस्थान प्रशासनिक सेवा के भी अधिकारी रहे।

राजनीतिक परिचय :
मिर्धा ने 1953 में राज्य सेवा से इस्तीफा दिया और जायल क्षेत्र से उपचुनाव में कांग्रेस टिकट पर विधायक चुने गए। वो 13 नवम्बर 1954 से मार्च 1957 तक सुखाडिया मंत्रिमंडल में कृषि, सिंचाई और परिवहन आदि विभागों में मंत्री रहे। 1957 के चुनाव में वो लाडनूं और 1962 में नागौर से फिर विधायक चुने गए।

मिर्धा लगातार 25 मार्च 1957 से 2 मई 1967 तक राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष रहे। 1970 में पहली बार इंदिरा गांधी की सरकार में गृहराज्य मंत्री नियुक्त हुए और 1977 तक आपूर्ति एवं पुनर्वास राज्यमंत्री रहे। 1977 से 80 तक राज्यसभा के उपाध्यक्ष रहे। मिर्धा ने 1983 में सिंचाई राज्य मंत्री और 1984 में विदेश राज्यमंत्री का पद ग्रहण किया।

राजीव गांधी सरकार में उन्होंने केबिनेट मंत्री के रूप में पदोन्नत होकर वस्त्र मंत्रालय का भी कार्यभार संभाला। दिसंबर 1984 में मिर्धा ने पहली बार नागौर से लोकसभा चुनाव लडा और नाथूराम मिर्धा को पराजित किया। उसके बाद वो 1991 के मध्यावधि चुनाव में बाडमेर लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए। मिर्धा कई सालों तक राजस्थान ललित कला अकादमी के अध्यक्ष भी रहे। उनके छोटे बेटे हरेन्द्र मिर्धा भी पिछली अशोक गहलोत के मंत्री मंडल में मंत्री थे। हरेन्द्र मिर्धा कुशल राजनेता हें।
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थार चुनावी रणभेरी २०१३। । सिवाना महेंद्र टाइगर के पक्ष में हें कांग्रेस की जीत के समीकरण

थार चुनावी रणभेरी २०१३। । सिवाना महेंद्र टाइगर के पक्ष में हें कांग्रेस की जीत के समीकरण



बाड़मेर राज्य में विधानसभा चुनावो की घोषणा के साथ ही राज्य के दोनों प्रमुख दलों में विधानसभा के उम्मीदवार तय करने को लेकर तेज़ी आई हें। मुख्यमंत्री संभावित उम्मीदवारों की सूचि के साथ दिल्ली जा रहे हें। बाड़मेर में कांग्रेस हर हाल में पिछले परिणाम लाने की फिराक में हें मगर यहाँ व्यक्तिगत स्वार्थो के चलते स्थापित नेता प्रभावशाली नेता को मैदान में उतरने की बजे अपनी जीत के लिए फिर फिसड्डी उम्मीदवार उतरने की जिद पाल रहे हें। सिवान में कांग्रेस के पास उम्मीदवारों के ढेर लगे। कोई त्रिपें लोगो ने अपनी दावेदारी पेश की मगर उनमे योग्यतम तीन चार ही थे जो विधानसभा चुनाव का मतलब भी जानते थे। सिवान में गत चुनावो में बसपा से सिवान में चुनाव मैदान में उतर कांग्रेस उम्मीदवार को तीसरे स्थान पर खिसकने वाले महेंद्र टाइगर कांग्रेस को जीत दिलाने में एक मात्र शक्षम उम्मीदवार हें। मगर जाट नेताओ की मज़बूरी बालाराम चौधरी हें जो गत चुनावो में तीसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस की गॉइड लाइन के हिसाब से बालाराम को टिकट मिलना मुश्किल हें। ऐसे में कांग्रेस के पास महेंद्र टाइगर ,संत निर्मलदास और गणपत सिंह के बीच चुनाव करना हें। गनपत सिंह राजपूत होने से होड़ से बहार हो गए। निर्मलदास और महेंद्र टाइगर में से आम जन महेंद्र टाइगर के समर्थन में हें। महेंद्र को जैन समाज के थोक वोट मिलाने के साथ अनुसूचित जाती ,रबारी , राजपूतो के वोट भी मिलने की संभावना हें। महेंद्र टाइगर कांग्रेस को सीट दिला सकते हें ,कांग्रेस उनकी दावेदारी पर गंभीरता के विचार भी कर रहा हें मगर बाड़मेर विधानसभा से भी जैन उम्मीदवार मेवाराम हें इसीलिए कांग्रेस के सामने दो जैन को टिकट देने की मज़बूरी हें। बाड़मेर से उम्मीदवार बदलने की चर्चे जोरो पर हें। महेंद्र टाइगर के सशक्त रूप से दावेदार के रूप में उभरने के बाद कांग्रेस के दिग्गज नेताओ में खलबली मची हें। अनुसूचित जाती आयोग के अध्यक्ष और सिवाना के पूर्व विधायक गोपाराम मेघवाल भी महेंद्र टाइगर को उम्मीदवार के रूप में चाहते हें। लम्बे समय से कांग्रेस सिवान सीट से वंचित हें। ऐसे में कांग्रेस महेंद्र टाइगर के रूप में रिस्क ले सकती हें .इधर महेंद्र टाइगर को लेकर भाजपा भी सक्रीय हो गयी हें। टाइगर को भाजपा में लेन के प्रयास उच्च स्तर पर शुरू हुए हें। टाइगर गत चुनावो में अपना जनाधार बढ़ने के बरकरार रखने में सफल हुए हें। कांग्रेस के नेताओ ने उन्हें कांग्रेस में इसी शर्त पर शामिल किया था की अगली विधानसभा चुनावो में सिवाना उन्हें उम्मीदवारी दी जाएगी ,मगर नेता जातिगत राजनीती के चलते टाइगर की अनदेखी कर रहे हें मगर उनके बढ़ाते प्रभाव के चलते उनकी दावेदारी सभी पर भारी पड़ रही हें।