लोकसंस्कृति जीवित हो उठी सनावड़ा गेर मेला में
सनावड़ा गेर मेले में उमड़ा हुजुम
-होली के दूसरे दिन गेर मेले का आयोजन, हजारों की संख्या में दर्शकों की भीड़ के बीच लाल-सफेद आंगी पहने कलाकारों ने दी मनमोहक प्रस्तुतियां
बाड़मेर. एशियाड में धूम मचा चुके सनावड़ा गेर नृत्य की प्रस्तुति होली के दूसरे दिन धुलण्डी के अवसर पर सनावड़ा गेर मेले में हुई। विशेष पोशाक पहने सैकड़ों कलाकारों ने ढोल व थाली की थाप पर मनमोहक अंदाज में गेर नृत्य की प्रस्तुति देकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। मेले में बाड़मेर जिलेभर से हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ी।
गेर मेले में हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ के बीच लाल-सफेद आंगी पहने कलाकार गोल घेरे में डांडियों को टकराते हुए थिरकते नजर आए। मेले में युवाओं के साथ बुजुर्ग कलाकारों में भी जोश कम नही था। रंग बिरंगी आंगी पहने हाथों में डांडिया लिए गोल घेरे में नृतकों ने लय व ताल के साथ डांडियों की डंकार से सनावड़ा गूंज उठा।
167 सालों से गेर मेले का आयोजन:
167 वां गेर मेला धुलण्डी के दिन दोपहर 3 बजे से प्रारंभ हुआ। इस दौरान गेर नृतक चार दिशाओं में गेर खेलते हुए मैदान में पहुंचे। चार दिशाओं में पंक्तिबंद्ध नृत्य करते हुए गोल घेरा बना दिया। देखते ही देखते गैरिये थाली की टंकार और ढोल की थाप पर गोल घेरे में पारंपरिक अंदाज में थिरकते लगे। कभी खड़े होकर तो कभी योग मुद्रा में नृतकों ने अपना प्रदर्शन किया।
आसपास के गांवों से गेरियों ने भाग लिया:
गेर मेले में जाखड़ों की ढाणी, सनावड़ा, मूढ़ों का तला, रामदेरिया, जेठाणी जाखड़ों की ढाणी, सादुलानियों का तला, सुथारों का तला, कुम्हारों का तला, अणदे का तला, नवा तला, पिंडेलों का तला सहित 15-20 गांवों से गेर कलाकारों ने भाग लिया। दर्शकों की भारी भीड़ के कारण पर्याप्त जगह नहीं होने पर दर्शक मकान, पेड़ व पोल पर चढक़र गेर मेले का आनंद लिया। जेठाणी जाखड़ों का तला पर पहली बार गेर नृत्य की शुरूआत हुई, जहां दर्शकों ने उत्साह के साथ गेर नृत्य की प्रस्तुति दी। इस दौरान नानगाराम मायला, प्रेमाराम, तगाराम, चैनाराम, कुंभाराम मूढ़, खेराजराम, लाखाराम, सहित कई युवाओं ने उत्साह के साथ भाग लेते हुए गेर नृत्य की प्रस्तुति दी।
यह है कलाकरों की वेशभूषा:
गेर नृतक आंगी, बागी घाघरा, कमर कड़बंदा, पांवों में घुंघरु और विभिन्न रंगों में लाल पीला साफा पहने हुए थे। साफों में कलंकी लगाए, गले में कांच कशीदाकारी की बनी हुई पेसी पहने हुए थे। थाली और ढोल बजाने के तौर तरीकों के आधार पर ही गैरियों ने नृत्य की प्रस्तुतियां दी। थाली और ढोल की थाप के साथ ही गैरियों ने नृत्य प्रारंभ कर दिया। जैसे ही थाली की टंकार प्रथम बार बंद होकर पुन: शुरु होती है तो गेर नृतक खड़े होकर खेलने की बजाय योग मुद्रा की स्थिति में आ गए। जब दूसरी बार थाली की टंकार बंद होकर पुन: शुरू होती है तो हेरी नृत्य शुरु हो गया।
नहीं पहुंचे प्रशासनिक अधिकारी:
गेर मेले में इस बार कोई बड़ा प्रशासनिक अधिकारी नहीं पहुंचा। प्रशासनिक उदासीनता के कारण दर्शकों में निराशा नजर आई। जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक कन्हैयालाल रैगर, एडीओ महेंद्र शर्मा, पीराराम शर्मा, सदर थानाधिकारी आंनदसिंह, जिला परिषद सदस्य गोपालसिंह, सरपंच गंगादेवी चौधरी, पूर्व सरपंच कुंभाराम जाखड़, खीयाराम जाखड़ सहित कई बड़े-बुजुर्ग व युवाओं का सहयोग रहा। वहीं शंकरलाल देवपाल, भैरूलाल जैन, युद्धिष्टर, भीम भारती स्वामी, डूंगराराम सारण, लूणकरण बोथरा, भोमाराम मूढ़, ईशराराम, चौखाराम सहित कई लोगों का मेले में सहयोग रहा।
-होली के दूसरे दिन गेर मेले का आयोजन, हजारों की संख्या में दर्शकों की भीड़ के बीच लाल-सफेद आंगी पहने कलाकारों ने दी मनमोहक प्रस्तुतियां
बाड़मेर. एशियाड में धूम मचा चुके सनावड़ा गेर नृत्य की प्रस्तुति होली के दूसरे दिन धुलण्डी के अवसर पर सनावड़ा गेर मेले में हुई। विशेष पोशाक पहने सैकड़ों कलाकारों ने ढोल व थाली की थाप पर मनमोहक अंदाज में गेर नृत्य की प्रस्तुति देकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। मेले में बाड़मेर जिलेभर से हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ी।
गेर मेले में हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ के बीच लाल-सफेद आंगी पहने कलाकार गोल घेरे में डांडियों को टकराते हुए थिरकते नजर आए। मेले में युवाओं के साथ बुजुर्ग कलाकारों में भी जोश कम नही था। रंग बिरंगी आंगी पहने हाथों में डांडिया लिए गोल घेरे में नृतकों ने लय व ताल के साथ डांडियों की डंकार से सनावड़ा गूंज उठा।
167 सालों से गेर मेले का आयोजन:
167 वां गेर मेला धुलण्डी के दिन दोपहर 3 बजे से प्रारंभ हुआ। इस दौरान गेर नृतक चार दिशाओं में गेर खेलते हुए मैदान में पहुंचे। चार दिशाओं में पंक्तिबंद्ध नृत्य करते हुए गोल घेरा बना दिया। देखते ही देखते गैरिये थाली की टंकार और ढोल की थाप पर गोल घेरे में पारंपरिक अंदाज में थिरकते लगे। कभी खड़े होकर तो कभी योग मुद्रा में नृतकों ने अपना प्रदर्शन किया।
आसपास के गांवों से गेरियों ने भाग लिया:
गेर मेले में जाखड़ों की ढाणी, सनावड़ा, मूढ़ों का तला, रामदेरिया, जेठाणी जाखड़ों की ढाणी, सादुलानियों का तला, सुथारों का तला, कुम्हारों का तला, अणदे का तला, नवा तला, पिंडेलों का तला सहित 15-20 गांवों से गेर कलाकारों ने भाग लिया। दर्शकों की भारी भीड़ के कारण पर्याप्त जगह नहीं होने पर दर्शक मकान, पेड़ व पोल पर चढक़र गेर मेले का आनंद लिया। जेठाणी जाखड़ों का तला पर पहली बार गेर नृत्य की शुरूआत हुई, जहां दर्शकों ने उत्साह के साथ गेर नृत्य की प्रस्तुति दी। इस दौरान नानगाराम मायला, प्रेमाराम, तगाराम, चैनाराम, कुंभाराम मूढ़, खेराजराम, लाखाराम, सहित कई युवाओं ने उत्साह के साथ भाग लेते हुए गेर नृत्य की प्रस्तुति दी।
यह है कलाकरों की वेशभूषा:
गेर नृतक आंगी, बागी घाघरा, कमर कड़बंदा, पांवों में घुंघरु और विभिन्न रंगों में लाल पीला साफा पहने हुए थे। साफों में कलंकी लगाए, गले में कांच कशीदाकारी की बनी हुई पेसी पहने हुए थे। थाली और ढोल बजाने के तौर तरीकों के आधार पर ही गैरियों ने नृत्य की प्रस्तुतियां दी। थाली और ढोल की थाप के साथ ही गैरियों ने नृत्य प्रारंभ कर दिया। जैसे ही थाली की टंकार प्रथम बार बंद होकर पुन: शुरु होती है तो गेर नृतक खड़े होकर खेलने की बजाय योग मुद्रा की स्थिति में आ गए। जब दूसरी बार थाली की टंकार बंद होकर पुन: शुरू होती है तो हेरी नृत्य शुरु हो गया।
नहीं पहुंचे प्रशासनिक अधिकारी:
गेर मेले में इस बार कोई बड़ा प्रशासनिक अधिकारी नहीं पहुंचा। प्रशासनिक उदासीनता के कारण दर्शकों में निराशा नजर आई। जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक कन्हैयालाल रैगर, एडीओ महेंद्र शर्मा, पीराराम शर्मा, सदर थानाधिकारी आंनदसिंह, जिला परिषद सदस्य गोपालसिंह, सरपंच गंगादेवी चौधरी, पूर्व सरपंच कुंभाराम जाखड़, खीयाराम जाखड़ सहित कई बड़े-बुजुर्ग व युवाओं का सहयोग रहा। वहीं शंकरलाल देवपाल, भैरूलाल जैन, युद्धिष्टर, भीम भारती स्वामी, डूंगराराम सारण, लूणकरण बोथरा, भोमाराम मूढ़, ईशराराम, चौखाराम सहित कई लोगों का मेले में सहयोग रहा।
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